________________
कदली
२०१४
कदली
हनीना (नवीं शताब्दी) ने केले के उत्पादन की विधि का यथावत् वर्णन किया है । इनके अतिरिक्त प्रवीसोना, राजी, सराबियून मीरमुहम्मद हुसेन, श्राज़मखाँ श्रादि । बहुश: यूनानी चिकित्सा शास्त्र के पंडितों ने भी इसके गुण धर्म आदि का विस्ह. तोल्लेख किया है।
भारतीयों की दृष्टि में यह अति पवित्र वस्तु है। पूजा, श्राद्ध, विवाह आदि सकल कार्यों में केला व्यवहार में पाता है। हविष्यान में दसरा शाक खाना मना है। किंतु कच्चा केला पकाकर उसमें भी खा सकते हैं। बंगाल में पठी पूजा, विवाह और अधिवासादि मंगल कार्य के अवसर पर एक डाल का समूचा केला काम प्राता है। युक्र प्रदेश में सत्यनारायण की कथा, जन्माष्टमी और रामनवमी श्रादि पर केले के स्तंभ खड़े किये जाते हैं। बीच के कोमल पत्ते की झाँकी बनती है। मुसलमान भी पीरों को शोरीनो चढ़ाते समय केले से काम लेते हैं । वासंती और दुर्गा पूजा के समय नवपत्रिका में केले के कल्लं काम में प्राते हैं। भारतीयों के शुभ कर्म में केले का कल्ला मंगलचिह्न की भाँति व्यवहार किया जाता है। उत्सव, पूजा और विवाहादि के समय हिंदू द्वारा तथा पथ में केले के वृक्ष सजा देते हैं। हिंदुओं के विवाहादि संस्कार के समय केले की भूमि बनती है। इसी स्थान पर संस्कारार्ह व्यक्ति का स्नान कार्य, क्षौर कर्म, चूड़ाकरण, कर्णवेध, वरण इत्यादि होता है। बंबई की पतिरता कामिनियाँ कदली वृक्ष को धन एवं प्रायुप्रद समझ पूजती हैं । श्राद्ध में इसका कांडकोष अत्यन्त आवश्यक होता है । इसके द्वारा श्राद्धीय नैवेद्य, जल एवं फल प्रदान के लिये एक प्रकार की नौका प्रस्तुत होती है। पौष-संक्रान्ति को बंगाल की संतानवती रमणियाँ कदली के काण्डकोष की नौका बनाती और गेंदे के फूल से सजाती है । पुनः उसमें दिया जला पुत्र द्वारा नदी वा पुष्करणी के जल पर बहा देती है। यह व्रत भगवती भवानी के उद्देश्य से संतान की मनोकामना के लिये किया जाता है।
आर्द्रक वा हरिद्रा वर्ग (N. 0. Scitaminece )
औषधार्थ व्यवहार-बल्कल, नाल, मूल, कन्द, कांड, पुष्प, पत्र, फल और मोचारस।
रासायनिक संघट्टन-इसके पौधे में ३७०/० शुष्क द्रव्य होता है। इसके कल्ले में प्रत्यधिक टैनिक और गैलिक एसिड (कषायाम्ल) होते हैं । पूर्णतया परिपक्क फल में २२% शर्करा होती है, जिसमें १६% स्फटिक में परिणत होने योग्य होती है। फल के पूर्ण परिपक्क होने के उपरांत उक्त स्फटिक में परिणत होने योग्य शर्करा की मात्रा अनुपाततः घटकर इनवर्टेड शर्कराकी मात्रा परिवर्द्धित होजाती है. वही अत्यधिक पके हुये फल में स्फटिकीय और अस्फटिकीय दोनों प्रकार की शर्करात्रों का कुल जोड़ ( स्फटिकीय=२.८% + अस्फटिकीय-११ '८४० ) केवल १४.६४० अर्थात् मौलिक मात्रा का रह जाता है। शर्करा के अतिरिक्र इसमें श्वेतसार, अल्ब्युमिनॉइड्स ४.८ प्रतिशत,वसा १ प्रतिशत तक । अनत्रजनीय सार ( Extractives) ६ से १३% तक
और भस्म जिसमें फॉस्फोरिक अन्हाइड्राइड, चूर्ण, 'ज्ञार, लौह और क्रोरिन प्रभृति होते हैं। पाये जाते हैं। इसमें प्रचुर मात्रामें वाइटामीन सी'
और कुछ मात्रामें बाइटामिन 'बी'पाये जाते हैं । परंतु वाइटामीन 'ए' के सम्बन्ध में बहुत विवाद है। कहते हैं कि केले में वे जीवोज (Vitamins) पाये जाते हैं जो जीवोज 'ए' ( Vitamin 'A') की कमीके कारण उत्पन्न रोगों को निमूल एवं प्रतिरोध करने में समर्थ हैं; पर कम सीमा तक वा किसी प्रकार अत्यन्त मंदगति से । कदली गत जीवोज वर्द्धन शक्ति को बढ़ाते हैं। Promo tegrowth ) (नादकर्णी ई० मे० मे० पृ० ५७१-२)
पके फल के छिलके की भस्म में (Carbonates of potash and soda), पांशुहरिद (Chloride of potassium) किंचित् सल्फेट संयुक्त क्षारीय फाँस्फेट्स से चूर्ण (Lime), सिलिका (Silica), मृण्मय फॉस्फेट्स ( Earthy phosphates) प्रभृति द्रव्य वर्तमान होते हैं। हरे वा कच्चे केले में प्रचुर मात्रा में कक्षायिन ( Tannin) होता है। इसमें श्वेतसार की मात्रा लगभग आलूगत श्वेतसार के बराबर ही होती है। पर पोषण की