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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
विज्ञान की प्रगति एंव सुख-सुविधा की उपलब्धि से आज का मनुष्य संयम के महत्व से परिचित नहीं है। शारीरिक एंव आत्मिक संयम प्राप्त करने से व्यक्ति समाज व राष्ट्र को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सहायक होना है। अचौर्य (अस्तेय) की वृत्ति आज प्रायः सर्वत्र पाई जाती है। जैन धर्म में अचौर्य-अदत्तादान का तत्व अपने सूक्ष्म स्वरूप में स्वीकृत है। अन्य की चीज को हथिया लेने की मानसिक वृत्ति भी इसके अन्तर्गत ही शामिल है तथा ऐसी भावना आत्मघातक सिद्ध हो सकती है, इंसान को पतित बनादेती है। सत्य का सिद्धान्त चिन्तामणि-रत्न सा है, जिसे स्वीकारने से लोहे-सी जिन्दगी में अध्यात्म का उज्जवल प्रकाश सर्वत्र फैल जाता है तथा व्यक्ति उच्चतम साधना का अधिकारी बन जाता है। लेकिन आज इसका अधिकाधिक अनादर और उपेक्षा की जा रही है। समानता की भावना भगवान महावीर ने अपने युग में सिद्धान्त रूप से स्वीकार्य किया था। आधुनिक मानव-समाज में प्राणीमात्र के प्रति करुणा भाव व समानता का स्वीकार न होने से असमानता, जाति-वर्ग, सम्प्रदाय तथा ऊंच-नीच का वातावरण मौजूद है, जिन्हें आज सांविधानिक स्वरूप देकर दूर करने का प्रयत्न किया जा रहा है।
__ अनेकान्तवाद के सिद्धान्त से मनुष्य सबके प्रति सहिष्णु बनकर अपना जीवन-सफल कर पाता है। सबको समझने की वृत्ति, सारतत्व ग्रहण करने की अभिलाषा से शांति एंव प्यार की वृद्धि होती है। अनेकान्तवाद के कारण दुराग्रह, अशांति एंव वैमनस्य वृत्ति दूर हो सकती है। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि जैन धर्म के उच्च तत्वों को आधुनिक युग की धार्मिक, राजकीय एंव सामाजिक परिस्थितियों के संदर्भ में स्वीकार करने से मनुष्य आत्म-विकास के साथ राष्ट्र की प्रगति में योगदान दे सकता है। जैन दर्शन के सभी तत्त्व वैज्ञानिक है, जो विज्ञान की कसौटी पर कसने से शुद्ध उतरेंगे। विज्ञान तो आधुनिक युग की उपज है, जबकि जैन धर्म तो प्राचीन काल से सुसंगत, शुद्ध, सात्विक-तात्विक एवं व्यवहारोपयोगी विचारधारा से सुसज्ज रहा है। जैन-दर्शन-प्रणाली में धर्म
और विज्ञान का विशिष्ट समन्वय दृष्टिगत होता है। हां, उनका ठीक-ठीक प्रचार-प्रसार नहीं हो पाने से उपेक्षा या अपरिचितता की भावना रखी जाती है। आज आत्मसंयम तपस्या, मनोनिग्रह, निष्ठा, ब्रहाचर्य व विकारों के विजय की अपेक्षा हमारी वृत्ति इस काल में भोग-उपभोग, आनंद-प्रमोद, ऐशोआराम, संघर्ष, संग्रह की और अधिक आकृष्ट रहती है।
मानव-महिमा का जोरदार समर्थन जैन दर्शन में प्राप्त है, जो आज की परिस्थितियों में अप्रतिम और प्रगतिशील प्रतीत होगा। आज के प्रजातंत्रात्मक