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कण्ठनाड़ी
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कण्ठ- नाड़ी - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] गले की नली ।
कण्ठ नाली ।
कण्ठ- नाली - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] दे० " कण्ठनाड़ी" ।
कण्ठ-नीड़क - संज्ञा पुं० [सं० पु० ] चील नाम की चिड़िया । चील्ह । चिल्ल | त्रिका० । कण्ठ नीलक- संज्ञा पुं० [सं० पु० ] ( १ ) उलका । लुक । श० मा० । ( २ ) चील । चिल्ल पक्षी । कण्ठ- पाशक- संज्ञा पुं० [सं० ] ( १ ) हाथी के गले में बाँधने की रस्सी । करिगलवेष्टन रज्जु । श० मा० । (२) कंठ पाश । कण्ठ-पुङ्खा
कण्ठ पुङ्खिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] [स्त्री० ] सरफोंके - का एक भेद । कण्ठालु | यह चरपरी और गरम है | तथा कृमि और शूल को नष्ट करती है । बिशेष दे० " सरफोंका" | कण्ठ- पूर्वा श- मुद्रणी - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] उक्र नाम की एक पेशी विशेष । ( Cricoary taenoideus-Lateralis ) श्र० श० ।
कण्ठ- पृष्ठांश- मुद्रणी - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] उक्त नाम की पेशी बिशेष | (Ary taen oideus) श्रं० शा० ।
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कण्ठ-प्रदाह - संज्ञा पु ं० [सं० की ० ] कंठशोथ | कंठ की सोजिश । कण्ठ-बन्ध-संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] ( १ ) हाथी के गले में बांधने की रस्सी । करिकरठ बंधन रज्जु ( २ ) गलबंधन । गले की डोर । कण्ठ-भूषा - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] गले का हार । ( neck-lace ) अ० शा० ।
कण्ठ मणि-संज्ञा पुं० [सं० पु० ] घोड़े की एक भँवरी, जो कंठ के पास होती है । ग्रैवेयमणि । कण्ठ- मध्यांश- मुद्रणी-संज्ञा की० [सं० स्त्री० ] उक्त
नाम की पेशी बिशेष | (thyreoary taenoideus ) अ० शा ० । कण्ठ-रोग-संज्ञा पु ं० [सं० पुं० ] गले का रोग | दे० "कण्ठमाला” 1
कण्ठ-रोहिणी - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] सुश्रुत के अनुसार गले का एक रोग, जिसे गलरोहिणी भी कहते हैं । ( Diphtheria ) दे० " गलरोहिणी ।
कण्ठमाला
कण्ठ- लता - संज्ञा स्त्री० [ सं स्त्री० ] (१) कण्ठ J भूषण | गले में पहने जानेवाला श्राभूषण । कण्ठ भूषा |
कण्ठ-वात- संज्ञा पुं० [सं० पु० एक प्रकार का वातजन्य कंठ का रोग। यथा - प्रलाप, शिरोभंग कंप, रक्त की वमन इसके प्रधान लक्षण हैं। इसमें सद्यः मृत्यु होती है ।
लक्षण
" सद्योमृत्युः कण्ठवातः शिरोभङ्गः पलापनम् । वान्ती रक्तस्य कम्पश्च कंठवातस्य लक्षणम् ॥" कण्ठ-शालुक
संज्ञा पुं० [सं० पु०] कंठगत
कण्ठ- शालूक
मुखरोग विशेष । गले का एक रोग । सुश्रुत के अनुसार कफ के प्रकोप से उत्पन्न एक ग्रंथि जो गले में होती है । और काँटे के समान तथा धान की अनी के समान वेदना उत्पन्न करनेवाली एवं बड़े वेर की गुठली के बराबर होती है । यह खरदरी, कड़ी, स्थिर और शस्त्र साध्य होती है । यथा
कोलास्थिमात्रः कफसंभवो यो ग्रंथिर्गले कंटक शुकभूतः । खरः स्थिरः शस्त्र निपात साध्य स्तं कंठशालूकांमति ब्रुति ॥”
सु० नि० १६ श्र० । मा० नि० । कण्ठमाला - संज्ञा स्त्री० [सं० की गरडमाला ] एक प्रकार की बीमारी जो मेद और कफ से उत्पन्न होती है - इसमें काँख, कन्धे गरदन कण्ठ, वंक्षण (जांघ) मेढू और संधि देश में छोटे बेर या बड़े बेर अथवा श्रमले के समान बहु काल में धीरे धीरे पकने वाली बहुत सी गाँठें उत्पन्न होती हैं, उन्हें कठमाला या गण्डमाला कहते हैं, यथा
कर्कन्धु कोलामलक प्रमाणैः कक्षांसमन्या गल वंक्षणेषु । मेदः कफाभ्यां चिरमन्दपाकः स्यादू गण्डमाला बहुभिश्च गण्डैः ।
मा० नि० । यह बातादि दोष भेद से तीन प्रकार की होती है (१) वात । ( २ ) कफ और (३) मेद | वातिक गलगण्ड के लक्षण
इसमें सुई चुभने कीस पीड़ा हो, काली नसों से व्याप्त हो, बाल अथवा धूसर रंग हो, रूखापन