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कदली
२०१८
कद ली
मूत्रकृच्छ , तृषा, प्रमेह, कर्णरोग, अतिसार, रुधिर स्राव, स्फोटक, रक्तपित्त, दाह, रुधिविकार, योनि रोग और शोष—इनको दूर करता है।
कदलीदण्ड-कदलीनाल । केले के वृक्षस्तंभ के भीतर का सफ़ेद कोमल दण्डवत् भाग। कंजियाल, थोड़। योनिदोषहरो दण्ड: कादल्योऽमृग्दरं जयेत् । रक्तपित्तहरः शीत: सुरुच्योऽग्निवर्द्धनः ॥
कदलीदण्ड–रक पित्तनाशक, शीतल, रुचिजनक, अग्निवर्द्धक,योनिदोषनाशक और असृग्दररक्तप्रदर को दूर करता है।
कदलीमूल केले की जड़वल्यं वातपित्तघ्नं गुरु च।
यह वलवर्द्धक, भारी और वात पित्तनाशक है।
कदलीवल्कल-केले की छाल वा बकला कलार पेटो-बं०। तिक्तं कटु लघु वातहरश्च ।
(वै० निघ०) केले की छाल-कडु ई. चरपरी, हलकी और वातनाशक है।
___ कदली भेद___काष्ठकदलीस्यात्काष्ठकदली रुच्या रक्तपित्तहरा हिमा। गुरुर्मन्दाग्नि जननी दुर्जरा मधुरा परा॥
(ध०नि० । रा०नि०) काष्ठकदली ( कठकेला) रुचिकारी, शीतल, भारी, मंदाग्निकारक, दुर्जर और अत्यन्त मीठी होती है।
तृष्णादाह मूत्रकृच्छ, रक्तपित्तघ्नी विस्फोटकास्थि रोगहरी च । वै० निघ०)
यह तृषा (प्यास), दाह, मूत्रकृच्छ , रक्रपित्त, विस्फोट और अस्थिरोग का नाश करनेवाली है। (यह ग्राही और हृद्य है)
कृष्णकदलीकृष्णा तु कदली रुच्या तुवरा मधुरा लघुः। वायोर्धातोर्वृद्धिकरौ मेहपित्त तृषा हरा ॥
(वै निघ०)
___ काला केला-रुचिकारक, कषेला, मधुर, हलका, वातकारक, धातुवर्द्धक तथा प्रमेह, पित्त और तृषा को दूर करता है।
गिरिकदली (और आरण्य कदली-जंगली केला)
गिरिकदली मधुर हिमा बलवीर्य विवृद्धिदायिनी रुच्या । तृपित्त दाह शोषप्रशमन कों च दुर्जरा च गुरुः ।। (रा० नि० व० ११)
पहाड़ी केला-मधुर, शीतल, रुचिकारक, दुर्जर, भारी तथा बलवीर्यवर्द्धक है ओर प्यास, दाह, पित्त और शोष को निवारण करती है । (इसका फल कषेला, मधुर और भारी है)
सुवर्ण कदलीसुवर्णमोचा मधुरा हिमाच स्वल्पाशने दीपनकारिणी च। तृष्णापहा दाह विमोचनी च कफावह (कफापहा ) वृष्यकरी गुरुश्च ।।
(रा०नि० व० ११) अम्लवद्धनीति दृष्टफलंसोनकेला-मधुर, शीतल और थोड़ा खाने से जठराग्नि वर्द्धक है तथा प्यास को बुझानेवाला, दाहनाशक, कफवर्द्धक (कफनाशक ), वीर्यवर्द्धक और भारी है। निघण्टु रत्नाकर में वल्य और अग्निदीपक इतना अधिक लिखा है । ___ चम्पक कदली- चम्पकरम्भा, सुवर्णकदली (रा.),
वातपित्तहरं गुरु वीर्यकर अतिशीतं रसे पाके च मधुरम् । (रा०नि० व० ११ राज.)
चम्पा केला-वातपित्तनाशक, भारी, वीर्यजनक, अत्यन्त शीतल तथा रस और पाक में मधुर है।
सोनकला-कफवात नाशक, विष्टम्भकारक, अग्निप्रदीपक, दुर्जर, दाहनाशक और रक्तपित्तनाशक है।
महेन्द्र कदलीमहेन्द्र कदली चोष्णा वातस्य च विनाशिनी। प्रदरं पित्तरोगं च नाशयेदिति कीरिता ॥