________________
कदली
२०१५
कदली दृष्टि से यह उससे अधमतर होता है। केले का होती है। केले का फूल उससे भी अल्प गुण पुष्प-दण्ड-स्वरस पोटाश, सोडा, चूर्ण, मैग्नेसिया
(अनुगुण) और कृमिनाशक होता है । केले का एल्युमिना ( जि.समें किंचित् Ferric acid
कंद और पत्र शूल प्रशामक होते हैं । होता है) क्रोरिन, सल्फ्युरिक अन्हाइड्राइड, केले की पकी फली-कसेली, मधुर, वल फॉस्फोरिक अन्हाइड्राइड, सिलिका और कार्बन
कारक, शीतल. रक पिन नाशक, गुरुतर, मंदाग्नि अनहाइड्राइड प्रभृति द्रव्यों से संघटित होता है
वाले मनुष्य को अहित कारी सद्यः शुक्रवृद्धि कोमल मूल के स्वरस में अधिक मात्रा में कषायिन
कर्ता, क्रमहारक (थकान को दूर करने वाली) तत्व ( Tannin) होता है।
तृष्णानिवारक, कांति दायक, प्रदीप्त जठराग्नि औषधि निर्माण-कदल्यादि घृत, हिम वाले को सुखकारक, कफ के रोग उत्पन्न प्रपानक ( शर्बत), मुरब्बा, फल चूर्ण, चूर्ण का करती संतर्पण और दुर्जर-कठिनता से पचने विसकुट, पत्र व वृक्ष क्षार, पक्क-फल मद्य इत्यादि वाली है। इत्यादि।
मोचाफलं स्वादु शीतं विष्टम्भि कफकृद् गुण-धर्म तथा प्रयोग
गुरु । स्निग्धं पित्तास्र तृड्दाह क्षतक्षय समीरआयुर्वेदीय मतानुसार
जित् ।। पाकं स्वादु हिमं पके स्वादु वृष्यञ्चहकेला
णम् । क्षुत्तृष्णा नेत्रगदहन्मेहघ्नं रुचि मांस कदली मधुरा शीता रम्या पित्तहरा मृदुः। कृत् ।। माणिक्य * * * * * व.दल्यास्तु फलं स्वादु कषायं नाति शीतलम् ।। बहवोऽपि सन्ति । उक्ता गुणास्तेष्वधिका रक्तपित्तहरं श्रुष्यं रुच्यं कफकर गुरुः। भवन्ति । निर्दोषितास्य लघुता च तेषाम्। कन्दस्तु वातलो रूक्षः शीतोऽमृस्कृमिकुष्ठनुत् ॥
(भा० पू० वर्ग प्र. ६) (ध०नि० करबीरादि ४ व०)
कच्चा केला-स्वादु, शीतल, विष्टंभी, कफ · केला-मधुर, शीतल, रम्य, मृदु और पित्त
कारक (पाठांतर से कफ नाराक)भारी एवं नाशक है।
स्निग्ध होता और रक्त पित्त, वृषा, दाह, क्षत क्षय, - केलेका फल-स्वादु कषैला, किंचित् शीतल- तथा वायु-इनको दूर करता है। पका केलारक्क पित्तनाशक, वीर्यवर्द्धक, रुचिकारक, कफजनक स्वादु, शीतल, मधुर पाकी, वृष्य एवं वृंहण है और भारी है।
और क्षुधा, तृषा, नेत्ररोग तथा प्रमेह इनको दूर केले का कन्द-वातकारक, रूत, शीतल,
करता और रुचिकारक एवं मांस वर्द्धक होता है। रक्तदोष, कृमि और कुष्ठनाशक है।
केले की मणिक्य, मुक्ता, अमत और चम्पकादि बालं फलं मधुरमल्पतया कषाय पित्तापहं
अनेक जातियां हैं इन सबमें उपयुक गुण होते हैं, शिशिर रुच्यमथापि नालम् । पुष्पं तदप्य
किन्तु निदोषता और लघुता ये गुण अधिक
होते हैं। नुगुणं कृमिहारि कन्दंपणं च शूलशमकं कदलीभवं स्यात् ॥ अपिच रम्भापक्कफलं
कदली शीतला गुर्वी वृष्या स्निग्धा मधुः कषाय मधुरं वल्यं च शीतं तथा पित्तं चास्र स्मृता । पित्त रक्त विकारं च योनि दोषं तथा विमदेनं गुरुतरं पथ्यं न मन्दानले । सद्यः ऽश्मरीम् ॥ रक्त पित्तं नाशयतीत्येवमाचार्य शुक्रववृद्धिदं क्लमहरं तृष्णापहं कान्तिदं भाषितम्। दीप्ताग्नौ सुखदं कफामयकरं संतपणंदुर्जरम् ।।
(शा० नि०. भू०) (रा० नि० अाम्रादि ११ व०)
__केला ( साधारण फल )-शीतल, भारी, केले की कच्ची फली-मधुर, थोड़ी थोड़ी
वीर्य वर्द्धक, स्निग्ध, मधुर तथा पित्त, रुधिर कसेली, पित्त नाशक, शीतल और रुचिकारी है।
विकार, योनिदोष, पथरी और रक्क पित्त को दूर इसकी नाल (डंडो) भी पूर्वोक गुण विशिष्ट |
करता है।