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कचबो
कचबो -[ गु० ] कचक्रू | turtle (chelonia) कचमाल - संज्ञा पुं० [सं० पु० ] धूम । धूयाँ । हारा० । कोई कोई 'खतमाल' भी कहते हैं । कचरा- संज्ञा पु ं० [हिं० कच्चा ] ( १ ) करीर । करील । टेंटी । ( २ ) कच्चा ख़रबूज़ा । ( ३ ) फूट का कच्चा फल । ककड़ी । कर्कटी । ( ४ ) सेमल का डोडा वा ढोंढ़ । ( ५ ) उरद वा चने की पीठी । ( ६ ) सेवार जो समुद्र में होता है । पत्थर का झाड़ । जरस । जर । ( ७ ) रूई का बिनौला वा खूद । कपास का बीया । बिनौला ।
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संज्ञा पु ं० [ बम्ब, म०, हिं० ] कसेरू ।
कवरा ।
कचरिपुफला - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] महाशमी वृक्ष । छोंकर । छिकुर । शाँई गाछ ( बं० ) । रा० नि० ० ८ ।
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करिया - संज्ञा स्त्री० [देश० ] कचरी । पेहँटा । कचरी -संज्ञा स्त्री० [हिं० कच्चा ] ( १ ) ककड़ी की जाति की एक बेल जो चौमासे वा ख़रीफ़ की फसल में खेतों में फैलती है। खीरे की तरह इसकी शाखाएँ पतली होती हैं । पत्ते अत्यन्त छोटे, नरम तथा कोमल होते हैं । फूल पीले रंग का होता है । इसमें ४-५ अंगुल तक के छोटे छोटे अंडाकार फल लगते हैं, इसे ही कंचरी कहते हैं । कच्ची कचरी हरे रंग की वा मिलित श्वेत हरित अर्थात् चितकबरे रंग की और अत्यंत कड़वी होती । यहाँ तक कि इसकी डाल श्रादि भी कड़वी होती है। इसके अतिरिक्त एक मीठी जाति की भी कचरी होती है। फल पकने पर पीले पड़ जाते हैं। इनमें से किसी किसी के ऊपर लम्बाई के रुख़ हरी रेखाएँ भी होती हैं और ये खटमीठे वा ईषदम्ल स्वादयुक्त हो जाते हैं । इसका बीज खीरे की तरह, पर उससे छोटा होता है। बीज का छिलका श्यामता लिए और गिरीं पीताभ श्वेत होती है। कच्चे बीज श्रत्यन्त तिक, पर पकने पर किसी भाँति श्रम्ल जाते हैं ।
बड़ा-छोटा, लम्बा-गोल और मीठा-कड़वा श्रादि भेदों से कचरी अनेक प्रकार की होती है । इनमें से छोटी स्वाद में कुछ-कुछ कड़वी होती है ।
कचरी
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इसेही बंगला में 'बने-गुमुक' कहते हैं। इसका एक सबसे छोटा भेद है, जिसे संस्कृत में शशाडुली कहते है | राजनिघण्टुक्क 'गोपालकर्कटी' कचरी की 1 बड़ी जाति की ही संस्कृत संज्ञा है, जिसे बंगभाषा में संभवतः 'गुमुक' कहते हैं । यह चार पाँच गुल तक लम्बी और अत्यन्त कडुई होती है । पकने पर यह ईषदम्लस्वादयुक्त होती है और फटती नहीं । इसी को हमारे यहाँ रमपेहँटवा वा रामपेटा कहते हैं । अनुभूतचिकित्सा - सागर के मत से इसका सद्योजात फल सेंध और सुखाया हुआ कचरी कहलाता है। कचरी प्रायः छोटी जाति के पेहँटे से बनती है। इसके कच्चे फलों को लोग काट-काट कर सुखाते हैं और भूनकर सोंधाई वा तरकारी बनाते हैं। जयपुर की कचरी खट्टी बहुत होती है और कडुई कम । कश्वरी वा पका पेटा अत्यन्त सुरम्य एवं सुगंधियुक्त होता है। लोग प्रायः सुगंधि हेतु इसे पास रखते हैं । कहते हैं कि कचरी की एक ऐसी किस्म है जिस पर हिरन भी श्रासक हो जाता है ।
पर्याय कचरी छोटी -चिर्भर्ट, धेनुदुग्धं, गोरक्षकर्कटी ( ध० नि० ), चिर्भिटा, सुचित्रा, चित्रफला, क्षेत्रचिभिंटा, पाण्डुफला, पथ्या, रोचनफला, चिर्भिटिका, कर्कटी ( रा०नि० ० ७ ), चिर्भिर्ट, धेनुदुग्धं, गोरक्षकर्कटी ( भा० ), गोरक्षी, गोदुग्धं, चिभिटी, (केयदेव ), धेनुदुग्धं (द्रव्य रत्न० ), (वै० निघ० ), चिर्भटी, चिर्भिटः, गोपालप (पु) त्रिका, कर्क चिर्भिटा - ( सं० ) । पेहँटा, पेहँटुल, गुरम्ही, सेंधिया, सेंध, सेंधा, कचरी, कचरिया, कचेलिया, गुरुभीहुँ, भकुर, भुकुर, गोरख ककरी - हिं० । बन गोमुक, बन गुमुक - बं० । शम्माम, दर्दाब - अ० । दस्तम्बूयः, दस्तम्बू - प्रा० । क्युक्युमिस डुडैम Cucumis Dudaim, Linn., क्युक्युमिस मैडरासपटा. मस Cucumis Madraspatamus,
० । ककु बर मैडरास Cucumber Madras -श्रं० । बुडरंगपण्डु - ते० । चिभडां-गु० । चिबुड, चिभूड, बेल सँधाकं, अरमेके - मरा० । कचरी, कचड़ी, चिभिड़, चिबिड - पं० ।
(२) कचरी छोटी ( शशाडुली ) - शंशाण्डुलि, शशाडुली, बहुफला, तण्डुली,