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कछुआ १६१५
कछुना अनेक भाषाओं के नाम
निम्न-लिखित भागों में विभक किया है, यथा-- कच्छपः, कमठः, कूर्मः, गूढाङ्गः, धरणिधरः चारसियान (Chersites) वा स्थलकच्छप, कच्छेष्ठः, पल्वलावासः, वृत्तः, कठिनष्टष्ठकः, महाम
इलोदियान (Elodites ) वा बिलकच्छप, त्स्यः, कूर्मराजः,गुप्ताङ्गः, चित्रकुष्ठः, धरणीधरणक्षमः
पोटेमियान ( Potamites) वा नदी कच्छप
और थालसियान ( Thalassites ) वा (ध०नि०; रा० नि०), कूर्मः कमठः, (१०), क्रोड़पादः, चतुर्गतिः, दौलेयः (हे०), माबादः,
समुद्र कच्छप । पञ्चगुप्तः क्रोडाङ्गः, (शब्द र०), जलविल्वः, सकल कच्छपों के 'मुड' सर्पादि सरीसृप की (च०), उद्धटः ( मे०), क्रोडाघ्रिः , पञ्चांग- भाँति एक अस्थि से निर्मित होते हैं। परन्तु इन गुप्तः (त्रि०), पंचनखः, गुह्यः, पीवरः,जलगुल्मः सभी जाति के कच्छपों की करोटि एक तरह की (ज०)–सं० । कछुवा, कचक्र-हिं० । काछिम नहीं होती। इनमें से स्थलकच्छप का मस्तक शुन्दि, काठा, बारकोल कच्छप-चं० । काँसब- अण्डाकार, अग्रभाग विषम और दोनों चघुओं का मरा० कछवो-गु० । लिस्क, कुरकुरा, कुलित, व्यवधान कुछ अधिक रहता है। इनकी नासिका पौना-मल। सुलह फ़ात-अ० । संपुश्त, का छिद्र बड़ा और पश्चात् भाग पर चपटा रहता कराफ, बाखः-फ़ा। चिलोनिया Chelonia- है । अक्षकोटर गोलाकार और बृहत् होता है। लेला टटल Turtle, टोट वायज़ Tartoise पार्श्व कपालास्थि पश्चात् कशेरू के मध्य मुक -अं०।
जाती है । उभय पार्श्व में दो बृहत् शंखास्थि नोट-वेदों में 'अकूपार' नाम से कच्छप का रहती हैं। इन्हीं दोनों के मध्य मस्तक के बड़े उल्लेख आया है । निरूककार यास्कने लिखा है
स्वरास्थि का गर्त रहता है। कछुए के उत्तमाँग ___ कच्छपोऽपाकूपार उच्यतेऽकूपारो न कूप
में नासास्थि नहीं होती। सजीव अवस्था में मृच्छतीति । कच्छप:कच्छं यातिकच्छेन पाती
नासिका के छिद्र में सूक्ष्म पत्रों की भाँति सकल तिवा कच्छेन पिवतीति वा। कच्छः खच्छः
अस्थियाँ झलकती हैं। नासिका का अस्थिमय खच्छदः । अयम पीतरो नदीकच्छ एतस्मादेव
छिद्र एक ओर दीर्घ होता है और फलास्थि, कमुदकं तेन छाद्यते।” (निरुक्त ४।१८)
माध्यस्थि, हन्वस्थि तथा दो ललाटास्थि से अंग्रेजी में स्थल कच्छप को टॉर्टाईज़ (Tor
बनता है। toise) और समुद्र कच्छप को टट् ल ( Turtle) कहते हैं । इसका युरोपीय वैज्ञानिक नाम
जल कच्छप का मस्तक चपटा होता है। इसका चिलोनिया (Chelonia) है ।
ललाट सामने विस्तृत होते हुये भी अक्ष के कोटर विशेष विवरण
पर्यन्त नहीं पहुँचता। - पृथिवी के भिन्न-भिन्न देशों में अनेक प्रकार के कोमल कच्छप का मुण्ड सामने बैठा और कच्छप होते हैं। अरिष्टाटल (अरस्तू) ने ग्रीक पीछे झुका रहता है। इसके पार्श्व कपाल की भाषा में तीन प्रकार के कछुओं का उल्लेख किया सूक्ष्मास्थि, ललाट का पश्चाद्भाग है। शंखास्थि है। यथा-स्थलकच्छप, जलकच्छप और और गण्डास्थि परस्पर संलग्न रहती हैं। कोमल समुद्रकच्छप । युरोपीय प्राणितत्वविदों ने कच्छप कच्छप का मुख और कच्छपों की अपेक्षा छोटा, जाति को पाँच श्रेणियों में विभक्त किया है। यथा अक्षकोटर कितना ही लम्बा और नासिका का स्थलकच्छप ( Testudo ), जलकच्छप छिद्र अति सूक्ष्म होता है। ( Emys ), कठिन श्रावरणयुक्र कच्छप ___ कच्छप के नीचे का मुखकोण कुम्भीर के (Chelydos ), समुद्रकशप (Chelo- के मुखकोण की तरह प्रतीत होता है। किसीnia) और कोमल कच्छप ( Trionyx)। किसी प्राणितत्ववित् के मत में वह पक्षी के फ्रांसीसी प्राणितत्ववित् दुमेरी ने कच्छप को | मुखकोण से सर्वथा मिलता है । सकल अस्थियाँ