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कटुत्रिक ह
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गुण तथा उपयोग — इसे २-३ मा० की मात्रानुसार मिश्री के साथ सेवन करने से कास
।
रोग का नाश होता है । वृ० नि० २० कास चि० कटुत्रिक लेह - संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] हिक्का रोग में प्रयुक्त उक्त नाम का एक योग - त्रिकुटा, जवासा कायफल, काली जीरी, पुष्करमूल और काकड़ासिंगी के चूर्ण को शहद मिलाकर चाटने से हिचकी खाँसी और कफ श्वास का अत्यन्त शीघ्र नाश होता है । वृ० नि० २० हिक्का चि । कटुत्रिक - संज्ञा पु ं० [सं० नी० ] दे० "कटुत्रय” | कटुत्रिकादि- दे-सज्ञा पु ं० [सं० पु० ] उक्त नाम का एक योग, जो कास रोग में प्रयुक्त है ! योग-निर्माण- सोंठ मिर्च, पीपल इन्हें समान भाग में लेकर यथा विधि चूर्ण करें। मात्रा - २-४ मा०, इसे गुड़ और घृत के साथ निरन्तर सेवन करने से खाँसी नष्ट होती है । बृ० नि० २० कास चि० ।
कटुत्व-संज्ञा पु ं० [सं० की ]कड़ आपन । चरपराहट कड़वाहट । झाल ।
कटुदला - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] एक प्रकार क्री ककड़ी । कर्कटी । कर्कटिका । रा० नि० व० ७ । कटु-दुग्धिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] तितलौकी । तिक अलाबु । वै० निघ० ।
कटुनिरुरी -[ मल० ] पानजोली - हिं० | कसूनी । कटु-निरुरे-[ मल० ] पानजोली - हिं० । कमूनी । कटु-निष्पाव-संज्ञा पुं० [सं० पु० ] एक प्रकार का
धान, जिसे नदी निष्पाव वा बोरोधान भी कहते हैं । श० च० ।
कटु-निष्लाव -संज्ञा पुं० [सं० पु० ] दे० " कटु निष्पाव" ।
कटु-पड़बल - [ म० ] जंगली परोरा । तिक्र पटोल । जंगली परवल ।
कटुपत्र - संज्ञा पुं० [सं० पु० ]
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कटुपत्रक - संज्ञा पु ं० [सं० पु० ])
दवन पापड़ा । पर्पट । ( २ ) सफेद पत्ते की छोटी तुलसी । सितार्जक । रा० नि० ब० ५ । सुमुक । कुठेरक । कड़िअर ।
(१) पित्तपापड़ा
कटुपत्रिका - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ]
कटु-बदरी
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१ ) छोटा
कटुपत्री - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ]
चेंच | लघु चुचु चुप । ( २ ) भटकटैया । भूरेंगनी । ( ३ ) एक प्रकार का चुप । कारी ।
नोट --- खज़ाइनुल् श्रदविया के अनुसार एक हिंदुस्तानी श्रौषधि, जो उष्ण एवं कषाय होती है। इसका फल शीतल होता है, और स्तम्भन करता है । यह पित्त शामक एवं वायु कारक । ( ख़० श्र० ) ।
कटुपरनी-संज्ञा स्त्री० [सं० कटुपर्णी ] चूका । कटुपर्ण-संज्ञा पु ं० [सं० ] दे० "कटुपर्णी” | कटु परिका, कटुपर्णी -संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] (१) भड़भाँड़, सत्यानाशी क्षीरिणी। इसकी जड़ को चोक कहते हैं। संस्कृत पर्याय— कटुपर्णी, हैमवती, हेमज़ीरी, हिमावती, हेमाह्वा, पीतदुग्धा, गुण - हेमाहा रेचक, तिल, भेदिनो और उत्क्तश कारिणी होती है और कृमि, खुजली, बिषं, श्रानाह तथा कफ, पित्त, रक्त और कोढ़ को नष्ट करनेवाली होती है । भा० म० १ भ० वि० दे० "सत्यानाशी' (२) काञ्चन क्षीरी । काञ्चनी । कर्षणी । पिसौरा रा० नि० नि० शि० ।
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कटुपाक - वि० [सं० त्रि० ] पाक भेद | दे० "कवि
पाक" ।
कटुपाकी - वि० [सं० त्रि० ] जिसका विपाक कटु हो । चरपरे विपाक वाला | पचने पर जो चरपरा हो । कटफल - संज्ञा पु ं० [सं० पुं० ( १ ) परवल । पटोल । पर वल । रा० नि० व० ३। (२) कंकोल । कक्कोल । ( ३ ) तीती ककड़ी । तिक्र कर्कटिका । ( ४ ) करेला । कारबेल्लक । ( ५ ) कायफल । ( ६ ) कीकर की फली । बबुरी ।
संज्ञा पु ं० (सं० नी० ) इन्द्रजौ । इन्द्रयव । वै० निघ० १ भ० वा० व्या० चि० । कटुफला-संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ स्त्री॰ ] ( १ ) श्री बल्ली । सीकाकाई । ( २ ) तितलौकी | विक्रालाडु | रा० नि० ० ३ । ( ३ ) वृहती । वन भंटा । ( ४ ) भटकटैया । कंटकारी | ( १ ) चिचोक । च । (६) काकमाची ।
कटु बदरी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] लह बेर का
पेड़ |