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क़तना वेस्मा .
१९८६
कताद
कतना वेम्मा-[शामी ] चिरायता ।
ही कीन । ( Sieges beckia orientalकतन्दूस-[यू.] मवेज़ । मुनक्का ।
.is, Linn ) क़तफ़-दे. “कर फ"।
कतरनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० कतरना ] एक मछली जो कतफल-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (१) निर्मली । मलाबार देश की नदियों में होती है। वृक्ष । निर्मली का पेड़। (२) निर्मली का कतरली-[ ता० ] दबूर । ढाकुर (बं)। ओडल्लम्
(मल०)। होंडे ( कना०)। सुकनु ( मरा०)। कतबत:-१] एक गज़ ऊंचा एक पौधा जिसका तना
क़तरा-संज्ञा पुं० [अ पु० कृत रः] बूंद । विंदु । पतला और कठोर होता है । इसके नीचे के पत्ते
कतरीक-संज्ञा पु० [सं०] काला नमक ।
कतरु मुरंग-[सिं० ] अगस्त । अलसी की पत्ती की तरह लंबे और कोमल होते | हैं तथा भूमि पर बिछे हुये होते हैं। इनका रंग
क़तल-संज्ञा पु० [अ० क़त्ल ] दे० "कल्ल"।
कतल-[फा०] सेब । कालापन लिये हरा होता है । तने के ऊपरी प्राधे | भाग पर पुष्प लगते हैं, जो नील, श्वेत और
[बर० ] वरुण । बरना। कोई कोई पीत वर्ण के भी होते हैं ।प्राकृति अतसी
कतला-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार की मछली जो पुष्पवत् होती है । किंतु उनसे लघुतर होते हैं।
६ फुट तक लंबी होती और बड़ी नदियों में पाई बीज शाहतरे के बीज जैसे होते हैं। इसका स्वाद
जाती है। यह छः फुट तक लंबा होता है । यह तिक्र होता है । इसकी एक जाति वह है जो कठोर
अधिक बलिष्ट होता है। कभी कभी पकड़ते समय भूमि में उगती है और जिसके तने से महीन
कतला मछुओं को झपटकर गिरा देता और काट शाखायें फूटती हैं । ये पत्र शून्य होते हैं और
लेता है। इसमें से दूध निकलता है।
तस हूमा-[सिरि० ] इन्द्रायन । प्रकृति-प्रथम कक्षा के अंत में ऊष्ण एवं क़ता-[अ०] लवा पक्षी । संग ख़ारः (फा०)।
कतात-[अ०] मात्रा-पहली किस्म-७ माशे; दूसरी किस्म= |
कतात-[अ० ] लवा। शमाशे।
क़ताद-[अ० ] एक कँटीला पेड़ जिसका गोंद कतीरा गुण धर्म तथा प्रयोग-इसके उपयोग से
___ कहलाता है। अपक्व श्लेष्मा निःसृत होती है। इस कार्य के
क़ताद-संज्ञा पुं० [अ० ] एक दृढ़ और कंटकाकीर्ण निमित्त इसकी दूसरी किस्म अधिक वीर्यवान् होती
वृक्ष जिसको अरबी में "शज्रतुल् क़ुद्स" "मिस्वाहै। कूल्हों एवं संधिगत शीतजन्य वेदना को लाभ
कुल अब्बास" और "मिस्वाकुल् मसीह" कहते पहँचता है। इसको पकाकर पीसकर लगाने से
हैं । इसके काँटे अत्यन्त तीक्ष्ण और नीचे की ओर दद्र का नाश होता है । दूसरी किस्म को पीसकर
झुके हुये होते हैं। कांड कंटक शून्य होता श्रीर योनि में धारण करने से गर्भपात होता है।
देखने में बाँस की तरह प्रतीत होता है । ऊंट इसे
नहीं खाते । किंतु जब अनावृष्टि के कारण चारे (ख )
श्रादि का प्रभाव होता है, तब वे इसे खाने के कतबत-[?] एक बूटी।
लिये बाध्य होते हैं। इसके चरने से पशु मोटे हो कतब बरी-[१०] गाँजा ।
जाते हैं। इसका फूल पीले रंग का होता है और कतम-[अ०] नील के पत्ते । वस्मः ।
उसमें लाल टुकड़े होते हैं । फूल में से इसका क़तम-[अ० ] पुराने दुबे का मांस ।
फल निकलता है जिसका रंग छुहारे की गुठली की कतमाल-संज्ञा पु० [सं० पु. ] अग्नि | भाग । तरह होता है । किताबों में इसके जो चित्र दिये हैं,
इसका पाठान्तर कचमाल और खचमाल है। उन्हें देखने से प्रतीत होता है कि इसके काँटे सीधे कत(ट)म्पम् । कत(ट)म्पु-[ ता० ] को-कौ ।।। नुकीले और बहुत लम्बे होते हैं । उक्न काँटों के