________________
कटसरैया
१९३०
कटसरैया उल्लेख नहीं किया है। नरहरि ने फूल के मलिन जंगल एवं धीरान स्थानों में यत्रतत्र देखने में एवं उज्ज्वल रंगके विचारसे झिण्टिका का नामभेद पाते हैं। इसका पौधा प्रायः दो हाथ से अधिक स्वीकार किया है । ख्यातनामा अर्वाचीन उद्भिद्
ऊँचा (२-३ फुट वा अधिकाधिक ४ फुट) वेत्ता राक्सवर्ग ने भी नील एवं उज्ज्वल नील नहीं होता । कांड वा तना ठिंगना, गोल, कठिन, पुष्प भेद से दो प्रकार की झिण्टी का प्रथक झाडदार (Herbaceous) और सीधा होता उल्लेख किया है । उनके मत से नीले फूल वाली
है । यह बहुशाखी होती है । शाखाएँ जड़ से का नाम बारलेरिया सोरुलिया Balleria
निकलती हैं और सम्मुखवर्ती, गोल, मसूण, और Caerulea एवं उज्ज्वल नीले फूलवाली
सोधी होती हैं । पत्ती प्रारम्भ में छोटी लम्बी एवं का नाम बा० क्रिष्टेटा B.Cristata है । मैंने नोकदार होती है । ज्यों ज्यों पौधा बढ़ता जाता उक्त दोनों की संस्कृत संज्ञा 'दासी' लिखी है। है । इसकी पत्ती भी लंबाई चौड़ाई में बढ़ती किन्तु नरहरि के मत से बा० सीरुलिया B. जाती है । अंततः यह जामुन की पत्ती इतनी बड़ी Caerulea च्छादन और बा० क्रिष्टेटा B.
हो जाती है। पत्तियाँ सम्मुखवर्ती, भालाण्डाकार Cristata दासी है। नीले फूल वाली की लंबी, सरु किंचित्,कर्कश,अन्योन्य लंधित ( Deभाँति मलिन उज्ज्व पुष्पभेद से लाल आदि cussate) पत्रवृत हस्व, पत्रप्रांत किंचित् फूल वाली कटसरैया भी अधुना देखने में आती तरङ्गायित,सर्वथा अखंडित (Entire), नुकीली है वा नहीं, राक्सवर्ग ने इसका स्पष्ट उल्लेख (Mucronate), और मसृण होती हैं । पत्ती नहीं किया है । कुरण्टक शब्द पीत झिण्टिका और शाखा के वीच पत्रवृत के सन्निकट एक ही बोधक होते हुए भी, निघन्टु एवं चिकित्सा ग्रंथ केन्द्र पर शाखा की प्रत्येक ग्रन्थि पर चार नोक विशेष में नील रनादि झिएटिका के अर्थ में भी वाले सरल, क्षीण तीचणाम कण्टक होते हैं । पुष्प उन शब्द का व्यवहार हुआ है। किसी किसी
धृन्तशून्य (Sessile) पत्रवृन्तसन्निधान-स्थित यूनानी ग्रंथ में लिखा है कि यह बादावर्द का
(Axillary), प्रायः एकातिक (Solitनाम है, जो अत्यंत भ्रमकारक है । बादावर्द इससे
ary ) बड़े, सुीमायल, पीले रंग के होते हैं । सर्वथा भिन्न श्रोषधि है। खजाइनुल् अदविया में
पुष्पकाल-प्रायः सर्व ऋतु । फल (Capsule) अडूसा के अंतर्गत जो यह लिखा है कि पीले फूल असे की तरह यवाकृति के; गावदुमी होते हैं । के अडूसा को पियाबाँस कहते हैं, यह भी प्रमाद प्रत्येक फल में दो-दो बीज अलग-अलग कोषों में पूर्ण एवं हास्यास्पद है । क्योंकि इसी ग्रंथ में तथा होते हैं। जड़ काष्ठीय (Woody) एवं बहुअन्य महजन वालीफ शरीफी श्रादि पारव्य एवं वर्षीय होती है, जिसमें असंख्य पाश्विक उपमूल पारस्यभाषाके ग्रंथों में पियाबाँसको पीली कटसरैया होते हैं। लिखा है। उनके वर्णन पढ़ने से भी यही बात पर्याय-कुरण्टकः (ध०नि०), किङ्किरातः, निष्पन्न होती है । अस्तु,पियाबाँसा कटसरैया ही है पीताम्लानः, कुरण्टकः, कनकः. पीतकुरवः.सपीत:. और यद्यपि यह तथा अडूसा वा बाँसा एक ही वर्ग पीतकुसुमः, कुण्टः ( कण्टः); कुरण्टः (कुरटः), की वनस्पति हैं, तथापि ये एक दूसरे से सर्वथा झिण्टी; वन्या, सहचरी, पीता (रा०नि०), भिन्न हैं। आगे इनमें से प्रत्येक के विस्तृत परिचय, कुरण्टक, किङ्किरातः, हेमगौरः, पीतकः, पीतभद्रका पर्याय एवं गुण-प्रयोग आदि पृथक् पृथक् दिये (भा०),पीतझिटी,पीताम्लानः,आम्लानिकः,माम्लाजाते हैं।
'दानः, कुरुण्टः,कुरुण्टकः,सहचरः,सहचरा,कुरुएटका, विशेष प्रकार की कटसरैये के
पीतकुरवकः-सं० । पीलीकटसरैया, पीला पियावर्णन-पर्यायादि
बाँसा, कटसरैया, झिंटी-हिं० । लाल फूल के १-पीले फूल की कटसरैया-अडूसे की | कोलसे-द० । पीतपुष्प झाँटी गाछ, पीतझाँटी, तरह की एक तुप जाति की वनस्पति, जिसके क्षुप काँटाझाँटी-बं०। वार्लेरिया प्रायोनायटीज़