________________
क्रतू रान
१६६४
क़त रान
युक्त होता है। यह एक प्रकार के चीढ़ अर्थात् . पाइनस सिलवेष्ट्रिस (Pinus Sylvestris)
वा शर्बीन या सनोबर बरी तथा अन्य प्रकार के सरल जातीय वृक्ष ( Pinaceae) की लकड़ी से विनाशक तिर्यक् परिश्रावण (Destructive Distilla tion) की विधि से परित्रावित किया जाता है। इसका श्रापेक्षिक गुरुत्व १.०२ से १.१५ है । जल में डालकर हिलाने से इसकी रंगत हलकी भूरी और प्रतिक्रिया अम्लता युक्त हो जाती है।
पर्याय-कांतरान,कील-हिं०।चुडैल का तेल, कतरान ष्टॉकहाल्म-उ० । कील, क़त रान चोबीफ्रा०। जिफ़्त रतब, क़त रान, कित रान, क़त् रान शजरी,कतरानचौबी,क़त् रान सनोबर-अ० पिक्स लिक्विडा Pix Liquida-ले० । टार Tar, वुड-टार Wood Tar | ष्टॉकहाल्म टार Stockholm Tar. पाइनटार Pine Tar. पिक्स पाइनाइ Pix Pine-अं० । कील,तारता० । कीलु, तारु-ते। कोलू-कना । कीलसिं० । तिन्युसी, कत्ता-असी-बर० ।
संज्ञा-निर्णायिनी टिप्पणी-(१) पिक्स लिक्विडा का समीचीन प्रारब्य पर्याय अजिज़फ़्तुस्साइल या जिफ़्त रतब और टार का क़त रान प्रतीत होता है । जिफ़्त और क़त रान के अर्थों में यह भिन्नता है-'ज़िफ़्त' ऐसी रतूबत द्रव को कहते हैं जो वृक्ष के तने में से स्वयं या चीरा देने से निकले । परन्तु जब उसे किसी विशेष उपाय द्वारा प्राप्त करते हैं, तब उसे 'कत् - रान' कहते हैं । चूँ कि पिक्स लिक्विडा अर्थात् टार को भी ख़ास तरकीबसे निकालते हैं, अस्तु, इसका ठीक पर्याय 'क्रत रान' ही हो सकता है।
(२) यूनानी चिकित्सा-शास्त्र में ज़िफ़्ते रतब को क़त्रान भी कहते हैं । मुहीत श्राज़म में ज़िफ़्त
छनोटची ज़मीन या टीले पर गढ़ा खोदकर उसके भीतर चतुर्दिक पकी ईंट और चूने की दीवाल खड़ी कर देते हैं। पुनः गढ़े के भीतर ऐसे काष्ठ वा जड़ों को बंद आँच देने से टार वा क़त्रान प्राप्त होता है। इस विध को ही 'विनाशक तिर्यक परिश्रावण विधि' के नाम से अभिहित करते हैं।
का वर्णन देखें । क़त् रान मकद (सांद्रीभूत क़तरान) को श्याम, स्पेन और बाबुल देशवासी ज़िफ़्त (ज़िफ्तेस्याह) कहते हैं।
(३) बहरुल जवाहर में क़त्रान का हिंदी नाम चुडैल का तेल और मुहीत श्राज़म में कांतरान लिखा है, जो क़तरान का अपभ्रंश है।
तिब्बी ग्रंथों में क़तान के विषय में कतिपय प्राचीन तत्वान्वेषक हकीमों का केवल शाब्दिक मतभेद है, तात्विक वा वास्तविक नहीं। क्योंकि अरअर और तनूब, जिसको मुहीत श्राजम प्रभृति में तंबूब ( त ) लिखा है, वे सब सनोबर अर्थात् देवदारु के ही भेद हैं । जैसे
(१) हकीम बोलस अरअर( सरोकोही) को शज्र क़तरान कहते हैं । (२) हकीम मुहम्मद बिन अहमद भी अरअर को शर्बीन या दरख़्त क़तरान बतलाते हैं । (३) इब्न मासूयः शर्बीन को सनोबर का एक भेद लिखते हैं। (४) साहब मिन्हाजुल बयान लिखते हैं कि क़तरान शज्रतुल क़तरान का रोग़न है और इसे अरश्रर, अनम तथा तनूब इत्यादि से भी प्राप्त करते हैं किन्तु जो परअर से प्राप्त होती है.वह अति उत्तम होती है और तालिबसे प्राप्त निकृष्ट । साहब किताब मालायसश्र लिखते हैं, कि शर्बीन क़तान का वृक्ष है, जो सनोवर का ही एक भेद है इत्यादि । अतः उपयुक्त शाब्दिक भिन्नतासे इसके लक्षणमें कोई अंतर नहीं श्राता। इनमें प्रत्येक योग्य हकीम का कथन स्वयं सत्य है।
नोट-श्रायुर्वेदीय ग्रंथों में जिन सरल तथा देवदारु श्रादि वृक्षों का उल्लेख हुआ है, वे भी उसी जाति के एक प्रकार के वृक्ष हैं, जिससे क़त्रान उपलब्ध होता है । हकीम दीसकरीदूस ने दो प्रकार के कतरान अर्थात् (१) कतरान सनोबर
और ( २ ) कत्रान फ़ार का उल्लेख किया है प्रागुक्र कथनानुसार कतरान को 'ज़िफ्त रतव' भी कहते हैं। तिब के ग्रंथों में चतुर्षिधि जिफ़्त का उल्लेख पाया जाता है। जैसे—(१) ज़िफ्त रतब, (२) ज़िफ़्त याबिस, (३) ज़िक्त जबली
और (४) ज़िफ़्त बहरी। इनमें से ज़िस्त रतब या कतरान तो वही है जिसका वर्णन हो रहा है और जब उसे धूप या आगपर उड़ाकर शुष्क कर