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कचरी
क्षेत्रसम्भवा, क्षुद्राम्ला, लोमशफला, धूम्रवृत्तफला ( रा. नि० व० ७ ) - सं० ।
(३) कचरी बड़ी वा छोटी ककड़ी, फूट की छोटी किस्म है ( गोपालकर्कटी ) - गोपालकर्कटी, वन्या, गोपकर्कटिका, क्षुद्रर्वारुः, क्षुद्रफला, गोपाली, सुद्रचिर्भटा ( रा० नि० व० ७ गोपालककटिका, सं० । गोपालककड़ी, गोयाल काँकड़ी, जंगली ककड़ी, गोरुभा - हिं० । कुन्दुरुकी, हुडा ।
(४) मृगेर्वारु – मृगाक्षी, श्वेतपुष्पा, मृगेवर, मृगादनी, चित्रवल्ली, बहुफला, कपिलाक्षी, मृगेक्षणा, चित्रा, चित्रफला, पथ्या, विचित्रा, मृग चिर्मिटा, मरुजा, कुम्भसी, देवी ( कट्फला, लघुचिभिटा ) - सं० । सेंध, फूट, गोरखककडी-हिं० । फुटी - बं० ।
नोट- दस्तम्बूया फ़ारसी शब्द के अर्थ के सम्बन्ध में यूनानी ग्रन्थकारों में परस्पर मतभेद है । बहुमत तो इसे कचरी मानने के पक्ष में है । कहते हैं कि यह फूट की छोटी किस्म है जो अत्यंत सुगन्धित होती है और वर्षाऋतु में उत्पन्न होती हैं। इससे स्पष्ट है कि यह कचरी का नाम है ।
अधिकांश लेखकों ने इसे कचरी के प्रकरण में ही स्थान भी दिया है । तथापि श्रन्य लोगों ने इसके विरुद्ध यह लिखा है कि यह एक प्रकार का विजौरे की जाति का छोटा सा नीबू है, जिसमें सुगन्धि होतो है । अस्तु, उक्त महानुभावों ने इसका कचरी से पृथक् वर्णन किया है। क़ानून नामक श्राव्य वैद्यकीय ग्रन्थ के कतिपय हाशिया लेखकों ने इसे हिंदी फूट लिखा है । किसी-किसी नेमलून वा मलयून अर्थात् खरबूजा विशेष ( खुरपूजा गर्मक ) माना । उक्त दोनों ही भ्रम में हैं । मज्नुल जवाहिर नामक श्रारव्य श्रभिधान ग्रन्थ के प्रणेता मान्य जीलानी ने दस्तम्बूया में लिखा है कि यह एक छोटी क़िस्म का सुगन्धित खरबूजा वा वह योग है जिसे सूंघने के लिए हाथ में रखते हैं। साथ ही वे फ़ारसी का यह शेर भी उद्धृत करते हैं—
"यार दस्तम्बू बदस्तमदाद व दस्तम बू गिरफ़्त । वह चे दस्तम्बू कि दस्तम बूये दस्ते श्री गिरफ़्त ॥ " निष्कर्ष यह कि यह कचरी और बिजौरे वा तुरअ
कचरी
की जाति का एक प्रकार का छोटा सा और सुगन्धित नीबू, इन दोनों ग्रंथों में प्रयुक्त होता है । दे० " दस्तम्बूया" |
वृत्या पुष वर्ग
(N. O. Convolvulaceae.) उत्पत्ति-स्थान- सम्पूर्ण भारतवर्ष विशेषतः पञ्जाब, संयुक्रप्रांत और जयपुर प्रभृति । गुणधर्म तथा प्रयोग आयुर्वेदीय मतानुसारचिभिट
चिभितं मधुरं रूक्षं गुरु पित्तकफापहम् ।
कचरी - मीठो, रूखी, पित्त नाशक है ।
( ध० नि० १ ० ) भारी और कफ तथा
बाल्ये तिक्ता चिभिटा किंचिदम्ला गौल्योपेता दीपनी साच पाके । शुरुका रूक्षा श्लेष्म वातारुचिघ्नी जाड्यघ्नी सा रोचनी दीपनीच ॥ ( रा० नि० ७ व० ) कच्ची कचरी - कडुई किंचिद् अम्ल, गौल्यऔर पाक में दीपन हैं। सूखी कचरी - रूखी, कफनाशक, वातनाशक, श्ररुचिनिवारक, जड़ता नाशक, रुचिकारी और दीपन है ।
चिभिटं मधुरं रूक्षं गुरु पित्त कफापहम् । अनुष्णं प्राहि विष्टम्भि पक्कन्तूष्णश्च पित्तलम् ॥
( भा० पू० १ भ० श्राम्रव० ) कचरिया - मीठी, रूखी, भारी, पित्त एवं कफ को नष्ट करती है और गरम नहीं है तथा ग्राही और विष्ट भी है । पकी कचरी ( सैंध कचरिया ) 1 गरम और पित्तकारक है ।
पुष्प चिर्भिचैव (स्यैव दोषत्रयकरं स्मृतम् । पर्क जी कफकृत् पक्कं किञ्चिद्विशिष्यते ॥
( श्रत्रि० १६ श्र० । हा० सं० ) कचरिया का फूल - त्रिदोषकारक है । कच्चा श्रजीर्ण और कफ करता है और पका उससे किंचिद् विशेष होता है ।
भेदिनी कृमिकण्डुघ्नी ज्वरहा 'गणनामके' | (नि० शि०