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-- बाटोकतरुण
१९४३ एलुभा । (५) अपामार्ग । नि०शि० । रा०नि० कटीर-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] (1) जघन स्थल । (६) टोक नाम की पक्षी। कुक्कटि। विष्टिहि ।। जटा० । (२) कटि देश । कमर । हे० च०। रा०नि०। धन्व.नि.।
(३) कटि पार्श्व । अ० टी०। (४) चञ्चू । कटीकतरुण-संज्ञा पुं॰ [सं० की. ] सुश्रुत में । चंच । नि०शि० । ५ नितम्ब । चूतड़ ।
कालांतर-प्राणहर अस्थि मर्मों में से एक वह जो संज्ञा पुं॰ [सं. क्री.] कटिफलक । कूल्हा । पृष्ठवंश के प्रत्येक भाग में प्रत्येक श्रोणिकर्ण से संज्ञा पुं॰ [गोंडा ] कण्टाई । विलङ्गरा । ऊपर त्रिक के समीप होता है। यहां चोट लगने से संज्ञा पुं॰ [गु०] अज्ञात । मनुष्य के रक का क्षय हो जाता है और वह पाडु कटीरक-संज्ञा पुं॰ [स० पु.](१) नितम्ब स्थल एवं विवर्ण होकर अंत में मर जाता है । (क्योंकि चूतड़ । रा०नि० व० । (२) जघन । इससे श्रोणिफलक के बाह्य एवं आन्तरिक अवयवों | पेड़ । पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है, भीतर सूजन होती | कटीरज-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] चचू । चेच । कुटिहै, जिससे बहुत पीड़ा होती है।) इसका परिमाण | अर । निशि०।
आधा अंगुल मात्र है। सु. शा०६ अ०। | कटीरा-संज्ञा पु० दे० "कतीरा" । कटीकपाल-संज्ञा पुं० [सं० वी०] कटीफलक । बिज० कटील-संज्ञा स्त्री० [देश॰] एक प्रकार को कपास ०कूल्हा । पुट्ठा।
जिसे बरदी, निमरी और बँगई भी कहते हैं। कटी-गुहा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०] (Pelvicca-कटीलम्बिनी पेशी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०] कटि vity )
की एक पेशी । ( psoas muscle ) कठी-शुदाधर द्वार-संज्ञा पु[सं० की.] ( Inf| प्रा. शा०।
erior A perture of lesser Pel- कटोलम्बिनी लध्वी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] कटि vis.) अ० शा०।
लम्बिनी छोटी पेशी । (psoas minor ) कटीगुहोत्तर द्वार-संज्ञा पुं॰ [सं. क्री० ] Supe- कटीलम्बिनी वृहती-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] कटि की rior A perture of lesser pelvis.) वह बड़ी पेशी जो कटिकशेरुकाओंसे लेकर रान की
अ० शा०। हड्डी तक लम्बी होती है ।(psoas magnus) कटीग्रह-संज्ञा पुं॰ [सं. को०] एक प्रकार का वात |
अज लः सुलविय्यः कबीरः -अ०।रोग जो कट्याक्ति वायु के श्राम युक्त और स्तब्ध | कटीला-संज्ञा पु० । दे. "कतीरा"। होने से उत्पन्न होता है । कटीगत वातरोग।
संज्ञा पुं॰ [देश॰] (1) अराकू । (२) लक्षण-"वायुः कटयाश्रितः स्तब्धः सामो वा
वृहती । वन भंटा । (३) कटेरा गोंद । अङ्गिरा। जनयेदुजम् । कटिग्रहः स एवोक्तः पंगुः सथ्नोई
(४) सत्यानाशी। चु० मुः। (५) एक योर्वधात् ॥" भा० म० १ भः ।
कंटकाकीर्ण तृण जिसके फूल में भी काँटे होते हैं। कटीचक्र-संज्ञा पु. [सं. की.] कटिस्थित नाड़ी
इसको पत्ती हरी और फूल पीला होता है । इसकी जाल । (pelvis girdles ) अ० शा० । जड़ औषध के काम में आती है। प्र. शा० .
म. मु.। कष्टीचतुरस्रा पेशी-संज्ञा स्त्री० [सं० सी०] कटि की
वि० (१) कंटक युक्त । काँटेदार । (२) एक चौकोर पेशी। (Quadratus Lum. ___borum.)प्र. शा० ।
तीक्ष्णाय । नोकदार।
कटीला नोन-संज्ञा पु. [ देश० ] सोंचर नोन । कटी तरुण सन्धि-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक सन्धि | संचल नमक।
विशेष । अ० शा० । दे. “कटि तरुण सन्धि"। कटु-वि० [सं० त्रि०] (१) कटु रस विशिष्ट । कटोधान्य-संज्ञा पुं० [सं०] मकाई । बड़ा ज्वार । चरपरा । कड़ा । माल । (२) तीता । तिक । कटीप्रोथ-दे० "कटिमोथ"।
कडु वा । रत्ना० । (२) सुगंध | खुशबू । मे।