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औषधी पश्चामृत
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आठ प्रकार का होता है । यथा-शीत, उष्ण, रूत, स्निग्ध, तीच्ण वा तीव्र, मृदु, पिच्छिल और विशद । श्रौषधि वीर्य बल एवं गुण के उत्कर्ष से रस को दबा अपना काम करता है । सु० सू० ४० श्र० । सूर्य और चंद्रमा के कारण जगत के श्रग्नि और सोमीयत्व गुण से किसी-किसी ने वीर्य दो ही प्रकार का माना है अर्थात् उष्ण और शीत । औषधी पञ्चामृत-संज्ञा पु ं० [सं० क्ली](१) अमृत जैसी इन पाँच श्रौषधियों का समूह - गुरुच, गोखरू, मुसली, मुण्डी और सतावर ।
(क) - संज्ञा पुं० [सं० क्ली] ( १ ) एक प्रकार काकां । ( २ ) पांशु लवण । शोरा (३) छुटिया नोन । रेह का नमक । मृत्तिका लवण | खारी नमक ।
पर्याय- श्रौषरक | सर्व गुण । सर्व्वरस | सर्व संसगं लवण । ऊषरज । ऊषरक । साम्भर । बहुलवण । मेलक लवण | मिश्रक । ( ४ ) सैंधा नमक । सैंधव लवण । ( ५ ) ऊपरदेषज
लवण |
गुण — बार, तिल, विदाही, मूत्रसंशोषकारक ग्राही, पित्तकारक और वात-कफ नाशक है । (रा० नि० ० ६) । ( ६ ) क्षार । मद० ० २ । औषधीपति-संज्ञा पु ं० [सं० ० ]
श्रौषधी
का राजा सोम ।
औषधीय - वि० [सं० त्रि० ] श्रौषधि संबन्धी
जड़ी बूटी का । दवा का ।
औषस - वि० [सं० त्रि० ] ( १ ) उषाकालोत्पन्न | जो सवेरे पैदा हो। (२) उषासम्बन्धीय । सहरी । सिदोसी । औषसिक - वि०
सहरी । सिदौसी ।
[सं० त्रि० ] उषा सम्बन्धीय
श्रष्णिज
वि० [सं० क्रि० ] ऊँट का । ऊँट सम्बन्धी । औष्ट्रक -संज्ञा पु ं० [सं० की ० ] ऊँटों का समूह औष्ट्रतक्र -संज्ञा पु ं० [सं० नी० ऊँटनी के का दूध
औषिक - वि० [सं०
पै
शमन्द ।
औष्ट्र - संज्ञा पुं० [सं० क० ] ऊँटनी का दूध श्रादि ।
मट्ठा ।
गुण - ऊँट का मट्ठा दोषकारक है तथा पीनस, में हितकारी कहा गया है “ऊँट” ।
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फीका, भारी, हृद्य और श्वास एवं कास रोग
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। वै० निघ० । दे०
श्रष्ट्रनवनीत-संज्ञा पुं० [सं०ली० ] ऊँटनी का मक्खन | ऊँटनी के दूध से निकाला हुआ। नैनू ।
गुण - लघुपाकी, शीतल, व्रण, कृमि, कफ तथा रक्त के दोष का नाशकरनेवाला, वातनाशक और विषनाशक है। रा० नि० व० १५ । औष्ट्रमूत्र-संज्ञा पुं० [सं० नी० ] ऊँट का पेशाब |
उष्ट्रमूत्र ।
गुण — उन्माद, सूजन, बवासीर, कृमि और उदरशूल नाशक । मद० ० ८ ।
में
औष्ट्र्क्षीर-संज्ञा : ० [सं० नी० ] ऊँटनी का दूध ।
उष्ट्रदुग्ध । दे० "ॐ" ।
औष्ट्राय - संज्ञा पुं० [सं० पु० ] उष्ट्रवंशीय | श्रष्ट्राति-संज्ञा पुं० [सं० पु० ] गुरु । उस्ताद |
शिक्षक |
औष्ट्रिक - वि० [सं० त्रि० ] ऊँट से पैदा । उष्ट्रजा । औष्ट्रीघृत-संज्ञा पु ं० [सं० क्ली० ] ऊँटनी का घी | उष्ट्रीनवनीतज घृत | गुण-पाक मधुर, कटु, शीतल, कृमि और कोढ़ नाशक तथा वात, रोग का नाश करनेवाला है। औष्ठ - वि० [सं० त्रि० ] श्रोष्ठ के होंठ जैसा बना हुआ । औष्ठ्य - वि० [सं० त्रि० ] ओंठ से सम्बन्धी | होंठ का ।
निकला | होंठ
औष्ण - संज्ञा पुं० [सं० ली० ] ( १ ) उष्णता । गरमी । (२) उत्ताप | धूप । ( ३ ) सन्ताप | बुखार |
त्रि० ] उषाकालोत्पन्न । । ( २ ) उपाकाल को
भ्रमण करनेवाला । जो प्रातःकाल निकल कर टहलता है।
षि (षी) - वि० [सं० त्रि० ] इच्छुक | ख़ाहि श्रष्णिज - संज्ञा पुं० [सं० क्री० ] ( १ ) पगड़ी |
साना ।
वि० [सं० क्रि० ] पगड़ी से सम्बन्ध रखने
वाला ।
कफ एवं गुल्मोदर रा० नि० व० १५ । श्राकार सदृश ।