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कछुआ
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कछुआ
क्री वःप्यां तोयपूर्णे मनौ वा. कार्यः कूर्मो मङ्ग- मात्रा-जलाया हुआ. ३॥ मा0। अण्डा लार्थ नरेन्द्रः॥" (वृहत्संहिता)
४। जौ भर । रक्क तीन रत्ती पौन जौ भर ।
गुण, कर्म, प्रयोग-कछुए का मांस कामोजिस कच्छप का वर्ण स्फटिक एवं रजत के
दीपक है और यह कटि को भी शकिप्रदान करता . समान तथा ऊपर नील पद्म की भाँति चित्रित,
है । इसके मांस का कबाब प्रात्तव के खून को श्राकार, कलस सहरा, पृष्ठ मनोहर अथवा देह
बन्द करता है और वायु का अनुलोमन करता है। " अरुण वर्ण और सरसों के सदृश चित्रित होता है।
नये फरक के भरलाने में यह जुन्बेदस्तर के साथ उसे घर में रखने से राजा का महत्व प्रकाश करता.
__उपकारी है । इसके मांस के लेप से शोथ विलीन है। जिस कच्छप का शरीर अंजन एवं भृङ्ग की।
होता है । बरी कछुए का रक्क्रपान करना आक्षेप भाँति श्याम वर्ण, सर्वांग विंदु-बिंदु चित्र-विचित्र
एवं अपस्मार के लिये गुणकारी है। यदि जौ के अथवा मस्तक सर्प की तरह या गला स्थूल श्राटे और शहद में मिलाकर कालीमिर्च के बराबर दिखाता है वह राजा का राष्ट्र बढ़ाता है । जो गोलियाँ बनालें और प्रातः सायं-काल एक-एक कच्छप वैदूर्य वर्ण, स्थूल करठ, त्रिकोण, गूढ़ वटी निहार मुंह खाते रहें, तो मृगी को बहुत लाभ । छिद्र और भनोहर पृष्ठ-दरड विशिष्ट होता है, वह हो । उक रोग के लिये यह उपाय अनुपमेय है। कूप, वापी प्रभृति अथवा जलपूर्ण कलस में
इसके रक्त का बार-बार लेप करने से श्रामवात मंगलार्थ रखने पर राजा का कल्याण करता है।
तथा वात-रक्त (निकरिस) जनित वेदना का आयुर्वेदीय मतानुसार गुण-दोष
निवारण होता है । जुन्दबेदस्तर के साथ इसकी , कच्छपो बलदः स्निग्यो वातघ्नः पुंस्त्वकारकः वस्ति करने से आक्षेप में उपकार होता है। इसके
पित्ते को सुखाकर शहद के साथ आँख में लगाने (ध० नि०)
से मोतियाबिन्दु और जाला नष्ट होता है। इसके अर्थात् कछुआ बलकारक, स्निग्ध, वातनाशक
पित्ते का लेप खुनाक गुलू, योषापस्मार और दुष्टऔर पुंस्त्व-कारक है।
व्रणों को गुणकारी है। अपस्मार रोगी की नाक __कछुए का मांस वातनाशक, शुक्रजनक, नेत्र के
पर इसका मलना लाभप्रद है। लिये हितकारी, बलकारक, स्मृतिवर्द्धक शोथ
कछुए की खोपड़ी वा हड्डीनाशक और पथ्य है। इसका चर्म पित्तनाशक,
पर्याय-कचकड़ा, कछुए की खोपड़ी, कछुए पाद कफनाशक और इसका डिम्ब (अण्डा)
की हड्डी-हिन्दी । ज़ब्ल-अ०। ; स्वादु और वाजीकर होता है। (रा०नि०) - कछुआ मधुर, स्वादु, शुक्रबर्द्धक, वातकफ- |
यह स्वच्छताकारक अर्थात् जाली और संग्राही जनक, वृहण और रूक्ष है। (अत्रि २२ अ.)
है । इसका बुरादा सेवन करने से अशांकुर नष्ट
होते हैं। इसे जलाकर अण्डे की सफेदी के साथ ___ कछुए का मांस बलदायक, वातपित्तनाशक और
लगाना गर्भाशय-गत विशरण के लिये उपकारी है नपुंसकता नाशक है । (भा०)
फुफ्फुसप्रणालोगत क्षत और चातुर्थक वर में यूनानी मतानुसार गुण-दोष- .
इसे मधु के साथ चाटने से उपकार होता है। प्रकृति-दरियाई तथा नहरी कछुआ द्वितीय सूजन, अर्बुद (सान ) और अर्श रोग में इसका कक्षा में उष्ण और प्रथम कक्षा में तर है। जंगली
प्रलेप उपयोगी है । योनि में इसकी वर्तिका धारण व बरी उष्ण एवं रूक्ष है। इसका अंडा भी उष्ण
करने से जरायु सम्बन्धी स्रावों में उपकार होता है तथा रूक्ष है।
और यह गर्भपातकारी और वन्ध्यत्व दोष निवा: हानिकत्ता-इसका मांस-भक्षण प्रांतों को हानि- रक है । इसको कंघी जूं एवं रौच्यहारी है।
-बु• मु० 1: दपन-शहद।
. .. इसकी अस्थि कच्ची या जलाकर और खून