Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________ HOTO HTRA PRANA // श्रीजिनाय नमः॥..... . Serving JinShasan m // श्री का चरित्नं नाषांतरोपेतं // 048094 gyanmandir@kobatirth.org (प्रष्टयो नागः ) .. उपावी प्रसिद्ध करनार-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज ( जामनगरवाळा ) वीरसंवत-२४४०. विक्रमासंवत्-१५०. सने-१९१५: किं रु.-३-४-० श्रीजैननास्करोदय प्रेस. जामनगर.. . a un sun arabalaust
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि ॥श्रीजिनाय नमः // . // अथ श्रीधम्मिलचरित्रं जांषांतरोपेतं प्रारभ्यते // - (प्रथमो नागः) (मूलकर्ता-श्रीजयशेखरसूरिः) नाषांतरकर्ता- श्रावक मनसुखलाल हीरालाल हंसराज. ( जामनगरवाळा) जपावी प्रसिह करनार-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज. ( जामनगरवाळा) चोधिबीजं सतां स्वांत-मौ वस्तुमना श्व // योऽधाद् वृषं पदोपांते / स श्रीमान ऋषनः श्रि श्रीशांतिनाथस्य नवानने-दृयाज्जनानां प्रमदाधिवृष्यै // यत्रोदितेऽमी परतीर्थनाथस्तेनाभिलाषाः प्रययुर्विनाशं // 1 // सरस्वती हदि ध्यात्वा / कुर्वे गुर्जरनाषया // शब्दार्थ चरित. स्यास्य / स्वानुनवकृतेऽल्पधीः॥२॥ संतपुरुषोना अंतःकरणरूपी बुमिने विषे सम्यक्त्वनुं बीज वाववानी जाणे श्वा थइ होय न. CR. Com এই যন্ত্রের ও সাধনঃ Cag সে Jun Gunt Adladnak rust
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- ये // 1 // यस्यां हिसेवया स्थैर्य-मपि सत्वगत्वरी // जेजतुः श्रीः कुरंगश्च / स श्रीशांतिजिनो मु. माई दे // 2 // जलजीवोऽप्यचखो / मांगल्यमधुरध्वनिः // यस्यां इसेवापुण्येन / तं श्रीनेमिनमानुमः | // 3 // पार्थो जयति यो दीपा-नुच्चैः फणिमणिबलात् // तेने तमोभृते लोके / सतां मुक्तौ यि. यासतां // 4 // नारीदयोदर स्थित्यो-खातारोपितशालिवत् / योऽदतश्री क्रमाजातः / श्रिये स हि ( एवा हेतुथी) जेणे बळदने पोतानी पासे राखेलो ने एवा श्रीमान् ऋषनदेवप्रभु (अमारा ) कल्याणमाटे (थान)॥१॥ जेना चरणनी सेवाथी चपळगतिवाळा एवा पण लक्ष्मी अने ह. रिण स्थिरपणुं पाम्याने ते श्रीशांतिनाथपनु हर्षनेमाटे (थार्ज ) // // जेना चरणनी सेवाना पुण्यथी जलजंतु एवो शंख पण मंगलिक मधुरध्वनिवाळो थयो, ते श्रीनेमिनाथप्रजुनीअमो स्तुति करीये गये. // 3 // मोदमां जवानी बावान संतपुरुषोने माटे अंधकारथी नरेला जगतमां सर्पना मणियोना मिषथी जेणे दीपको नंचे धरी राखेला ने ते श्रीपार्श्वनाथप्रभु जय पामे. // // 4 // बे स्त्रीनेनी कुदिमां रहेवायी लखेमीने फरीथी वावेला शालिनी पेठे जे अनुक्रमे अ. तदानी शोनावान (सिक) थया ते श्री महावीरप्रतु लक्ष्मीमाटे (थान)॥५॥ जेम बळद | Jun Gun Aradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________ - धम्मि- शातनंदनः // 5 // येषु धुर्येष्विव न्यस्य / शासनस्य धुरं जिनाः // निश्चिंता नित्तिं नेजु-स्त मा मुदे गणधारिणः // 6 // जयत्यर्थपयःपूर-प्रीणितप्राणिमंडला // तत्कालजापि जैनी गौ-श्वरं ती विश्वगोचरे // 7 // इह विश्वजनप्रेय-गयानां सर्वशर्मणां // धर्मोऽनुपहतो हेतु-बीजं - 3 मीरुहामिव // 7 // निःशेषदतनदात्र-चक्रे चक्रेश्वरः श्रिया // यचंऽमायितं धत्ते / तधर्मस्य वि जूंजितं / / // सुरांगनासमारब्ध-संगीतप्रीतलोचनः / दिवींद्रो देवसंसेव्यो / जन्यते पुण्यतेजनपर तेम जेना पर शासननी धुरा स्थापीने जिनेश्वरो निश्चिंतपणे मोक्षपाम्याचे ते गणधरो हर्षमाटे ( थान ). // 6 // तत्कालजन्मेली एवी पण जैनी वाणी (गाय) जगतमां फरती अने अ. र्थरूपी दूधना समूहथी लोकोना मंडलने खुशी करतीयकी जय पामे // 7 // सर्वलोकोने पा. नंदकारी छायावाळां वृदोनो हेतु जेम बीज तेम या जगतमा सर्वसुखनो अनिवार्य हेतु धर्म बे. // सघन दत्रियरूपी नदात्रोना समूहमां चक्रवर्ती (राजा) शोनाथी जे चंद्रपणाने पामेले ते धर्मनुंज माहात्म्य . // // पुण्यना प्रकाशथीज देवलोकमां रहेलो इंद्र पण अप्सराए करेला | गायनोमां प्रीतियुक्त नेत्रवाळो देवोने सेववालायक थायजे. // 10 // जिनेश्वर प्रण पूर्वे करेला - P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gunala hak Trust
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- सा // 10 // जवेत त्रिदशकोटीर-कोटीरत्नांचितक्रमः // प्रचस्सिलुवनस्यापि / प्राकृतैः सुकुतैर्जिनः पाला॥ 11 // जीवाः सुखेबवः सर्वे / सुख धर्मात्प्रजायते / जीवनं तस्य कारुण्यं / प्राहः स्तन्यं शिशो. खि // 12 // यथा मौलिः प्रतीकेषु / हृषीकेषु यथेदणं // यथा सुरफुः सालेषु / विशालेषु यथा ननः // 13 // यथा हरिरमर्येषु / मर्येषु च यथा नृपः / / दयाधर्मस्तथा धर्म-कृत्येषु स्यात्पुरस्सरः // 14 // युग्मं // सत्यशीलतपोऽस्तेय-पांडित्यप्रमुखोऽखिलः / / गुणग्रामः कृपाहीनो / निर्नाथनगरोपमः // 15 // आरोग्य जाग्यसौजाग्य-रूपनुपादिसंपदः // कृपाबुतालतायाः स्यात् / पुष्पौसुकृत्योथीज देवताधोना मुकुटमा रहेला क्रोडोगमे रत्नोथी पूजाएला चरणवाळा अने त्रणे जुवः नना पण स्वामी थाय. // 11 // सर्व प्राणिन सुखना अनिलाषी ने अने ते सुख धर्मधीज था. य, तथा जेम बालकनुं जीवन स्तनपान ने तेम धर्मनुं जीवन दया ने // 12 // अवयवोमां जेम मस्तक, इंडियोमा जेम चक्षु, वृदोमां जेम कल्पवृदा, विशालपदार्थोमां जेम अाकाश, देवोमां जेम इंद्र, तथा मनुष्योमा जेम राजा तेम धर्मकृत्योमा दयाधर्म मुख्य // 13 // 14 // सत्य शी स तप चोरीनहि करवी ते अने विद्वता विगेरे सघळा गुणोनो समूहदया विना निर्मायकनगरसमः / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि| धो निर्वृतिः फलं // 16 // वैरिवारिविषव्याल-व्याधिबंधादिवाधयां // तृषेव पीतपीयूषः / पीड्यते | न कृपापरः // 17 // वृणोति सकला संपत् / करुणागाजन जनं / / चरित्रं धम्मिलस्यात्र / सादा कुर्मः प्रतीतये / / 1 / / तथाहि-जंबूरित्यस्त्ययं दीपो / यः सुमेरुमहीभृता / विगार्त जगतीजिति-रेकस्तंजालयश्रियं // 10 // दीपस्यास्य सुवृत्तस्य / प्रमदावदनाकृतेः // चालशोनालयं जाति / क्षेत्रं चरतनामकं // 20 // मध्ये देशनिवेशेन / तस्यापि तिलकायितं // अस्ति वीसुवर्णश्रि। न. // 19 // दयारूपी वेलडीना आरोग्यता नाग्य सौनाग्य रूप थने राज्यादिकसंपदा पुष्पोना समूहरूप जे. तथा तेना फळरूप मोदले ॥१६॥अमृतपानकरनार जेम तृषायी तेम दयालु माणस शत्रु जल विष सर्प तथा बंधन विगेरेनी पीडाथी पीडातो नया // 17 // दयाबु माणसने सघळी संपदान प्राप्त थाय (तेनी) प्रतीति माटे यहिं अमोधम्मिलकुमार चरित्र प्रत्यद कहीये जीये. // 1 // ते कहेले जंबूनामे दीप डे के जे जगतीरूपी भीतवाळो ययोग्रको मेरुपर्वतवडे करीने एक स्तंशवाळा महेलनी शोनाने धारण करे जे // 15 // ( त्यां) जरतनामनुं क्षेत्र स्त्रीना मुखनी थाकृतिवाळा अने गोळाकार एवा या जंबूढ़ापना खराटनी शोजाने धारण करे. // 20 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- कुशाग्रपुरपत्तनं // 21 // युवानो यत्र खेलति / विमानेष्विव वेश्मसु // मेषोन्मेषादिचेष्टानि-म: मान्यते मानवा इति // 2 // मणिवेश्मसदोद्योते / यत्र रात्रिः प्रतीयते // विकसत्कु सुदामोदा / व्योनि च ज्योतिरीक्षणात् / / 23 // यत्र जैनगृहायस्थ-कल्याणकलशोद्भवैः // गन्नस्त्यगस्तिन्नि| प्रस्ताः / पौराणां दुरितार्णवाः // 24 // तत्रामित्रतमःस्तोमं / विजित्य विवृतोदयः // ग्रहराज श्व व्योनि / रेजे राजा परं तपः // 25 // दारोऽब्धिः पंकजं पद्मं / कलंकीदुः शठो हरिः / इत्येषु तेना पण मध्यनागमां भाववाथी तिलकसरखं जंचा सुवर्णनी ( जंचजातिना लोकोनी) शोजावायु कुशाग्रपुर नामें शहेर . // 21 // जे नगरमां देवो जेम विमानमां तेम मनुष्यो घरोमां क्रीमा करे, परंतु नेत्रना पलकारा आदिकनी चेष्टायीज ते मनुष्यो ने एम जणाय . // 12 // मणिमय घरना निरंतर प्रकाशवाळा एवा जे शहेरमां रात्रि तो मात्र प्रफुल्लित कुमुदोनी सुगंधिया तथा थाकाशमां तारा जोवाथीज जणाय ॥२३॥जे शहेरमां जिनमंदिरपर रहेला सुवर्णकुंनोथी उत्पन्नथयेला किरणोरूपी अगस्तिमुनिए नगरजनोनां दुःखरूपी समुद्रो पीधेला . // 24aa त्यां | शत्रुरूपी अंधकारना समूहने जीतीने आकाशमां रहेला सूर्यनी पेठे उदययुक्त महातेजस्वी राजा PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aa adhak Trust
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________ शोजतो हतो. // 25 // समुद्र खारो ने कमल कादवमा उत्पन्न थयेवू बे, चंद्र कलंकी ने,अनेवि. पणु उग बे एवं जाणीने तेज प्रत्ये नाखुश थयेली लक्ष्मी निर्दोष एवा जे राजाने हर्षयी नजती हतो. // 26 // जे राजानी कीर्तिरुपी वेलडी वैरिजना समूहोथी नदि कचडायेली तया दानरूपी जलथी पुष्ट थयेली जगतरूपी मंझप नपर तुरत विस्तार पामी हती. // 27 // रणसंग्राममां जेना धनुष्ये शत्रु प्रत्ये पोतानी पीठ देखाडी त्यारे तेनी स्पोथीज जाणे होय नहि तेम नाशता शत्रन. ए पण तुरतज पोतानी पीठ यापी (देखाडी) / ते राजाने शीलरूपी अलंकारने धारण करनारी ! मधुरवचनरूपी अमृतनी नहेर समान, अने चक्षुनी मनोहर शोगाने धारण करनारी धारिणी जामनी पत्नी (राणी) हती // 15 // सारी रीते गोठवेली मोतीनी माळा जाणे निर्मलपणानोयन्यास | . PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- ता॥ अध्येतुमिव नैर्मव्यं / सद्गुणाना ह्यसौ स्थितिः // 30 // रंगरंगनुस्तस्याः। पितुः प्रीतेर| जायत // अमित्रदमेनो नाम / वपुष्मानिव मन्मयः // 31 // चित्रं प्रगुणयन धर्म / विनाति योधः, वघ्नी // समुदत्तस्तत्रासी-दवासी मार्गणौषतः // 32 // कचिद्रत्नैः प्रवालैश्च / क्वचित् कचनमौ क्तिकैः / मेदुरं मंदिरं तस्य / समुखोदरतां गतं / / 33 / / निकाये यस्य सहाये / चिरं विश्रम्य पद्म या // नुवनभ्रमणोजूत-खेदवेदो व्यलीयत // 34 // प्रेयसि प्रेयसी नक्तिः / सूक्तिपीयूषकामधुकरवा माटेज होय नहिं तेम जे राणीना हृदयने सेवती हती, कारणके सजुणीननी एज रीती होय. // 30 // ते राणीने पितानी प्रीतिनी रंगमि सरखो बने देहधारी कामदेव जेवो अमित्रदमन नामे पुत्र थयो / // 31 // याश्चर्य जे के योधानी पेठे बाणोना समूहथी (याचकोना समू. हथी) नहि डरनारो अने दुःख विना धर्मने मेळवनारो समुद्रदत्त नामे (एक) धनवान (श्रेष्ठी) त्यां वसतो हतो ॥३शा क्यांक रत्नोथी क्यांक प्रवासायी अने क्यांक मोतीनथीचरेलु तेनं घर. समुनामध्य जागजे लागतुं हतुं // 33 / / जे शेठना उत्तम गयावान घरमां चिरकाल विश्राम बिश्ने लक्ष्मीए जगतमां जमवाथी नत्पन्न थयेला पोताना पसीनानो विनाश कर्यो॥ 34 // न. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- क् // जनी सार्वजनीनास्य / सुनद्रा नामतोऽजनि // 35 // प्रीतिप्रेरणयामस्त / श्रेष्टी तां जिवि. तेश्वरीं // सा पुनर्विनयादासी-दासींमन्या प्रियंप्रति // 26 // कालो जुयान मियःप्रेम-गुणनिः स्यूतयोस्तयोः // गृहमंडनयोर्दड-वैजयंत्योरिवागमत् / / 37 // नयश्रीनिशि निदाणा-ऽन्यदानिमिष नायकं // ददर्श दर्शनानंदं / खमे श्वेतेगवाहनं // 30 // तन्वि ते तनयो नाव। श्रीमान धीमां. श्च निश्चितं // स्वप्न एवेति साश्रीषी-त्तस्यामृतकिरं गिरं / 35 // स्वप्ने निवेदिते पत्यु-स्तया विरिमां प्रीतियुक्त जक्तिवाळी, सहचनरूपी अमृतनी (दूधनी) कामधेनु सरखी तथा सर्वलोकोने माननिक एवी सुनद्रा नामनी ते शेग्नी पत्नी हती. // 35 // ते सुनद्राने प्रीतिनी प्रेरणाथी शे पोताना जीवननी मालिक समान मानतो हतो, अने तेणी पण विनयथी (पोताना ) ते प. ति तरफ दासीपणे वर्तती // 36 // परस्पर प्रेमरूपी दोराथी सीवायेला दंड अने पताकानी पेठे घरना मंडनरूप एवा ते बन्नेनो ( दंपतीनो) घणो काल व्यतीत थयो / / 3 / / एक दिवसे न्यायः युक्त लक्ष्मीवाळी (ते सुजद्राए.) रात्रिने समये सुतां थकां स्वप्नमां श्वेतहस्तिना वाहनवाळा तथा या | नंदी दर्शनवान इंद्रने जोयो, 30 घने हे कोमलांगी! तने खरेखर लक्ष्मीवान बने बुद्धिवान.प. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- प्राणनिद्रया // अश्रावि वंशश्रृंगार-पुत्रलाजमयं फलं // 40 // दधेऽथ गर्भमक्रूर-मंकूरमवनीव सा मार्ग // प्रायः स्वपश्रुतं दिव्यं / विपर्यस्यति नो वचः // 41 // सुतं प्रासूत सा काले / सीतांशुमिव पू. र्णिमा // पालोकमात्रसंप्रीत-लोकलोचनकैरवं // 42 // नाले नालीकवक्त्रस्य / बालस्यास्य जुवस्तले // निखायमाने निर्जिन-सादः प्रादुरन्निधिः // 53 // चेटैराकस्मिकप्राप्ति-तुष्टैः श्रेष्ट्यवबोधितः // योगीव ब्रह्मरंध्रे त-निधानमुदजीघटत / / 44 // दारिद्यदारुदाहाय / दवानलशिखासखं // थशे, एवीतेनीअमृतफरती वाणी तेणीए स्वप्नमां सांभळी. ॥३णा जागेलीएवी तेणीए (पो. ताना) पतिने ते स्वप्न को छते ( तेमना मुखथी) कुलना ममनरूप पुत्रलान- फळ सांजव्यु. 140 / हवे पृथ्वी जेम अंकुरने तेम तेणीए उत्तम गर्न धारण कर्यो, कारणके स्वप्नमां सांजळेली दे. ववाणी प्रायें मिथ्या थती नथी / / 41 // जोवा मात्रथीज लोकोना नयनकमळने खुशी करनारा चंडने जेम पूर्णिमा तेम तेणिए योग्यकाले पुत्रने जन्म आयो // 42 // उत्तममुखवाळा था | बाळकनी नाळ जमीनमां दाटते ते त्यां फुःख दूर करनारो धननो नंमार प्रकट थयो / // 43 // अक | स्मात् (ते निधाननी) प्राप्तिथी खुशी थयेला नोकरो मारफते खबर मलवायी योगी जेम ब्रह्मबारने | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्भि-| रुक्मराशिम तौ तत्र / निरीय मुमुदेतरां // 45 // पुण्यैः प्रकाशितः पुत्र-स्यैवायमिति वार्त्तयन् / // स्वर्णातरेकं तत्रासा-वत्रासं मणिमैदत // 46 // कोऽयं किमनुजावो वा / मणिरियात्तसंशयः | // तत्र पत्रमिति श्लोक-सुजगं लब्धवानसौ // 4 // एतत्संस्पर्शपूतेन / परिपीतेन पाथसा // | पुमान पशूपमोऽपि स्या-विद्याधरितवाक्पतिः // 4 // महिमानममुं मत्वा / मणेः श्रेष्टी व्यनावयत् // अहो निरवधि ग्यो-दधिर्वालस्य दृश्यतां // ४णा श्रीकारण निधिरसौ / धीकारणमयं म. तेम शेठे ते निधान खोलाव्यु // 44 // दारिद्यरूपी कष्टने बाळवाने दावानलनी ज्याला संरखा तेमां रहेला सुवर्णना समूहने जोश्ने ते शेठ घणो खुशी थयो // 45 // या निधान पुत्रना पुण्यथीज प्रगट थयेलो ने, एम वात करतां थकां तेणे ते निधाननी अंदर रहेला एक मनोहर म. णीने जोयो. // 46 // या मणि कर जातनो अने शु प्रनाववाळो हशे? एवी रीते शंकित थयेला एवा तेने त्यां ावी रीतना श्लोकथी मंडित थयेलो एक पत्र मल्यो // 4 // था मणिना स्पर्शथी पवित्र थयेवू पाणी पीवाथी पशु सरखो पुरुष पण विद्वान थश्ने बृहस्पतिने पण जीतनारोथाय // 4 // ते मणिर्नु यावं माहात्म्य जाणीने ते श्रेष्टीए विवायु के बहो! या बाल. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मिणिः // ऐंडं वचो दृढयतः / प्रादु यास्य जन्मनि // 50 // अंगजाताहिनश्यति / केऽपि दुष्टव सार्थ णादिव // फलात कधव श्व / लनंते तामना परे // 21 // एकोऽहमेव धन्योऽस्मि / यदवाप्तो ऽस्मि भासुरं / पुत्ररत्नं प्रसूयामुं / रत्नाकरसपत्नतां ॥रशा कार्यो निधिरयं सर्वोऽप्यस्य जन्मो सवेर्थिसात् / अयमेव चिरायुः स्ता-न दूरे संपदः पुनः / / 53 // व्यधानिधानव्ययतः / सोऽ. कनो अपारगाग्यसमुद्र तो जुन ? // 45 // लक्ष्मीना कारणऋत एवा या निधाने तथा बुधिना कारणत एवा था मणिए था बालकना जन्म समये प्रकट थश्ने इंऽनु वचन दृढ करेबुं बे. // 50 // शरीरमा जत्पन्न थयेला गुमडांथी जेम तेम केटलाक ( मनुष्यो) पुत्रयी नाशपामे. तथा केटलाक फळथी बोरडीनी पेठे ताडना पामे // 1 // माटे (खरेखर ) हुंज एक धन्य बुं; के जे आवा कांतियुक्त पुत्ररत्नने पाम्यो बु. तेमज जे या पुत्ररत्नने नत्पन्न करीने रत्नाकरनी तुव्यताने प्राप्त थयो बुं // 55 // माटे या सघg निधान था पुत्रना जन्मोत्सवमां मारे भिक्षुको ने थापी देवू जोइए, फक्त था. पुत्रज दीर्घायु थान, केमके ऽव्यप्राप्ति कंश दूर नयी // 53 / / | (एम विचारीने) तेणे ते निधान वापरीने एवो तो ते पुत्रनो जन्मोत्सव कर्यो के जेथी राजा P.P.Ac GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- 2 तऊननोत्सवं // तथा यथाधुनान्मौलि-मिलानाथोऽपि विस्मितः // 55 // नीतः सुरेऽदत्ताख्यां मार्ग। पित्रा स्वप्नानुसारतः // शिशुः शशी शुक्रपद / श्वावधत स क्रमात् // 55 // काले कलाकला. | पांचः-सरसे विश्वनृतये // उपाध्यायाय तातस्त-मध्यापयितुमार्पयत् // 56 ।।मणिपूतपयःपा. 13 | न-पुष्टया सारकाष्टया // सुबुधिबेडया शास्त्रां-जोधिं सर्वमगादत // 57 // शास्त्रं दुर्बोधमन्यै र्यत् / तत्राप्यस्यास्फुरन्मतिः // मुक्तापि गलिभिर्न स्याद् / धू|रेयस्य दुर्धरा / / 27 // अमित्रदने पण याश्चर्यपूर्वक पोतानुं मस्तक धुणावू पड्युं // 14 // पनी पिताए स्वप्नने अनुसारे तेनुं सुरेंदत्त नाम राख्यु. तथा शुक्लपदमां चंद्रनी पेठे ते बाळक (पण ) अनुक्रमे वृधि पामवाला ग्यो. ॥५॥पनीयवसरे तेना पिताए तेने श्रन्यासमाटे कलाना समूहरूपी. जलना सरोवर सर. खा विश्वति नामना अध्यापकने सोंप्यो // 56 / / ते ( सुरेंद्रदत्त पण) मणियी पवित्र थयेला जलपानथी पुष्ट थयेली तथा सारतं उत्कर्षवाळी (उत्तमकाष्टथी बनेली एवी) उत्तम बुद्धिरूपी होमीवडे करीने सघळो शास्त्रसमुद्र तरी गयो // 57 // जे शास्त्र बीजानने समजवं मुशकेल ह. | तं तेमां पण या सुरेंद्रदत्तनी बुधि फेलाती हती. कारणकै गळीया बळदोए गेडी दोधेच धोस। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhakust
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- मनोऽप्यत्र / सूनुर्वसुमतीपतेः // समं सुरेंद्रदत्तेन / तेनाध्येतुं प्रचक्रमे // 55 // स्तश्च सागरः श्रे माटी / तत्राजुणसागरः // यस्यानुवेलं वर्धिष्णो-रस्ताघः कमलोदयः // 60 // सत्यभामोदरसरः | पद्मिनी तस्य नंदिनी // सुनदानदनिद्राणां-बोजवित्राजिलोचना / / 61 // सापि बाव्याचकोरीव / कलावत्यनुरागिणी // अधीयती सतीर्थ्याद् / पतिश्रेष्टिपुत्रयोः // 6 // पठन पश्चादप| रं बळवान बळदने उपामवु कंश मुश्केल पडे नहि. ॥जा अमित्रदमन नामनो राजानो पुत्र पण अहिं ते सुरेंडदत्तनी साथेज अन्यास करवा लाग्यो॥ 50 // हवे ते नगरमां गुणोना समुद्र स. रखो सागर नामे शेठ (वसतो हतो) दणे दणे जन्नति पामता (वेखखते वृधि पामता) एवा जे शेठनो लक्ष्मीनो जदय अपार हतो. // 60 // ते शेग्ने सत्यनामा नामनी स्त्रीना नदर रूपी तळावमांकमलिनी सरखी तथा विकसित कमळसरखी शोनिती अांखोवाळी सुना नामनी पुत्री हती. / / 61 // चंद्रप्रत्ये जेम चकोरी तेम बाब्यपणाधीज कलावानप्रत्ये स्नेहवाळी ते सुगडा पण ते राजपुत्र अने श्रेष्टीपुत्र बन्नेन साथे विद्यान्यास करती हती. // 6 // जेम धीमे चालना. | रो माणस जतावळी चालना माणसनी पारळ रही जाय . तेम वजावधी खट्पबुधिवाळो रा. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि-| सूनुः प्रकृतिबालिशः // महामतेः सुरेंद्रस्य / जंघालस्येव मंयरः // 63 // अध्येत्रापि प्रयत्नेन / स. | लीलमपि पाठितः // नासौ मिमिल सामुडे-बोलो यून श्वाध्वनि // 64 / / प्रायो दुर्गेऽपि शा. साध्व–न्यध्वगस्येन्यजन्मनः // न छाययेव देहस्य / व्यभिचेरे सुगद्रया // 65 // स्वप्रतिजानु. मानेन / संगृह्णाना गुरोगिरः // अन्येऽपि तत्र शालायां / छात्राः पेठुः परे शताः // 66 // कदा चन विनेयानां / गुरुः प्रज्ञां परीदितुं // गांजीयवारिधेरूची-सध्री, वाचमूचिवान् // 67 // हंजपुत्र अभ्यासमां महाबुध्विान सुरेंद्रदत्तनी पारळ रही गयो. // 63 // अध्यापके महेनत ले. इने सहेलीरीते गणावतां तां पण ते राजपुत्र मार्गमां बाळक जेम युवानने तेम सुरेंद्रदत्तने पहोंची शक्यो नदि // 64 // प्रायें करीने कठिन शास्त्रोना अन्यासमां पण शरीरनी गयानी पेठे ते सुनद्रा ते श्रेष्टीपुत्रथी जुदी पडी नहि. / / 65 / / वळी ते शानमां पोतपोतानी बुधिप्रमाणे गुरुवचन अंगीकार करनारा बीजा पण सेंकडोगमे विद्यार्थी अन्यास करता हता // 66 // एक दिवसे विद्यार्थीनी बुधिनी परीदा करवामाटे गुरु गंजीरतारूपी समुद्रना मोजांसरखी वाणी बोल्या // 67 / / हे बुधिमान् शिष्यो तमो सघळा सांपळो जे कोश् राजाने पोताना. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. .
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- होःशृणुतः सर्वेऽपि / शिष्या बदामबुध्यः // पद्न्यामास्तिघ्नते भूपं / यः स के दंडमर्हति // 60 // / माई मार्यः कार्योऽश्रवा जिन्न-पादः स ध्रुवमट्पधीः / / इति सर्वेषु जपत्सु / सामुद्रिमौनमयजत् // 6 // याः किं वि गुरोर्वाचां / परमार्थमविंदवः // पद्न्यां क्रमति नृपं यः / पूज्य एव स धीमतां // 16 // 70 // कथं कथमितिप्रश्नोत्तालकोलाहलाकुले // विनेयमंडने प्रोचे / स पुनः श्रेष्टिनंदनः / / / / 11 // को ज्वलज्ज्वलनज्वाला / सचैतन्यः पिपासति // को वा-स्फारस्फारत्नं / फणिनर्जि | दति / / 12 // ने पगथी मारे ते क्या दंडने लायक थाय ? // 6 // ते अल्पबुधिने मारी नाखो जोएः, अयवा तेना पग बेदवा जोशए एम सवे विद्यार्थी ज्यारे बोल्या त्यारे सुरऽदत्त बोल्यो के 6 अरेत. मो गुरुना वचननो परमार्थ जाण्याविना या शुं बोलो गे? जे माणस पगथी राजाने मारेने ते बुझिवानोने पूजवा लायकज थाय थे / / 7 // एम केम? एम केम ? एवी रीते प्रश्नपूर्वक विद्याथीवर्गे घणो कोलाहल करते ते ते श्रेष्टीपुत्र बोल्यो के ||11|| बळती अमिज्वाळाने कयो बुधिवान पीवानी ना करे? अथवा नागराजनी विस्तीर्णफणपर रहेला मणिने कोण लेवानी वा क P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि-|... को जागृतो मृगेंऽस्य / केसराण्युद्दिधीर्षति / / पादान्यां पृथिवीशं को / विशंकः स्कंतुमि / | बति // 73 // परं को परिक्रीड-माण नर्वदमः पुरः // यास्कंदति नृपं तातं / पद् ज्यां प्राणप्रियः सुतः // 14 // पादैराक्रांतरत्नाडि-खि कल्पडमांकुरः / / स राझो राज्यसर्वस्वं / मार्यः पूज्योऽथवोच्यतां / / // धियं निध्याय सामुछे-धुन्वन्नध्यापको शिरः // तस्मिन्नध्यापनाया सं / सौवं मेने फलेग्रहि // 76 / / कलंकिनीव शिष्यौवे / त्रपया न्यग्मुखे व्यधात् // सुगडा न्यु रे ? // 12 // . जागता सिंहनी केशवाळीने खेंचवानी ना कोण करे? तेमज कयो माणस निःशंकपणे पगथी राजाने माखाने श्वे ? // 13 // परंतु खोळामां रमतो प्राणप्रिय पुत्र पोतना पिता एवा रा जाने पण जगंबळो थयो थको पगथी मारे बेः // 14 // मूळीयांथी दबावेल ने मेरु पर्वत जे. णे एवा कल्पवृदाना अंकुरानी पेठे राज्यनी सर्व मिल्कतरूप एवा राजाना ते पुत्रने मारखो के प्रजवो ते कहो ? // 15 / / एवी रीतनी सुरेंद्रदत्तनी बुछिने ध्यानमां लश्ने ते अध्यापक (पोतानं) | मस्तक धुणावतो थको तेने अन्यास कराववामाटे पोते करेला श्रमने सफळ मानवा लाग्यो. . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________ - धम्मि- छनं तस्य / चलाचलगंचलैः // 9 // नायं क्वेशस्य रोषस्य / जातु हेतुर्ममानवत // अदर्शयच्च ‘माई न स्नेह-विनेदं पितृवन्मयि // 70 // मन्येऽदर्शि सदोपास्ति-तुष्टैर्दै वैरसौ मम // तत्तानेव पुनः | सेवे-ऽमुष्य मंगलकाम्यया // 45 // ध्यात्वेति विहितस्नानो / वसानः शुक्लवाससी // धृताल्प हेमालंकारो / विकारोनितमानसः // 70 // स्वं मंत्रपूतं निर्माय / प्राणायामपुरस्सरं // देवाची प्रा. // 16 // (ते समये ) जाणे कलंकित थयो हो नदि तेम विद्यार्थीनो समूह साथी ज्यारे नीचां मुखवाळो थयो त्यारे सुनडा चपळ कटादोथी तेनुं न्युजन करवा लागी सुरेंद्रदत्त कदापि पण मने क्लेश के क्रोधना हेतुरूप थयो नथी तेमज तेणे मारा प्रत्ये पितानी पेठे अभिन्न स्नेह देखाडेल . // 7 // वळी हुँ एम मानुडं के हमेशनी पूजायी संतुष्ट थयेला देवोए मने था सुरेंद्रदत्त देखाड्यो , माटे तेना कल्याणनी बायी हुं तेज देवोने सेव॑ / / | एम विचारीने स्नान करी श्वेत वस्त्र पहेरीने तया स्वल्प वर्णालंकारो धारणकरीने विकाररहित | मनथी 10 प्राणायामपूर्वक पोताना आत्माने मंत्रथी पवित्र करीने विधिपूर्वक देवपूजा करवालाग्यो.. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- वृतत् कर्तु-मुपाध्यायो यथाविधि // 1 // ( चतुर्निः कलापकं ) स्वर्णवर्णी पद्ममाला-मानय त सचेतनाः // श्त्यसौ पद्मपूजार्थी / शिष्यान्यदान समादिशत् // 7 // तेऽपि भ्रांत्वा सुवर्णा ब्ज-मालां मालाकृदापणात // सरसश्च समानिन्यु-रहपूर्विक्रया स्यात् // 73 / / सारसौरजसं १ए जार-भ्रमितमरौघया // देवानर्चस्तया विप्रः / सामुद्रमैहत ज्या तावद् नृपालसूः पद्म मालाख्यां कनकलविं / / दासीमानीतवानीति-मंदधीरात्ममंदिरात् // 75 // किमेतदिति पृष्टश्चो-- // 1 // कमलपूजाना अर्थी ते नपाध्याये सर्व शिष्योने हुकम कर्यो के हे बुध्विानो! तमोसो. नेरी रंगनी कमळमाळा लावो? // 2 // त्यारे तेन पण स्पर्धापूर्वक जमीने माळीनी दुकानेथी तथा तळावमांथी सोनेरी कमळ्नी माळा लाव्या / / 73 // नत्तम सुगंधना समूहथी (लल. चायेला) जमरना समूह जेनी आसपास नमी रह्या बे एवी ते माळाथी देवोने पूजतों एवो ते ब्राह्मण सुरेंद्रदत्तनुं कल्याण श्ववा लाग्यो. जातेटलामांव्यवहरामां मंदमतिवाळो राजपुत्रपोतानाघेरथी सोनरी कांतिवाळी (रुपवान् ) पद्ममाला नामनी दासीने त्यांलाव्यो ।शा त्यारे उपाध्याय नापनवाथी तेणेपण खरेखलं कडं, केमके प्रायें नोलो मनुष्य पोतानो गुन्हो बुपाववाने समर्थ थ. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि पाध्यायेन यथातथं / / सोऽन्यधान्न प्रनुः प्रायो / मृदुधीर्मतुनिह्नवे // 6 // बिमाली शकुनावि सार्थ / दासी दृष्ट्वादितो गुरुः / दध्यावध्यापितोऽप्येष / धीवंध्यो ही दृषयते // 7 // मखे वीक्ष्य पशु. वात-घातं जातकृपेण किं // स एष मेषः पुंवेषः / ससृजे विश्वरेतसा / / || नद्यमे सति का. पेयं / व्यत्ययेऽजगरायितं // यशो बिधाप्यवसरा-ऽननिझानां हि उर्खन्नं // 7 ॥अप्यंबु पालोकाद्या / विनावसरमप्रियाः // धूलिधूमांधकाराया / हृद्या अवसरे पुनः // 50 // क देवपूजावस. तो नथी॥ 6 // शकुन जोनारो माणस जेम बीलाडीने तेम ते दासीने जोश्ने खेद पामेला गुरुए विचार्यु के घरेया तो जणाव्या उतां निर्बुछि पत्थर जेवोज रह्यो।।७।। यज्ञमांथती पशसम. हनी हिंसाने जोश्ने जाणे दयायीज विधाताए आने पुरुषरूपे घेटोज बनाव्योहोय नहि तेमलागे // 7 // अवसरने नहि जाणनारा माणसनो उद्यम कपिचापव्यतरके, तथा तेनुं बालस अ जगरना आचरणसरखं गणाय , एवीरीते तेजने बन्ने रीते यश मळयो दुर्लन ने // Gणा वळी अवसरविनाना जल बाजूषण तथा नाटकादिक पण अप्रिय थपडे , धने अवसरेतो धूळ, धूमामो तथा अंधकारमादिक पण प्रिय थाय . / / ए० // गोवाळीयासरखा या राजपुत्रे एटर्बु P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- रः / क दासी दुरितास्पदं // गोपालेनेव गोपाल-भुवेत्यपि न चिंतितं // 1 // फूत्कुर्वतोऽमिनि / ण-मिव जस्मावगुंठनं // अमुं पाठयतः कंठ-शोष एव फलं मम / ए॥ सुरेऽदत्तश्रेयोऽ थें / दैवतं वरिखस्यतः // मुदासीनस्य दासीयं / यन्मे दृग्गोचरं गता // 3 // तन्मन्ये प्रागसौ 21 | नृत्वा / श्रिया श्रीदस्य सोदरः // अंते विपत्स्यते नीच-वनिताजनितार्तितः // ए४ // विचार्येत्य शुचिमन्यो / दासीदर्शनतो हिजः // रजोभृत श्व स्नानं / पुनश्चक्रेऽमलैज लैः // 55 // हसि. पण विचार्यु नहि के क्या था (मारो) देवपूजानो अवसर! अने क्यां आ पापोनास्थानकरूप दासी ! // 1 // उरी गयेला यामिने कुंकतो माणस जेम राखथी पाबादित थाय ने, तेम था: ने नणावमां केवळ कंठशोषरूप फल मने (मन्यु ) // 9 // सुरेंद्रदत्तना कल्याणमाटे देव. नु पूजन करती वखते हर्षथी बेला एवा मने जे या दासी नजरे पडी // 3 // तेथी हं ए. म धारुं बुं के प्रथम ते लक्ष्मीथी कुबेर सरखो थश्ने अंते नीच स्त्रीथी उत्पन्न थयेली पीडाथी थापदा पामशे // 4 // एम विचारीने ते ब्राह्मणे ते दासीना दर्शनथी पोताने अप. वित्र थयेलो मानीने धूळथी जरायेला मनुष्यनीपेठे फरीथी स्नान कर्यु // 55 // हवे अन्य वि. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aarauak Trust
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि| तोऽथापरैश्गत्रै-विशेषेण सुन्द्रया // दध्यौ त्रपादपाम्लान-मुखाजो भूपरिति // 6 // किमाई मकार्षमई कर्म / प्राग्नवे यदिपाकतः // न्यमांदमेवमझान-सिंधौ सिंधुरयादिव // 7 // गत्रा धन्या अमी प्रज्ञा / विझातग्रंथकोटयः // धन्योऽहमप्यदः प्रज्ञा–परनागस्य पोषकः // 7 // वि. | धे विधेहि मे देधी-जावं नावंचिते हृदि // येनेदं जाड्यजंबालं / कदाचिडोषमोषति | 0 | ब्रह्महा चूणहा नाहं / नजनंगमसंगमी // किं न स्पृशसि मां देवि / हास्येनापि सरस्वति // 10 // द्यार्थिनथी तथा सुन्नद्राथी विशेषे करीने हांसीपात्र थयेला, अने खारूपी रातिथी करमा ग. येवु ने मुखकमल जेनुं एवा ते राजपुत्रे विचार्यु के // 6 // अरे पूर्वनवमां में एवं ते शुं क. म करेलु ! के नदीना वेगसरखा जेना जदयथी हुँ अज्ञानसमुडमां मुबेलो बु॥ 7 // ग्रंथोनो रहस्य जाणनारा या विद्यार्थिनने धन्य , तेमजमूर्खाचं पोषण करनारा एवा मने पण धन्यजने! ॥Gहे दैव!मारा बुधिहीन हृदयनां तुं बे टुकडा करी नाख? केजेधी (तेमांरहेलो) मूर्खाइरूपी कादव को पण समये सूका जाय // ॥वळी हुं ब्रह्महत्या के बालहत्या करनार नथी, तेम नीचनी सोबत करनार पण नयी, तो हे सरस्वती देवी! केवल हास्यथी पण तुं मारो P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि-| मातः स्वजातिसाम्यात्त्वं / यद्यस्यां रज्यसे स्त्रियां / / तत्किमेतेषु न मयि / पंक्तिनेदो हि दुस्सहः // 1 // एवं चिंताचिताधूम-धूसरास्यं नृपांगजं // ऊचे सुरेंद्रः स्वमाणि / स्नपयन् कृपयेरितः ॥शा | सखे सखेदतां मुंच / पिबेदं पावनं पयः // श्यं स्वयंवरा देवी / भारती त्वां वुवुर्षति // 3 // त. 23 | वात्मनिंदनादेव / कर्माज्ञानविपाकिमं // दृढमप्यगलन्मन्ये / हिमं तीवातपादिव // 4 // एवं वा क्यामृतं पूर्व / सामु पः पपौ // ततस्तदर्पितं विद्या-मणिस्नातोज्ज्वलं जलं // / // अथ जाता स्पर्श केम करती नथी? // 100|| वळी हे सरस्वती देवी ! स्वजातिना तुल्यपणाथी ज्यारे तुंबास्त्री प्रत्ये (सुगदाप्रत्ये) संतुष्ट थयेली ने त्यारे था बीजा विद्यार्थिनप्रत्ये शामाटे तुं तुष्ट थयेली ? अने माराप्रत्ये केम तुष्ट थती नथी? माटे खरेखर (एवी रीतनो) पंक्तिनेद तो सहन न थशके तेवो. ॥१॥एवी रीते चिंतारूपी चिताना धुमामाथी कांखा मुखवान ते राजपुत्रने कृपायी प्रेराएला सुरेंद्रदत्ते पो. ताना मणिने स्नान करावतांथकां कहां के॥शा हे मित्र! तुंखेद तजीने या पवित्र जळनुपान कर? या स्वयंवरासरस्वती देवी तने वरवाने श्वे // 3 // हुएम धारं बु के याथात्मनिंदाथी तारुं जदय पावेवं | निबिड झानववरणीय कर्म पण तीव्रतापथी हिमनी पेठे नष्ट थयु // 4 // एवीरीतना सद .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- न्यजन्मेव / कुमारस्तत्दाणादनृत् // कंठपीउबुउत्सर्व-सारसारस्वतः स्वतः // 6 // अमानं म माणिमंत्रादि-महिमानं विभावयन् // दोा सुरेंद्रमाश्लिष्यो-वाच वाचमिमामसौ // 9 // त्वया त. न्मे कृतं वात-पित्रोरपि दुष्करं // तौ हेतू येन देहस्य / तस्य ज्ञानात्मनः पुनः // // धीम२४ तामपि दुर्बोधं / निर्विवेकं पशोरपि // नारीणामपि हास्याई / प्रतिबोधयताय मां // 7 // - गलिधुरीणतामंधः / सदृक्तवं हंसतां दिकः // कुहूज्योत्स्नास्वमश्मा तु / मणित्वं प्रापितस्त्वया | दत्तना वचनरूपी अमृतने पीधाबाद तेणे थापेबुं ते मणिन निर्मळ स्नात्रजन तेणे पीछु / / 5 / / हवे जाणे तेनो पुनर्जन्म थयो नहि होय तेम ते राजकुमारना हृदयमां तेज समये सर्व विद्यानो सार पोतानी मेळेज प्रकट थयो // 6 // मणिमंत्रादिकना अपार महिमाने विचारतो थको ते राजकु. मार बन्ने हाथोथी सुरेऽदत्तने यालिंगन करीने यावी रीते बोलवा लाग्यो, // 7 // हे ना! | तें मारापर ते (उपकार) कों ने के जे मातापिता पण करी शके नहि, केमके तेज तो आ (बाह्य ) शरीरना हेतुत ने थने तें तो मने ज्ञानरूपी अंतरंग शरीर प्राप्यु जे. // 7 // बुधिया | नोने पण दुर्बोध, पशुथी पण निर्विवेकी, अने स्त्रीनने पण हांसीपात्र एवा मने प्रितबोधीने॥णा | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- // 10 // (युग्मं ) अहं तवोपकारस्या-ऽनृणः स्यामित्यसंगतं // बालचापलतो लोल-जिह्वः किंचिद् / मा ब्रुवे पुनः // 11 // यदा राज्यमहं धास्ये / धुर्यो धुरमिवानसः // त्वं लप्सीष्टास्तदा श्रेष्टि-पदं सारथिता. | मिव // 12 // इत्युक्तिनधिकानघा-नन्यमानसयोस्तयोः // प्रीतिः स्थिरान्निःशेषा-मधीति सहक 25 | त्वतोः // 13 // काले सांयात्रिकाः प्राप्त-रत्ना रत्नाकरादिव / / गुरोरधीतिनः सर्वे / गताः स्वं स्वं गृहं ययुः // 14 // सुगडाध्यापिता शास्त्रा / शास्त्राब्धेः पारदृश्वर। // अध्युवास वयो यूनां / धैर्यतें गलीया बळदने बळवान बळ्दपणाने, अंधने सनेत्रपणाने, कागमाने हंसपणाने, अमावास्या ने चांदनीपणाने तथा पत्थरने मणिपणाने प्राप्त कर्यो बे. // 10 // हुँ तारा उपकारना करजयी रहित 12 शकुं ए असंजवित , तो पण बाव्यपणाना चपल खजावथी वाचाल थश्ने किंचित् कहं. // 11 // गाडीना धोंसरांने जेम बळद तेम ज्यारे हुँ राज्य धारण करीश त्यारे तुं सारयी. सरखी शेग्नी पदवी पामीश. // 15 // एवी रीतना वचनोरूपी बाधरथी ( चर्मनी दोरीथी) बंधायेलां ने परस्पर मन जेननां, तथा साथे रहीनेज अन्यास करता एवा तेन बन्नेनी प्रीति स्थिर | थ. // 13 // हवे केटलेक काळे रत्नो मेळवीने वहाणवटी जेम समुद्रथकी तेम ते सर्वे विद्या - Jun Gun Aaradhakrust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि| ध्वंसनिबंधनं // 15 // गुणाश्रयो वरः कः स्या-दस्या इति वितर्कयन् / / पित्रा प्रौच्यत मंदादो / . माई मंदादरतया तया // 16 / / नानासि न च निडासि / मत्पाणिग्रहचिंतया // किं तात तव वदयेऽहं / काले योग्यं वरं स्वयं // 17 / / बालाथ कालमालीनां / लीना केलिरसेऽत्यगात् // दृढं हृत्पंजर२६ | कोडे / रुध्ध्वानंगविहंगमं // 10 // सुरभिः पुरजिदग्धं / जीवयन्नथ मन्मथं // व्यजूंनद् वि जा. र्थिन गुरुपासेथी विद्या मेळवीने पोतपोताने घेर गया॥१५ ते गुरुए. जणावेलीतथाशास्त्रसमुद्रना पारने पहोंचेली ते सुभद्रा पण युवकोनां धैर्यने नाश करनारी युवावस्था पामी. // 15 // ह. वे या मारी पुत्रीनो कोण गुणवान स्वामी थशे? एवा विचारथी चिंतातुर थयेला पोताना पिता. ने तेणीए धीमे रहीने कह्यु के // 16 // हे पिताजी! आप मारां लमनी चिंतायी नयी भोजन करता के नथी निद्रा लेता परंतु अवसरे हुँ पोतेज योग्य वरने सूचवीश // 17 // हवे ते बा. लिका सखीनसाथे रमतगमतमां लीन थश्ने तथा कामदेवरूपी पदीने पोताना हृदयरूपी पांज. रमां दृढरीते रोकीने पोतानो समय गाळवा लागी // 17 / / एवामां शंकरे बाळेला कामदेवने जी. वामती तथा नमता नमरानने खुशकारकवृदोवाळी वसंत ऋतु पृथ्वीपर विस्तार पामी. // 10 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि भ्य-जंगरंगदमामः // 15 // मंजरीपिंजरीता-च्चूताद्यत्र कुहूध्वनि // किंपिका अपठन्निड-बि. ज्यविरहिणीमुदे // 20 // उद्यबता जगज्जेतुं / कुसुमास्त्रेण सज्जिता // श्रायुधालीव यत्रांत-वं. पुष्पावली बनौ / / 21 // निजालोकादशोका ये / पांथान् जन्नुर्वियोगिनः // लमा भुंगबलात् 27/ पाप-स्तबकास्तेष्वमी किमु // 25 // वियोगानौ दहत्यंगं / पांथानां पथि धावतां // याचरन्मित्रमौ चित्य-ममिलन्मलयानिलः // 23 // याचिक्रीडिषवः पौराः / काननानि तदा ययुः / / जोगिनां ते वखते मांजरथी पीळाश मारता अग्रवृदोपर रहेली कोयलो जाणे चंद्रथी मरती विरहिणी स्त्री. नाहर्षमाटे अवाज करवा लागी // 20 // जगतने जीतवाने तैयार थयेला कामदेवे हथियारोनी पं. क्ति तैयार करेली होय नहि, तेम वननी अंदर पुष्पोनी श्रेणि शोजवा लागी.॥२१॥ यायशोकवृदो के जेनए वियोगी पंथिनने मारेला . तेजने विषे नमरानना मिषयी शुं था पापोना गुबान वळगेला ! // 12 // मार्गे चालता पंथिनने वियोगरूपी अनि बाळते ते पोतानी मित्रा प्रकट करतो मलयाचलनो वायु ( ते अमिने) मळी गयो. // 23 // ते समये नगरना लोको क्रीडा करवानी श्बाथी वनमां गया, केमके लोगी अथवा योगीनने बित अर्थ साथवा. ) P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- योगिनां वापि / तान्येवेष्टार्थसिद्धये // 24 // समं सुरेंद्रदत्तोऽपि / व मिनस्तारकैखि // सुमित साई भागमुद्यानं / प्राप चं वांबरं // 25 // तत्र सोऽन्यकृताः पश्य-निर्निमेषेक्षणः दणं // दोला जलावगाहाद्याः / केलीः स्वयमपि व्यधात // 26 // स नंदनवनकोड-क्रीडत्रिदशविन्रमः // वि. . शश्राम श्रमस्वेद-बिते सांदवदे तरौ // 27 // : तत्रापि गायनोजीत-गीतप्रीतश्रवा असौ // जातः सुधाघ्रात श्व | भोगाः सर्वत्र जोगिनां मां ते वन नपयोगीजे. // // ताराज सहित चंद्र जेम आकाशमांबावे ,तेम सुरेंद्रदत्त पण ते समये पोताना मित्रोसहित बगीचामां याव्यो / // 55 // त्यां ते अन्योये करेली हिंचोळा जलस्नानयादिकनी क्रीडा कणवारसुधी एकीनजरे जोश्ने पोते पण तेम करवा लाग्यो // 6 // नं. दनवननी अंदर क्रीमा करता देवसरखा ते सुरेंद्रदत्ते थाकथी थयेलो पसीनो दूर करखामाटे घाटां पबोवाळा वृदो नीचे विश्राम कों. // 27 // त्यां पण जेंचे खरे गवातां गायनोथी श्रवणेंडियनुं सुख मेळवीने जाणे अमृतपानयी धरायो होय नहि तेवो थयो, केमके जोगीलोकोने सर्व जगोए गोगो मळे जे. // 20 // ते समये एक P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jan Gun Aaradhak Trust
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- // 27 // उपेत्य श्रवणोपांत-मेकेन सुहृदा तदा // अषडदीणमंत्रेण / व्यझयत समुद्र वः / / // 25 // तवानेयोऽद्य वानेयो-लंकारः कश्चिदित्यहं // प्रेप्सुः प्रचुरपुष्पौधं / वनेऽस्मिन्नेकतोऽगमं // 30 // तावत्तत्रागलमलमी-खि सागरसंजवा / / सुनडा रूपनिधिभिः / सखीनिःशोजिताशितः // 31 // स्मितपुष्पा स्तनफला / मुखाब्जाधरपल्लवा // कर्णदोला जलता / प्रश्वासमलयानिला // 3 // सा नवेव वसंतश्रीः / स्मरास्त्रार्थमिवाचिनोत् / चलत्किसलयाऽभेद-भाजा पुष्पाणि पा. मित्र सुरेंददत्तना कर्णपासे यावीने जेम को तीजो माणस सांगळे नहि तेम कां के // 2 // तारे माटे हुँ बाजे एक पुष्पाजूषण लावू तो ठीक, एम विचारीने पुष्पोनो समूह लेवामाटे हूं था बगीचामां एक बाजुए गयो हतो. // 30 // एवामां त्यां सागरशेग्नी लक्ष्मीसरखी पुत्री सुनंदा रूपना जंडारसरखी सखीनथी शोजीती थयेली त्यां यावी. // 31 // हास्यरूपी पुष्पोवाळी, स्तनरूपी फलवाळी, मुखरूपी कमलवाळी, होठरूपी पल्लववाळी, कर्णरूपी हींचोळावाळी, गुजारूपी ल. तावाळी, तथा श्वासोश्वासरूपी मलयाचलना वायुवाळी, / / 35 // एवी ते नवी वसंतलक्ष्मीसरखी जाणे कामदेवना शस्त्रोमाटे होय नहि तेम चलायमान पक्षवसरखा हायवडे करीने पुष्पो एक Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasur M.S.
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मिणिना // 33 // (युग्मं ) सख्यस्तामूचिरे तकि / वरादि विजनं वनं / सत्यं वद वृणोषि वं। | न वर कारणात्कुतः // 34 // स्त्रीणां कुलकलारूप-लीलालवणिमादयः // विलासा श्व निःस्वाना -मपत्नीनां वृथा गुणाः / / 35 / / वासस्तव वराहायाः / सरले यत्पितुः कुले // जनप्रवादकंदस्य / तदेव जलसेचनं // 36 // बारोहति फुमं वल्ली / विद्युदाश्रयतेऽबुदं // चाधारा स्त्रियो हीति / झातं निश्चेतनैरपि // 37 // नोगेन्यश्चेतिरक्तासि / तत् किं गजसि न व्रतं / / गृहे वासश्च कौमारं गं करती हती. / / 33 // त्यां सखीन तेणीने कहेवा लागी के, हे नत्तम नेत्रोवाळी या वन म. नुष्यरहित , माटे सत्य कहे के तुं शामाटे पतिने वरती नथी? // 34 // जेम निर्धनोना विला सो वृथा , तेम पतिविनानी स्त्रीनना कुल कला रूप लीला तथा लावण्यादिक गुणो वृयाज बे. // 35 // वळी हे मुग्धे ! नमरलायक छतां पण तुं जे हवे पिताने घेर रही बुं, ते लोकापवादना मूलने जल सिंचवा जेवू जे. // 36 // वेलडी वृतपर चडे ने, वीजळी वर्षादनो पाश्रय लेने, एवी रीते स्त्री पण जारना आधारयी रही शके , एम निश्चेतनोए पण जाणे चे // 3 // कदाच तुं जोगोथी विरक्त थयेली होय, तो पनी दीदा शामाटे लेती नथी? केमके घरमा रहेवं P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि। चेति स्त्रीषु विरुध्यते // 30 / मानुषी मूर्तिमापना / भारतीवेन्यनंदिनी // अत्यवत्ताय युः / माजि-र्युक्तमेवोक्तमालयः // 35 // परं जामि नारं / प्रेमविश्रामधामकं // निर्विज्ञानैर्ज नैः | प्रायो / लोकेऽस्मिन्निभृतं भृतं // 40 // परिणेयः पुमानेकः / स्त्रिया चेत् सोऽपि निर्गुणः / तदा | मोतु कथंकारं / कारादिप्तेव सा सुखं // 41 // पांसोविशिोः का जीति--जेनोक्तेः शीलशालिनः // व्रतं कास्मादृशां राज्य–मिव कातरचेतसां // 42 // न न जानामि तपित्रो-हदि शव्यायिअने कुमारीपणुं पाळवं, ए स्त्रीनने. माटे अयोग्य जे. // 30 // मनुष्यपणाना आकारने धरनारी जाणे सरस्वतीज होय नहि एवी ते शेग्नी पुत्री बोलली के, हे सखीन! तमो युक्तज कहो नगे. // 30 // परंतु प्रीतिना विश्रामना स्थानरूप भर्तारने मिलववा हुं इच्छं बुं, केमके प्रायें अज्ञानी लोकोथी या जगत् नरेवु बे. // 40 // स्त्री एकज पुरुषने परणी शके बने ते पण जो नि: र्गणी निवड्यो, तो ते जाणे केदखानामां पड़ी होय नहि तेम शीरीते सुख पामी शके ? // 41 // मर्यने जेम धूळ्नो तेम शीलवंत मनुष्यने जनप्रवादानो शो मर जे? तेमज मारा जेवी कायर म. नवाळीने राज्यसरखं व्रत मेलवq क्यां सहेवू ? // 42 // वली मावापना मनमां हं एक शव्य P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________ Patel धम्मि तोम्यहं / परं करोमि कि योग्यं / पतिं दैवादविंदानी // 3 // ततः कस्ते वरः प्रेया-निति पृः / टालिभिः पुनः // स्पष्टंमाचष्ट सा बाला / कामव्यालाँकुश वचः // 44 // सुकृतस्यात्र किं सारं / किं सारं नरजन्मनः // विद्यायाश्चापि किं सारं / किं सारं शर्मणां पुनः // 45 // एतत्प्रश्नचतुष्कं यो / व्याचष्टे परमार्थतः // तमेवाहं परिणये / सख्योऽह जातु नान्यया // 46 // वृदांतर्हितमप्रेक्ष्य | -माणानां मां रहकृतां // तासामित्युक्तिमापीय / त्वां झापयितुमागमं // 4 // सुरेंद्रोऽथ ख. सरखी थ पमी , तें वातने पण हुं नथी जाणती तेम नथी, परंतु शुं करूं के दैवयोगे योग्य पतिने हुँ मेलवी शकती नथी. // 43 // सारे सखीनए तेणीने पूज्यु के तने कयो, वर प्रिय ? त्यारे ते बालिका कामदेवरूपी हाथीने (वंश करवामां) अंकुशसरखं वचन बोली के // 44 // या जगतमां पुण्यनो सार शं? मनुष्यजन्मनो सार शुं? विद्यानो सार शुं? अने सुखनो सार शुं? // 42 // एवी रीतनां याचा. रे प्रश्नोनो उत्तर जे परमार्थथी कहे, तेनेज हे सखीनं ! हुं परणनारी ढुं, अन्यथा परणीश नहि / // 46 / / हुँ वृदनी पाबळ संतायेलो होवाथी तेज मने जो शकी नथी, माटे एवं रीतें तेनए / PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- हस्तेन / पत्रे सर्वस्ववन्निधेः // चतुःप्रश्नोत्तरश्लोक-मलिखचतुराग्रणीः // 40 // वबंध बंधुरमति- / साई या॑वृत्तोऽसौ गृहप्रति // पतं तस्य तरोर्मूर्ध्नि / देवधाम्न श्व ध्वजं // 4 // अयं गुरुस्तरुः सेयं / बता बहुलतास्पदं // दीर्घयं दीर्घिका चेति / चिरं ब्रांत्वाश्रितश्रमा // 20 // पतिमार्गानुगामित्वा -दिव तेनैव वर्मना // निवृत्ता पत्रकं तत्र / सुनद्रा तन्निरदत // 51 // युग्मं // पत्रे नेत्रे सु. धासत्रे / चपलाजिरथालिनिः // श्रानीय दत्ते श्लोकं सा / वाचयामास वाग्मिनी // 5 // सुकृतगुप्त करेली वात सांजळीने हं तने ते जणाववामाटे पाव्यो . // 4 // (ते सांगळी ) महाचतुर सुरेंद्रदत्ते पोताने हाथे पत्रमा निधानना सर्वस्वरूप ते चारे प्रश्नोना उत्तरनो श्लोक लख्यो ।ना पही त्यांची घरतरफ वन्तां ते बुध्विान सुरेंद्रदत्ते देवमंदिरपर ध्वजानीपेठे ते पत्र ते वृदानी टोचे बांध्यो. // 45 // या वृद मोटुंबे, या वेल बहु फेलायेली तथा या वाव लांबी ने एम (वि. नोद करती) घणो काळ जमीने थाकेली // 20 // जाणे पतिना मार्गने अनुसरनारी होय न. हि तेम ते सुन्नद्राए तेज मार्गे पानं फरतां थकां त्यां ते पत्र जोयो. // 51 // एवामां ते चंचल | सखीनए नेत्रोपते अमृतनी धारासरखो ते पत्र लावीने यापते बते ते विदुषी सुन्नद्रा ते श्लोक | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- स्य कृपा सारं / सत्कर्म नरजन्मनः // विद्यायास्तत्वधीः सारं / संतोषः शर्मणां पुनः // 53 / / श्लो| केऽत्रालोकिते हार्दा-निप्रायपिशुनेऽनया // अवापि वपुषः स्थूलं-करणी धोणिर्मुदां // 14 // अस्या दृग्न्यां विकसितं / कपोलान्यां प्रफुल्लितं // जरोजान्यामुश्वसितं / ततः प्रिय श्वेक्षिते / / // 55 // विनापि वेणुवीणादि-वादित्रं ननृते तया // थाहादश्च विषादश्च / स्त्रीणां प्रायेण . जरौ // 16 // वाचालीनृतजिह्वायो-वाचालीः सा ससंत्रमं // अये मत्कृपया कोऽपि / कृतो वि. वांचवा लागी. // 5 // पुण्यनो सार दया. मनुष्यजन्मनो सार सत्कार्य, विद्यानो सार तत्वबुद्धि तथा सुखनो सार संतोष जे. // 53 // पोताना हृदयना अभिप्रायने जणावनारा ते श्लोकने जो. वाथी सुगना शरीरने प्रफुल्लित करनारी हर्षनी श्रेणि पामी. // 24 // ते समये जाणे भर्तारनेज मळवाथी होय नदि तेम तेणीनी अांखो विकस्वर थर, गाल प्रफुलित थया, तथा स्तनो नवसित थयां // 55 // वांसली तथा वीणावादिक वाजिनविना पण ते नाचवा लागी, केमके प्रायें स्त्री हर्ष तथा खेदने जीरवी शकती नथी. // 56 // वाचाल थयेली जिह्वा जेनी एवी ते सं. ब्रमसहित सखीनने कहेवा लागी के, अहो विधाताए मारापर कृपा करीने कोश्कने कृतार्य कः | Jun Gun Aaradhak. Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि| श्वकृता कृती // 57 // अद्यापि निश्चितं नास्ति / निष्कोविदमिदं जगत् // अद्यापि हंत संत्येव / / सतीनां सत्त्व सिध्यः // 17 // महचित्रमिदं दूर-स्थोऽप्येष विविदे कथं / / श्लोकार्थमेतं मञ्चेतो –धाम्नि धीनगृहस्थितं // 55 // प्रियचंद्रोदयस्फीते / ममानंदमहोदधौ // स ज्ञेयः कथमित्येका 35 / शंका हालाहलायते // 60 // यावदेवं ब्रुवाणा सा / अस्यते मोहरदासा // तावत्पत्रलिपि सम्य गवगम्येत्यनाषत // 61 // जितं जितं मया सख्यः / शांतं शांतममंगलं // प्राप्तः प्राप्तः प्रियः सो. रेलो . // 57 / / खरेखर हजु पण या जगत पंमितरहित थयेवू नथी, तेमज हजु पण सती जनां सत्वनी सिधि रहेली बे. // 27 // परंतु या एक महोटुं याश्चर्य ने के, दूर रहेला एवा पण तेणे मारा चित्तरूपी घरना बुधिरूपी नोयरामा रहेला था श्लोकार्थने शीरीते जाण्यो! / मारा प्रियरूपी चंदना नदयथी नलसित थयेला यानंदरूपी समुद्रमा हवे तेने शीरीते जळखवो? एज एक चिंता फेरसमान थर पडी जे. // 60 // एम बोलतीथकी जेटलामां ते मोहरूपी राक्षस थी असाय , तेटलामां ते पतनी लीपीने सारीरीते नळखीने बोली के // 61 // हे सखीन है Jजीती जीती, विघ्न शांत थयु शांत थयु, ते प्रीतम मल्यो मल्यो, माटे तमो नाचो नाचो? ॥६शा) P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- ऽयं / यूयं नृत्यत नृत्यत // 6 // असौ सुरेंद्रदत्तो हृ-तोषनरेजिरदारैः / / ज्ञातः समुद्रदत्तभ्यमा वंशमुक्तामणिर्मया.।। 63 // जपोपाध्यायमध्याय-परया शैशवे मया // कौशलं कौशलंध्रादयः / | सादादस्यान्वयत // 64 // स्वधिया निर्जितोऽनेना-ददानो दर्शनं दिवा / / जीतजीत श्व व्यो नि / निशि ब्रमति वाक्पतिः // 65 // मन्येऽमुना. तृणीचके / स्वगांनी येण वारिधिः // ऊर्वान| लो ज्वलनेतं / ग्रसते कथमन्यथा // 66 // जमरंग श्वानंग-स्तस्य रूपनिरूपणात् / / शंनोस्तृ. आ यदारोथी मारा हृदयना संतोषना स्थानसरखा तथा समुद्रदत्तशेठना वंशमां मुक्तामणिसरखा ते सुरेंजदत्तने में नळखी कहाड्यो . // 63 // वळी हे कमलसरखा. नेत्रवाळी सखीन! बास्यपणामां उपाध्यायपासे अन्यास करती वखते में तेनी कुशलता सादात अनुनवेली बे..॥ 64 // तेणे पोतानी बुष्थिी जीतेलो बृहस्पति दिवसे दर्शन न थापतो थको बीकणनी पेठे रात्रिए अाकाशमां जमे . // 65 // हं एम मार्नु बु के तेणे पोतानी गंजीरताथी समुद्रने तृणसमान करेलो , जो एम न होय तो बळतो ऊर्वानल शामाटे तेने ग्रसी जाय ? // 66 // तेनुं रू. | प जोवाथी जाणे निराश थयो होय नहि तेम कामदेव महादेवना त्रीजां नेत्ररूपी अमिकुंडमां | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्भि| तोयनेत्रानि–कुंडे मृत्युमसाधयत् // 67 // बुधा मुधा सुधामाहु-स्तगिरा.. तृप्ति नागिनः // हिः वा जुवं दिवं भेजे / ततः सापत्रपेव सा // 17 // तस्मिन झाऽपि नाद्यापि / मनसो मम नि वृत्तिः // कदाचिदप्यसौ मह-द्यदि प्रश्नं विधास्यति // 65 // तदा मया मंदधिया / दास्यते क: 37 | थमत्तरं // विनोत्तरं तु दयिती-कर्ता मां बालिशां न सः // 10 // अहो अद्यापि वीवाई। श्यामि बहुविघ्नकं // यद्दालं चिंतया दैवे / विश्वव्यापारपारगे // 11 // बालपंतीति सा प्राप / पु: पडीने बळी मर्यो . // 67 // तेनी वाणीथी संतुष्ट थयेला देवो अमृतने नका, गणे. अने तेथी ते अमृत जाणे लज्जातुर थयु होय नहि तेम. पृथ्वी तजीने देवलोकमां गयुं जे. // 6 // वळी तेने जळ्ख्या उतां पण हजु मारां मनने शांति. थतीनथी, केमके कदाच ते पण मारीपेठे जो प्रश्न करशे तो / / ६एं // मंदबुधि एवी हुँ शीरोते तेने उत्तर आपी शंकीश? अने उत्तर या प्याविना मने निर्बुछिने ते पोतानी स्त्रीतरीके स्वीकारशे नही. // 70 // अहो! हजु पण हमा रा विवाहने घणा विनोवाळो जोडं डं, अथवा जगतनो व्यापार देवाधीन होवाथी चिंतावड़े क. |ीने सर्य. // 11 // एम बोलतीथकी ते अमिथी जेम तृणनी पूळी तेम वियोगयी बळतीयकी POADGunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि| रः परिसरं स्यात् // दह्यमाना वियोगेन / तृणपुलीव वह्निना // 15 // पिंडीतमिव यशो-राशि मा कारयितुः पुरः // मनःप्रसादहेतुं सा / जैनप्रासादमैदत / / 73 // तत्र प्रविश्य सार्हतं / तुष्टा तुष्टा. व जावतः // निर्वापयंती संतापं / हाई नयनवारिभिः // 14 // जय त्वं जगदाधार / जगदंघो जगद्गुरो / / जगन्नाथ जगध्येय / जगदानंददायक / / 75 // शीतार्तानामिवार्चिष्मान् / दिग्मूढाना. मिवांशुमान् // आतुराणामिव निषक / दुःखिनां त्वं गतिर्जिन // 16 // नवांजोधौ विपझारि-पूरजलदी नगरपासे यावी. // 15 // जाणे बनावनारना यशनो समूह एकठो थयो होय नहि, ए. Q एक मनोरंजक जिनमंदिर त्यां तेणीए जोयु. // 73 // तेमां जश्ने नयनाश्रुथी हृदयना संतापने दूर करीने हर्षथी भावपूर्वक तेणीए श्रीअरिहंतप्रनुनी स्तुति करी. // 14 // हे जगतना या धार जूत! हे जगतना बंधु! हे जगतना स्वामी! तथा जगतने ध्यान धरवालायक! तुं जगतने यानंद आपनारो . // 35 // वळी हे जिनेश्वर ! ठमीथी पीडायेलाजने जेम अमि, दिग्मूढोने जेम चंद्र, तथा रोगीनने जेम वैद्य तेम दुःखिनने तुंज आश्रय करवा योग्य जे. // 16 // आप.. | दारूपी जलना समूहथी परेला था संसारसमुद्रमा मनुष्यजन्मरूपी होमी मलते बते तुं तेमां / P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun'Gun Aaradhak Trust
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- जाजि निमज्जतां // नरजन्मतरीखाने / भवानिर्यामकायते // 9 // वैद्यो है नीरु दत्ते / गीः प्रज्ञां पतिर्धनं / / त्वमेकः सर्वकार्येषु / प्रभुः केनोपमीयसे / / 90 // सा ममापदपि प्रीत्यै / यथा त्वं ध्यायसेऽनिशं // साम्राज्येनापि तेनालं / यत्र त्वं न प्रपद्यसे / / // तव प्रसादप्रासाद-श्रृं. गाग्रमधितस्थुषः // प्रयते विपव्याघी / धावमानापि नार्दितुं // 70 // देवो गुरुः पिता माता। | सखा स्वामी त्वमेव मे // तत्प्रसद्य विपन्ममां / मां कृपालय पालय // 71 // नस्याम्यहं सदैव वां | निर्यामकसमान बे. // 7 // वैद्य नीरोगीपणुं श्रापे , सरस्वती बुद्धि प्रापे , राजा धन प्रापे बे, परंतु तुं तो एकज सर्व कार्योमां समर्थ , माटे तने कोनी उपमा यापुं? // 70 // ते दुःख पण मने अानंदकारी , के ज्यां तारं हमेशां ध्यान धरी शकाय बे, परंतु ज्यां तुं प्राप्त यतो न. थी ते राज्यनी पण मारे जरुर नथी. // 7 // तारी कृपारूपी महेलना शिखरना अग्रनागपर र. हेला प्राणीने दोमती एवी पण आपदारूपी वाघण दुःख देश् शकती नथी. // 70 // मारो देव गुरु पिता माता मित्र तथा स्वामी तुज , माटे हे कृपालय ! कृपा करीने आपदामां बुडेली एवी | जे हुं तेनुं तुं रदाण कर? // 71 // हुं हमेशां आपनां दर्शन करीश, तथा आपनी स्तुतिना प्र. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- भूयासं च स्तवात्तव // दमा समाधिमाधातुं / प्रिये. प्रश्नं प्रकुर्वति // 7 // इत्युक्त्वा साऽबुत | पाद-पीठस्य पुरतः प्रयोः // पितृन्यामपि येनार्ति-गाजां देवगुरू प्रियौ.॥ 3 // बर्जिनमः क्या च / कृपया च प्रणोदिताः // साहाय्यकारिणस्तस्या–श्चैत्याधिष्टायकाः सुराः / / 4 // देवं 40 जिनेउं गारं / सुरेंडं च प्रपेदुषी // ततः सतीशिरोरत्नं / निजं धाम जगाम सा // 5 // अय कामः सामदाना-छुपायेषु पराङ्मुखः // अबलामपि नां चक्रे / केवलं दंडगोचरां / / 76 // . जावधी ज्यारे मारो स्वामी प्रश्न करे त्यारे हं तेनो उत्तर पापवाने समर्थ था तो वधारे सारं थाय. // 72 // एम कहीने ते प्रजुना श्रासनपासे लोटी पमी, कारण के दुःखीजने मानाप कर तां पण देवगुरु वधारे. प्रिय होय जे. // 3 // एवी रीतनी जिनशक्तिथी तथा दयाथी प्रेरायेला चैत्यना अधिष्टायक देवो तेणीने सहाय करनारा थया. // 4 || हवे जिनेश्वरने देवतरीके तथा सुरेंद्रदत्तने भारतरीके स्वीकारती ते सतीशिरोमणि सुजता पोताने घेर गइ. // 5 // हवे कामदेव पण साम दान आदिक उपायोने तजीने ते अबलाने पण केवल दंडगोचर करवा ला. ग्यो. // 6 // एवीरीते कामथी पीमायेली ते पाषणने दृषणतरीके, वस्त्रने शस्त्रतरीके, पोता. AG P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि-| षणं दूषणं वस्त्रं / शस्त्रं स्वजवनं वनं // कामार्त्तया तया पुष्प-माला ज्वाला श्वेदिताः // 7 // मार्ग सौकुमार्यमहो तस्या-यत्पौष्पैरपि सायकैः / / अनंगेनाहता भेजे / दशां जीवितनाशिनी // 7 // ग्रंथ तस्या वयस्याभिः / सुरेंद्रोपयमस्पृहां / / बोधितः सागरोऽहृष्य-द्योग्यजामातृलानतः // 5 // 1 | प्रेषीचाप्तानरांस्तस्मै / पुत्री दातुं तदोकसि // याचतां ददतां वापि / कन्यां किंचिन्न लाघवं / / 10 // | समुद्रदत्तं समुदः / प्रजजटपुरुपेत्य ते // तवोपयबतां सूनुः / सागरस्यांगजामिति // 1 // सुरेंद्रो| ना भुवनने वनतरीके तथा पुष्पमालाने अमिनी ज्वालातरीके जोवा लागी. / / 77 // अहो! ते. णीनुं सुकुमालपणुं तो जुन ! के जे कामदेववडे करीने पुष्पनां बाणोथी हणातीथकी पण प्राणहारक दशाने प्राप्त थर. // 7 // हवे सखीनए सुरेऽदत्तने परणवानी तेणीनी श्वा जणाव्या. थी सागरश्रेष्टी पण लायक जमाश्नी प्राप्तिथी खुशी थयो. // 6 // पजी तेने पोतानी पुत्री था. पवामाटे तेणे. पोताना मान्य पुरुषोने तेने घेर मोकल्या, केमके कन्या मागवामां अथवा देवामां कं पण हलकाश् यती नथी. // 50 // तेन समुद्रदत्तपासे भावीने हर्षसहित कहेवा लाग्या के तभारा पुत्रने सागरश्रेष्टिनी कन्यासाथे परणावो? // 51 // आ सुरेंद्रदत्त महातेजस्वी निर्मल त. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- ऽसौ महातेजा / विमलस्त्रासवर्जितः // तप्तगांगेयगौरांगी। सुनापि शुजाकृतिः // 55 // अनमाई योर्योगमाधातुं / मणिमुडिकयोखि // विधिरेव कलादः स्या-त्तद्गृह्याः के पुनर्वयं // 13 // ए. | वं वाग्गौवं तन्वन् / समुद्रः प्रतिपद्यते // यावत्तेषां वचस्तावत् / सुरेंद्रः प्रोचिवानिति // 4 // सं. ___42 योज्य दूरे भवतः / पितरौ सारथी श्व // जत्रैव योषिनिर्वाह्या / धूधुर्येणेव केवलं // 55 // सद श्या सगुणा नम्रा / स्मर्तव्या संकटे दृढा / / अनंगुरा च जाग्यैः स्या-धनुर्यष्टिरियांगना / / 6 // था निर्नय , तेम सुभद्रा पण तपेला सुवर्णसरखां गौर शरीरवाळी अने सुंदर थाकारवाळी जे. // ए२ // मणि अने मुडिकानीपेठे या बन्नेनो योग मेळ्ववाने विधाताज़ सोनार बनी शके ते. म बे, माटे अमो तो था बाबतमां शुं हिसाबमां जीये ? / / ए३ // एवी रीते वचनगौरवने विस्तारतोयको समुदत्त जेवामां तेनुं वचन स्वीकारे , तेवामां सुरेंद्रदत्त बोयो के, // 4 // मा. बाप तो सारथिनीपेठे जोमीने दूर थर जाय बे, पनी तो बळ्दने जेम धोंसरांनो तेम मात्र न. तारनेज स्त्रीनो निर्वाह करवो पडे . // 5 // उत्तम वंशनी (सारा वांसवाळी) गुणवान (दो. / रीवाळी) नम्र, संकटसमये याद करवा लायक, दृढ तथा धैर्यवाळी (गांगी न जाय तेवी) धनुः | P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- क्रियते निवृते तो-र्जाया सा यदि निर्गुणा // तदायःशूलिकापोतं / नरं मन्यामहे वरं // 7 // / सार्थ| वार्त्तयापि विवाहस्य / नरः को नात्र नृत्यति / / पाशे पिपतिषुः पदी / चायति न तु पश्यति // // // नछता खैरचारा च / किरती दुर्वचोरजः // तृणं वात्येव दुष्टा स्त्री। ब्रमयत्यचिरानरं / / 43 |ए // ये बहिर्महिमाधारा / नदारा राजपूजिताः // गृहायाता कुन्नार्यातो / दासवत्तेऽपि विन्य ति // 200 // अपरीदयाहतं प्रांते / विशीर्ण कूटहेमवत् // कलत्रं क्वेशयत्येव / नरं सर्वस्वनाश प्यना कामगंसरखी स्त्री नाग्यश्रीज मळी शके . // 6 // पोताना सुखमाटे स्त्री स्वीकाराय ने, पण कदाच जो ते निर्गुणी निवडे तो तेना करतां तो लोखंडनी शूलीमां परोवायेला पुरुषने हं श्रेष्ट मानुं . // 7 // (पोताना) विवाहनी वातथी पण यहीं कयो पुरुष खुशी थतो नथी? केमके पाशमां पडवानी बावाको पदो कं पोतानुं नविष्य जोतो नथी. // ए // नत खे. बाचारी तथा पुर्वचनरूपी रजने नडाडती एवी वायुसरखी जुष्ट स्त्री तृणनीपेठे पुरुषने एकदम जमावे . // 7 // जे पुरुषो बहार महिमावान नदार तथा राजाना मानीता , ते पण घेर श्राव्या के दासनीपेठे कुनार्याथी डरता रहे थे. // 200 / परीदा कर्याविना स्वीकारे खोटं स. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________ तः // 1 // एकमत्र मया तात / बालेनापि निदर्शनं / वस्तुतत्वेक्षणं चक्षु-स्तायिक निगद्यसार्थ ते // 2 // तथाहि भारत क्षेत्र-मिदमस्त्यत्र चित्रकृत् // पुंस्त्रीगजाश्वरत्नानि / जायते यत्र धान्यव त् // 3 // तत्रास्ति हास्तिकाश्वीय-राथ्यपौरप्रपूरिता // पूरिताशेषविहेषि-जयोल्लापा वराणसी / / | // 4 // पालः पालयामास / राज्यं तत्र महाबलः / / संतप्ता यत्प्रतापेन / वनं जेजुररातयः // 5 // राशस्तस्यातिगौरख्यो / ऽव्योपायविशारदः // अद्यशोधरश्रेष्टी / श्रिया श्रीद वापरः // 6 // गौवर्ण डेवटे जेम विखराश्ने सर्व धनना नाशपूर्वक क्वेश थापे , तेम कुमाथी पण तेवुज फ. लमले . // 1 // थाना संबंधमां हे पिताजी हुँ बालक छतां पण वस्तुतत्व जोवामां वीजां लो. चनसर एक दृष्टांत आपने निवेदन करुं बु. // 2 // था जंबूद्दीपमां एक भरत नामे पाश्चर्यकारी क्षेत्र ने, केमके तेमां पुरुष, स्त्री, हाथी, घोडा तथा रत्नो धान्यनीपेठे उत्पन्न थाय जे.॥२॥ तेमां हाथी घोडा रथ तथा नगरना लोकोना समूहथी जरेली तथा ज्यां वचनमात्रथी पण श. त्रुनो जय नथी एवी वाराणसी नामनी नगरी 3. // 4 // त्यां महाबल नामनो राजा राज्य करतो | हतो, के जेना प्रतापथी तपेला वैरीन वनमा रहेता हता. // 5 // ते राजानो अति माननीक. PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- रीव गिरिशस्यास्या-ऽजनि जाया मनोरमा / यया संगम्य च भू-दनिशं वृषनासितः // 7 // अपुत्रयोस्तयोर्याति / काले युगलिनोरिव // धर्मदत्तोऽभवत्पुत्रः / कृतपुण्यप्रनावतः // 7 // वर्धिः तोऽध्यापितः पित्रा / युवा स परिणायितः / श्रीशेषश्रेष्टिनः पुत्रीं / सुरूपां नामतोऽर्थतः // 5 // 45 पितुः प्रसादात्तीरस्थो / गृहव्यापारवारिधः // धर्मदत्तस्तया पल्या-ऽचुंक्त गोगाननारतं // 10 // तथा द्रव्य मेलववामा हुशियार अने लक्ष्मीयी वीजा कुबेरसरखो यशोधर नामे एक शेठ त्यां व. सतो हतो. // 6 // महादेवनी जेम पार्वती तेम तेनी मनोरमा नामे स्त्री हती, के जे सहित ते हमेशां धर्मथी शोजायमान (वृषजना श्रासनवाले) हतो // 7 // युगलीयांनी पेठे थपुत्र एवा तेज बन्नेनो ( केटलोक ) समय गयाबाद तेजने (पूर्व) करेला पुण्यना प्रजावधी धर्मदत्त नामे पुत्र थयो. // 7 // उमरलायक थये बते पिताए तेने जाणावीने श्रीशेषशेउनी उत्तम रूपवा. ळी सुरूपा नामनी पुत्रीसाथे परणाव्यो. // 5 // पितानी महेरबानीथी घरना व्यापाररूपी समुद्रने कांवे बेलो एटले घरकामनी अंदर ध्यान आपवानी जरुरतविनानो ते धर्मदत्त ते स्त्रीमाथे . | मेशां एश माणवा लाग्यो. // 10 // एकदिवसे आकाशगंगानां मोजांसरखां (अति नज्ज्वल ) P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- अन्यदा स्वसरिद्दीची—समे संवीय वाससी // पुण्योः पक्किमफलैः / शोजितः स्वर्णपणैः // सार्थ // 11 // वक्रवजावया शश्व-दध्यापित श्व श्रिया // कुर्वन् वक्रक्रमन्यातं / स चचार चतुष्पथे // | // 12 // युग्मं // तं गंधमृगवदीदय / सारसौगंध्यबंधुरं / कः प्राणायामकारीव / नोर्ध्वश्वासो ज. 46 | नोऽजनि // 13 // केचिदू चुरहो यस्य / नाग्यं सौभाग्यशालिनः // जन्मना यन्मनुष्योऽपि जा ति देव व श्रिया // 14 // अपरे स्माहुरेतस्य खबु कृत्वाऽप्रशंसनं // यः पित्रा स्वीकृतां लक्ष्मी वस्त्रो पहेरीने तथा पुण्यरूपी वृतानां पाकेलां फलसरखां वर्णनां आऋषणोथी शोनायुक्त थश्ने // 11 // हमेशां वक्रस्वगाववाळी लक्ष्मीए जाणे मणावेलो होय नहि तेम वांका वांका पगलां मुकतोथको ते चहुटामां चालवा लाग्यो. // 12 // कस्तूरीयां हरिणनीपेठे उत्तम सुगंधिथी मनो. हर बनेला एवा ते ने जोश्ने जाणे प्राणायाम करतो होय नहि तेम कयो माणस ऊर्ध्वश्वास वाळो न थयो? // 13 // केटलाको कहेवा लाग्या के अहो! या सौभाग्यवान धर्मदत्तनुं केवं (जमर्दु ) नशीब ! के जे जन्मथी मनुष्य बतां पण लक्ष्मीथी देवसरखो शोने . // 14 // | केटलाको तेनी निंदा करीने कहेवा लाग्या के अरे! या तो पिताए स्वीकारेली (पोतानी)। P.P.AC.Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- / जुनक्ति जननीमिव / / 15 / / प्रशस्यस्तात एवास्य / य एवं कमते व्ययं / / बुधो विधोरित्र क्ली. माई वः / पुत्रोऽपि स्यादरिः पितुः // 16 // एवं जनाननान्नाना-सापं श्रुत्वा स दधिवान् / / परोक्त मेषु पूर्वोक्ता-न्मान्यं व्याकरणेष्विव / / 17 / / सत्यवादिषु कः कोपः / सत्यवादी हि दुर्लनः // 19 | जानेऽहमपि न न्याय्यो / यूनां पितृधनव्ययः // 17 / / व्ययीत विनवं पैञ्यं / कुणिः पंगुर्नवेद्यदि // अन्यथा दुर्यशोवल्ख्यं-कूरावेव करौ ऋमौ // 17 // एवं विकल्पदुर्वात-क्षुब्धे तञ्चित्तवारि. मातासरखी लक्ष्मीने नोगवे . // 15 / / धन्य ने एना पिताने के जे तेनुं बावीरीतन जडान पणुं सहन करे , चंद्रनो जेम बुध तेम अकर्मी पुत्र पण पितानो वैरी थाय . // 16 // एवी रीते लोकोना मुखथी नानाप्रकारनां वचनो सांजळीने ते धर्मदत्त विचारखा लाग्यो के जेम व्या. करणमां तेम (अहिं पण ) प्रथम मनुष्यना वचन करतां पाबळना मनुष्यनुं वचन मानवालायक. // 17 // वळी सत्यवादीप्रते कोप करवो शा कामनो ? केमके सत्य कहेनार दर्तन होय , तेम हुँ पण जाणुं बु के जमरलायक पुत्रे पितानुं धन जमावq ए योग्य नथी. // 1 // पत्र जो खुलो अथवा पांगळो होय तो ते गले पिताए उपार्जन करेधुं धन खरचे, परंतु जो तेम P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- धौ / धनार्जनाशाकल्लोलै-रुतैया॑नशे जगत् // 20 // अथागत्य निजं धाम / पितरं स व्यः / साई जिझपत // दूरदेशांतरं गंतु-कामः कामनया श्रियः // 21 / / वारितोऽपीति पित्रासौ / न जहौ निजमाग्रहं / / भृशायंते निषिऽर्थे / युवानो ह्यातुरा व // 22 // संगृह्म भांमसारं स / लक्ष्मीलाजायलमकः // जवाहिवाहकारी वा-ऽस्तोकं लोकममेलयत् / / 23 // सुरूपा तमथैकांते / कांन होय तो तेना हाथपग अपयशरूपी वेलमीना अंकुरासमान जाणवा. // 15 // एवी रीतनां विकटपोरूपी तोफानी पवनथी तेनो मनरूपी समुऽ दोगायमान थयो, तथा तेमां नरळेलां ध. न कमावानी अाशारूपी मोजांन समस्त जगतमां व्यापी गया. // 20 // हवे ते पोताने घेर था. वीने पिताने कहेवा लाग्यो के हे पिताजी धन कमावानी श्वायी हुं दूरदेशांतरमां जवा चाहं बु. // 21 // त्यारे पिताए निवार्या उतां पण तेणे पोतानो आग्रह गोड्यो नही, केमके युवको प्रा. तुरनी पेठे निषेधेबु कार्य करवाने वधारे हठ करे . // 25 // विवाह करनारनीपेते धन मेळ. ववामाटे थातुर बनीने सर्व सरंजाम एकठो करीने तेणे त्यां घणा लोकोने नेगा कर्या. // 13 // हवे सुरूपाए तेने एकांत मनोज्ञ वचनथी कह्यु के, हे स्वामी ! हुं पण खरेखर तमारी साथे प्रा.) P.P. Ac. Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- तेन वचसा जगौ // त्वया समं समेष्यामि / स्वामिन्नहमपि ध्रुवं // 24 // मावादीस्त्वं विमुग्धासि / लोको वैदेशिकः शठः // शिरीषसुकुमारांगी। वं च पंया सुदुःकरः // 15 // एवं भर्चा निषि. | चापि / साऽमुंचन कदाग्रहं // वारयामासतुर्युक्त्या / ततस्तां श्वसुरावपि // 26 // कथंचनाप्यनुत्सृ. ष्टा-ग्रहामात्तव्रतामिव / पत्नी प्रीत्या सहादाया-ऽनलसः प्रचचाल सः // 27 // तया दयितयाधिः एय-धृति मार्गेऽपि लंचितः / प्रियजानिः प्रयाणानि / ददौ कतिपयानि सः // // पथ्यस्य वीश. // 55 // (त्यारे धर्मदत्ते तेणीने कां के ) हे प्रिये! या बाबतमां तुं कंई बोलीश नहि. तुं तो नोनी , परदेशी लोको बुचा होय , वळी तुं सरसवना पुष्पसरखी सुकुमाल शरीवाळी बे, अने देशाटन करवू कंई सहेबु नथी. // 25 // एवी रीते भर्तारे निषेध्या बतां पण तेणीए ज्यारे कदाग्रह तज्यो नहि, त्यारे युक्तिपूर्वक सासुससराए पण तेणीने निवारी // 26 // जोगणनीपेठे को पण रीते याग्रह न तजवाथी प्रीतिपूर्वक तेणीने साथे लेश्ने ते बालस तजीने चालतो थयो. // 27 // एवी रीते प्रीतिना वशथी साथे लेवाथी मार्गमां हरकत पवा बता पण तेणे केरलीक मजलो करी. // 20 // राजानीपेठे लोकोने लेश्ने चालता एवा ते धर्मदत्तने मा. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- पार्थिवस्येव / संवाह्य नयतो जनं // विप्रो वररुचिर्नाम / धीधाम समगबत // 25 // समं तेन / सार्थ प्रियालापैः / पीयूषास्वादसोदरैः // पद्मनालमिवांनोनि-स्तस्य मैत्र्यमवर्धत // 30 // सखायं सुख | मत्येतुं / मार्गमेकरथस्थितं / कथामवितथामेकां / विप्रं पान सोऽन्यदा // 31 // सोऽप्यूचे मित्र संजात-स्तव तावत्कथारसः // रसिकस्य हि कार्पण्यं / न कामिन वोचितं / / 32 // दीनाराणा | मदीनास्य / देहि पंचशतानि मे // यथाऽपूर्वकथास्वाद-कौतुकं पूरयामि ते // 33 // सोऽपि त. र्गमां वररुचि नामना एक महाबुध्विान ब्राह्मणनो मेलाप थयो. // 25 // तेनी साथे थयेला अमृतना स्वादसरखा मिष्ट वचनोथी जेम जलवडे करीने कमलनी नाल तेम तेनी मिताश्वृद्धि पामी. // 30 // विनोदपूर्वक मार्ग जळंगवामाटे एकज रथमां बेठेला एवा ते प्राह्मणप्रते तेणे एक दिवसे एक वार्ता पूरी. // 31 // त्यारे ते ब्राह्यणे पण तेने कडं के, हे मित्र तने ढवे क. थानो रस लाग्यो , माटे कामीनीपेठे रसिकने कृपणपणुं राखq ए उचित नही. // 3 // माटे हे तेजस्वी मुखवाळा ! तुं मने पांचसो सोनामहोरो श्राप ? के जेथी तारं अपूर्व कथाना स्वादनुं कौतुक हुं संपूर्ण कलं. / / 33 / / ( ते सांजळी) ते धर्मदत्ते पण तेने तुरत पांचसो सोनामहोरो / Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________ घम्मि- स्मै ददौ मंक्षु / दीनारशतपंचकं // न बाहुबलिनो द्रव्यं / व्ययतः शंकते मनः // 34 // अथ सो. | ऽकथयत्तस्मै / कथामिति मितादरां // न नीचजनसंपर्कः / कार्यः स्वहितमिलता // 35 // ततः | किमिति तेनोक्तो-ऽवादीदहसनो हिजः // धीमनियमियत्येव / कथास्यथ स ऊचिवान // 36 // 51 | नोः किमेतत्त्वया प्रोक्तं / बालानामपि हास्यकृत् // मम त्वमुत्तमर्णीव / मुधैव धनमग्रहीत् // 37 // अपूर्वगोरसाकांदा-ऽस्त्यद्यापि मम तादृशी // नत्पन्ना च विलीना च / कथमेषा कथागवी // 3 // यापी, केमके जाबलवालानुं मन धन खरचतां शंका पामतुं नथी. // 34 // पड़ी ते ब्राह्मणे प. ण तेने यावी रीतनी एक टुंकादरी कथा कही के, पोतानुं हित श्वनारे नीच माणसनो संग करवो नही. // 35 // पनी शुं? एम धर्मदत्ते पूजवाथी ते ब्राह्मण नारे महोउं राखीने बोल्यो के हे बुद्धिवान् ! था कथा एटलीज हती, त्यारे वळी ते बोल्यो के // 36 // अरे! बालकोने पण हसवं आवे एवं था तुं शुं बोल्यो ? खरेखर तें लेणीयातनीपेठे मारुं धन फोकट ले लीधुं. // // 37 // अपूर्व वचनरस (गोरस) चाखवानी मारी. श्छा तो हजु पण तेवीने तेवीज रही | माटे या तारी कथारूपी गाय ते केवी! के जे जन्म्या भेळीज नाश पामी! // 30 // एवी रीते Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunrathasuri M.S.
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________ 52 धम्मि- इत्यात तं हिजः प्रोचे / मा शुचः कथयाल्पया // अल्पापीयं कथा मित्र / लोकदयसुखावता / / माई ॥३ए / पुनः कथां रसाधिक्या-कर्करायितशर्करां // चेत्पिपाससि दीनार-सहस्रं देहि मे त. तः // 40 // कथारंगबिदा दुःखं / लक्षेणापि न यास्यति // इति सोऽदत्त दीनार-सहस्रमपि साहसी // 41 // सोऽथ प्रोवाच विश्वासः / कार्यो नार्या न धीमता // कथादयं विधृत्येदं / धृतिले. दं न लप्स्यसे // 42 // व्यमृशत् सोऽथ विप्रोऽय-महो लोगमहोदधिः // यो मामेवं कथाव्या. खेद करता एवा ते धर्मदत्तने ब्राह्मणे कां के हे मित्र ! तुं या स्वल्प कथाधी खेद न कर? केमके या स्वल्प कथा पण बन्ने लोकमां सुखकारी जे. // 30 // वळी हजु पण रसना अधिकंपणाथी जमदा साकरसरखा कथारसने जो तारे पीवानी श्वा होय तो मने एक हजार सोनामहोरो श्राप ? // 40 // कथारंगना नंगथी (थयेवु) फुःख लाख (सोनामहोरोथी) पण जशे नही, एम विचारी ते साहसिके तेने एक हजार सोनामहोरो पण यापी. // 41 // हवे ते बा. ह्मण बोब्यो के बुद्धिवाने स्त्रीनो विश्वास करखो नहि, घने या बन्ने कथा हृदयमां धारवायी तं / दुःखी थश नहि. // 42 // हवे ते धर्मदत्ते विचार्यु के अहो! था ब्राह्मण तो खोजनो महा। P.P.AC. Gunratnasun M.S... Jun Gun Aaradhak Trust
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि| जा-न्मुग्धाशयमदमयत् // 43 // लोगोऽयं जापितो वीतरागैः कास्थामलप्स्यत // नानविष्यः / महास्थान-स्वरूपा यद्यमी विजाः // 4 // यत्तृष्णा कमलोवेन / घनेनापि न शाम्यति // वा डवा वाडवामेस्तत्-सखायः प्रस्फुरबिखाः // 45 // प्रायः प्रियजला विप्रा-स्तृष्णातापातुरा व ॥जाले सतिलकाः प्राप्त साम्राज्या व लोनिषु // 46 // नास्ति त्रिष्वपि लोकेषु / बुब्धो म. सागर , के जेणे मने भोळाने थाव। रीते कथाना मिषथी दंड्यो . // 43 // वळी यावा म. हास्थानसरखा जो ब्राह्मणो (दुनियामां) न होत तो वीतरागोए डरावेलो लोन क्यां पोतार्नु र. हेगण मेळ्वी शकत? // 44 // ब्राह्मणोनी तृष्णा घणा धनना समूहथी (वरसादथी) पण शां. त थती नथी, माटे खरेखर ते ब्राह्मणो शिखावान (चोटलीवाळा ) वडवानलना मित्रसरखा ने. // 45 // वळी ब्राह्मणो तृष्णारूपी तापथी जाणे व्याकुल थया होय नहि तेम तेजने हमेशां जल वहाबु बे, अने लोनी माणसोमां जाणे राजा होय नहि तेम ते कपालोमां (राज्याभिषे. कना चिन्हरूप ) तिलकने धारण करे . // 46 // त्रणे लोकोमां मारासरखो बीजो को लोजी नथी, एवं देखाडवानेज या ब्राह्मणो हमेशां जनोश्ना मिषयी हृदयमांत्रण रेखा धारण Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________ सार्थ धम्मि- सदृशोऽपरः // इति रेखात्रयं सूत्र-व्याजाद् विनत्यमी हृदा // 4 // जदंगुलिः कृतोऽमीनि र्य वेदाध्ययने करः // ततोऽन्यासात्तथैवासौ / नवति प्रतिदायकं // 4 // ब्राह्मणानां तनुरियं / न. नु तृष्णातरंगिण // नो चेत्कटीतटीदेशे-दब्रदर्नोदयः कथं // 4 // यश्लोजादमुनात्तं त-द्याच. થઇ मानास्त्रपामहे // देयं चेत्याग्भवस्या -बुटिनाः स्मस्तदा वयं // 50 // एवं वितर्कयंस्तेन / सह वर्म विलंध्य सः // पारं पोत श्वांजोधे-जंगाम श्रीपुरं पुरं // 11 // तस्माद् बहिः पटकुटी–र. करे . // 4 // वळी या ब्राह्मणो वेद गणती वखते जंची बांगळीनवाणे जे पोतानो हाथ करे , ते अभ्यासथीज ते दातारप्रते पोतानो हाय प्रसारे . // 4 // ब्राह्मणोनुं आ शरीर खरेखर तृष्णानी नदीरूप ने, जो एम न होत तो तेना कटीप्रदेशपर प्रकटरीते दर्भनी उत्पत्ति क्यांथी होत? // 45 // लोनने वश थर या ब्राह्मणे मारी पासेथी जे धन ली, ले, ते पावं मागतां मने लगा थाय . माटे जो तेर्नु पूर्वजवनुं देवं हशे तो ते आपोने हैं तो बुटी गयो बु. // 50 // एम विचारतोयको ते धर्मदत्त ते ब्राह्मण सहित मार्ग नवंघीने वहाण जेम समुद्र | ने कांठे तेम श्रीपुरनगरप्रते गयो. // 51 // त्यां तेणे नगरनी बहार दोरीनथी मजबूत करेला | P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- ज्जुस्खलितसंचरं / सार्थ सोऽस्थापयद्युक्त्या / चमूमिव चमूपतिः / / 52 // पयकः कथक श्वाय / सं / मा विप्रः समुपेत्य तं / / बालपीन्मधुरालापै-गुहं गंतुमना निजं // 53 // पुरेऽस्मिन्नेव वास्तव्यः / सो. ऽहं वररुचिश्चिरं // बहित्वाय यास्यामि / गृहं नीडमिवांडजः / / 54 // त्वं मे प्रियवयस्योऽसि / 55 सौहृदं मा स्म विस्मरेः / / पतितः संकटे बुधि-घस्मरे मां स्मरेः पुनः // 55 // गृहाण वं जवा. देतान् / यवान मैत्र्या लवानिव / / यथा तथामी कस्यापि / न प्रकाश्या रहस्यवत् // 16 // अमी तंबून नाख्या, तथा सेनापति जेम सैन्यने तेम तेणे त्यां सगवमयी पोतानो सार्थ स्थाप्यो.॥शा हवे ते मार्गे मळेला अने कथा कहेनार तथा पोताने घेर जवाना मनवाळा ते ब्राह्मणे तेनीपा. से घावीने कडं के / / 53 // हुं या वररुचि नामनो ब्राह्मण घणा काळयी बाज नगरमा रहं बं, तथा देशाटन करीने पती जेम पोताना माळाप्रते तेम हवे मारे घेर जश्श. // 14 // मारो प्रिय मित्र . माटे तारे मित्रा विसरखी नही, तेमज बुधिगम्य संकट पडती वखते वळी मने तं याद करजे. // 55 // वळी तुं आपणी मित्राश्ना लेशसरखा था यवोने ग्रहण कर? वळी गुप्त वातनीपेचे तारे कोश्ने पण सहेज वातमां आ जव संबंधि विवेचन करवू नहि. // 26 // मंत्रथी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________ सार्थ धम्मि नप्ता जलैः सिक्ता / मित्र मंत्रपवित्रिताः / अयुग्रपुण्यवत्सद्यः। प्ररोहंति फलंति च // 27 // सोड थादाय यवांस्तस्मा–निजपल्याः समार्पयत् // ययौ विप्रोऽपि धाम खं / प्रियापयदिदृदया // 7 // समादाय समं श्रेष्टि-सुतोऽपि प्राभृतं मुदा // सदाचारस्ततः सिंह-दारमाप दमापतेः॥॥ क. 56 श्चिद्देव दिदृकुस्वा-मिन्यः प्राभृतपाणिकः // दारे विलंबितोऽस्तीति / वेत्री नूपं व्यजिझपत् / / // 60 // द्राक्तं समानयात्रेति / नृपादिष्टेन वेत्रिणा // बलिः परिमलेनेव / पुष्पं निन्ये स पर्षदं / / / पवित्र थयेला या यवो वावीने जलथी सिंचवाथी अतिशय पुण्यनीपेठे तुरत नगीने फळे तेवा जे.॥ 7 // हवे ते यवो तेनीपासेथी लेश्ने तेणे पोतानी स्त्रीने आप्या, तया ते ब्राह्मण पण पोतानी स्त्री तथा संतानोने मलवानी बाथी पोताने घेर गयो. // 27 // पजी ते सदाचारवाळो श्रेष्टिपुत्र धर्मदत्त पण गेटा लेश्ने हर्षथी राजाना दरवारमा गयो. // 50 // त्यारे उमीदारे ज. इने राजाने विनंति करी के, हे स्वामी ! कोश्क शाहुकार हाथमां चेटलेश्ने अापने मळ्यानी माथी बारणे यावेलो . // 60 // तेने जलदी यहीं लाव? एवी रीते राजाए हुकम करवाथी परिमल जेम जमराने पुष्पप्रते ले जाय ने तेम ते बडीदार तेने सन्नामां ले गयो. // ...Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.GunratnasuriM.S.
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- // 61 // जपदामुपपादोंते / मुक्त्वा नृपं ननाम सः // पीठे तदापिते हंस / श्वाब्जे निषसाद च / / | // 6 // राज्ञश्च तस्य चालापाः / प्रावर्तत परस्परं / / पूरयंतः सितादोद-स्यूतचूतरसस्पृहां।।६।। | नक्क्या च स्नेहलोत्या च / तोषितस्तस्य नृपतिः // मुमोच सकलं शुक्लं / गुणान्यः क न पूज्यते // 64 // श्ह स्थितस्त्वमागबे-रनिशं मम संसदि / / श्यादेशं नरेशस्य / स वितेने शिखामणि | // 65 // त्रिमं नगरस्यांत-स्तस्यावस्थितये नृपः // अदत्त सौध तुष्टा हि / नृपाः कल्पमा / / 61 // चरणमां नेटणु मूकीने ते राजाने नम्यो, तथा हंस जेम कमलपर तेम राजाए अपावे. लां बासनपर ते बेठो. // 6 // पनी परस्पर सांकरना चूरासाथे मळेला यांबाना रसनी जाने परतो एवो वचन विनोद तेनी अने राजानी बच्चे थयो. // 63 // तेनी नक्तिथी तथा स्नेहयुक्त वचनोथी खुशी थयेला राजाए तेनुं सघबु दाण माफ कर्यु, केमके गुणवान माणस क्यां पूजातो नथी? // 64 // वहीं ज्यांसुधि रहो त्यांसुधि हमेशां तमारे मारी सनामां बाप, एवी रीतना राजाना हकमने तेणे पण मस्तके चडाव्यो. // 65 // पनी राजाए तेने रहेवामाटे नगरनी अंड रत्रा मजलानो महेल सोंग्यो, केमके खुशी थयेला राजा कल्पवृदासमान थइ पडेले. // 66 // P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- :श्व // 66 // तस्थुषस्तत्र तस्याथ / क्रयविक्रयकारिणः // विटेन गंगदत्तेन / सौहृदमप्यजायत // माई / / 67 // बब्बूलेनेव रंनाया / राहुणेव सितयुतेः // बिमालेनेव हंसस्य / हुताशेनेव शाखिनः॥ // 6 // एतेन क्रूरचित्तेन / संगतिस्तव नोचिता / इत्युक्तोऽपि जनैरब्धि-विषवत्तं न सोऽत्यजत् ए७ // 6 // // विनापि धर्मदत्तं सोऽवतंसः सर्वमायिनां // समं सुरूपया चक्रे / हास्यकेलिकुतूहलं // 70 // तङानन्नपि नाकुन्य-दिव्यजः सरलाशयः // धातो धात श्वाशेषः / साधुः साध्वेव प. हवे त्यां रहीने लेवडदेवन करता एवा ते धर्मदत्तने गंगदत्त नामना एक लफंगा माणससाथे मित्रा थर. // 67 // बावळसाथे जेम केळनी, राहुसाथे जेम चंद्रनी, बिलामासाथे जेम हंसनी त था अमिसाथे जेम वृदनी // 67 // तेम क्रूर मनवाळा एवा था गंगदत्तनी साथे सोबत कवी तने उचित नथी, एवी रीते लोकोए कह्या छतां पण समुफ जेम विषने तेम तेणे तेने तज्यो नहि. // 6 // ( अनुक्रमे ) धर्मदत्तनी गेरहाजरीमां पण ते कपटीनो शिरोमणि गंगदत्त सुरू पासाथे हास्य क्रीडा विनोद यादिक करवा लाग्यो. // 10 // ते बाबतने जाणतां जतां पण ते सरल श्राशयवाळो श्रेष्टिपुत्र धर्मदत्त दोभ पाम्यो नहि, केमके धरायेलो सर्वने धरायेला तथा स. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- श्यति // 11 // क्रमादवाप्तप्रसरः / स तस्यां विप्लुतोऽनवत् // विकारकारणं कुदि-निदिप्तोऽपि खः / लः खलु / / 72 // जनेन्यस्तदपि श्रुत्वा / ऋजुरध्यायदिन्यसूः // भुंजानः स्वगृहे हंत / परतप्तिकरो जनः / / 73 // लोकोऽयं परविघ्नेच्नुः / सोढा न स्नेहमावयोः // ब्रूतेऽस्मिन्नपि यदोषान / दुग्धे किं पूरकानिव // 14 // एवं धीराशयेऽप्यस्मिन् / विटः प्रकटमत्सरः // रहः प्रोवाच तत्पत्नी / दौःशीट्येनात्मसात्कृतां // 79 // मार्यते धर्मदत्तश्चे-दार्यते वा विशन गृहं // जाये जायेत तद्भोगज्जन सर्वने सऊनज जुए .. // 11 // अनुक्रमे अवसर मेलवीने ते तेणीनीसाथे नोगविलास पण करवा लाग्यो, केमके हृदयमां ( पेटमां) स्थापेलो पण दुर्जन ( खोळ ) खरेखर विकार करनारो थाय . // 7 // या वृत्तांत पण लोकोना मुखथी सांजव्या बता ते नोको धर्मदत्त एम विचारवा लाग्यो के लोको तो पोताने घेर खाश्पीने परनीज खोदणी कर्या करे . // 73 // लोको परविघ्नसंतोषी होवाथी अमारा बन्ने वचनो स्नेह सहन करी शकता नथी, केमके धमां प. रानीपेठे तेनं था गंगदत्तमां पण दोषो कहे . / / 74 // एवी रीते शुज अाशयवाळा एवा प श्रा धर्मदत्तप्रते प्रकटरीते देष करनारो ते गंगदत्त एक दिवसे पोताना दुःशीलपणायी वश करे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि| रंगो निर्नयमावयोः // 76 // एवमेवैतदित्यस्य / वचः साप्यन्ववर्तत // क्रौर्यनिर्जितशस्त्रीणां / मा धिक् स्त्रीणां चपलं मनः / / 77 // ततः स विततद्रोह-प्ररोहः श्रेष्टिनः सदा // सुतप्ततपसः कोप / / श्वात् पारिपार्श्वकः / / 70 ॥'अन्यदा सह मित्रेण / सदःस्थं तं नृपोऽन्यधात् / / किं कचिच्चि | समालोकि / भवता भ्राम्यता भुवं / / 15 सोऽप्यूचे देव देनेन / दृम्बंधात्करलाघवात // दृश्यते ली एवी तेनी स्त्रीने गुप्त रीते कहेवा लाग्यो के, // 35 // हे प्रिये ! जो धर्मदत्तने मारी नाखवामां आवे अथवा यहीं घेर थावतो घटकाववामां आवे तो पनी थापण बनेनो नोगरंग निर्नयपणे थाय. / / 76 // एमज करवु तीक बे, एम कही तेणीए पण तेनुं वचन स्वीकार्यु. क्रूरपणा. थी जीतेल ने शस्त्रो जेणीए एवी स्त्रीनना चंचल मनने धिक्कार . // 7 // पनी-जेम क्रोध त पस्वीनो सोबती थाय ने, तेम ते गंगदत्त (मनमां ) द्वेषनो अंकुरो लावीने शेग्नो सोबती थयो // 9 // एक दिवसे ते मित्रसहित सनामां बैठेला ते धर्मदत्तने राजाए कह्यु के हे धर्मदत्त तें पृथ्वीपर देशाटन करतांधकां को पण जगोए शुं कई याश्चर्य जोयु ? // 7 // त्यारे तेणे पण कह्यु के हे स्वामी! कपटथी नजरबंधीथी अथवा हाथचालाकीथी जे कंई आश्चर्यो देखाय | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि-| यानि चित्रैस्तैन चित्रीयामहे वयं // 70 // गृहे मम यवाः संति / चित्रियावलिपल्लवाः ॥सद्य| स्त्वदंहिसेवेव / स्थाने न्यस्ता फलंति ते // 1 // तत् श्रुत्वा विस्मिते राशि। दिदारनसाज्जने // धुनान्मौलिं गंगदत्त-स्तत्कथाज्ञः पुनः पुनः // 72 // किं वाताहतशाखीव / शिरो धूनयसी. ति सः // पृष्टो राज्ञा जगौ प्रीतः / प्राप्य प्रेत श्व बलं // 3 // असमंजसवादित्व-ममुष्य तव चार्जवं // आश्चर्यकारणं. वीदय / शिरः कस्य न कंपते // 7 // धनस्य संनिपातस्ये बोष्मणा | जे. तेथी अमोने कई पाश्चर्य थतुं नथी. // 70 // परंतु मारे घेर चित्रावेलीना पञ्जवसरखा जब बे, के जे जवो एक जगोए वाव्याथी आपना चरणनी सेवानीपेठे तुरत फले . / / 71 // ते सांजळीने ते यवोने जोवानी श्वाना वेगथी राजा तथा समालोक आश्चर्य पामते ते ते यव ना वृत्तांतने जाणनारो गंगदत्त वारंवार मस्तक धुणाववा लाग्यो. / / 72 // वायुयी कंपेला वृक्ष नीपेठे तुं मस्तक केम धुणावे , एवी रीते राजाए पूज्वाथी ते उष्ट प्रेतनी पेठे लाग जोड्ने खुशी थ बोल्यो के, // 73 // या धर्मदत्तनुं जूतुं बोलवापणुं तथा आपनी सरलता, ए बन्ने या. | श्चर्यकारक जोश्ने कोनुं मस्तक कंपे नही!! | 4 // हे स्वामी ! संनिपातसरखा धनना तापथी PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- प्रलपंति ये // तहाचि तात्विकी बुधिः / स्वामिन्ननुचिता तव // 5 // धूर्तोक्तिषु दधानस्य / धृ. / ___ साथै |ति धोवंध्यचेतसः // तव पालयतो राज्यं / मनोऽपि मम कंपते // 6 // गृह्णातु मम सर्वस्वं / स चेद्यदेष सत्यवाक् // नो चेत्करदयग्राह्य / वस्तु देयमनेन मे // 7 // तन्मेने धर्मदत्तोऽपि / स. . 6 त्योऽहमिति निश्चयात् // बव नृपतिः सादी / पणबंधे तयोस्तदा // // सत्याऽसत्यपरीक्षेयं / प्रातः सर्वापि जोत्स्यते // वदन्निति नृपास्थाना-धर्मदत्तो विनिर्ययौ // जय // ममैव धाम्नि सं. (प्रेरायेला ) जे मनुष्यो बबडे , तेना वचनमां आपे तत्वबुधि राखवी ए उचित नथी. / / 5 / / धूर्तीना वचनोमां विश्वास राखनारा तथा बुधिरहित चित्तवाळा एवा थाप जे पा राज्य निनावी शको गे! तेथी तो माझं मन पण थरथरे ! // 6 // वळी जो था धर्मदत्त सत्य बोलनारो ठरे तो मारी सर्व मिल्कत ते ले ले, घने जो तेम साबीत न थाय तो तेना घरमांथी मारा बे हाथोवंडे जे वस्तु हुं लेलं ते तेणे मने थापवी. // 7 // हुं तो सत्य बुं एवा निश्चयथी धर्मद. ते पण ते शरत स्वीकारी, तथा ते समये राजा तेज बन्नेनी ते शरतमां सादी थयो. // 7 // | हवे आ सत्य असत्यनी परीदा सघळी सवारे जणाश् रहेशे, एम बोलतोयको धर्मदत्त राजसनाः / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि-| त्येते / यवास्तत्किं विषिद्यते // श्यनाकुल एवासौ / लमो वाणिज्यकर्मणि // 50 // विटस्तकाम गत्वोक्त्वा / सुरुपाया यथातथं // यवांस्तान प्रार्थयामास / स्वयं न्यासीकृतानिव / / 51 // यवानि. ज्यतनूजस्य / जीवितादपि वल्लगान् / / प्रदाय तान विरायान्यां-स्तेषां स्थाने न्यधत्त सा // ए॥ ऊचे च नाथ गृह्णीथा-स्तदा पाणिहयेन मां // जाहं पाणिनैकेना-दृता हान्यां पुनर्नवान् / / | // 73 / / मास्म गृहिं नजे रत्न-रुक्मरूप्यादिवस्तुषु // लाने सचेतनाया मे। कामना का ह्यचेतने मांधी गयो. // 5 // मारा घरमांज ते जवो बे, माटे मारे चिंता शुं करवी? एम विचारी ते तो कंपण याकुलताविना पोताना व्यापारमा जोमा गयो. // 50 // हवे ते लफंगो गंगदत्त धर्मदत्तने घेर जश्ने तथा बनेलो वृत्तांत सुरूपाने कहीने जाणे पोते थापणतरीके राख्या होय नहि तेम ते यवोने मागवा लाग्यो. // ए१ // ते श्रेष्टिपुत्रना जीवितथी पण अतिवल्सन एवा ते यवो ते लफंगाने देश्ने तेणीए तेजनी जगोए बीजा स्थाप्या. // 7 // वळी तेणीए तेने कहां के हे स्वामी! ते समये बन्ने हाथोथी मनेज लेजे, नारे तो मने एक हाथे लीधी ने. परंत तारे मने बे हाथे लेवी. // 3 // वळी ते वखते रत्न सुवर्ण तथा रूपाश्रादिक वस्तुमां लालच P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- // 4 // तस्या धैर्यापहीभि-रिति स्नेहोक्तिमल्लिनिः // विछोऽपि जीवितंमन्यः / स ततो निसाई रगाद् हृतं // 45 // समये धर्मदत्तोऽपि / समायतः स्वमंदिरं // सुहृदादं जगौ पन्या / ऋजुर्गुह्यं रिपोखि // 6 // शाठ्य नः साप्यवग नेतः / किमेतद्विहितं त्वया // चेन्मामेवैष हस्ताभ्यां / द. 64 || " | ध्यात्तत्को निषेधकः // 7 // अथ सोपपतिध्याना-दन्यचित्ता विपर्ययात् // निर्मिमाणाखिलं ह. नहि करजे, केमके मारो सचेतननो ज्यारे तने लाज थाय बे, त्यारे सुवर्णादिक अचेतननी इ. बा करवी शा कामनी ? // 4 // एवीरीतनां धैर्यने हरनारां तेणीनां स्नेहवचनरूपी नालांत. थी विधायेलो एवो पण ते गंगदत्त पोताने जीवतो मानतोयको त्यांथी तुरत निकळी गयो. // // 45 // हवे अवसरे धर्मदत्ते पण घेर श्रावीने सरल माणस जेम पोतान) गुप्त वात शत्रुने का हे तेम मित्रसाथे थयेलो विवाद स्त्रीने कह्यो. // ए६ // त्यारे बुचाश्ना स्थानसरखो ते सुरूपा पण बोली के हे स्वामी! था तमोए शुं कयु? ते वखते कदाच जो ते मनेज पोताना बे हा. थोथी लेशे तो तेने कोण अटकावशे? // 5 // हवे ते पोताना यारनाज ध्यानथी व्याकुळ थ. | येली होवाथी घरनुं सर्व कामकाज ज्यारे नलटुं करवा लागी त्यारे धर्मदत्ते तेणीने कडं के, // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- H-कर्म न्यगद्यत / / ए // जानानोऽस्मि विनेषि त्व-मस्माबागी वृकादिव / / मा जीरु नै |रिदं मित्रं / मयि मुह्यति जातु न / ए0 // इति तेनोदिता तोषं / कृत्रिमं सा विवृण्वती // कृ. द्रेण निन्येऽहोरात्र-मंतर्विटवियोगिनी / / 300 // प्रातरादाय तद्दत्तान् / यवान् विश्वासवंचितः // धर्मदत्तो ययौ राज–समाजं सुहृदा सह // 1 // तत्र स प्रेरितो राज्ञा / कौतुकोपेनचेतसा / / पार्षद्यैः प्रेदितः प्रीति–पूरस्फारितलोचनैः // 2 // कटादितः कुटिलया / दृशा पल्लविकेन च / / // 7 // हे प्रिये ! हुँ एम धारुं बं के तुं वरुथी जेम बकरी तेम ते गंगदत्तथी मरे ने, परंतु तं | मर नही, केमके ते मारो मित्र मारापर कदापि पण द्वेष करे तेवो नथी. || एU // तेणे एम कहेवाथी उपरउपरनी खुशी देखाडतीयकी परंतु मनमां ते लफंगाना वियोगनेज चिंतवती एवी तेणीए केटलीक मुश्केलीए ते रात्रिदिवस पसार को. // 300 // हवे प्रभाते विश्वासथी गा. येलो ते धर्मदत्त तेणीए आपेला यवो लेश्ने गंगदत्तसहित राजसनामां गयो. // 1 // त्यां को तुकी मनवाळा राजाए रेलो तथा प्रीतिना समूहथी विकस्वर लोचनोथी सनासदोवडे करीने जोवाएलो॥॥ तथा ते लफंगा गंगदत्तवडे करीने करडी नजरथी जोवाएलो ते धर्मदत्त मा. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- यवानुवाप नृपीठे / मृदा प्रबादिते ततः // 3 // युग्मम् // श्वरीकरदावामि-दग्धा श्व न ते य. सार्थ वाः / / प्ररोहंतिस्म संसिक्ता / अपि नीरौर्नरंतरं // 4 // सेचं सेचं स निर्विलो / घोषं घोषं गुरुयथा // नांकूरोऽपि यवेष्वासीद् / बोधिलाजो जमेष्विव // 5 // फलं दूरेऽस्तु नांकूर—मात्रमप्येषु वीदयते // पुरः दितिपतेरे / त्राटकृत्य न्यगदहिटः // 6 // अहो अद्भुतकारित्व-महो सत्यप्रति. झता // अहो कलासु कौशल्य-महो अस्य विवेकिता // 9 // यन्मे देयमनादेय-वचसा श्रेष्टिटीथी छावेला पृथ्वीतलपर यवोने वाववा लाग्यो. // 3 // कुलटाना हाथरूपी दावानलथी जाणे बळी गयेला होय नहि तेम ते यवो जलथी निरंतर सिंच्या बतां पण नग्या नहि. // 4 // गुरु जेम कही कहीने थाके तेम ते सींची सींचीने थाक्यो, परंतु जडनेविषे जेम बोधिलान तेम ते यवोमां अंकुरो पण फुट्यो नहि. // 5 // त्यारे ते सुच्चो गंगदत्त एकदम तडाको करीने राजाप्रते बोल्यो के फल तो दूर रहो, परंतु मात्र अंकुरो पण आमां देखातो नयी. // 6 // अहो पार्नु आश्चर्यकारीपणुं ! अहो बानुं सत्यप्रतिझापणुं ! अहो कलानी बहादुरी! तथा अहो खानुं विवे. कीपाएं! // // माटे हे राजन् ! हवे था जूगबोला शेठपासेथी मने जे अपाववानुं बे ते थाप P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- नामुना // तद्दापय प्रजापाल / सादयसि स्वं यदावयोः // 7 // राझोचे सौम्य संजात-मद्य मा / ध्यंदिनं दिनं / / प्रातर्निर्वाह्य वादं ते / दास्ये चास्येऽशनं त्वनु // ए / स्वयमेव कदाप्येष / ताव त्वद्देयमर्पयेत् / / तदौषधं विना व्याधि-विध्वंसः समजायत // 10 // प्रमाणयन नृपादेशं / गंग६७ दत्तो विनिर्ययौ // अनन्यमतिरन्यस्तु / गृहं वररुचेर्ययौ // 11 // तेनात्याकुलताहेतुं / पृष्टः श्रेष्टी यथातथं / / यवोदंतं जगौ स्थूलं / स्थूलाश्रुपटलं किरन् // 12 // ऊचे वररुचिर्वत्स / न वत्सरशअपावो? केमके आप अमारा बनेना सादी जो, // 7 // त्यारे राजाए गंगदत्तने कडं के, चला माणस! आज तो बपोर थर गया , माटे प्रनाते तारा वादनो निश्चय करीने तने अपावीश, श्रने त्यास्वाद हुँ जोजन करीश. // // वळी एटलामां ते पोतेज तने पापवानुं जो यापी दे तो औषधविनाज रोगनो नाश थर जशे. // 10 // एवी रीतना राजाना हुकमने स्वीकारीने गं. गदत्त त्यांथी निकल्यो, अने धर्मदत्त तो बीजो नपाय न सूजवाथी वररुचिब्राह्मणने घेर गयो / // 11 // त्यारे वररुचिए अति गभराटनुं कारण पूज्वाथी तेणे बोखोरजेवमां बांसु पाडतांशको यवोनो वृत्तांत कह्यो. ॥१शा त्यारे वररुचिए कडं के हे वत्स! सर्वाना वचनोनीपेने सेंकडो वर्षे PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhakust
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- तैरपि // सर्वस्य वचांसीव / विघटते यवा मम // 13 // मन्ये यवविपर्यासो / विहितस्तव भार्यसार्थ या // सा विटे गंगदत्तेऽस्मिन् / नूनमस्त्यनुरागिणी / / 14 // किं न स्मरसि जो यत्त्वं / पारितोऽ. स्तदा मया // विश्वासं योषितो नीचैः / संसर्ग मा कृथा इति / / 15 / सतामग्राह्यनामासौ। गं. 67 गदत्तः सुहृत्तव // कुर्वती कृत्रिमं प्रेम / प्रियापि स्वैरिणी तव // 16 // यदि विस्मृतवान वत्स / म. बिदामंत्रमुत्तमं // पिशांचाज्यामिवैताज्यां। संप्रति बलितोऽसि तत् // 17 // धर्मदत्तोऽत्यधात्पत्नी। पण मारा यवो जूग पडे तेम नथी. // 13 // हुँ धारु बु के तारी स्त्रीए यवोने बदलावी नाख्या बे, अने खरेखर ते तारी स्त्री ते लफंगा गंगदत्तपते रागवाळी थ . // 14 // अरे! तने शुं याद नथी? में ते वखतेज तने शिखाव्यु हतुं के स्त्रीनो विश्वास तथा नीचनो संग करखो नहि. // 15 // जेनुं नाम पण सज्जनोने लेवालायक नयी, एवो ते तारो मित्र गंगदत्त ने, तया लपरथी जूठो प्रेम बतावनारी नारी स्त्री पण कुलटा बे. // 16 // वळी हे वत्स! मारी शिखामणरूप) उत्तम मंत्रने जो तुं विसरी गयो, तो हमणा पिशाचसरखा था बन्नेए तने त्यो बे. // 17 // | (ते सांगळी ) धर्मदत्ते कां के अरे ! मारी स्त्रीतो गंगाजलसरखी पवित्र जे! ए विचार) शील . Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________ सार्थ धम्मि- मम गंगाजलोज्ज्वला / / न तस्याः शीलशालिन्या / अन्यायं वक्तुमर्हसि // 17 // द्विजः स्माह ऋजोऽद्यापि / स्त्रीचरित्रं न बुध्यसे / मया सर्व प्रियावृत्तं / तव प्रकटयिष्यते // 15 // नृपे प्रात. गुहायाते / पत्नीमारोप्य कुट्टिमे // निःश्रेणी दुरतो मुंचे-रिति विप्रः शशास तं // 20 // मंत६ स्योपदेश स / हसयन्निजमानसे // निर्व्याजमानशे तोषं / तीर्णार्णव व दणं // 21 // गंगद तो हितीयेऽह्नि / नरनाथं व्यजिझपत // त्वयि सादिणि नो लन्यं / लने कोऽयं नयः प्रनो // वंती महासतीन दूषण बोलवु ए तमोने युक्त नथी. // 10 // वररुचिए कह्यं के अरे मूर्ख! तुं ह. जु स्त्रीचरित्र जाणतो नथी, हुं तारी स्त्रीनुं सघडं चरित्र तने देखाडी थापीश. // 17 // हवे प्रजाते राजा ज्यारे घेर थावे त्यारे तारी स्त्रीने माळपर चडावीने तारे निसरणी दूर मूकवी, एवी रीते ब्राह्मणे तेने शिखामण थापी. // 50 // तेना था उपदेशने सारविनानो जाणी मनमां ह. सतोयको धर्मदत्त दणवार जाणे समुऽ तरी गयो. होय नहि तेम संतोष मानवा लाग्यो. // 21 // बीजे दिवसे गंगदत्ते राजाने विनंति करी के हे स्वामी! आप सादी उतां हजु मारु लेणुं मने म. |ळतं नथी ए न्याय केवो! // 15 // वळी था मारा वहाला मित्रपासे मागq ए जो के शरमन P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- // // प्रार्थना प्रियमित्रेऽत्र / कारण यद्यपि हियः // लभ्यवस्तुपरित्याग-स्तथापि खलु दुःसहः माई // 3 // धर्मदत्ते रुषं धत्ते / यावत्तहचसा नृपः // तावदागत्य तेनैव / विज्ञतो विनयांचितं // 24 // देव मे सेवकस्यौकः / स्वकपादैः पवित्रय // यथार्हदापनादस्या-धमर्णान्मां च मोचय // 25 // मुक्तकोपस्ततो जूपः / पौरवातवृतोऽचलत् // गृहेऽस्य किं गृहीतासौ। कराज्यामिति कौतुकी // 26 // | पौरेयः पुरतो त्वा / त्वरितत्वरितैः पदैः // गत्वा निजगृहं धर्म-दत्तः पत्नीमवोचत // 7 // ज. रेवू दे, तो पण लेणी वस्तु तजवी ए खरेखर मुश्केल . // 3 // एवी रीतना तेना वचनया राजा जेवामां धर्मदत्तपर गुस्से थाय बे, तेवामां धर्मदत्तेज त्यां यावी विनयपूर्वक राजाने विनंति करी के / / 24 // हे स्वामी ! मारुं सेवकनुं घर थापना चरणोवडे पवित्र करो? अने गंगदत्तने तेनी इहामुजब अपावीने मने तेना करजथी गमावो. // 25 // ( ते सांनळी) क्रोध तजीने राजा थाने घेर बेहाथे था गंगदत्त जोए शुं लेने ? एवी रीतनां कौतुकवाळो थश्ने नगरना लोकोना समूहथी युक्त थयोथको चालवा लाग्यो. // 16 // ते वखते धर्मदत्त जतावळे पगे न. गरना लोकोथी भागळ नीकळी पोताने घेर जश् सुरूपाने कहेवा लाग्यो के, // 27 // हे प्रिये! | P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________ त्तिष्ट दयिते मुंच / प्रपंचमखिलं पुरः // निवेशयासनश्रेणि-मयमायाति नृपतिः // 20 // मत्कामना मनागद्य / फलितेव निरीक्ष्यते // इति सा द्विगुणोत्साहा / तेने सर्व तथैव तत् // 15 // मालोपरि स्थितं सिंहा-सनमानय जुजे // इति भर्ना समादिष्टा / साध्यारोहदधियकां // 30 // नीताऽनयाऽनयाप्येषा / प्रोचैरिति रुषेव सः // निःश्रेणी दूरतोऽमुंचत् / सापराधां प्रियामिव // 31 // वरत्रां कूपके दिप्त्वा / कथं हा कांत द्वंतसि // श्यारटंती तामेड-श्वोपेदां चकार सः // 3 // तुं जलदी उनी था? बीजं बधुं कार्य गेमी दे? राजाजी आवे ने माटे आसनोनी श्रेणि मांड? // 2 // बाजे मारी ग कंक फळेली देखाय , एम विचारी बेवमा उत्साहथी सुरूपाए स. घg तेज मुजब कर्यु. // 27 // हवे तुं मजलापर रहेधुं सिंहासन राजामाटे लाव? एवी रीते न. तारे हुकम कर्याथी सुरूपा नीसरणीपर चमीने मजलापर गश्. // 30 // या दुराचारी स्त्रीने पण था नीसरणी नपर ले गश्, तेथी उत्पन्न थयेला अति रोषधीज जाणे होय नहि तेम ते धर्मदत्ते अपराधी स्त्रीनीपेठे ते नीसरणीने (त्यांथी खेसवीने) दर मूकी. // 31 // हे स्वामी! मने कुवामां उतारीने हवे तुं दोरी शामाटे कापे में? एवी रीते पोकार करती एवी ते सुरूपानी जा. P.P.AC..Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________ . धम्मि- श्रेष्टी तत्रागते राशि। पौरपूरांतरागतं // स्वं मूर्तमिव सत्कर्मा-दादीहररुचिं विजं // 33 // त। साई तः प्रविततस्फूर्ति-रसौ तारस्वरं जगौ // गंगदत्त गृहाण त्वं / वस्तु यद्रोचते तव // 34 // सोऽ. पि चंचलदृक्पश्यं-स्तस्य गेहमितस्ततः / / तां चित्तचौरिकां कामा-कुलो नालोकन कचित् // 35 / / | तस्यात्याकुलचित्तस्य / स्वं झापयितुमातनोत् // मालोपरि गता कासं / भृशं भुक्तगुमेव सा // 36 // तां मत्वा चंडशालास्था-मवतारयितुं विः // पाणिदयेन जग्राह / निःश्रेणी निरपत्रपः // 31 // णे पोते बहेरो होय नहि तेम धर्मदत्ते कई दरकार करी नहि. // 32 // हवे राजा ज्यारे त्यां थाव्यो त्यारे नगरना लोकोना समूहनी अंदर पोताना मूर्तिवंत शुज कर्मसरखा ते वररुचि ब्राह्मणने पण श्रावेलो शेठे जोयो. // 33 // अने तेथी हिम्मत लावीने तेणे मोटे स्वरे कडं के, हे गंगदत्त! जे वस्तु तने गमे ते तुं लेश ले ? // 34 // त्यारे चपल दृष्टिवाने ते कामातुर गं. गदत्त आम तेम तेनुं घर जोवा लाग्यो, परंतु पोताना चित्तने चोरनारी ते सुरूपाने तेणे क्यांय पण जो नहि. // 35 // एवी रीते व्याकुल चित्तवान ते गंगदत्तने पोतानुं स्थान जणाववामाटे मजलापर रहेली सुरूपा जाणे, खूब गोळ खाश्ने बेठी होय नहि तेम खांसी करवा लागी // 36 / / PP.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि| यावन्मुंचति निःश्रेणी / स्वस्थाने तावदिन्यः // संकेतितो वररुचि-द्विजेनोचे स्फुटाकरं // 3 // माई हो मा मुंच निःश्रेणी / पाणिन्यां खयमाहतां // नृपः साक्ष्यस्ति शृएवंतु / सर्वे नगरवासिनः // // 35 // हैता हेममंजूषा / श्मे रत्नसमुद्भकाः / संति कित्वस्य निःश्रेण्या-मेव दृष्टिररज्यत / / 73 | // 40 // उपमर्दोचिता साधु-काष्टोचारोहकारणं // सद्मश्रीकृत्करात्तेयं / किं त्याज्या सुवधूखि // | त्यारे तेणीने मजलापर रहेली जाणीने त्यांची जतारवामाटे ते निर्लङ लफंगाए पोताना बन्ने | हाथे निसरणी पकमी. // 37 // पनी जेवो ते निसरणीने तेनी योग्य जगोए मुके जे, तेवोज | श्रेष्टिपुत्र धर्मदत्त वररुचि ब्राह्मणे संकेत करवाथी प्रकट रीते बोल्यो के, // 30 // अरे! तें पोता. नी मेळेज बन्ने हाथे पकमेली निसरणीने हवे गेड नहि. केमके या बाबतमां राजा सादा जे. तेम हे नगरलोको! तमो पण सांजो // 35 // या वहीं सुवर्णनी पेटीनं, तथा या रत्नोना डानडा पण पमेला बे, परंतु या ( मारा मित्रनी) नजर तो था निसरणीमांज खुशी थयेली . // 40 // वळी या निसरणी उत्तम स्त्रीनीपेठे उपमर्दन करवालायक (बालिंगन करवाला| यक) उत्तम काष्टवाळी (शरीरना मनोहर बांधावाळी ) तथा उपर चम्बालायक घरनी शोभा PP.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- // 41 / / साधुसाध्विति जल्पाकै-म्यिवनागरैरपि // दत्ततालं ततोऽहासि / विटो हास्यास्पदं हि / | सः // 42 // अस्य दुःशीलतामर्म / धर्मदत्तेन बोधितः / नृपस्तं विषयव्याप्त-मपि निर्विषयं व्य धात् / / 43 // मादमंगलं निन-नबासौ पुरवासिनां // इति निर्वासिता मृत्वा / सुरूपा दुर्गतिं 14 गता // 44 // वनिताजनितामंद-दुःखांदोलितमानसं // अथैवमन्वशार्म-दत्तं वररुचिः सखा // 45 // दीनाराणां शतैः पंच-दशभिः पारितोऽनवः / / तथापि विप्रबुब्धोऽसि / वत्सान्यां धिक करनारी अने हाथे करीने झालेली हवे शुं तारे तजवी जोश्ये ! // 41 // व्याजबी ने व्याजवी बे, एम कहीने नगरना लोकोए पण गामडीयानीपेठे ताळी देश्ने ते लफंगानी हांसी करी, केमके ते हांसीने लायकज हतो. // 42 // पनी धर्मदत्ते तेना दुराचारनो मर्म राजाने जाहेर क. यो, त्यारे राजाए ते विषयवाळा गंगदत्तने पण विषयरहित एटले देशपार कर्यो. // 43 // पजी ते सुरूपानुं पण नाक काप्यु, अने हवे aa नकटी नगरना लोकोने अपशकुन करनारी थवी जोश्ये नहि एम विचारी ( राजाए) त्यांथी कहाडी मूकेली ते सुरूपा मरीने दुर्गतिमां गइ. // | // 44 // एवी रीते स्त्रीथी उत्पन्न थयेला अत्यंत छुःखथी अस्थिर मनवाळा ते धर्मदत्तने वररुचि | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- तवार्जवं // 46 // लगते निर्मलात्मापिः / नीचसंगाद् गुणच्युति // पश्य दारीनवेन्मेघ- पयः प. तितमूषरे // 4 // निष्कलः कुकलत्रेण / मिलितः स्यान्महानपि // कलाहीनः कुहयोगे / किं न राजापि जायते // 4 // विषवल्ली विनाशाय / प्रायः पार्श्वे निषेदुषां // जवदयविनाशाय / | ध्यातमात्रा अपि स्त्रियः // 45 // अमुच्यमाना ज्वलिता-लानवत्तापहेतवः // नार्योऽनार्योचिता मित्रे शिखामण पापी के // 45 // हे वत्स ! पंदरसो सोनामहोरो लेश्ने में तने भणाव्यो हतो तो पण तुं ते बनेथी उगायो, माटे तारी मूर्खाश्ने धिक्कार ! // 46 // नीचना संगथी निर्मल माणस पण पोताना गुणो गुमावी बेसे बे, तुं जो के नपरचमीपर पडेधुं वरसादनुं पाणी पण खारं थर जाय . // 4 // खराब स्त्रीना संगथी महान् पुरुष पण कलारहित थाय बे, केमके अमावास्याना संगथी चंद्र पण शुं कलारहित यतो नथी? // 4 // फेरी वेलडी प्रायें करीने पा. से बेग्ला प्राणीननो नाश करे . परंतु स्त्रीने तो तेणीना फक्त ध्यानथीज बन्ने नवोमांविनाश करनारी थाय . // 4 // जो ते स्त्रीनने तजवामां न आवे तो तेन बळेला थांजलानीपेके ताप करनारी थाय , माटे एवी नीचने ग्रहण करवालायक स्त्री जेडए दूर तजी एवा ते | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________ 16 | धम्मि- दूरे। विमुक्ता वैजयंतु ते // 20 // इति तछाक्यचंद्रांशु-स्फीतवैराग्यसागरः // जवोदिनो नवक्षे- / मा त्र्यां / सोऽव्ययीदखिलं धनं / / 51. / / घनेन तपसा नेतु-कामः संसारपंजरं / / स्त्रीविरक्तः प्रववाज | / स पार्श्वे सुमतेर्गुरोः // 55 // एकादशांगपारीणो / विहरन स महीतले // पुरीं वाराणसीमेव / स्वामेव तपसा ययौ // 23 // वंदनायातलोकना-मुपदेशं दिशानसौ // तत्राईधर्मसाम्राज्य-सेकलत्रमपप्रथत् // 24 // चिरं पुत्रवियोगा” / दुःखविस्मृतये दणं // दयितासहितः श्रेष्टी / तं (मुनिन ) जयवंता वर्तो ? // 50 // एवी रीतनां वररुचिनां वननोरूपी चंना किरणोथी धर्मदत्तनो वैराग्यरूपी समुद्र उक्षसायमान थयो, अने तेथी संसारथी कंगळीने तेणे पोतान सघवं धन नव क्षेत्रोमां वापर्यु. // 51 // निबिड (घणरूप ) तपथी संसाररूपी पांजरांने जांगवानी 5. बाथी स्त्रीथी विरक्त थश्ने तेणे सुमति नामना गुरुनी पासे दीदा लीधी. // 5 // (अनुक्रमे) अग्यारे अंगोनो पारंगामी एवो ते धर्मदत्तमुनि तपपूर्वक पृथ्वीपर विहार करतोयको पोतानी (ज. न्ममि ) एवी वाराणसी नगरीमा गयो. // 23 // त्यां वंदनमाटे श्रावेला लोकोने उपदेश दे. तोथको ते मुनि श्रीजैनधर्मनुं एक बनवावु साम्राज्य विस्तारवा.लाग्यो. // 14 // घणा काळयी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- ववंदे यशोधरः // 55 // वेषान्यत्वाच्च काश्च / तान्यामनुपलदितः // प्रतीत्य पितरौ तेने / / व्याख्यामेष विशेषतः // 56 // ततस्तो मुनिना दोन-वदनौ दुःखकारणं // पृष्टौ पुत्रवियोगार्ति -मेव चक्रतुरुत्तरं // 57 / / मुनिः प्रोवाच वां स्नेहः / कोऽयमस्मिंस्तनूरुहे / / प्राप्तेषु पुत्रतां ना. | ना-नवैरखिल तुषु // 17 // तथापि यदि वां पुत्र-प्रेम्णा विह्वलितं मनः // तदा मामेव तं धर्म-दत्तं जानीतमात्मजं // 27 // ततः स्वस्खयोऽवस्था-विशेषैरुपलदय तं // श्राः किमेतत्त्व पुत्रना वियोगथी दुःखी थयेला यशोधरशेने पोतानी स्त्रीसहित दणवार सुःख विसारखामाटे (या आवी) मुनिने वांद्या. // 55 // वेष बदला जवाथी तथा दुर्बलताथी तेन तेने जळखी शक्या नहि, परंतु मुनि तो तेनने जळखीने विशेष प्रकारे व्याख्यान विस्तारवा लाग्या. // 56 / / पजी दीनमुखवाळा एवा तेनने मुनिए दुःखनुं कारण पूछवाथी तेए पण पुत्रवियोगना दुःखरूपी न. तर बायो. // 57 / / मुनिए कडं के नानाप्रकारना नवोमां सर्व प्राणीनने ज्यारे पुत्रपणुं प्राप्त थाय ने त्यारे वळ ते पुत्रमा तमारे स्नेह कखो शुं कामनो के ? // 27 // तो पण पुत्रना प्रेमथी जो तमारं मन व्याकुल थतुं होय तो पड़ी आ मनेज पोतानो पुत्र धर्मदत्त तमारे जाणीले P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- याऽकारी-युच्चकैस्तावरोदितां // 60 // तयोरथावबोधाय / शिदामेवमदान्मुनिः // युवयोर्न वयो माई धर्म-योग्यं मोहमथाईति // 61 // धनं सनिधनं प्रांते / वनिता जनितातयः // जोगा रोगास्पदं कूट-कोटीकटुकुटुंबकं // 6 // हंत किं तद्भवे येन / भवेदसुमतां धृतिः // उत्खातपातकोजेकमेकमेव हितं व्रतं // 63 // युग्मं // प्राप्य रत्नत्रयं पुत्रः / संयमश्रीसमान्वितः // किं दुरादहमायातो। न जातो नवतोर्मुदे // 64 // बोधितौ तौ ततस्तेन / तृणवत्त्यक्तसंपदौ / मुनेः पार्श्व ज. वो. // 27 // पनी स्वर जमर तथा व्यवस्थाविशेषथी तेने जळख्यावाद अरे पुत्र! तें या शुं कयु ! एम कही ते मोटेथी रडवा लाग्या. // 60 // पड़ी तेजने प्रतिबोधवामाटे मुनिए उपदेश याप्यो के हवे तमारी आ धर्मलायक नमर मोह करवामाटे योग्य नथी. // 61 // धन अंते विनश्वर , स्त्रीने दुःख यापनारी , जोगो रोगोना स्थानसरखा , तथा कुटुंब पण कोडोगमे कू. टोथी कमवू . // 6 // अरे! आ संसारमां एवी कर वस्तु बे ? के जेथी प्राणीनने धीरज म. ळे ! माटे पापोना उगलने नखेडनारं व्रत लेवू एज एक हितकारी जे. // 63 // हं तमारो या पुत्र के जे दूर देशथी त्रण रत्नो लेश्ने संयमलमीसहित आवेलो बुं, ते शुं तमोने हर्ष करना | . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- ग्रहतु-व्रतं वैराग्यशालिनौ // 65 / / त्रयोऽपि तपसा तेऽग्नि-त्रयीतुलिततेजसः // दग्धकर्मेधनाः मा काले / लेनिरे परमं पदं / / 66 / / एवं तात कृतातंकं / श्रुत्वा वृत्तं कुयोषितां // अपरीय कं थं कन्या-माद्रियंते महाधियः // 67 // निश्चलः स्नेहलः कोऽत्र / कः प्रकाशो निरंतरः॥को वा | सर्वोत्तमो लाभः / किं च रूपमविलसं // 6 // एवं प्रश्नानि चत्वारि / या तु प्रत्युत्तरिष्यति // तात | सा तत्वतः प्राण-वाजा मे जाविष्यति // 6 // // इत्यस्य निश्चयं मत्वा / समुषो न्यगदत्तरां // रो नथी थतो? // 64 // एवी रीते मुनिए प्रतिबोध थाप्याथी तेज बन्ने पण वैराग्यथी शोलता. थका तृणनी माफक संपदा तजीने दीदा लेता हवा. // 65 // परी अमित्रयसरखा तेजवाळा तेन सणे कर्मरूपी काष्टो बाळीने मोक्षपद पाम्या. // 66 // एवी रीतनुं दुराचारी स्त्रीनुं जयंकर वृत्तांत सांगळीने हे पिताजी ! बुध्विानो परीक्षा कर्याविना कन्यानो केम स्वीकार करे? // 67 // अहीं निश्चल स्नेही कोण ? निरंतर प्रकाश कयो ? तथा सर्वोत्तम लान कयो? अने अविनश्वर रूपक यु? // 17 // हे पिताजी ! एवी रीतनां मारा था चार प्रश्नोनो जे उत्तर श्रापशे ते तत्वथी मारी / प्राणवल्वाना स्त्री थशे. // .67 // एवी रीतनो तेनो निश्चय जाणीने समुद्रदत्ते कहां के, हे वत्स | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- मा जुः कदाग्रही वत्स / विलंबः खलु कार्यहा / / 70 // संबंधी सागरः कन्या / सुभद्रा स्वजनाथसार्थ म। // पुनरेतत्त्रयीयोगो / मया वत्स क लप्स्यते / / 71 // सुरेोऽवम् वृथा स्यान्मे / नोक्तं किं चिंतयानया // यः पाणिमसृजत्पाणि-गृहीतीमपि स ध्रुवं // 12 // यत्तलजल्पनं यत्त-दाणं यत्तदासनं // बाल एव प्रकुर्वाणो / विनाति न पुनर्युवा // 13 // बलात्कारेण वीवाहः / कारितो जशुक्रायतिः // इति ध्यात्वा न्यवत्तेत / स्वयमातनरास्ततः // 14 // विवाहविघ्नं तेऽन्येय / साग. तुं कदाग्रही न था, केमके (यावां कार्यमां) विलंब करवाथी कार्य बगडी जाय . // 70 // केमके हे वत्स ! सागरशेग्जेवो संबंधी, सुभाजेवी कन्या तथा आवा स्वजनो, ए त्रणेनो योग फरीने हुं क्या मेळवीश ? // 71 // त्यारे सुरेंडदत्ते कहूं के हे पिताजी ! मारुं वचन वृथा थशे न. हिवळी ग्राम चिंता करवाथी शुं थशे ? केमके जेणे मारो हाथ सरज्यो , ते खरेखर हाथने ग्रहण करनारी पण सरजशे. // 12 // जे ते बोलवू, जे ते खावु तथा ज्यां त्यां बेसवं, ए बालकने शोने बे, परंतु युवानने शोने नहि. // 13 // हवे बलात्कारे करावेलो विवाह परिणामे | सारो निवम्तो नथी, एम विचारी ते प्राप्त पुरुषो पोतानी मेळेज त्यांथी पाग गया. // 4 // P.P Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- रश्रेष्टिनः पुरः // प्रश्नानि च सुगमायां / जनं दत्तश्रुतौ जगुः // 15 // एतज्ज्ञातम नृत् पूर्व / हा माई सख्यः किं चविष्यति // इति पूत्कुर्वती बाला / व्यालात्तेव रुरोद सा // 16 / / तदा तैराई तैर्देवै वितेने व्योमनीति वाक // मा शोचीः पुत्रि तिष्टाम-स्तव संनिहिता वयं / / 99 // तत्सांनिध्या 71 दनध्यायं / विषादस्य विधाय सा / / सद्यः प्रश्नोत्तरश्लोकं / पूर्वाधीतमिवापत् / / 90 // निश्चलस्ने. हलो धर्म-श्चित्प्रकाशो निरंतरः // विद्या सर्वोत्तमो लाजः / शीलं रूपमविस्रसं / / 7 / लिखि तेनए भावीने सागरशेठने विवाहना विघ्न संबंधि वृत्तांत कह्यो, तथा ते प्रश्नो पण कयां, तेव. खते त्यां गुप्त रहेली सुनदाए पण ते सघर्चा सांजव्यु. // 75 // हे सखीन में तो पहेलेथीज या. म थवानुं जाण्युं हतुं, हवे शुं थशे? एम पोकार करती ते बालिका जाणे अजगरे पकमी होय नहि तेम रडवा लागी. // 76 // ते वखते ते जैनी देवोए एवी रीतनी अाकाशवाणी करी के, हे पत्रि! तुं शोक कर नहि, अमो तने सहाय करनारा तैयार नन्ना जीये. // 7 // हवे तेन. ना सहायथी शोक तजीने जाणे पहेलेथीज जणी राख्यो होय नहि तेम तुरत प्रश्नोना उत्तरनो | श्लोक ते बोली के, // 9 // निश्चल स्नेहवाळो धर्म , निरंतर प्रकाशवाळू झान , विद्या एस. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि| त्वासौ तया श्लोकः / स्वसखीभ्यः समर्पितः // हर्षवीची विहस्तानि-स्तानिस्तजानकाय च // 0 // / सार्थ | हस्ताउस्तेन संचारी / तनयः श्रीपतेखि // अयत्नं स समुषस्य / दाग ययौ कर्णगोचरं / / 71 // | पितुः पार्श्वे निषलेन / सुरेंजेण प्रवाचितः // श्लोको लोकोत्तरानंद-वारिधेश्चंद्रतां दधौ / / प्रशा 2 दध्यौ सामुद्री बालाया। अप्यस्याः कीदृशी मतिः // वयोवृधा अपि यया / मूर्धानं धूनिता न के // 73 // किंचिलोचनमस्त्यस्या / नूनं नेत्रदयाधिकं // येनेतरैईरालोका-नाने निरीक्षते थी उत्तम लान , तथा शील ए अविनश्वर रूप . / / 15 / / पनी ते श्लोक लखीने तेणीए पोतानी सखीनने श्राप्यो, तथा हर्षना मोजांनथी प्रेरायेली एवी तेनए ते श्लोक तेणीना पिताने याप्यो. // 70 // एवी रीते धनवानना पुत्रनीपेठे एकना हाथमांथी बीजाना हायमा जतो एवो ते श्लोक प्रयत्नविनाज समुद्रदत्तशेठने काने गयो. // 1 // त्यारे पितापासे बेठेला सुरें ऽदत्ते पण वांचेलो एवो ते श्लोक तेना अनुपम आनंदरूपी समुद्रप्रते चंद्रपणाने धारण करवा लाग्यो. // 7 // हवे ते सुरेंद्रदत्त विचारखा लाग्यो के अहो! था बालिकानी पण केवी बुद्धि ने! के जेथी कया वृछने पण पोतानुं मस्तक नथी धुणावq पमथु! // 73 // खरेखर तेणीनी / * Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- // 7 // तृणानीव सरस्वत्या-स्तरत्युपरि रयः // हृदयग्राहिणस्तस्याः / सुवंश्या एव केचन / / माई // 5 // नूनमेवंविधोक्तीनां / जाजनं सा गुणास्पदं // अस्यामपि न रज्ये चेतन्मत्तः कोऽपरः पशुः // 6 // इति विज्ञाय पुत्रस्या-जिप्रायं तत्कृते कृती // सुगद्रां प्रीतिपूरेण / समुद्रः प्रत्यपद्यत // // श्रुते तस्मिन् व्यतिकरे / सागरो मुमुदेतरां // मन्यमाना सुनद्रापि / फलितं स्वम. पासे था कुदरती बे लोचन शिवाय त्रीजु पण कक लोचन होवु जोश्ये, के जेथी ते बीजानने अगम्य एवा पण अर्थाने जो शके . // 4 // घासनीपेठे सरस्वतीन) ( ते नामनी न. दीनी) उपर उपर तो घणा तरे थे, परंतु तेणीना सारने (तलीयांने ) ग्रहण करनारा तो कोश्क कुलीनज ( नत्तम जातिना वांसज ) होश् शके . // 5 // मांटे खरेखर एवी रीतनां वचनोना जाजनसरखी ते सुजदा गुणोना स्थानरूप में, अने हवे था सुजडामां पण जो हं खु. शी न थनं तो पनी माराथी बीजो कयो पशुसमान ? // 6 // हवे एवी रीतनो पुत्रनों जिप्राय जाणीने कृतार्थ थयेला समुद्रदत्ते हर्षपूर्वक तेनेमाटे सुनसानो स्वीकार को. // 7 // | ते वृत्तांत सांभलवाथी सागरशेठ पण अत्यंत खुशी थयो, अने सुनद्रा पण पोतानो मनोरय फ. Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- नोरथं // // अथ योस्तयोर्गेहे / प्रारें वनिताजनः // कर्म वैवाहिक सर्व / स्फुरवलमंग माईलं | नए || पुनः पुनर्मनोदूती कृत्य निर्वियोर्मियः // वरवध्वोरगुर्दुःख-मंगुल्या गणिता दिनाः // // अथ लमदणे स्नानः / संवीतः शुचिवाससी // विलिप्तश्चंदनैर्दिव्यै-मैमितो मणिपणैः // 1 // आरूढस्तुरगं रि-श्रीकरीवारितातपः // गीतोंगनाभिः परितः / परीतः पौरमंडलैः // // ए२ // सागरस्य गृहदारं / प्राप्तो वातायनस्थया / वरः सखीप्रेरितया / संबन्नाषे सुनद्रया // 3 // लो मानीने आनंद पामी. // // हवे तेज बन्नेने घेर स्त्रीन धवलमंगलसहित विवाहनां कार्यो करवा लागी. // 5 // फरी फरीने मनने दृतरूप करीने परस्पर थाकेला एवा ते बने वर वहना आंगलीए गणेला दिवसो व्यतीत थया. // 70 // हवे लमवखते स्नान करीने, पवित्र व स्रो पहेरीने चंदनथी विलेपन करीने, तथा दिव्य रत्नजडित था नृषणो पहेरीने // 1 // घोमापर चडेलो तथा घणी नत्रीनथी दूर करेल ने सूर्यनो ताप जेणे एवो, नारे बाजुथी जेने स्त्रीनगी त गा रही बे एवो, तथा नगरना लोकोना समूहथी घेरायेलो / / ए // सुरेंद्रदत्त (अनुक्रमे) | सागरशेग्ना घरना दरवाजापासे याव्यो, त्यारे फरुखामां बेठेली तथा सखीए प्रेरेली एवी सु. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Sun Gun Aaradhak Trust
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________ 5 धम्मि- वरराज न राजते / मंबरेण महाधियः // श्रिये च दादयमे वैकं / तदय झास्यते तव // ए // / वद क्रूरं समाख्याति / कं पृथिव्यंबुचारिषु // कं वा प्रसुप्तराजीव-राजीजागरणदामं // 55 ॥अ. त्राहिमकरमिति / प्रोत्तरय्यान्यधत्त सः // कृते प्रतिकृतं कुर्या-दिति वाक्यं स्मरन्निव / / 76 // पृ. बकाः संति भूयांसो / दुर्लजास्तूत्तरप्रदाः / / एकं प्रश्नोत्तरं ब्रूहि / मम त्वमपि धीमति // // श्र नडाए ते वरराजाने कह्यु के, // 73 // हे वरराजा! महाबुझिवानो कई श्रावस्थी शोलता न. थी, फक्त एक चतुराज शोजा करनारी में, थने ते तमारी चतुराश हवे माबुम पडशे. // 4 // तमो कहो के जुचर तथा जलचरनेविषे क्रूर कोने कहे जे ? तथा बीमायेलां कमलोनी श्रेणिने प्रफुल्लित करवाने कोण समर्थ बे ? // 55 // त्यारे तेणे उत्तर यायो के, 'अहिमकर ' अहि एटले सर्प ए चरोमां तथा मकर एटले मगरमन ए जलचरोमां क्रूर , तथा 'अहिमकर ' एटले सूर्य ए कमलोने विकस्वर करे . हुवे ' करेला प्रते सामुं करवू ' एवां वाक्यने याद करना. रनीपेठे सुरेंद्रदत्त पण बोल्यो के, // 6 // पूजनारा तो घणा होय बे, परंतु तेनो नत्तर देनारा दर्लभ होय , माटे हे बुधिवाळी ! तुं पण मारां एक प्रश्ननो नत्तर कहे ? | 09 // अहिं केवो / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि. अपोहतीह संदेह-संदोहं कीदृशो गुरुः // बूकानिहतलोकानां / को वा संजिवनौषधं // 7 // मा घनागम इति प्रश्न-स्योत्तरं प्रवितीय सा // ऊचे दिवापि संकोचं / मजयं गोरुहं कुतः // 7 // सोऽवर मध्ये सरः स्त्रांत्या / मुखं वीदय मृगीदृशः // दिवापि संकुचत्यंभो-रहं चंद्रोदयत्रमात् / / | // 400 / / सापि त्रिदशसाहाय्यात् / पटुंमन्याव्यधादय // वद किं दीयते दीपो / वऋग्री महेल. या // 1 // दूरस्थदयितध्यान-दारदश्रुनिपाततः // जीतया दीयते दीपो / वक्रीवं महेलया ॥शा गुरु संदेहनो समूह दूर करे ? अथवा बूथी हणाएला लोकोने जीवामनारां औषधसर कोण ने? | ए // -- घनागम' एटले जेने घणु झान ने एवो गुरु, तथा वरसाद- श्राववं, एवो न. तर यापीने वळी ते बोली के दिवसे पण कमल शामाटे संकोचाय ? | | सुरेंद्रदत्ते क. ह्यु के तळावमा स्नान करती युवतीनुं मुख जोश्ने चंद्रोदयना ब्रमथी दिवसे पण कमल संकोचा. य . // 400 / / पनी देवनी सहायताथी पोताने पंडित मानती सुभद्रा पण बोली के तमो कहो के स्त्री वांकी डोक राखीने शामाटे दीवो थापे ? // 1 // देशांतर गयेला (पोताना ) खा. मीना ध्यानधी खरतां बांसु पडवानी बीकथी स्त्री वांकी डोक राखीने दीवो आपेले. // 1 // एवी P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun "Gun Aaradhak Trust
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________ . सार्थ धम्मि- एतां प्रत्युत्तरय्यैवं / तुरगादुत्तरन्नसौ / मेने सुयोषिलाजेन / स्वं विश्वोपरिवर्तिनं // 3 // तत्वतः / माई स्तदवोनंग्या / सिघायप्रक्रियो वरः // अयं श्वश्रूकृतमपि / प्रत्यैवष्यवहारतः / / 4 // ततः सर्वाः गशृंगार-सुनगां कमलामिव // अच्युतश्रीरुपायंस्त / कणे सब्जदणे स तां // 5 // धनकोटीर. ___7 | सौ लेजे / श्वशुरात्करमोचने / करस्य ग्रहणादाब्यी-नवंतं पति हसन् // 6 // महोत्सवैः समं वध्वा / समेतः स स्ववेश्मनि / अभुक्त सततं जोगान् / मनुष्योऽप्यमरोपमान् // 7 // पूर्व परीरीते तेणीने उत्तर भापीने घोडापरथी नतरतो एवो ते उत्तम स्त्री मळवाथी पोताने जातमांसवधी श्रेष्ट मानवा लाग्यो. // 3 // तत्वथी तो ते ते वचनभंगीथी थयेल ने अयक्रिया जेनी ए. वा ते वरराजाए सासुए करेला बऱ्याने पण व्यवहारथी स्वीकार्यु. // 4 // पठी सर्व शरीरे शृंगार करवाथी मनोहर लक्ष्मीसरखी ते सुभद्राने अखमित शोजावाळो (विष्णुनी शोजावाळो ) ते स. रेंदत्त उत्तम दणे परण्यो. // 5 // कर लेवाथी धनवान थता राजानी पण हांसी करता एवा ते. णे ससरापासेथी हस्तमोचनसमये कोडोगमे धन मेळव्यु. // 6 // पड़ी महोत्सवपूर्वक स्त्रीसहित पोताने घेर अावीने मनुष्य बतां पण ते देवसरखा गोगो हमेशां जोगववा लाग्यो. // 7 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि-दितान्योऽन्य-कलाकौशलयोस्तयोः // विजिदे न मनः प्रीति-तंतुस्यूतमिव कचित // 7 // ए- / . सार्थ कचितौ कदाचित्तौ / समस्यान्योक्तिनगिनिः // जल्पाको जीवचारत्यो-भ्रमं कस्य न तेनतुः // | // // कदापि स्वादयंतौ तौ / मिथः सारकथारसं // ध्राताविव न जझाते-ऽशनवेलां गतामपि // 10 // अन्योऽन्यजीवितैश्वर्य / पणीकृत्य कदाचन // तो प्रीतिसारिकापाशः / सारिपाशैरदीव्यता // 11 // एवमन्योऽन्यकेंलीभिः / प्रियप्रेम्णा च मोहिता // सुजन तदिसस्मार / यत्प्रपन्नं जिनामहेलेथीज परस्पर कलाकौशल्यनी परीक्षा करवाथी तेन बन्नेनुं मन जाणे प्रीतिरूपी दोराथी सीवेवं होय नहि तेम कोश पण बाबतमां जूठं पडयु नहि. // 7 // कोश्क वखते एकमनवाळा तेन ब. ने समस्या तथा अन्योक्तिथी बोलताथका कोने बृहस्पति तथा सरस्वतीनो ब्रम न जपजाक्ता? ॥णा कोश्क वखते परस्पर उत्तम कथाना रसनो स्वाद लेता एवा तेन बन्ने जाणे धरा गया होय नहि तेम वीती गयेली भोजनवेळाने पण न जाणवा लाग्या. // 10 // एवी रीतनी परस्पर की. डाथी तथा स्वामिना प्रेमयी मोहित थयेली सुनडा जे जिनेश्वरप्रनुपासे नियम लीधो ढतो ते विसरी गइ. // 11 // घणा काळसुधि वियोग सहन कर्याबाद मळेला गोगोमां लोलुप थयेली। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- तः // 12 // चिरं सोढवियोगा सा / प्राप्त गोगेषु लोबुपा / / दूरेऽस्तु चैत्यं नासीत् / प्रतिमा गृ. हगा अपि // 13 // कदलीव फलं भोग-सुखं स्वादु-मनोहरं / / संदर्य दीयते नृणां / प्रायशः | पुण्यन्नावना // 14 // समुद्रोऽथ समुद्धृत-जराजर्जरयोवनः / / मनःसमदमदाम-मतिरेवं व्यगा वयत् // 15 // मया श्रियोऽर्जनोद्भोगा--दर्थकामो कृतार्थितौ / / अथैतद्दयमूलस्य / धर्मस्यावतरो मम // 16 // प्रयाणेऽप्यल्पकालीने / जनाः कुति सूत्रणां / परलोकप्रयाणे किं / निश्चिंता सुनद्रा जिनमंदिरे जq तो दूर रहो, परंतु घरमा रहेली जिनप्रतिमाने पण नमवान लागी. // 13 // स्वादिष्ट तथा मनोहर जोगोना सुखरूप) फल मल्याबाद केळनीपेठे माणसोनी पुण्यनावना पायें करीने नाश पामे . // 14 // हवे घमपण याववायी जेनुं यौवन नष्ट थयेधुंडे एवो ते बुद्धिवान् समुद्रदत्तशेठ विचारवा लाग्यो के, // 15 // में लक्ष्मी कमाइने तथा नोगवीने अर्थ तथा कामने तो कृतार्थ कर्या, हवे ते बन्नेना मूलरूप धर्म करखानो मारो अवसर . // 16 // स्वरूप कालना देशाटनमाटे पण लोको तैयारी करे , त्यारे परलोकना प्रयाणमाटे प्राणीजए शामाटे निश्चिंत रहे, जोश्ये ? // 17 / / सामान्य शत्रुना डरथी पण माणसो सुखे निद्रा करता नथी; P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- हंत जंतवः // 17 // सामान्यरिपुनीत्यापि / न निशांति सुखं जनाः // नित्यं मृयुरिपुः पार्श्वे / / सार्थ मूढाः स्वस्थास्तथाप्यहो // 17 // निधास्येऽहमतो गेह-भारं नारदमे सुते // श्रादास्ये चाहतीं दी. दां / दूतीमिव शिवश्रियः // 15 // धाम व्योमेव तित्याः / स्वं व्यापार स सूनवे // ददाविंडरि. वोद्योतं / दिनेशाय दिनोदये // 20 // स्वयं पुनर्घनधन-व्ययादव्ययसौख्यदं // महेन्यादिव ज. | ग्राहा—ाग्रही रत्नत्रयं गुरोः // 21 // तत्वा सुदृढकमैधा-मालाकालानलं तपः // समाधिमृत्यु. अने मृत्युरूपी शत्रु तो हमेशां पासे रहेलो ने, तो पण मूढ माणसो तो नीरांते बेला बे. // // 10 // माटे हुं तो हवे जार नपामवाने समर्थ एवा आ पुत्रने घरनो भार सोपीश, अने मो. दालमीनी दूतीसरखी श्रीपरिहंतप्रभुनी दीदा लेश. // 15 // श्राकाशने तजवानी श्वावाळो चंद्र जेम पोता- तेज सूर्यने थापे , तेम पोतानुं घर तजवानी बावाळा समुद्रदत्ते दिनोदय समये पोतानो व्यापार पुत्रने सोंप्यो. // 20 // पड़ी दीदा लेवामाटे आग्रही एवा तेणे पोते घ. एं धन खरचीने शाहुकारपासेथी जेम तेम गुरुपासेथी अदाय सुख देनासं त्रण रत्नो ग्रहण क.. यी. // 1 // पड़ी दृढ कर्मरूपी काटनी श्रेणिने (बाळवामाटे) कल्पांतकालना अनिसरखो तप तपीने | PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________ सार्थ धम्मि- समाधिनाध्यासा-मास वासवपत्तनं ॥२शा अमित्रदमनस्ताते / जाते परजवावगे / बनार लीलया राज्य-नारं जंजारिविक्रमः / / 3 / / कृतज्ञः स्वप्रतिज्ञात-मसौ ध्यायन सदा हृदा // सुरेंडं सुहृदं ""| श्रेष्टि-पदवीं समलंगयत् // 24 // अनुत् प्रभुप्रसादेऽपि / नायं न्यायविवर्जितः॥ राजमानोऽप्यमए१ | र्यादो / यादोनायो भवेत् किमु // 25 // सुभद्रा गर्तृसंमान-मसीमानमुपेयुषी // कालं निनाय देवीव / धर्मकर्मपराङ्मुखी / / 26 // अथ तेऽचिंतयनंत-यंतराश्चैत्यवासिनः // अहो माया सभः पूर्वक मृत्यु पामी ते इंजना नगरमां गयो. // 22 // पनी इंडसरखां पराक्रमवाळो अमित्रदमन कुमार पण पोतानो पिता मृत्यु पाम्यावाद लीलापूर्वक राज्यजार धारण करवा लाग्यो. // 53 / / पजी हमेशां पोतानी प्रतिज्ञा हृदयमां विनारता एवा तेणे पोताना मित्र सुरेंऽदत्तने नगरशेउनी पदवी थापी. // 24 // एवी रीते राजानी कृपा बतां पण ते सुरेंद्रदत्त न्यायरहित थयो नहि. के. मके चंद्रना सन्मानवाळो एवो पण समुद्र शुं मर्यादारहित थाय ? // 25 // जरिना अत्यंत स. न्मानने प्राप्त थयेली सुनद्रा तो धर्मकार्य विसरी जश्ने देवीनीपेठे पोतानो समय निर्गमन करवा लागी. // 26 / / तेथी ते चैत्यवासी व्यंतरो मनमां विचारखा लाग्या के अहो! सुगड़ा केवी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus!
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- द्रायां / यदेवं वंचिता वयं // 27 // यं जिनप्रसादेन / सावितस्वप्रयोजना // नोगाप्या व्यस्मरसाथ जन्मांतरितेव निजं वचः // 20 // नक्तिः दूरेऽस्तु चै यस्य / कुसुमागरणादिका / / गतरोगेव | वैद्यस्य / नासौ नतिमपि व्यधात् / / 25 // यद्यपि प्रतिपद्येयं / पुत्रीति परिणायिता // तथापि पि. तृवत् किंचि-जिंदणीया प्रमादिनी // 30 // न्यरुंचनथ संतृय / ते तस्या गर्नसंग // लमतः पचमा दुर्निग्रहाः पंचग्रहा श्व / / 31 / / तदस्तु नास्ति लोकेऽपि / नासीयन्मंदिरे तयोः // एकपटी नीवमी ! के जेणीए आपणने भावी रीते उग्या. // 27 // जिनेश्वरप्रचुनी कृपायी पोतानं कार्य साध्याबाद जोगोनी प्राप्तिथी जाणे जन्मांतरमां गश् होय नहि तेम ते पोतार्नु वचन विस री ग. // 20 // जिनमंदिरनी पुष्पा वृषण आदिकथी शक्ति तो दूर रही, परंतु रोग गया. बाद जेम वैद्यने तेम तेणी प्रभुप्रतिमाने नमस्कार पण करती नथी. // 25 // जो के तेणीने प्रापणे पुत्री जाणीने परणावी , तो पण हवे प्रमादी थवाथी पितानीपेठे तेणीने कइंक शिदा पण आपवी जोश्ये. // 30 // एम विचारी लामथी पांचमा (एवा) पांच दुष्टाहोनीपेठे तेनए एकठा थने तेणीनी गर्नोत्पत्ति रोकी राखी. // 31 // मनने थानंदकारी एवा एक बालकनी क्रीडाना | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________ ___ सार्थ धम्मि-| के मनःप्रियं मुक्त्वा / बालकेलिकुतूहलं // 31 // निशावसाने सान्येा-हदारमुपेयुषी // प्रा. / .. सामवस्करं शोधुं / कांचन स्त्रियमैदत // 33 // स्कंधस्थं दधतीं बाल-मेकमंगुलिगं परं / वि. | व्रतीमितरं कुदौ / लतां सुफलितामिव / / 34 // युग्मं // तस्या व्यापारवंध्याया। इति चिंता तदीदाणात् // निरौषधाया अदीण / श्व व्याधिरवर्डत // 35 // तनया यस्य यांसः / स स्यात प्रायेण निर्धनः // धनं यस्य न तस्यामी। विग्विधे तव चेष्टितं / / 36 // जी वाकनीयत्वात् / / कौतुक शिवाय तेनने घेर ते वस्तु नहोती के जे दुनियामां पण नहोती. // 32 // एक दिवसे | परोढीये ज्यारे ते घरना बारणापासे बेठी हती त्यारे त्यां (शेरीमां) कचरो साफ करखामाटे श्रावेली कोइएक स्त्रीने तेणीए जो. // 33 // तेणीए पोताना एक बाळकने खने चडायो ह. तो, बाजाने बांगलीए वळगाड्यो हतो, तथा त्रीजाने काखमां तेड्यो हतो, एवी रीते फळेली लं. तासरखी ते स्त्रीने तेणीए जो. // 34 // औषधविनानी स्त्रीनों नहि नष्ट थयेलो रोग जेम वृ. पामे, तेम व्यापारविनानी एवी सुजडाने तेणीने जोवाथी यावी रीते चिंता जत्पन्न थइ // // 35 // जेने घणा पुत्रो होय ते पायें निर्धन होय, अने जेने धन होय तेने पुत्रो न होय. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- कष्टं स्त्रीजन्म सर्वदा // तत्रापि मम वंध्यात्वं / दग्धोर्ध्व स्फोटकायते / / 37 // यथा सरो विना / मानीरं / यथा वीरं विरूथिनी // प्रासादश्च विना. केतुं / विना हेतुं यथा वचः // 30 // यथा नृपो विना न्यायं / विना चायं यथा व्ययः // चर्विना यथैवास्यं / लास्यं तूर्य विना यथा // 35 // ए। यथा वदो विना हारं / सदाचारं विना गुरुः / / तथा न मे गृह चित्ता-नंदनं नंदनं विना // 40 // न मुदे मम देव्योऽपि / या नित्यमनपत्यकाः // धन्यानां धुरि मन्येऽहं / कृमिलाः कुर्कुटीरपि // माटे हे विधि! तारी ते चेष्टाने धिक्कार बे. // 36 // बीकणपणायी तथा शंकाशीलपणाथी स्त्री. नो अवतार हमेशां दुःखदाश् , तेमां पण मने जे वंध्यापणुं प्राप्त थयुं बे ते दाझ्यापर फोडलाजेवू थयु . // 37 // जेम जलविना सरोवर, जेम सुभटविना सेना, ध्वजाविना देवमंदिर, कारणविनानुं बोलवू, // 30 // न्यायविना राजा, भावकविना खरच, चक्षुविना मुख, वाजित्रविना ना. टक, // 3 // हारविना वदाःस्थल, तथा सदाचारविना जेम गुरु तेम चित्तने आनंद करनारा एवा पुत्रविना मारुं घर शोलतुं नथी. // 40 // जेन हमेशां संतानरहित ने एवी देवीज पण मने हर्षदायक थती नथी, परंतु घणा संतानवाळी एवी कुकमीनने पण हुँ यति धन्य मानें बं. // 1 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि| // 41 // अगायाः सुजडेति / मम नाम वितन्वती // पितृस्वसापि सा मन्ये / स्खलिता नाम / साथै | कर्मणि // 45 // अशिश्वी वृधिकार्येषु / सुनद्रामपि नामतः // रिक्तां तिथिमिवाशेषो / जनो मां दूरयिश्यति // 3 // एवं विकल्पदावामि-दग्धनिवृतिपादपा // पादपातेन मंदेन / सौधमध्यमियाय सा // 44 // नदियाय दिनेशोऽथा-नेशनशं तमो वि // तस्या श्रास्येऽनप य-दुःखोवं ववृधे पुनः // 45 // प्रसस्रुस्तन्मुखाचैत्य-निःस्वा निःश्वासवायवः // अंतर्दीप्तांगचिंता-चि | हं धारं बुं के अनऊ एटले अमंगलरूप एवी जे हुँ तेनुं सुजता नाम पाडनारी मारी ते फइ पण नाम पाडवामां नली होय एम जणाय . // 4 // वधामणीना कार्यमां निरुपयोगी एवी नद्रा नामनी रिक्ता तिथिनीपेरे मने सर्व लोको दूर करशे. // 43 / / एवी रीतनां विकल्पोरूपी दावा नलथी पोताना यानंदरूपी वृदना बळी जवाथी मंद मंद पगलांथी ते घरनी अंदर श्रावी. // 4 // एवामां सूर्य नग्यो, तथा रातिसंबंधि अंधकार नष्ट थयो, परंतु तेणीना मुखपर वंध्यापणाना दुःख. थी उत्पन्न थयेलो अंधकार वृद्धि पाम्यो. // 45 // अंतरमा सळगेली पुतनी चिंतारूपी चिताना परिचयवाळा जाणे होय नहि तेम तेणीना मुखथी ना निःश्वासना वायु निकळवा लाग्या. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- तापरिचिता व // 46 // न सस्नौ न पपौ नापि / जघास न जहास च // जातसर्वस्वनाशेव / / मा केवलं प्ररुरोद सा // 4 // सा मुक्तसर्वव्यापारा / नंदनादरसंगता // विवाहात्पुत्र-वियोगिः: न्यपि योगिनी // 4 // नृपांतिकात्तदायातः / श्रेष्टी तां वीक्ष्य तादृशीं / संक्रांतं हृदयादशैंः / व. हंस्तदुःखमन्यधात् // 45 // दुःख किमद्य चित्तेऽत्रु-दयि ते दयिते वद // येन धसे तमोग्रस्त -शीतत्विषिसखं मुखं // 20 // अयं च दैवोपालंग-पूर्वमाघूर्णयन शिरः // यतीव गेहव्यापार॥ 46 // जाणे पोतानी सर्व मिटकत नाश पामी होय नहि तेम ते स्नान करती नथी, जल पी. ती नथी, खाती नथी, तथा हसती नथी, परंतु केवल रड्याज करे . // 5 // तजेल में सर्व / कार्य जेणीए एवी, तथा पुत्रना थादरमांज (नंदनवनना यादरमांज ) लीन थयेली तथा विलदादृष्टिवाळी (अदृश्यरूपवाळी) अने पुत्रना वियोगवाळी बतां पण ते योगिनीसरखी थइ || राजापासेथी बावेला शेठे तेणीने तेवी रीतनी जोश्ने (पोताना) हृदयरूपी आरीसामां दाखल थयेला तेणीना शुःखने धारण करतांथकां कडं के // 4 // हे प्रिये ! आजे तारा हृदयमां शं / दुःख थयुं जे? ते कहे, के जे सुःखथी अंधकारवडे ग्रस्त थयेला चंद्रसरखा मुखने तुं धारण करे -- -.. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________ सार्थ। धम्मि-| वंध्यः किं ते परिबदः / / 51 // यन्निदाघोदधिप्रायं / प्रागनतारवैः // तज्जातमधुना मौन-। | व्रतधारीव धाम ते // 55 // योग्योऽस्मि मां स्वदुःखोना-मुक्त्वा कुरु विनागिनें / युज्यते ह्येक | | चित्तानां / न नेदः सुखदुःखयोः // 23 // अथ कळालकालाश्रु-जलमार्जनतो निजं // वासो ए वितन्वती नीली-रक्तं व्यक्तं जगाद सा // 14 // दुःखं दयित मा प्रादीः / स्वकार्याण्येव साधय | // फुःखं स नाम सहतां / यः पापं प्राग्नवेऽकरोत् // 55 // यदशक्यप्रतीकारं / देवैः किमुत मा. | . // 50 // वळी कर्मने उपालंज आपवापूर्वक पोताना मस्तकने धुणावतो एवो तारो या परि वार यतिनीपेठे घरना कामकाजमां केम शून्य थयेलो ? // 51 // जे तारं घर पूर्व माणसोना कोलाहलथी जनाळाना समुद्रसरखं गाजी रह्यं हतुं ते बाजे मौनव्रत धरनारनीपेठे केम सूनुं थ. येवं? // 55 // हं पण योग्य बु माटे तारुं दुःख कहीने मने तेनो नागीदार कर ? केमके एकमनवानने सुखदुःखनो नेद होवो जोश्ये नहि. // 53 // हवे काजळवाळां श्याम सुनने युज्वाथी पोतानी साडीने काबरचीतरी बनावती एवी ते सुभद्रा प्रकटरीते बोली के, // 54 // हे स्वामी! आप मने दुःखनी चात पूगे नहि, थाप तो पोतार्नु कार्यज करो? दुःख तो तेजस PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि| नवैः // श्रोतुर्वृथा व्यथाकारि / तद्दुःख किं प्रकाश्यते / / 56 // पुनरत्याग्रहात् पृष्टा / सा पत्युर- / - सार्थ नपत्यतां // कथंचित् कथयामास / बीज दुःखमहीरुहः // 57 // आवामेकाकिनावेव / परिवारे महत्यपि // दृक्पाटवेऽपि जात्यंधा-वेव देव सुतं विना // 27 // अपुत्रस्य शुजालोका / न संती| ति श्रुतेर्वचः // तत्ते पुत्रमुखालोकं / विना लोकवयं हतं // 27 // विक्राम्यसि विपुत्रस्त्वं / यामु. हन कर जोश्ये के जेणे पूर्वनवमां पाप करे होय. // 55 // जे दुःखनो उपाय देवो पण करी शके तेम नथी त्यारे माणसोनु ते शुं कहेवू? माटे एवी रीतनुं सांजळनारने फोकट दुःख करनारं वचन शामाटे प्रकाशवु जोश्ये ? // 56 // सारे फरीने अति आग्रहथी पूवाथी केटलीक महेनते तेणीए (पोताना) दुःखरूपी वृदाना बीजसरखं ( पोतार्नु ) धनपत्यपणुं नरिने कही बताव्यु. // 27 // महोटो परिवार बतां पण आपण बन्ने पुत्र विना एकाकीज गये, अने ते. थी यांखो जतां पण जन्मांधज जीये. // 27 // पुत्ररहित मनुष्यनो परलोक कल्याणकारी थतो नथी एम श्रुतिनुं वचन , माटे (हे स्वामी! ) पुत्रनुं मुख जोयाविना थापना बन्ने लोको नष्ट थयेला जाणवा. // 25 // वळी हे स्वामी ! पुत्ररहित एवा श्राप जे लक्ष्मीने उपार्जन करवामाटे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________ "धम्मि- पार्जयितुं श्रियं // सापि नारीव निर्माथा / नंदिष्यति कियत् प्रिय / / 60 // त्वत्तः पश्चाज्जर जुते कीर्तिश्चाहं च ते प्रिये // क्रमिष्यावः क्रममपि / पुत्रालंबं विना कथं // 61 // यत्नतो यत्त्वया निन्ये / वृधि तत्त्वदनंतरं / भवनं च धनं चान्ये / चोदयंति तनयं विना // 6 // इति तदाग नदीस्रोतो-धूतधीस्मिपर्वतः // श्रेष्टी जगाद तां युक्त-मुक्तमेतत्त्वया प्रिये // 63 // जानेऽहमपि | यददुःखं / गृहिणां नास्त्यतः परं // परं प्रयते देवा-यत्ते कार्ये नरैः कथं // 64 // यतिष्यते तथा | यत्न करोगे, ते पण स्वामीरहित स्त्रीनीपेठे केटलो वखत ननी शकशे? // 60 // वळी हे स्वा. मी! आपनी पाळ यापनी प्रियारूप एवी कीर्ति बने हुं घडपणने लीधे पुत्ररूपी बालंबनविना एक पगडं पण शीरीते चाली शकीशुं? // 61 // वळी यापे यत्नथी जे था घर तथा धन वधा. युबे, ते पुत्रविना थापनी पारळ बीजा नोगवशे. // 6 // एवी रीतनां तेणीनां वचनरूपीनदीना प्रवाहथी नष्ट थयेल ने धैर्यरूपी पर्वत जेनो एवा ते शेठे तेणीने क{ के हे प्रिया तें या युक्त कहे . // 63 // हुँ पण जाणुं बुं के गृहस्थीनने बाथी बीजू वधारे दुःख नथी, परंतु दै. | वाधीन कार्यमां मनुष्य शीरीते समर्थ थर शके ? // 64 // तो पण हे चंद्रमुखि! हं पुत्रमाटे प्र. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि पीद-वदने नंदनेबया // बलवत्प्राक्तनं कर्म / बलवान सोऽप्युपक्रमः // 65 // कर्मणा ग्लानतां मानीतो / न वैद्यैः किं चिकित्स्यते / मंत्राद्यैः स्यान्न किं धीमान / जडीबतोऽपि कर्मणा // 66 // कर्मणा पातितो नद्यां / तार्यते तारकैन किं // नात्मा किं कर्मनिर्बको / मुक्तौ धर्मेण नीयते / / | in 67 / / फलं प्रलंबधुशिरोऽधिरोहि / निरीक्ष्य ताम्यंत्यलसाः प्रकृत्या // तदेव कृत्वा कुटिका (ल. कुटी) प्रयोगं / गृहंति ये वीर्यधना जनाः स्युः॥णाश्त्याश्वास्य प्रियां प्रीति-वचनैरुन्मनायितां // श्रे यत्न करीश, केमके जेम पूर्वन कर्म बलवान में तेम उद्यम पण बलवान बे. // 65 // जे मा. स कर्मथी रोगी थयो होय ते शुं वैद्योथी साजो थतो नथी? तेमज जे कर्मयी मूर्ख होय ते पणं शुं मंत्रयादिकथी बुध्विान थतो नथी? // 66 // कर्मे नदीमां पाडेलाने शुं तारुन नथी तारी शकता? तेमज कर्मे बांधेला यात्माने शुं धर्म मुक्तिमां नथी ले जतो? // 67 // नंचां वृदनी टोचंपर रहेलो फलने जोश्ने स्वभावथी बालसु माणसो खेद पाम्या करे ने, परंतु जे मा. सो उद्यमवान ने तेन लाकडीनो प्रयोग करीने ते लहे . // 60 // एवी रीते खेदित थयेली प्रियाने मीगं वचनोथी शांत करीने शेठे जे जे. कई सांगत्यु ते ते सघg पुत्रमाटे कर्य. P.P. Ac. Cunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि-टी शुश्राव पुत्रार्थः / यत्तत्सर्वं विनिर्ममे // 6 // पुरे तांगमझानी / युगंधरमुनीश्वरः // नवांमा जोधिपतज्जंतु-जातपोतायितक्रमः / / 70 // तं सिषेविषवः पौराः / प्राचलनेकया दिशा। न ह्यली नां गतिर्निन्ना / जुमे कुसुमिते सति / / 11 // श्रेष्टी सुरेऽदत्तोऽपि / रयमध्यास्य सप्रियः // अवः | दिष्ट मुनि दिष्ट-त्रितयझमुपेत्य तं // 7 // नाम नाम निषमेषु / नांगरेषु निधिर्धियां // वितेने देशनां साधु-र्माधुर्याधरितामृतां // 13 // जो जो जव्या जवारण्ये / ब्रमता भविना भृशं // // 6 // // एवामां ते नगरमां संसारसमुद्रमा पमता प्राणीनने वहाणसरखा ने चरणो जेना एवा. युगंधर नामना झानी मुनिराज पधार्या. // 70 // तेमने सेववानी बावान नगरना लोको एक दिशाए चाव्या, केमके वृक्षपर ज्यारे पुष्पो आवे त्यारे जमरानतुं अन्य स्थले गमन थाय नहि. // 11 // ( ते वखते.) सुरेंददत्ते पण प्रियासहिन रथमां बेशीने तथा त्यां आवोने त्रिकालज्ञानी एका ते मनिराजने वांद्या. // 72 // पड़ी नमी नमीने नगरना लोको बेगवाद ते बुद्धिवान मु. नि.माधुर्यथी अमृतने पण दूर करनारी देशना देवा लाग्या. // 13 // हे जव्यलोको मानव रूपी वनमां अत्यंत भमतो प्राणी ( मुश्केलीथी) अमृतरससरखो मनुष्यजन्म मेळवी शके है। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मिः प्रासाद्यतेऽमृतरस-समानों मानवो भवः // 14 // तत्पाली केनचिन्नाना-दर्शनाममध्यगः / / मा नाग्येन सदयते जैनो / धर्मः कल्पडमोपमः // 35 // बोधिमूलं कृपा स्कंधः / शाखा दानादयो गुणाः // पत्राणि संपदः कीर्तिः / पुष्पं यस्य फलं शिवः // 16 // मिथ्यात्वतिमिरध्वस्त-विवेक 105 | मयलोचनाः // दुरीजवंति किंपाक-बुध्या तस्माकुबुष्यः // 7 // श्रुत्वेति देशनां लोके / ग. ते श्रेष्टी तमस्तुवत् // लोकद्वयातिनिकोऽपि / नास्ति त्वदपरो भुवि / / 77 // यया धर्मकथानि // 14 // ते वनना निकुंजोमां विविध दर्शनोरूपी वृदोनी बच्चे रहेला कल्पवृदासरखा जैनधर्मने कोश्कज भाग्यथी जो शके जे. // 79 // ते वृदनुं सम्यक्त्वरूपी मूल ने, दयारूपी थड ने, दा. नयादिक गुणो शाखान , संपदारूपी पत्रो , कीर्तिरूपी पुष्प ने तथा जेनुं मोदारूपी फल जे. // 76 // परंतु मिथ्यात्वरूपी अंधकारथी जेनां विवेकरूपी चक्षुन नष्ट थयेला बे एवा कुबुधिन तेने फेरी वृक्ष मानीने तेथी दूर नाशता फरे बे. // 7 // एवी रीतनी देशना सांजलीने लो. | को गयाबाद सुरेंडदत्तशेठ ते मुनिनी स्तुति करखा लाग्या के, हे जगवन् ! या पृथ्वीपर बने लो. | कोनां दुःखोनो नाश करनार थाप शिवाय बीजो कोई नथीः // 3 // जेम बाप धर्मोपदेश दे. PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust .
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________ साथै | धम्मि- स्त्वं / परलोकहितोऽनवः / / नक्त्वा तथा सुतोपायं / देहि मे हितमैहिकं // // निश्चितं पु. | एयवानस्मि / यत्प्रापं तव दर्शनं / / त्वां ह्यपुण्या न वीदंते / कौशिका व नास्करं / / 70 // वि. | द्यमानापि विद्या चेद्-दुःखना नोपयुज्यते // समानेऽनुपकारित्वे / तत्ते मे च किमंतरं // 1 // | तं प्रत्यूचे ततः साधु-रहो सावद्यमीदृशं / न बमहे महेन्यामी। वयं धर्माधिकारिणः // 2 // साधवः शमयंत्यति–मिति सत्यैव वाग्यतः // एषां सा कापि शिदा या / लोकदैताधिनाशिनी // इने परलोकना हितकारी थया गे तेम पुत्रोत्पत्तिनो उपाय कहीने मने था लोकर्नु हित पण थापो? // 70 // खरेखर हुं पुण्यवान बु, केमके मने थापनुं दर्शन प्राप्त थयुं बे, वळी धुवको जेम सूर्यने तेम आपने पुण्यरहित माणसो जो शकता नथी. // 70 // ती विद्या पण जो दुःखीनने उपयोगी न थाय तो पनी तुल्य अनुपकारीपणुं थवाथी यापमां बने मारामां शुं तफावत रह्यो ? // 1 // ( ते सांजळी ) मुनिराजे तेने कडं के हे शेठजी! अमो यावं आरंनयुक्त कही शकीये नहि, केमके अमो तो आ धर्मना अधिकार छीये. // 2 // साधुन सुख शांत करे ने ए वात सत्य बे, परंतु तेन को एवी शिखामण पापी शके के जे बन्ने लोकनां खो. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________ .. 104 धम्मिः // 3 // प्रास्तामपत्यं त्रैलोक्या-धिपत्यमपि दुर्घटं // न यतः प्रयतस्त्वं तं / धर्ममेव विधेहि चोः मा // // देवता पुर्बला यत्र / यत्र कुंग पराक्रमाः // मंत्रादिजिरसाध्यं यत् / तधर्मेणाशु साध्य ते // 6 // ये सुखानि समीहंते / नरा धर्मप्रमघराः // जमा बीजमनूपानाः। फलाय स्पृहयंति ते // 7 // व्यवसायं विना नार्थो / न श्रुनार्यो धियं विना / / न वारिदं विना वृष्टि-न पुष्टि जने विना || G || योधं विना न संग्रामो / न ग्रामो मानुषं विना / / न सद्भावं विना सख्यं ।न सौ. ने नाश करनारी होय. // 3 // संतान तो एक बाजु रह्यां, परंतु जेथी त्रणे लोकनु स्वामीपाएं मेलवq पण अशक्य नयी एवो धर्म तुं प्रयत्नपूर्वक कर? // 01 जे कार्यमां देवोर्नु पण चा. ली शक्तुं नथी, ज्यां उद्यम पण निष्फल जाय , तया जे मंत्र श्रादिकथी पण साधी शकातं नथी ते ( सघर्बु ) धर्मयी जलदी. साधी शकाय . // 76 / / जे माणसो धर्ममां प्रमाद। रहीने सुखोने इलेने ते मर्यो बीज वाव्याविना फलनी श्वा राखे . // 7 // व्यापारविना धन मलतुं नथी, बुधिविना शास्त्रोनो अर्थ मळतो नथी, बादळांविना वरसाद थतो नयी, तथा नोजन / विना पुष्टि थती नथी, // 7 // सुजटविना युछ यतुं नथी, मनुष्यविना गाम वसतुं नथी तथा| P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- ख्यं सुकृतं विना // जय // चैत्ये पूजा गुरौ शक्ति-र्दीने दानं जपस्तपः / / सर्वाधिदुर्गनंगाय / पं.। सार्थ | चैते वज्रमुजराः // 70 // प्रकृत्या निर्मलः श्रेष्टी / तां प्रजाकरजामिव // शिदां प्राप्य मुनेर्जज्ञे / / सूर्याश्मेवाधिकातिः // 1 // चैत्यपूजां मुनिमुखा-तदाकार्य सुनद्रया / / कन्यात्वे यत्पतिझातं 105 / तत् स्वामिव सस्मरे // 7 // दध्यौ च ही प्रमादेन / जाताहं स्ववचच्युता // विवाहबद्ममदिरा-पानचोरितचेतना // 73 // न जल्पतामपि तया / जिये मम नृणामृणं // बजटपतोऽपि दे. सत्य जावविना जेम मित्रा थती नथी तेम पुण्यविना सुख मळतुं नथी. // // जिनेश्वरप्रभुनी पूजा, गुरुनी जक्ति, दीन लोकोने दान, जप तया तप ए पांचे सर्व दुःखोरूपी किल्लाने तो वामां वज्रना मुझरसरखां . // 50 // वजावधीज निर्मल एवो ते सुरेऽदत्तशेठ सूर्यनी कांति सरखी मुनिनी ते शिखामण मेलवीने सूर्यकांत मणिनीपेठे अधिक कांतिवाळो थयो. // 1 // वळी मुनिना मुखथी जिनपूजार्नु वृत्तांत सांजलीने सुनद्राए कन्यापणामां जे प्रतिज्ञा करी हती तेने ते स्वमनीपेठे याद करवा लागी, // 2 // तथा विनारवा लागी के विवाहना मिषरूपी म दिरापानथी जान ली जश्ने में मारुं वचन पाव्यु नथी. // 53 // नहि बोलता एवा पण देः P.P.AC.'Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust -
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________ 106 धम्मि वस्या-ऽनंतसंसारकृयथा // ए // पततः पर्वतस्याध-स्तैरधारि स्वमस्तकं // देवदाये विपर्यासो।। | यैरकारि प्रमादिनिः // 55 // यां जिनस्य प्रतिझाया-ऽवझामझानतो व्यथां // तस्या वंध्यत्वमे तन्मे / विषवल्लेखिांकुरः // 6 // विधाय जक्तिं चैत्यस्य / मया गोक्तव्यमद्य तत् // इति ध्यात्वा सहालीजिः / सा ययौ जिनमंदिरं / / 57 // तत्र मुग्धमुखी.बाला / पितृनिव जिनेश्वरान // स्व मागः दमयामास / पूजयमास चाहता // 9 // दमयित्वाखिला श्चैत्य-वासिनो व्यंतरानपि / वनुं करज जेवू अनंत संसार करनारं थाय , तेवू बोलता एवा पण माणसोनुं करज मने न. यानक लागतुं नथी. / / ए // जे प्रमादी माणसोए देवना करजनो विपर्यास करेलो , तेनए पडता पर्वतनी नीचे पोतानुं मस्तक धरखासरखं कयु . // 55 // प्रतिझा लेश्ने पण में अझा. नथी जिनेश्वरप्रभुनी जे अवज्ञा करेली , तेथी फेरी वेलडीना अंकुरासरखं था वंध्यापणुं मने प्राप्त थयुं . // 56 // माटे बाजे तो मारे जिनप्रतिमानी नक्ति कर्याबादज नोजन करवू , ए. म विचारीने ते सखीनसहित जिनमंदिरे गश्. / / ए // त्यां नष्क बालिका जेम मावापपासे तेम ते जिनेश्वरपासे पोतानो अपराध खमावीने आदरपूर्वक तेमनी पूजा करवा लागी. // एGI Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि| सा संजनितपुरेव / तत्र तेने महोत्सवं // एए / अथारुह्य रथं जा / प्रहितं गृहमागता / बु. लुजे हृष्टहृदया / समं परिजनेन सा // 500 // तदादि विधिना सूत्रो-क्तेन निजिन जिनं / न पवैणवमानर्च / श्चेष्टी सूविचः स्मरन् // 1 // नित्यं गुरुपदांजोज-रजः संस्पर्य पावनं // सुनगं 107 भावुको चाल-भृगस्तस्याऽजवत्तरां // // सदापदापगाममान / दीनानुघर्तुमंजसा // सोऽसी. यनिजां लदमी-मंगिनीमंगीनीमिव // 3 // स च पंचनमस्कार-स्मृतिपीयूषधारया // सदा सदारः वळी सघळा चैत्यवासी व्यंतरोने पण खमावीने जाणे पुत्रने जन्म थाप्यो होय नहि तेम त्यां ते. जीए महोत्सव को. // एए | पनी ते जारे मोकलेला रथपर चडीने घेर श्रावी, तया खश मनथी परिवारसाथे जोजन करवा लागी. // 100 // वळी त्यारथी मामीने शेठ पण पाचा र्यनां वचनने याद करताथका शास्त्रमा कहेली विधिमुजब कषायरहित जिननी वाजिननादपूर्वक पूजा करखा लाग्या. // 1 // हमेशां गुरुचरणरूपी कमलनी पवित्र अने मनोहर रजनो स्पर्श क. रीने ते जाविक शेठ तेप्रति पोताना ललाटरूपी जमरावाळो थयो. // 2 // वळी तेणे हमेशां था. पदारूपी नदीमां मुबेला एवा दीन मनुष्योनो जलदीथी नछार करवामाटे पोतानी लक्ष्मीने दे. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्म स्वां जिवां / पुनातिस्म पदे पदे // // // तपस्तप वत्तीवं / तेनाचाम्लादि निर्ममे // अाजदावः / / सार्थ नासिंधु-स्तत्र चित्रं न तानवं // 5 // अयं घोषयामास / राजादेशमवाप्य सः // कारयामास | जैनेषु / चैत्येष्वष्टाहिकामहं // 6 // अयानुन्नावाधर्मस्य / सांनिध्याच दिवौकसां // माणिक्यमिव 100 | मेदिन्या / दध्रे गर्नः सुगड्या // 7 // कौसुंने विभ्रती वस्त्रे / चिरादितिमिरानना // अंतढिसु. तादित्या / प्रातःसंध्येव सा बनौ / / // अंतर्वनों वीक्ष्य पत्नीं। सुतसंन्नावनाजुषः // जज्ञे यः हधारी होडीसरखी बनावी. // 3 // वळी ते पत्नीसहित हमेशां पंचपरमेष्टिना नमस्कारना स्मरण रूपी अमृतनी धाराथी पगले पगले पोतानी जिह्वाने पवित्र करवा लाग्यो. // 4 // नष्णकालनीपेठे ते आयंबिलयादिक तीव्र तप तपवा लाग्यो, थने ते वखते तेनो जावनारूपी समुद्र जे वि. स्तार पाम्यो तेमां कई आश्चर्य नथी. // 5 // वळी तेणे राजानो हुकम मेलवीने अमारीपटह व. जडाव्यो, तथा जिनमंदिरोमां अधाश्महोत्सव कराव्यो. // 6 // हवे धर्मना प्रजावयी तथा देवो. ना सहायथी पृथ्वी जेम माणिक्यने तेम सुगद्राए गर्भने धारण कर्यो. // 7 // कसुंबी वस्त्रने धा रण करनारी तथा घणे काळे अंधकाररहित (शोकरहित ) मुखवाळी, तथा गुप्तरीते अंदर नस्प P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- श्रेष्टिनः सोऽपि / हर्षो वाचामगोचरः॥ 7 // सदालिदयितं लक्ष्मी निलयं सुगुणोदयं / / सुनद्रा समयेऽसूत / सरसीवाजमंगजं // 10 // मन्वानो लदकोटीनां / लानादन्यधिक सुतं // युक्तं त ज्जन्मनि उव्य-मव्ययमदशः पिता // 11 // राजमान्यः स राजेव / तेने तनयजन्मनः / वर्य१०० | तूर्यत्रयप्रीत–पौरलोकं महोत्सवं // 15 / / मया विदधता धर्म-मयं लब्ध ति व्यधात् // सूनो नयेल पुत्ररूपी सूर्यवाळी एवी ते सुनद्रा प्रजातकाळनी संध्यासरखी शोजवा लागी. // 7 // (पोतानी) पत्नीने गर्भवती जोश्ने हवे पुत्र थशे, एवा विचारवाळा शेठने जे हर्ष थयो ते व. चनथी कह्यो जाय तेम नथी. // ए॥ सङनोनी श्रेणिना स्वामिसरखा (हमेशां नमरानने थानंद श्रापनारा ) लक्ष्मीना स्थानरूप तथा उत्तम गुणोना जदयवाळा ( सारा तंतुनना नदयवाळा ) एवा हमलने जेम तळावमी तेम सुनदाए (योग्य ) समये पुत्रने जन्म आप्यो. // 10 // लाखो क्रोमोना लागथी पण अधिक एवा पुत्रने माननारा पिताए तेना जन्मसमये जे लाखोग. मे द्रव्य खरच्युं ते युक्तज जे. // 11 // राजाना मानीता एवा ते शेठे राजानीपेठेत्रणे प्रकारनां वाजित्रोथी खुशी थयेल ने नगरना लोको जेथी एवो पुत्रनो जन्मोत्सव को. // 12 // मने Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- धम्मिल इत्याख्यां / स नामकरणक्षणे // 13 // यथावसरमायात-धात्र्यः पंच जगत्प्रियं // तिथसार्थ यः शुक्वपदीया। श्वे तमवर्षयन् // 14 // जोजनं जाषणं दौर-मुबानं गमनं तथा // जगाम सर्वमप्यस्यं / पित्रोरुत्सवहेतुतां // 15 / / वयसा वपुषा वई-मानोऽत्पंचवार्षिकः // यदा तदा मु. दा पित्रा कलाचार्यस्य सोऽर्पितः // 16 // सादिमात्रीकृताचार्यो- परिजूरितमस्तकः // कलयामास स खल्पे-कालेन सकलाः कलाः // 17 // शिरःशून्याः कलाः सर्वा / एकां धर्मकलां विना // या पुत्र धर्म करतां थकां मल्यो बे, एम विचारी शेठे नाम पामती वखते तेनुं धम्मिल' नाम पाडयु. // 13 // जगतने यानंद बापनारा चंडने जेम शुक्लपदानी तिथि तेम योग्य अवसरे श्रावती पांच धात्रीनं तेने पोषवा लागी. // 14 // आ धम्मिलकुमारनुं गोजन नाषण हजामत उठवु तथा चालवू ए सधयु मावापने यानंदना हेतुरूप थयु. // 15 // पजी उमर अने शरीरथी वृति पामतो ते ज्यारे पांच वर्षनो थयो त्यारे पिताए हर्षथी कलाचार्यने सोंप्यो. // 16 // मात्र सादीरूप करेल ने गुरु जेणे एवो ते कई पण तकलीफविना खल्प समयमांज सघळी कला | शीखी गयो. // 17 // एक धर्मकळाविना सघली कनन मस्तकविनानी ने एम विचारीने शेरे / minine P-Ac. Gungetnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- इति तं धर्मबोधाय / श्रेष्टी साध्वंतिकेऽमुचत् // 17 // स साधुन्यः श्रुतं धर्म्य-मधीयानो नवं न / व // सूदमेष्वपि विचारेषु / विद्वान साधुरिवागवत // 15 // जीवाऽजीवादिकास्तस्य / पदार्या ह. दये नव / / सप्रपंचाः स्फुरतिस्म / रंगनमौ नटा व // 20 // बाल्यसीमामथोवंध्य / स ययौ यौवनं वनं // न तु प्राप स्मरख्याध-शरवातशव्यतां // 21 // अस्तावे श्रुतपाथोधौ / निलीनं मी. नवन्मनः // अशकध्वंसकः काम-बकस्तस्य न धर्षितुं // 25 // पंचेंद्रियहया लोलाः / प्रकृत्या पु. धार्मिक ज्ञान मेलववामाटे तेने साधुपासे मोकल्यो. // 17 / / त्यां ते साधुळपासेयी नवां नवां धर्मशास्त्र भणीने साधुनीपेठे सुक्ष्म विचारोमां पण प्रवीण थयो. // 17 // रंग मिपर जेम नटो तेम तेना हृदयमां जीव अजीवधादिक नव तत्वो नेदसहित स्फुरायमान थया. // 20 // पनी बाल्यावस्था जळगीने ते यौवनरूपी वनमां श्राव्यो, परंतु त्यां कामदेवरूपी पाराधिना बाणोना स. महथी विधायो नहि. // 21 // शास्त्ररूपी अगाध समुद्रमा मत्स्यनीपेठे लीन थयेला तेना मनने कामदेवरूपी हिंसक बगलो पकडवाने शक्तिवान थयो नहि. // 25 // स्वनावयीज भर्दम भने चपल एवा पण पंचेंजियरूपी घोडान गुरुना वचनरूपी लगामना प्रयोगथी तेणे चपलतारहित Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________ 112 / पीमनतो धम्मि- दमा अपि // त्याजिता गुरुवाग्वल्गा-जियोगात्तेन चापलं // 3 // सुरेंडः प्राप्ततारुण्य-मयोबाह मालयितुं सुतं / उत्तमा कतमा कन्या / योग्यास्येति व्यचारयत् // 24 // करपीमनतो विन्यत् / करं | पीमनतो यथा // धम्मिलो जनकस्यांही। प्रणम्येति व्यजझिपत् // 25 // विधास्ये न पितर्दारकर्म शर्मविदारकं // शास्त्रार्थामृतृप्तस्य / प्रयांतु दिवसा मम // 16 // नार्याभृयादयः पाल्या / वा श्री संततिश्च मे // इति चिंता कृतोदाह-नरस्य सुखशोषिणी // 27 // कलाकौशलकाकर्या. / / 3 / / हवे युवावस्था पामेला पोताना पुत्रने परणाववाने तेनामाटे कर कन्या योग्य ने एम. सुरेंद्रदत्तशेठे विचार्य. // 24 // जेम हाथने पीलवाथी डरे तेम विवाहयी बीतो धम्मिल पि. ताने चरणे नमीने विनंति करवा लाग्यो के, // 15 // हे पिताजी ! सुखने नाश करनारो विवाह हं करीश नहि, शास्त्रार्थरूपी अमृतथी थयेली तृप्तिपूर्वक मारा दिवसो व्यतीत थवा दो. // 16 // जे पुरुष विवाह करे ने तेने सुखनो नाश करनारी एवी चिंता थाय बे के मारे स्त्री चाकरयादिक पाळवा पडशे, अने लक्ष्मी तथा संतति वधारवी पमशे. // 27 // वळ) स्त्रीना संगयी कला | नी कुशलता दया तथा कविपणावादिक गुणोनी श्रेणि खरेखर नाश पामे , तेमाटे अहीं ए. | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Sun Gun Aaradhak. Trust
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि-| रुण्य-कवितादिगुणावली // विलीयते ध्रुवं नारी-संगादत्र कथां शृणु // 27 // आसीत्पुरा पु. / रे भोग-पुरे राजारिमर्दनः // प्रतापानांतदिक्चकः / श्रिया शक वापरः // 20 // तश्च कोऽपि गोपाल-श्वारयन् धेनुकं वने // सांद्रपुमतलासीनः / सहसोल्लासमासदत् // 30 // अज्ञानतिमि| रवंशे / तस्यापभ्रंशाषया // नन्मिमील कवित्वाख्यं / ज्योतिराकस्मिकं तदा // 31 // पाशुपाल्यं ततस्त्यक्त्वा / पशुसाम्यकरं नृणां / / कलाफलार्थी गोपालो / नृपालस्य सजां ययौ // 32 // अ. थैरजिनवैः प्रौढ-कवीनामप्यगोचरैः / / कृत्वा हृयानि पद्यानि / स तुष्टाव धराधवं // 33 // चमत्कृके दृष्टांत सांजलो? // // पूर्वे भोगपुर नामना नगरमां अरिमर्दननामे राजा हतो, ते पोता ना प्रतापथी दिक्चक्र जीतीने लक्ष्मीथी बीजा इंडसरखो शोमतो हतो. // 2 // एवामां को एक गोवाळ वनमां घाटां वृदनीचे बेशीने गायो चरावतोथको एकदम नल्लास पाम्यो. // 30 // ते वखते अज्ञानरूपी अंधकारनो नाश थवाथी तेने अपभ्रंश भाषामां अकस्मात कविपणानी श. क्ति उत्पन्न थ. // 31 // परी माणसोने पशुसमान करनारुं पशुपालपणुं तजीने ते गोवाळ पो. तानी कळानुं फल मेळ्ववामाटे राजानी सनामां गयो. // 35 // महाकविनने पण अगम्य एवा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- तमना नृपः / स्वांतिके तमतिष्टिपत् // वल्लीषु कटपवनीव / कलासु किल वाकला // 34 // रांझा सार्थ रत्नाकरेणेव / कल्पिताखिलवृत्तिकः // पाल्यमानश्च पित्रेव / सोऽर्थानापन्नवान्नवान् / / 35 // स्वैरा हारविहारादि-चेष्टासंतुष्टचेतसा // शतानि पंच गाथाना-मनिशं तेन तेनिरे // 36 // ये म. 114 / हाकवयः शास्त्र-पारीणाः प्रतिजाजुषः / / तानवझापदं कुर्वन् / राजारज्यत्तदुक्तिभिः / / 37 // ते दध्युरमुना राजा / हहा मूढेन मोहितः // यदा गोपेन गोपोऽयं / प्रीयते तत् किमद्भुतं // 30 // नवीन अर्थोथी मनोहर काव्यो रचीने ते राजानी स्तुति करवा लाग्यो. // 33 // त्यारे राजाए पण मनमां चमत्कार पामीने तेने पोतानी पासे राख्यो, केमके वेलडीनमां जेम कल्पवल्ली तेम कला-मां वचनकला श्रेष्ट बे. // 34 // परी महासागरसरखा राजाए तेनी सर्व भाजीविका करी थापी, तथा पितानीपेठे पायो, अने तेथी ते पण नवीन धनने प्राप्त थयो. // 35 // वाम जब जोजन तथा विहार यादिकनी चेष्टाथी मनमां अानंद पामेलो ते कवि हमेशां पांचसो गा. थान रचवा लाग्यो. // 36 // जे शास्त्रोना पारंगामी तथा बुध्विान महाकविन हता, तेजना पण अवज्ञा करीने राजा फक्त तेनीज वाणीथी खुशी थवा लाग्यो. // 35 // त्यारे ते महाकवि PP.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________ साथै धम्मि- सत्काव्येन्योऽपि पानां / प्रायो नीचोक्तयः प्रियाः // दुर्वृत्ता दयिता दास्यः / कुलस्त्रीन्योऽपि का. | मिनां / / 37 // राजप्रसादानध्यायः / कलावत्स्वखिनेष्वपि // अयमत्र समायतो / दारियं च गृ. हेषु नः // 40 // यद्येतद्विषयं किंचिद् / जुजोऽस्मानिरुच्यते // ईर्ष्यापदे निपतति / तत्सर्व किं 115 प्रकुर्महे / / 41 // जपायांतरमासूत्र्य / ततस्ते जगदुर्नृपं / नवः कविरयं देव / जाग्यैरासादितस्त्व न विचारवा लाग्या के अरे! या मूढे तो राजाने मोहित कर्यो ! अथवा गोपालथी (गोवाळथी) गोपाल (राजा) खुशी थाय तेमांशु आश्चर्य ! / / 30 // नत्तम कविजनां काव्यो करतां पण प्रायें राजानने नीचनां वचनो प्रिय लागे , केमके कामी पुरुषोने कुलीन स्त्रीने का रतां चराचारी दासीन प्रिय थ पडे बे. // 35 // था तो सर्व कलावानोप्रते राजानी अकृपानो अवसर थाव्यो, थने तेथी आपणा घरोमां तो हवे दरिडपणुं दाखल थयु. // 40 // वळी था. ना संबंधमां जो आपणे राजाने कई कहीये छीये तो ते पण सघर्बु ईर्ष्या तरीके गणाय ने, मा. टे हवे आपणे शुं करवं? // 41 / / पड़ी तेनए एक उपाय शोधीने राजाने कडं के हे स्वामी जाग्यना नदयथीज आपने या नवो कवि मळेलो . // 42 // वळी था पशुपाल के एम वि. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________ 116 धम्मि- या // 42 // पशुपालोऽयमित्यस्य / न विधेयावहीलना // दधाति पशुपालाख्यं / गिरीशोऽपि न माई किं हरः // 43 / / अर्थो लेखः कवित्वेऽस्य / प्राकृतेऽपि स कश्चन // अस्माकं दिव्यवाग्गाजा-मपि यो देव दुर्लनः // 14 // न जापानियमः कोऽपि / स्तुमः काव्येऽर्थसंगति // गौरव्यं गोरसे न्यू ने / यहा तहापि भोजनं // 45 // परमीहग्गुणोऽप्येष / सति त्वय्यपि नायके // आस्ते वंठ . वैकाकी / तन्मनोऽतिदुनोति नः // 46 // देवाश्च ऋषयश्चैव / मानवाः पशुपदिणः // सर्वे बंदच. चारी तेनी अवगणना न करवी, केमके गिरीश एवो महादेव पण शुं पशुपालनुं नाम धारण करतो नथी? // 43 // वळी हे स्वामी! बानी प्राकृत कवितामां पण कोश्क एवा प्रकारनी अर्थच मत्कृति रहेली ने के जे अमारी संस्कृत वाणीमां पण याववी मुश्केल थइ पमी ने. // 4 // व. ली जाषामाटे कई विचारवाजेवू नथी, फक्त काव्यनी अर्थचमत्कृति अमो वखाणीये जीये, केमके गोरस कदाच न्यून होय तो पण सारीरीते बनावेलु भोजन बादर करवालायक थाय ने. // 4 // परंतु श्रावो गुणवान जतां बने थाप तेना स्वामी बतां ते वांढानीपेठे जे एकाकी रहेलो. ते. थी अमारुं मन बहु कचवाय जे. // 46 // वळी हे स्वामी! देवो ऋषिन मनुष्यो पशु तथा प. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि| रा देव / कविरेवः किमेककः // 4 // नदूह्य पुत्रपौत्रादि-वेष्टितोऽनुजविष्यति // यदा कुटंविमाई तामेष / कीर्त्यन्मेषस्तदैव ते // 4 // नृपोऽथ तहचः सत्यं / मन्वानो मंदवयाचत // कन्यां क स्यापि रूपाब्यां / शवैः को नात्र वंच्यते // 4 // कन्यामवश्यमुद्दाह्यां / सोऽपि तस्मै ददौ मुदा 117 // वैवाहिकीगवन् नमी-पतिः कस्मै न रोचते // 50 // कविमिनुजा क्लृप्त-पाणिग्रहणमंगलः | // वधूमादाय तद्दत्त-गृहे पृथगवस्थितः / / 51 // अद्य तेलं घृतं चाय / नास्ती याद्युक्तिजिस्तया दिन ए सर्वे दंपतीधर्मवाळा होय , त्यारे (थापनो) था कवि शामाटे एकाकी रहे? // 4 // माटे ते परणीने पुत्रपौत्रादिकना परिवारवाळो थयोथको ज्यारे कुटुंबीपणुं अनुनवशे त्यारेज श्रापनी कीर्ति फेलाशे. // 4 // हवे एवी रीतनुं तेनुं वचन सत्य मानीने राजाए (ते कविमा टे) कोश्कनी स्वरूपवान कन्यानी तुरत मागणी करी, केमके यहीं उगोथी कोण वंचित यतो नथी? // 4 // कन्याने तो अवश्य परणाववीज जोश्ये (एम विचारीने ) तेणे पण हर्षथी ते कविने कन्या थापी, केमके वहेवाश् थतो राजा कोने रुचे नहि ? // 50 // परी राजाए परणाव्याबाद ते कवि पत्नीने लेश् राजाए आपेला घरमां जूदो रह्यो. // 51 // पनी भाजे तेल न. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- // व्यदार्यत कुरीनि-खि तस्य हृदन्वहं // 5 // नदरिण्यामथो तस्यां / जाविस्वव्ययशंकया / मा स ममङ निरालंबं / चिंतावा? कवीश्वरः // 53 // तन्वंगीतनयग्रास-वासःसंसाधनं धनं ॥ध्या. यतस्तस्य गलितं / कवित्वकलया क्रमात् // 24 // यास्तां पंचशती तस्या-न्यदा गाथे जो बवि॥ बास्तां चिंताशिलाक्रांते / वोगतुमनीश्वरे // 55 // भ्रष्टप्रशार्चिषं दीण-कलं दर्श श. थी, बाजे घी नथी, इत्यादि कुहाडीसरखां वचनोथी ते हमेशां तेनुं हृदय विदारखा लागी. // // 55 // पती ज्यारे ते गर्भवती थश्त्यारे थनारा धनना खरचनी शंकाथी ते कवीश्वर निराधार थश्ने चिंतारूपी समुद्रमां मुब्यो. // 13 // स्त्री तथा पुत्रना भोजन तथा कपमांना साधनरूप ध. ननुज ध्यान धरतां थकां अनुक्रमे तेनी कवित्वशक्ति घटती गइ. // 55 // अने तेथी तेनी पां. चसो गाथा तो एक बाजु रही, परंतु बे गाथा पण जाणे चिंतारूपी पबरथी दवाइ गइ होय नहि तेम ( तेना मुखथी) प्रकट थश् शकी नहि. // 25 // एवी रीते अमावास्याना चंडनीपेचे तेनुं बुधिरूपी तेज नष्ट थवाथी अने कवित्वकलानो दय थवाथी राजाए तेने एक दिवस पूज्यु Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि-| पंजरे स्थितः // काकायसे किमद्याथ / श्लोकमेकं पपाठ सः // 27 // अनंता गृहेचिंतेयं / तोय. मा राशिसमा नृप / / यदेकया स्त्रिया नष्टा / गाथापंचशती मम // 17 // . एवं तात कलानंग-मंगनान्यो विदन्नपि // पाणिग्रहणपर्याये / पाशे पत्स्याम्यहं कथं // | // 55 // सुरेंडोऽथालपत्पित्रो-रेवं दुर्वाक्यपशुभिः // श्राशालतां चिरोद्द्वतां / वत्स नोबेत्तुमहसि // 60 // वध्वालानं विना जात–तारुण्यारण्यचारिणः / / गजा श्व-नवंत्येवां-गजा न्या. के अरे कवीश्वर ! था तने शुं थ गयु ? // 26 // तुं तो ( हमणासुधि ) शीघकवि (शुकरूप) थइने हमेशां मारा चित्तरूपी पांजरामा रह्यो हतो, त्यारे बाजे थाम काकसरखो केम जणाय ? त्यारे ते कवि एक श्लोक बोल्यो के, // 17 // हे राजन् ! घरसंबंधि या अनंती चिंता महासागरसमान , केमके फक्त एक स्त्री परणवाथी मारी पांचसो गाथा नाश पामी . // 27 // एवी रीते हे पिताजी स्त्रीनथी थतो कलानो विनाश जाणता बतां विवाह नामना पाश. मां हं शामाटे पहुं? // 55 // त्यारे सुरेंद्रदत्ते कडं के हे वत्स! एवी रीतनां दुर्वचनोरूपी कक्षा. डीनथी घणा काळथी जगेली मातापितानी आशारूप। वेलडीने उखेमी नाखवी ए तने योग्य Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC Gunratnasuri M.S.
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- यामहः // 61 // अनभ्यासात् कलानाशे / यद्योषिदोषपोषण // तत्कोलखादिते क्षेत्रे / महिः / मां पीसुतकुट्टनं // 6 // कचित्कलाप्रकर्षोऽपि / सुकलत्राद्भवेन्नृणां // पश्य पूर्णिमया चंद्रः / किं न | पूर्णकलः कृतः // 63 // नारी मृदुः सुखं निंद्या / निपुणैर्न पुनः पुमान् // हिमो दहति ताकी / 110 यथा न तु तथा वटं // 64 // एवं निर्वचनीकृत्य / सुरेडो निजनंदनं ॥न्यानुद्भिनतारुण्य-क. नथी. / / 60 // वळी उत्पन्न थयेली युवावस्थारूपी वनमां फरनारा पुत्रो स्त्रीरूपी बंधनस्तंजविना हायीनीपेठे न्यायरूपी वृदने जखमी नाखनारा थाय . // 61 // अभ्यासविना थता कलाना | नाशमाटे जे स्त्रीना दोषो बोलवा, ते तो शियाोए क्षेत्रनुं भदाण करवायी (तेने बदले ) पा. डाने मारवासमान . // 6 // वळी कोश्क वखते तो उत्तम स्त्रीथी पुरुषोनी कलामां वृद्धि पण थाय बे, जुन के पूर्णिमाए शुं चंडने संपूर्ण कलावाळो नथी कर्यो ? // 63 // स्त्री जातेज को. मलने, तेथी पंडितो तेणीनी सुखे निंदा करी शके बे, परंतु पुरुषनी करता नथी, केमके हिम जेम रीगणीने बाळी नाखे ने तेम वडने बाळी शकतो नथी. // 64 // एवी रीते पोताना पुत्रने बोलतो बंध करीने सुरेंद्रदत्ते तुरत केटलाक शाहुकारोपासे खोलती जुवानीवाळी (तेजनी) क- | PEAC.Guiiranasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- न्या तमयावत // 65 // तेऽपि तत्सौहृदय्येन / कलानिम्मिलस्य च // क्रीताः स्वाः स्वा ददः / मार्ग कन्या-स्तस्मै सौभाग्यशालिने // 66 // धम्मिलोप वयस्यैः स्वै—ोधयामास तान रहः // हं। हो अहमुढोऽपि / न मोदये साधुसंगति // 67 // विचारपयसां काम-गवीर्वाचो महात्मनां // | दुषयंत्यो न मे नार्यो / मार्जार्य व संमताः // 6 // वराणां शतमर्हति / कुमार्य इति वादिनः // अन्येन्य श्भ्यपुत्रेन्य-स्ते स्वपुत्रीददुस्ततः // 65 // अथो धनवसुस्तत्र / पुरेऽनृत् श्रेष्टिकुंज न्याने मागी. // 65 // तेनए पण तेनी मित्राश्थी तथा धम्मिलनी कलाजंथी वश थश्ने पो. तपोतानी कन्या ते जाग्यवान धम्मिलने आपी. // 66 / / परंतु धम्मिले पोताना मित्रो मारफते ते शाहुकारोने गुप्त रीते जणाव्यु के हुँ परण्याबाद पण मुनिजनो संग त्यजीश नहि. // 67 / / विचाररूपी दूधनी कामधेनुसरखी महात्मानी वाणीने दूषित करनारी बिलामीसरखी स्त्रीनने (प. रणवामाटे मारी) संमति नथी. // 67 // ( ते सांजळीने ) कुंवारी कन्या माटे सेंकडो वर म. की शके ने एम कही तेनए पोतानी पुत्रीनं बीजा शाहुकारोना पुत्रोने थापी. // 6 // // हवे ते नगरमां निरंतर दानथी ( मदथी) याचकोरूपी भमरानने खुशी करनारो हाथीसरखो धनवस P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मिरः // अनव बिन्नदानेन / प्रीणितार्थिमधुव्रतः // 70 // धनदत्ता प्रिया तस्य / प्रियालापैकसारणिः सार्थ | // सद्यशाः सन्मतिः पुत्री / तयोरासीद्यशोमती // 31 // पुत्रेभ्योऽपि प्रियतरी / वर्डमाना क्रमेण सा // अपावि समये पित्रा / कला योषिज्जनोचिताः // 12 // का मे वपुषि हेमाने / विषा 15 हेमममनैः / / इति सा शास्वती जूषां / गुणरत्नमयों दधौ / / 73 // सा तानं स्माद दत्ताहं / सुरें| द्रांगरुहे त्वया // मयापि खड्नु गतेति / स एव हृदि धारितः // 14 / / ततोऽपरं वरं कंचित / कुर्वनामे शेठ ( वसतो) हतो. // 70 // तेने प्रिय वचनोनी एक नहेरसरखी धनदत्ता नामनी स्त्री हती, तथा तेनने उत्तम यशवाळी अने सद्बुध्विाळी यशोमती नामे पुत्री हती. // 71 // पुत्रो. थी पण वधारे वहाली तथा अनुक्रमे वृधि पामेली ते यशोमती योग्य समये स्त्रीने लायक कलान शीखी. // 7 // मारां सुवर्णसरखां शरीरमां सुवर्णना आऋषणोनी शी जरुर ? एम विचा रीने तेणीए गुणोरूपी रत्नोवाद्यं शाश्वतुं था नृषा धारण कर्यु. // 73 // तेणीए पोताना पिताने कह्यं के, हे पिताजी! आपे मने सुरेंद्रदत्तशेठना पुत्र धम्मितपते थापेली , अने में पण ते | नेज मारा स्वामीतरीके हृदयमां धारण कर्यो बे. // 14 // माटे हवे कामनी बाथी जो हैं का Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- ती कामलालसा // सर्वसंपन्नदीशैले / शीले स्यामवकीर्णिनी / / 75 // याहशस्तादृशो वास्तु / प. माईतिम धम्मिलः पुनः / / सत्कृत्कन्याः पदीयंत / ति न्यायो हि दुस्त्यजः // 16 // एवं गाढाग्रहां लमे / शुभे बहुनिरुत्सवैः // धम्मिलस्तामुपायंस्त / सत्वरं पितुराया // 7 // स ध्यायंस्तं कर्ण शास्त्र-रसरिक्तमपार्थकं // वध्वा हस्तात्तया हस्त-जुषां सस्मार पुस्तकं // 70 // कोटिमात्र धनं लेने / यदसौ करमोचने // ददतोऽर्थिषु तत्तस्य / गृहादाग व्यशीर्यत // 17 // परिणीतोऽप्यदाच बीजो वर करूं तो हुं सर्व संपदारूपी नदीने नत्पन्न करवामां पर्वतसरखा शीलनो भंग कर नारी थानं // 35 // माटे ते गमे तेवो होय तो पण मारो पति तो धम्मिलज , केमके कन्या एकज वार अपाय , ए नीति त्यजी शकाय नहि. // 76 // एवी रीते दृढ निश्चयवाळी ते य. शोमतीने शुभ लग्ने घणा महोत्सवथी धम्मिल पितानी आझाथी तुरत परण्यो. // 7 // शास्त्र. ना रसथी रहित एवा परणवाना ते समयने ते निरर्थक जतो गणवा लाग्यो, तथा स्त्रीना हस्त. मेलापसमये तेणे पोताना हाथना ऋषणरूप पुस्तक याद कयु. // 9 // वळी हस्तमोचनसमये | तेने जे कोमोगमे धन ( श्वशुर तरफथी) मव्यु, ते धन (मार्गमांज) तेणे याचकोने यापी Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- सौ साधु-खि लोगपराङ्मुखः // सुखं विषसंखं धन्यः / कामोपझममन्यत // 70 // अहारं करुः / गई रसाधारं / देहस्थित्यर्थमेव सः॥ अभुंक्त तृप्तिमापञ्च / शास्त्रैर्न च रसैः पुनः // 1 // अप्रमादी समादाय / निशीथे खटिकामसौ // मुक्ततल्पो लादणिकान् / प्रयोगानिरपीपदत् // 7 // पूर्वा 14 धीताः स्मरिष्यामि / गृहीष्ये च नवाः कलाः // इति चैयग्यतस्तेन / दिना यांतो न जझिरे // // 3 // यशोमती पितुर्गेहं / गता तद्भर्तृचेष्टितं / / आचष्ट सकलं मातु-र्गोष्टीयं हि मृगीदृशां // देवायी घर पहोंचतां पहेलांज खलास थयु. // 7 // (एवी रीते ) परण्या उतां पण ते साधु. नीपेठे जोगोथी विमुख थयो, तथा ते भाग्यवान विषयसुखने फेरसमान मानवा लाग्यो. // 7 // वळी ते फक्त शरीरने जाळ्ववामाटे पारस भोजन करवा लाग्यो, अने तृप्ति तो शास्त्रोथीज पा. म्यो, परंतु रसोथी नहि. // 71 // वळी मध्य रात्रिए पण बिगनामांथी गठीने ते प्रमादरहित खडी लेश्ने व्याकरणना प्रयोगो साधवा लाग्यो. / / 72 / / पूर्व गणेली कला हुं याद करीश बने नवी ग्रहण करीश एवा विचारमांज लीन थश्ने ते जता दिवसोने पण न जाणवा लाग्यो. // / // 3 // हवे पिताने घेर गयेली यशोमतीए (पोताना) स्वामीनो ते सपळो वृत्तांत (पोतानी) | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि-| || 4 || सुगडायाः पुरोऽन्येत्य / धनदत्ताप्यगर्हत // कलाविलासं जामातु-धिक् स्त्रीणां चित्तवा. पलं // 5 // सुनद्रापि तदुक्त्याति–दूनेति प्रियमादिपत् // अनात्मदृष्टयो नार्यः / किं न कुर्युः परेरिताः // 6 // प्राप्तोऽपि यौवनं सोऽय / बालवत्पठनाग्रही / / न वेत्ति कंचनाचारं / गृहिणा मेष धम्मिलः // 7 // यस्य नार्या न वा कामो। न वा प्रणयिपोषणं / दिपदस्य यशोस्तस्य / | व्यसनं शास्त्रसंग्रहः / / 1 / / व्यवहारपरिझान -मंतरेण पुमान्ननु / / पतिोऽपि नवेन्मूर्खः / प्रिमाताने कह्यो, केमके स्त्रीनवच्चे यावी वातो थया करे बे. // 4 // त्यारे धनदत्ताए सुनद्रापासे यावीने (पोताना) जमाश्ना कलान्यासनी निंदा करी, धिकार ने स्त्रीना चित्तनी चपलताने. // 5 // तेणीना वचनथी सुजला पण अति खेद पामीने पोताना चारने जपालंज देवा ला. गी, कारणके परथी प्रेरायेली काचा मननी स्त्री शुं नथी करती? // 6 // युवान थया तां प. 'ण श्रापणो या धम्मिल बालकनीपेठे केवल अन्यासमांज लीन थश्ने गृहस्थीसंबंधि कई पण याचार जाणतो नथी. // 9 // वळी ते धन अथवा काम अथवा प्रेमीजनना पोषणसंबंधि कर पण जाणतो नथी, केवल बे पगवाळा पशुसरखा एवा तेने शास्त्रोनो (झाननो) संग्रह करखान P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- यश्रोत्रियविप्रवत् // 5 // चेत्पाठयितुकामोऽसि / शास्त्राणि सुतमन्वहं // तत् किं धनवसोः पुः। मा त्र्यां / वृथा वैरमपोषयः // 50 // गोष्टी त्याजय निःदीण-कर्मणां विदुषां ततः // अमुं संगम यानंग-निष्टैललितगोष्टिकैः // 51 // अतुबः स्वबहृदयो / दीर्घदर्शिमतिस्ततः // सुरेडो वाक्य१२६] पीयूष-रोषतप्तामसिक्त तां // 72 // प्रिये मुग्धासि शांतोऽस्य / कामो नोपेत्य दीप्यते // को | नाम दंमाघातेन / शयितं बोधयत्यहिं // 73 / / अशिदिता अपि नृणां / प्रादुःषति कुबुध्यः // व्यसन लाग्यु ने. // 7 // व्यवहार जाण्याविना जणेलो पुरुष पण वेदीया ब्राह्मणनापेठे मूर्ख रहे . // Gए // जो तमारे पुत्रने हमेशां शास्त्रो जणाववानीज ना होती तो पनी फोकट ध. नवसुनी पुत्रीसाथे शामाटे वेर वसाव्यु ? // 50 // माटे हवे कर्मरहित मुनिननी सोबत तेने गेमावो, अने कामविलास जाणनार व्यभिचारिनी सोबत करावो? // 51 // हवे एवी रीते को. धथी तपेली प्रियाने गंजीर निर्मल मनवाळो तथा दीर्घदर्शी बुध्विाो सुरेंद्रदत्त (नीचेमजब) वचनरूपी अमृतथी सिंचवा लाग्यो. // ए॥ हे प्रिया! तुं तो मुग्ध , तेनो काम शांत पडे. खोने तेने बंबेडवो फायदाकारक नथी, केमके सुतेला सर्पने लाकडी मारी कोण जगाडे? // PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- सुशिक्षिता अपि नृणां / प्रच्यवंते शुनः क्रियाः / / ए४ // प्रकृत्या निम्नगं वारि / प्रकृत्या चंचलः सार्थ | कपिः // जति विषयासक्ताः / प्रकृत्यैव शरीरिणः // 55 // श्यामतानिमता देहे / पांमुजन्मा न गौरता // तमः सर्वोत्तमं मन्ये / न प्रदीपन महः // 6 // ग्रामेऽनिराम शून्यत्वं / न वासस्त. | स्करैः कृतः // वरं मौग्ध्यं न वैदग्ध्यं / कुसंसर्गसमुद्भवं / / ए // युग्मं // यौवने नीचसंसर्गात् / कायुष्यं निर्मले कुले // के के नो जनयंतिस्म / पटे पंकलवा श्व // ए // त्रिदोषगहनस्यास्य। // ए३ // मनुष्योने दुर्बुछिन तो शिखव्याविना पण प्रकट थाय ने, परंतु शुभ कार्यो तो शिखाव्या उतां पण नष्ट थाय . // 4 // जल स्वनावधीज नीचे जनारंबे, तथा वानर पण खना. वधीज चपल होय , तेम प्राणीन पण स्वभावयीज विषयोमां आसक्त थाय . // 55 // श. रीरे श्यामपणुं सारं बे, परंतु कोढथी थयेधुं गौरपाणुं सारं नथी, वळ) अंधकारने सर्वथी हुँ सारो मान डं, परंतु बाग लगाडीने प्रकाश करवो सारो नथी. // ए६ // गाममां नऊडपणुं सारं, प. रंतु तेमां तस्करोए करेलो निवास सारो नहि, एवी रीते मुग्धपणुं सारंबे, परंतु कुसंगयी जत्पन्न थियेली चरा सारी नथी. // ए७ / / वळी वस्त्रमा जम कादवना अंशो, तेम युवावस्थामां नीच. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________ 10 धम्मि- प्रतीकारो विकारिणः / को नाम सुश्रुतादन्यो / यौवनस्यामयस्य च // एवं // मोहावर्तममान साई मानमकरं रागोर्मिसंवर्मितं / तृष्णावेगमनंगसंगसलिलं पापौघपंकाकुलं // ये वापि स्खलिता न यौवनसरि पूरं तरंतो महा-सत्वास्ते खलु तारकाः किमितध्यावतारैर्नरः // 1 // तत्त्वं तत्वदृशे| दस्ख / मुंच मुंच कदाग्रहं / / भाग्यैर्नस्तनुजः शास्त्र-ध्यानेऽधीयत यौवने // 5 // तेनेत्युक्तापि नी सोबतथी कया कया माणसो ( पोताना ) निर्मल कुलमां कलंक लगांडता नयी ? // ए॥ त्रिदोषवाळा ( सन्निपातवाळा ) अने विकार करनारा था यौवनरूपी रोगनो उत्तम शास्त्रविना (सुश्रुत नामना वैद्यक शास्त्रविना ) बीजो कयो श्लाज ? | ए // मोहरूपी जमरीवाला. थति अहंकाररूपी मगरखाळा, रागरूपी मोजांनथी भरेला, तृष्णारूपी वेगवाळा, कामसंगरूपी पा. पीवान तथा पापोना समूहरूपी कीचडवाला यौवनरूपी नदीना पूरने तरनारा जे महा वीर्यवान माणसो क्यांय पण स्खलना पाम्या नथी तेज खरेखरा तारनारा , ते शिवायना फोकट जन्मे ला पुरुषो शं कामना ? // 1 // माटे (हे प्रिये!) तुं तत्वदृष्टियी जो? अने कदाग्रह डोमी | दे ? जाग्योथीज थापणो या पुत्र युवावस्थामां पण शास्त्रध्यानमां जोमायो जे. // // एवी री: P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust .
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- तत्याज / सा यदा न कहाग्रहं / श्रेष्टी तदाह्वयामास / सद्यो ललितगोष्टिकान् // 3 // नारीनुनो | न कुरुते / किमनात्मवशो नरः / / वात्ये स्तिो दहत्यत्र / पावकः पावनं वनं / / 4 // तैराहानदाणा यातै-रंगजं संयमय्य सः // श्रेष्टीति प्रीतये पल्या / मनोबाह्यमवोचत // 5 // अर्पितोऽस्त्येष यु. 110 धमाकं / क्रियतां कामतत्ववित् / / पूरके मयि जेतव्यं / न द्रव्यव्ययतः क्वचित् // 6 // ततस्ते द्यूतनाट्यादि-शालाः स्वैरविहारिणः // समं तेन चिरं तीर्थ-जमीखि सिषेविरे // 7 // अगम्यां - ते तेणे कह्या उतां पण ज्यारे तेणीए कदाग्रह त्यज्यो नहि त्यारे शेठे तुरत व्यनिचारी पुरुषोने बोलाव्या. // 3 // स्त्रीए प्रेरेलो पुरुष पराधीन थश्ने शुं नथी करतो? केमके aa जगतमां वायुए प्रेरेलो अनि पवित्र वनने पण बाळी नाखे बे. // 4 // बोलावती वखतेज थावेला ते व्यनिचारीनसाथे पोताना पुत्रने जोडीने शेठे मन नहि छतां पण स्त्रीने राजी राखवामाटे तेजने के. हां के, // 5 // बाजथीया (अमारो पुत्र ) तमोने सोंप्यो , तेने तमारे कामचेष्टामां प्रवीण कस्खो, वळी हं तमोने द्रव्य पूरुं पाडीश, माटे क्यांय पण खरचथी तमारे मखु नहि. // 6 // प. जी ते व्यभिचारी मिलो पोतानी इलामुजब धम्मिलने साथे लेश्ने जुगारखानां तथा नाटकशाः | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- रिमायानां / व्यक्तमुक्ताफलागमा // साधुशाला पुनः दूरे / जहुः सिंहगुहामिव // 7 // धम्मिलो मा मृगवन्मुग्धः / कृष्णसारैस्खिाग्रगैः // यत्र यत्र च नीतस्तै-स्तत्र तत्रानुगोऽगमत् // // निन्ये | सोऽन्येारुद्यानं / तैनष्टतपनातपं // यत्र सांपुमबन्ने / तमः क्रीडति निर्नयं // 10 // लतानांला. 130 | स्यलीलायां / गायना यत्र षट्पदाः // नाट्याचार्यत्वमातेने / मंदं मंदं स्फुरन्मरुन् // 11 // विक ळा आदिकोने तीर्थजमीनीपेठे खूब सेववा लाग्या. // 7 // अति कपटीनने (शियाळोने ) अ. गम्य तथा प्रकटरीते मोदफलना ( मुक्ताफलना). लाजवाळी सिंहगुफासरखी साधुननी धर्मशा. लाने तो तेनए दूर गेमी. // 7 // कृष्णसारो जेम हरिणने तेम अगामी चालनारा ते व्यनिचारी मित्रो ज्यां ज्यां ते मुग्ध धम्मिलने ले जता त्यां त्यां तेननी पाजळ जवा लाग्यो. // 5 // पनी एक दिवसे तेज नष्ट थयेल ने सूर्यनो ताप ज्यां एवा एक बगीचामां तेने ले गया, के जे बगीचो घाटां वृदोथी ब्वायेलो होवाथी त्यां अंधकार तो निर्णयपणे क्रीडा करी रह्योहतो. // 10 // वळी त्यां वेलडीनं नाचती हती, तथा जमरान गायन करी रह्या हता, तथा मंद मंद वातो वायु नाट्याचार्य- कार्य करतो हतो. // 11 // तेमज ज्यां विकखर कमलोरूपी मुखोथी चंचु जोनारी PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________ धमिम खरसरोजास्यै-रुत्पश्या यत्र दीर्घिकाः // जमाशया अपि प्रीति-प्रदा गोपांगना श्च // 12 // त्व. सार्थ मत्रोचिनु पुष्पाणि / हंसलीलां जले जज // मित्रेष्विति ब्रुवाणेषु / धम्मिलेनात्यधीयत // 13 // श्रतो न वः स्वयं प्रज्ञा / न वा गीतार्थसंगतिः // यदेवं व्यक्तनिःशूकाः शृणुतागम जाषितं // 14 // जुर्जलं ज्वलनो वायु-स्तरवश्वेति पंचधा / / नवंत्येकेंद्रिया जीवा-स्ते ह्यसंख्या दृगध्वगाः // 15 // यऊराजर्जरो यूना / दृढमुष्ट्या हतोश्नुते // कष्टं संघटनेनापि / तस्मादेकेंदियोऽधिकं // 16 // वावडीन जलाशय ( जड पाशयवाळी ) बतां गोपीननीपेठे यानंद बापती हती. // 1 // ही धम्मिलने ते मित्रोए कह्यु के तुं यहीं पुष्पो एकगं कर? तथा जलमां हंसनीपेठे क्रीमा कर? त्यारे धम्मिले कडं के // 13 // अरे! आथी तो एम जणाय बे के तमोने स्वाभाविक अ. कलज नथी, अथवा तमोने गीतार्थोनो संग थयो नथी, के जेथी यावी रीते प्रगटपणे तमो नि दय थान गे, सिंघांतनुं वचन सांग्लो? // 14 // पृथ्वी, जल, अमि, वायु अने वनस्पति, प पांच प्रकारना एकेडिय जीवो बे, अने ते असंख्याता दृष्टिगोचर थाय ने. // 15 // वळी एक य| वान माणसे जोरथी मुक्को मारवायी अति वृक्ष माणस जे कष्ट गोगवे , तेयी पण अधिक क. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #133
--------------------------------------------------------------------------
________________ 135 धम्मि- अनर्थदं जानानः / को धीमानंतकांतिकं // नयत्येतावतो जंतून् / नमंतून केखिकौतुकैः // 17 // माई एवं प्राक्तनसंस्कारा-नुभिरंत निरीक्ष्य तं // ते सर्व तुमुलोत्ताल-हस्तताला बाषिरे // 17 // वाक्प्रपंचममुं मुंच / वंचितः सर्वथासि रे // विमुग्धः साधुधूर्तस्त्व-मसत्कटपनयाऽनया // 15 // पृथ्व्यप्तेजोमरुभ्रूणां / जीवान् श्रद्दध्महे कथं // प्रत्यदादिप्रमाणाना-मगम्यान् व्योमपुष्पवत् // 20 // पुष्पोच्चयपयःक्रीडा-दोलास्त्रीनाट्यगीतयः // हास्यं कौतुकिता चेति / यौवनडोः फलावली // 1 // ष्ट फक्त संघटनधी पण एकेडिय जीवने सहन क पडे . // 16 // (माटे एवी रीते ) अनर्थदंडने जाणनारो कयो बुध्विान माणस एटला बधा निरपराधी प्राणीनने फक्त क्रीमाना कौतुकथी मारे? // 17 // एवीरीते तेने पूर्वना संस्कारो नचारतो जोश्ने ते सघळा कोलाहलपू. र्वक तालीन देश्ने बोली नठ्या के // 17 // अरे! या सघळी वात तुं नोडी दे, खरेखर तने मुग्धने यावी यावी जूठी कल्पनायी धूर्त साधुनए बिलकुल उगेलो . // 17 // वळी पृथ्वी. जल, अमि, वायु तथा वनस्पतिना जीवो के जे प्रत्यद श्रादिक प्रमाणोने अगोचर ने, तेजनी थाकाशपुष्पनीपेठे अमो केम श्रघा करीये ? // 20 // वळी पुष्पो एकगं करवां, जलक्रीडा, हीं. P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #134
--------------------------------------------------------------------------
________________ सार्थ धम्मिः पुरःस्था ययं कुर्मः / कर्म कार्य त्वयापि तत् // मार्गे बहुजनकुले / चरतः का तव दतिः // 22 // | इति तैः प्रेरितः पूर्व / सर्व चक्रे स शंकितः // अनश्यत्तस्य शंकापि / काले वीते च पापतः / / // 23 // सुबुर्विद्यते दुःखं / सुखं च दृश्यते जनैः / अत्र स्तः सौधनिर्माण-जंगावेव निदर्शनं // 24 // श्तश्च निश्चितानंग-रंगवरिति नागरैः // वसंततिलकेत्यासीत् / पुरे तत्र पणांगना // | // 25 // लावण्याब्धौ यदंगे दृग्-द्रोणी यूनां तरंत्यपि / / पारं न प्राप वदोज-गिरावास्फालितांचोळा, स्त्री, नाटक, गीत, हास्य तथा कौतुक ए यौवनरूपी वृदानी फलश्रेणि जे. // 21 // माटे अगाडी रहीने अमो जे कार्य करीये ते तारे पण करवं, केमके जे मार्गे घणा माणसो चाले त्यां चालवामां तने शुं नुकशान ? // 12 // एवी रीते तेलए प्रेर्याथी प्रथम तो ते शंकासहित सघर्धा करवा लाग्यो, परंतु वखत जाते तेनी पापनी शंका पण दूर थश्. // 53 / / बुद्धिवान माण. सने सारे रस्ते चमाववामां जरा कष्ट पडे बे, परंतु तेने सारे रस्तेथी पाडवो सहेलो ने अहीं ए. क महेलने बनाववान दृष्टांत जाणी लेवू ॥श्या हवे ते नगरमां एक वसंतविलका नामनी वारांगना | रहेती हती, के जेणीने नगरना लोको कामदेवन। मिसरखी जाणता हता. // 25 // लावण्य P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Guo Aaradhak Trust
Page #135
--------------------------------------------------------------------------
________________ 134 धम्मि- तरा // 16 // करौष्टपसवा हास्य-पुष्पा स्तनफलान्विता // या वजीव कृता धात्रा-ऽनंगतापनि दे नृणां // 27 // हरिएमयानि सौजाग्य-जुषा यद्देहयष्टिना / / ऋषणान्यपि ऋष्यत्वं / निन्यिरे निजसंगमे // 20 / / अभ्यस्यान्यस्य सा नाट्य-कलाकोटिमुपागता // सनां नमीभुजो नेजे / झा पितुं सकलाः कलाः // 27 // नाट्यकौतूहलोत्ताल-मनसस्तत्र लदशः // ईयुः पौरा युवानश्च / ते. ऽपि सर्वे सधम्मिलाः // 30 // कलां परीदितुं स्वस्या / विज्ञप्तो नृपतिस्तया // परीदानिपुण कं. ना महासागरसरखा तेणीना शरीरमा युवान पुरुषोनी दृष्टिरूपी होडी तरतां बता पण बच्चे तेणीना स्तनरूपी खराबापर अथडावाथी किनारे पहोंची शकती नहोती. // 26 // हाथ बने होठरू. पी पल्लवोवाळी, हास्यरूपी पुष्पोवाळी तथा स्तनरूपी फलोवाळी एवी जेणीने विधात्राए पुरुषोना कामदेवरूपतापने नाश करनारी वेलमीसरखी बनावी हती. // 27 // जेणीना सौजाग्यवान श. रीरे पोताना संगथी ( उलटां ) सुवर्णना भाषणोने पण शोजाव्यां हतां // // अन्यास क. से करीने नृत्यकलानी टोंचे पहोंचेली ते वारांगना पोतानी सर्व कला देखामवामाटे राजसभामां | ग॥ 29 // नृत्यनुं कुतूहल जोवामाटे नत्सुक मनवान लाखोगमे नगरना लोको त्यां था. | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #136
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- चित् / पौरलोकानयाचत // 31 // सदसद्भावनेदझो-ऽस्मासु पदिषु हंसवत् / / एक एवायमस्तीति / माई | तै राझोऽदर्शि धम्मिलः // 32 // पौरचक्रे पुरश्चक्रे / तमेवाथ नरेश्वरः // बंद्यो ोककलोऽपींदः।। किं पुनः स कलानिधिः // 33 // धम्मिले सादिणि दोणी-लुजः सदसि सा दाणात् // कर्तुं रंजे. व जंजारे-रारेने नाट्यमद्तं // 34 // चक्षुश्चषकाचांतोऽपि / यत्र न त्रुटिलो रसः // पश्यंस्तव्या, तथा धम्मिलसहित ते सघन युवानीयान पण त्यां याव्या. // 30 // पजी पोतानी कला. नी परीक्षा करवामाटे तेणीए विनवेला राजाए नगरना लोकोपासे मागणी करी के तमारामांना कोश्क निपुण माणसे यानी परीदा करवी. // 31 // पदिनमां जेम हंस तेम सत्यासत्य नेदने जाणनारो घमारामां या एकज , एम कही तेनए धम्मिलने देखाड्यो. // 32 // त्यारे राजा ए पण नागरिकोना समूहमांथी तेनेज अगाडी कयो, केमके ज्यारे एक कलावाळो चंड पण न मवालायक बे, त्यारे कलाना नंडारसरखा ते धम्मिलनुं तो कहेवूज ? // 33 // हवे धम्मिल सादी होते ते इंद्रनी सन्नामां जेम रंना तेम राजानी सन्नामां तेणीए तुरत आश्चर्यकारक नत्य करखा मांडयु. // 34 // नेत्ररूपी प्यालाथी पीधा बतां पण जेनो रस खूट्यो नहि, एवं ते नृत्य P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #137
--------------------------------------------------------------------------
________________ 136 धम्मिन्नृत्यमाश्चर्यान् / मूर्धानं धम्मिलोऽधुनोत् / / 35 // तं चमत्कृतमालोक्य / कलावंतमिलापतिः / / | धनराशिं ददौ तस्यै / केलिशैलसमं श्रियः // 36 // धीमतोऽस्यैव सांनिध्या-बब्धं धनमियन्मया // इति सा धम्मिले प्रेम-सर्वस्वं तत्प्रभृत्यधात् / / 37 // अथ मन्मयकेलिना-मोऽयमिति धम्मिलः // नीतः पणांगनावीथीं / वयस्यैरियन्नापत // 30 // तन्वंग्यश्च जुजंग्यश्च / तुल्याः साधुभिरूचिरे // श्मा विशेषतो वेश्याः / शुजलेश्यानिशुचिकाः // 35 // गणिकाः कणिकामात्र-सुखसंपत्ति जोश्ने धम्मिले आश्चर्यथी पोतानुं मस्तक धुणाव्यु. // 35 // एवी रीते ते कलावान धम्मिलने आश्चर्य पामेलो जाणीने राजाए तेणीने लक्ष्मीने कीमा करवाना पर्वतसरखो धननो ढगलो था. प्यो. // 36 // या बुद्धिवान पुरुषना सहायधीज मने बाटधु बधुं धन मव्यु , एम विचारीने ते सारथी धम्मिलप्रते पोतानो सर्व प्रेम धारण करवा लागी. // 37 // हवे या कामक्रीडाने लाय क., एम विचारीने तेना मित्रो तेने वेश्या ना पाडामां ले गया, त्यारे धम्मिले तेजने कहां के, // 30 // स्त्रीने अने नागणो बनेने साधुनए तुल्य कहेली , तेमां पण विशेषे करीने वे श्याने तो शुज लेश्यानो नाश करनारी . // 35 // वेश्यान किंचित् मात्र सुखसंपत्ति बाप E.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #138
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- हेतवः / / सर्वतः पर्वतप्राय / दुःखं ददति रागिणां // 40 // अन्यो हृदि वचस्यन्य-श्चान्य एव. | पुमान् दृशि // एवं यासां विरोधोंगे / कस्ता न्यः सुखमिबति // 41 // क्वीवो जटोऽपि निःश्रीकः / / | श्रीमानप्यत्र जायते // मध्ये पुरमिदं चौर-स्थानं राजापि नावति // 42 // नोचितं सच्चरित्राणा| मत्र स्थातुं मनागपि // तन्मुच्यतामिदं मंछ / स्थानमन्यत्र गम्यतां // 43 ॥धम्मिनेऽनिदधत्येवं / | तेऽवज्ञापूर्वमभ्यधुः // रे रे कदाग्रहग्रस्त / कस्तवायं मतिनमः // 44 // एता असारसंसार-जंगला. नारी ने, परंतु तेना रागीनने ते चारे बाजुथी पर्वतजेवढं दुःख आपे . // 40 // जेणीना हु. दयमां अन्य, वचनमां तेथी अन्य, अने अांखमां वळी तेथी पण अन्य पुरुष रहेलो डे, एम जेननां शरीरमां पण विरोध गरेलो ने, तेथी सुखनी कोण श्बा करे? // 41 // वळी या वेश्याना पामामां (भावीने) सुनट पण विकारी मनवाळो थाय , तथा धनवान पण निर्धनथाय ने. एवी रीते नमरना मध्य भागमा रहेला था चोरनां स्थान- राजा पण रक्षण करी शकतो नथी. // 42 // अहीं उत्तम वाचरणवाळा मनुष्ये जरा पण रहेवू योग्य नथी, माटे या स्थान जलदी तजीने आपणे अन्य जगोए चालो ? // 3 // धम्मिले एम को छते तेनए तेनी अवज्ञा करी P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #139
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि ध्वनि चारिणः / / सुखयंति जनान दृष्टा / मिष्टांनःकूपिका श्व // 45 // वर्तर्येव सुखदाः / श्रू माई यंते हि कुलस्त्रियः॥ मन्ये धन्या श्मा एव / या विश्वोपकृतिदमाः // 46 // श्युक्तिभिः समु. लास्य / लास्यस्थानं मनोऽभुवः / वसंततिलकायास्ते / निन्येर धाम धम्मिलं // 4 // नद्रासने 130 | समासीना / / पश्यंती मुकुरे मुखं // रूपाधिदैवतं साथ / तैः सहास्यमगाष्यत / / 4 / न सुरेंने कह्यु के बरे कदाग्रही था तारी बुद्धि केम फररी ग ! // 44 // था वेश्यान तो असार संसाररूपी जंगलना मार्गमां चालनारा मनुष्योने नजरे पडेली मोग पाणीनी कुश्सरखी बे. // // 45 // कुलीन स्त्रीने तो फक्त पोताना भर्तारनेज सुख प्रापनारी बे, परंतु हुँ तो आ वेश्याननेज धन्य मान बु, के जेन समस्त पुरुषोपर उपकार करी शके जे. // 46 // एवी रीतनां वत्रनोथी धम्मिलने लश्केरीने तेन कामदेवने नृत्य करवानां स्थानसरखां वसंततिलकाने घेर लेश गया. // 4 // त्यां सिंहासनपर बेठेली तथा देवांगनाथी पण अधिक रूपवाळी अने दर्पणमां पोतानुं मुख जोती एवी ते वसंततिलकाने तेनए हास्यसहित कह्यु के, // 4 // हे ना! तारां पूर्वनां पुण्योथी या सुरेंद्रदत्तशेग्नो पुत्र धम्मिल तारे त्यां आवेलो ने, तेने तारे सादात निधा Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. .
Page #140
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि-| ऽनुरेष / प्राप्तः पुण्यैः पुरातनैः / / सादान्निधिरिवाराध्यो / धम्मिलो निर्जरं त्वया // 4 // तस्यै | समर्प्य तं वीरा / वारीदिप्तगजा श्व / / व्यावर्त्तत वयस्यास्ते / फलितवपरिश्रमाः // 10 // अनन्यन्नेदमप्यस्या / हृदयं वज्ररत्नवत् // सूचीमुखसखप्रज्ञः / स भीत्वा लीलयाविशत् // 51 // सापि तं मधुरालापै-रालापीचारुलोचना // चित्तचौरगिरां यस्मा-त्ता एवोत्पत्तिन्मयः // 5 // स्वा. गतं स्वागतं प्राण-प्रिय पादोऽवधार्यतां // महान मयि प्रसादोऽयं / श्रीयतामिदमासनं // 53 / / ननीपेठे खूब सेववो. // 4 // हवे जेम हाथीने खाडामां नाखे तेम तेणीने धम्मिलने सोंपीने नेदी शकाय एवां पण तेणीना वज्रसरखां हृदयने क्रीमामात्रमा भेदीने कुशाग्रबुध्विालो ते ध. म्मिल तेमां दाखल थयो. // 21 // पनी मनोहर नेत्रोवाळी तेणीए तेने मिष्ट वचनोथी बोलाव्यो, केमके चित्तने चोरनारां वचनोनी नत्पत्तिनां स्थानकरूप ते वेश्याज . // 5 // हे प्रा. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #141
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- कल्पं विना सिघरसः / सेवधिः शासन विना // पुष्पं विना फलं लेने / सहसाद्य त्वदागमे / / साई // 54 // कलापरीदनेऽस्त्वं / प्रियो मे नृपसंसदि // श्मं गेहमिदं देहं / तन्नीतिज्ञ कृतार्थय / / // 55 // सौनागिनेय नेयत्या-र्थनया यदि तिष्टसि // तत्प्रयास्यसि मे हत्या-पापपंकस्य पात्र 140 तां // 56 // नवाधिकारिजिस्तस्या / वचनैस्तन्मनःस्थिताः // निस्वास्यंत ते साधू-पदेशाः प्रा. मियोगिनः // 17 // यातायांतं पुरा पौरा-श्चक्रुस्तन्मंदिरे न के / स्थिरलाम वायातः / सौरंदिन घरस मल्यो, कोश्ना कहेवाविना निधान मव्यु, तथा पुष्पविना फल मन्यु ने. // 14 // राज सनामां मारी कलानी परीदासमये आप मने प्रिय थ पड्या गे, माटे हे नीतिज्ञ! आप या मारं घर अने शरीर कृतार्थ करो? / / 55 // वळी हे सौनग्यवान मारी बाटली प्रार्थनाथी पण जो थाप नहि रहो तो हुँ जे आपघात करीश ते पापरूपी कादवना आपने गंटा नडशे. // 56 // | एवी रीते तेणीना वचनोरूपी नवा अधिकारिनए तेना मनमां रहेला साधुना नपदेशरूपी पू. वना अधिकारीनने दूर कर्या. // 27 // पूर्व तेणीने घेर कया पुरुषो न पावता तथा पाग ज | ता? परंतु या धम्मित तो जाणे स्थिरलममां याव्यों होय नहि तेम त्यांथी पागे वत्यो नहि.) P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Frust
Page #142
--------------------------------------------------------------------------
________________ सार्थ 141|| धम्मि- पुनर्ययौ / / 57 // एतदाकर्ण्य मित्रेन्यः / सुन्नडा मुमुदेतरां // दृष्ट्वा मोदं सर्मिण्याः / सुरेखोऽ. प्यन्वमोदत // 27 // स्वस्थानगाया वेश्यायाः / सुरेंद्रः प्राहिणोदथ // अवमर्णीव दीनारा-ष्टसहस्रं दिने दिने // 60 // वेवराई घृतं गव्यं / जस्मनीव मया दहा / कुपात्रे न्यस्यते न्याय-पु. एयक्षेत्रोचितं धनं // 61 / / परं करोमि कि नारी-वाग्दादिष्यनियंत्रितः // सुवृत्तोऽपि गले बकः |स्त्रीलिः दिप्तोऽवटे घटः // 6 // एवं चिंतयतस्तस्य / पस्पंदे वाममीक्षणं / जीवतो मे न पु. // 50 // हवे ते मित्रो पासेथी ते वृत्तांत सांजळीने सुभा अत्यंत हर्ष पामी, तथा पोतानी स्त्री. नो हर्ष जोश्ने सुरेंद्र पण तेनुं अनुमोदन करवा लाग्यो. // एए / हवे ते सुरेंदत्त जाणे ते वे. श्यानो करजदार होय नहि तेम तेणीने घेर बेगंज रोजे रोज आठ हजार सोनामहोरो मोकलो थापतो तो. // 60 // अरेरे! घेवर बनाववालायक गायनुं घी जेम राखमां तेम न्यायपूर्वक पु. एयक्षेत्रमा वापरवालायक धन हुं कुपात्र ने आपुं ई, // 61 // परंतु शुं करुं के स्त्रीना वचननी दाक्षिण्यताथी बंधायेलो बुं केमके उत्तम गोळाकार घडाने पण स्त्रीने गळामां (दोरहुं ) बांधीने | कुवामां जतारे जे. // 6 // एम विचारतांथकां तेनी डावी आंख फरकी, थने तेथी तेणे विचा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #143
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि-त्रोऽयं / संगतेत्युन्निनाय सः // 63 // स्नानजोज्यादिनक्याथ / सा तथा तमरंजयत् // न मातरं मान पितरं / न बंधून स यथास्मरत् // 64 // स्वं स्वं मनःपणं कृत्वा / कदाचित्तौ परस्परं // मुत्कंद बीजसंकाशैः / सारिपाशैरदीव्यतां // 65 // यादौ मृदु ततो मध्यं / ततस्तारं कदाचन // तौ गा. 142 यंतावशोजिष्टां / किं न किन्नरयुग्मवत् // 66 // प्रश्नोत्तरैः प्रहेलानिः / समस्यानिर्वदावदैः // कदाचिदनुचक्राते / गीष्पतिं च गिरं च तौ // 67 // यः पूर्व कामिनीनाम-श्रवणेनाप्यखिद्यत // र्य के हवे मारा जीवतां या पुत्रनो मने मेलाप थवो नथी. // 63 // हवे स्नान तथा जोजनयादिकनी नक्तिथी ते वेश्या ते धम्मिलने एवो तो खुशी करवा लागी के जेथी तेने माता पिता के बंधुन पण याद अाव्या नहि. // 64 // पड़ी कोश्क समये तेन बन्ने पोतपोताना मनः नी शरत करीने परस्पर हर्षरूपी कंदना बीजसरखा सोगगं पासाथी रमता हता. // 65 // वळी प्रथम धीरे पनी मध्यम रीते तथा पनी जंचे खरे गाता एवा तेन बन्ने शुं किन्नरनी जोडी. नीपेठे शोजतां नहोतां // 66 // वळी को वखते प्रश्नोत्तर हरीयाली समस्या तथा वादविवादथी | तेन बन्ने बृहस्पति तथा सरस्वतीनुं अनुकरण करता हता. // 67 / / जे धम्मिल पूर्व स्त्री- फक्त P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #144
--------------------------------------------------------------------------
________________ ' धम्मि- वेश्यावश्योऽजवत्सोऽपि / विग्धिगिंद्रियचापलं // 6 // यो नाभुंक्त पुरा पित्रो-प्रणम्य क्रमां- मार्थ | बुजे // तच्बुधिमपि नाप्रादी-देश धिग् रमणीरसं / / 65 // योऽनृत्याग निर्निमेषादो / मुनी. नां मुखवीकणे // तन्नामास्य शिरःशूलं / चक्रे धिक्कामवामतां // 70 // धर्म्यश्रुतैनवनवै-यन्मनः 143 प्रागवास्यत / तऽ गणिकावाक्य-धिग्यौवन विम्वनां / / 71 // यैर्वयस्यैः समं प्रीतिः / प्रागदि. नाम सांगळ्वाथी पण कंटाळतो हतो, ते पण वेश्याने वश थर गयो, माटे धिक्कार ने इंजिनी चपलताने. // 60 // जे पूर्व मातपिताना चरणकमलोने नम्याविना नोजन पण करतो नहि, ते श्रा बाजे तेजना खुशीखबर पण पूबतो नथी, माटे धिक्कार ने स्त्रीरसने. // 65 // जे पूर्व मु. निनु मुख जोवामां निमेषरहित चक्षुनवाळो हतो, तेने बाजे ते मुनिनु नाम पण मस्तक मां शूल नपजावनाएं लागे , माटे धिक्कार ने कामना विपरीतपणाने. / / 70 // जेना मनमां पृ. र्वे नवां नवां धर्मशास्त्रोनां वचनो वसी रह्यां हतां, ते मन याजे वेश्याना वाक्योए रोधी राख्यं. | माटे धिक्कार ने यौवननी विनंबनाने. // 71 // जे मित्रोसाथे पूर्व जरा पण विरह न सहन थप के एवी प्रीति हती, तेजनी मित्राश्ने बाजे ते पोताना नोगोना विघ्नरूप मानवा लाग्यो, मा. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #145
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- रहासहा / / सोऽमस्त जोगविघ्नाय / तमोष्टी धिग्मतिब्रमं // 7 // एवं काले हयारूढ / सत्वमा रंगत्वरे. // तज्जनन्यन्यदावादी-विमुक्ताऽदीनकं धवं / / 73 / / समर्पितः सुतः स्वामि-पुण्या य पणस्त्रियः // तदस्तु दूरे दुःप्रापं / तस्य दर्शनमप्यत् // 14 // बहुनिर्दिवसैरास्य-मपि पु. 144 त्रस्य विस्मृतं // हाहा दुःखामिना दग्धा / सुन्द्राद्यापि जीवति // 55 // घटी घस्रति घस्रोऽपि / मासत्येषोऽपि वर्षति // वर्ष युगति मे हर्ष / पुतालोकोनवं विना // 16 // चेन्मामिबसि जीवंती टे. धिकार में तेजना मतित्रमने. // 72 // एवी रीते जाणे घोडे चड्यो होय नहि तेम केटलो. के समय गयाबाद तेनी माताए एक दिवसे निश्चिंत थ बेठेला पोताना जरिने का के, // // 3 // हे स्वामी! जे चतुग शिखवामाटे यापणे पुत्रने वेश्याने सोंप्यो , ते चतुराई तो तेनी दूर रही, परंतु हवे तो.तेनुं दर्शन पण दुर्लन थर पडयु. // 14 // घणा दिवसो व्यतीत थवायी है तो पुत्रनुं मुख पण विसरी ग बु. अरेरे! एवा दुःखामिथी बळेली था सुनना हजु जीवती बेठी में! // 15 // पुत्रने जोवाथी उत्पन्न थयेला हर्षविना मने एक घमी एक दिवस जे. |वी लागे , धने दिवस महिना जेवमो लागे , अने महिनो पण वर्ष जेवलो लागे ने अने | PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #146
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- / तदा तनयमानय / अन्यथा मे प्रियप्राणा / न तिष्टंति धृती अपि / / 77 // जाननपि. धियां धाम / सुरेजस्तदनागमं // प्रैषीदुपसुतं भृत्यान् / सद्यः पन्याः समाधये / / 70 // गतास्ते वेश्म वे. श्याया / एवं धम्मिलमूचिरे // वत्स वत्सलमाता ते / सकृदर्शन मिति // 70 // जातोऽप्यजात. वन्मातु-स्त्वं जातोऽसि गुणाकर // यत्तुल्यं त्वदनालोक-दुःखमद्यापि पूर्ववत् // 70 // गतांगवर्ष एक युग जेवहुं थर पडेबुं . // 6 // हवे हे स्वामी ! जो आप मने जीवती जोवाने इ. बता हो तो पुत्रने लावो? नहिंतर मारा था वहाला प्राण जाली राख्यायी पण रहेवाना नथी. // 7 // त्यारे ते बुझिवान सुरेंद्रदत्ते विनायु के ढवे ते धम्मिल पागे तो आववानो नथी, तो पण तेणे पोतानी स्त्रीना मनना समाधानमाटे तुरत नोकरोने पोताना पुत्रपासे मोकल्या. || तेनए वेश्याने घेर जश् धम्मिलने कडं के हे वत्स! तारी प्रेमाळ माता तने एकवार जोवाने इ. बेबे // // वळी हे गुणवान! तुं जन्म्या बतां पण तारी माताने तो अजन्म्या जेवो ई, के. मके तने नहि जोवानुं तेणीनुं दुःख तो हजु पण पूर्वनीपेने सरखंज रहां जे. // 70 // आज | गतमा उ ऋतु गमनागमन करे , परंतु तारी माताना शरीरमां तो जनाळो अने अांखोमांव ) Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC. Gunratnasuri M.S.
Page #147
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि तं जगत्यत्र / ऋतवः षट् प्रकुर्वते // अंगे ग्रीष्मो दृशोर्वर्षा / मातुस्ते ध्रुवतां ययुः // 1 // तदे। सार्थ हि देहि सौहित्यं / मातुरातुरयोदशोः // जिनानामपि यन्मान्या / माता दुःकरकारिणी // 7 // | महीनहितहक्सोऽथ / प्रत्यूचे तानपत्रपः // इहस्थस्यैव मे पित्रोः। प्रणामं कथयेत नोः॥ 3 // | मयेदं निर्वृतिस्थानं / प्राप्तं पुण्यप्रसादतः // ततः किं वलितः कोऽपि / यहालयति मामितः ॥ज्या माता प्रिया भवेद् बाल्ये / प्रियेयं यौवने पुनः // वितन्वंति वयोवस्था-व्यत्ययं न विवेकिनः // ऋतु निश्चल रहेला . // 1 // माटे तुं चाल घने तारी यातुर मातानी अांखोने मक श्राप ? केमके जिनेश्वर प्रचलने पण माता माननीक बे, कारण के ते पुत्रमाटे घाणु कष्ट सहन करनारी ने. // 2 // त्यारे जमीनतरफ दृष्टि करीने ते निर्लङ धम्मिले कयु के, मारा मातपिताने तमारे कहेवू के हुँ यहीं बेटोज आपने नमस्कार करुं बु. // 73 // वळी पुण्ययोगेज म. ने या निवृत्तिनुं स्थान मट्युं , तेम तेवां निवृत्तिस्थानथी शुं को पागे वल्यो ? के जे मने यही ते पागे वाळवानो प्रयत्न करे ! // 4 // माता तो बाल्यावस्थामां प्रिय होय , परंतु / यौवनावस्थामां तो या स्त्री प्रिय थ पड़े , माटे विवेकी पुरुषो उमरयोग्य व्यवस्थामा फेरफार P.P. Ac: Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #148
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- // 5 // ततो निवृत्य भृत्यास्तत्-प्रणाम जनकांबयोः // जगुः समग्रतबुद्धि-निवेदनपुरस्सरं / / सा // 6 // दुर्दर्श दर्शसंपृक्तं / बुध्वा विधुमिवांगजं / सुन रुदती मुक्त-कंठं श्रेष्टी न्यवारयद् // // 7 // वद कल्याणि कोऽयं ते / विषादः परुषावदः // असृक्पलालशोषार्थ-मकांडे समुपस्थि१४७ तः // 7 // खतो वा परतो वापि / यस्य नास्ति विवेकडक // यस्तोकतोयकूपांतः / पातस्तस्य न चित्रकृत् // नए // नपवेश्यं स्वयं प्रेष्य / पुत्रं यो दिदृदसे // अहो जयति जाडयेन / का मिनी पौषयामिनी // 50 // जालान्मुच्येत मीनोऽपि / वीतंसाद्याति पक्ष्यपि // गजोऽपि गबत्या करता नथी. // 5 // पछी ते नोकरोए त्यांथी पाग फरीने धम्मिलना मातपिताने तेना सर्व स. माचार कहीने तेणे (त्यां बेगंज करेलो) नमस्कार कह्यो. // 76 // अमावास्याना चंद्रनीपेठे पुत्रने दुर्दर्श जाणीने मोटेथी रडती सुनडाने शेने निवारी. // 7 // वळी ते बोल्यो के हे क. व्याणि! था अचानक रुधिरमांसने शोषनारो अतिशय खेद तने शुं प्राप्त थयो ? // 7 // | पोतानी मेळे अथवा परथी जेने विवेकदृष्टि नथी, ते जंडा जलवाळा कुवामां पडे तेमां शं नवा. |जे? |नए || वळी तुं पोते पुत्रने वेश्यापासे मोकलीने फरीने तेने जोवानी ना करे ! Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.
Page #149
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- लानात् / स्त्रीपाशान पुनर्नरः // 91 // पित्रादिषु प्ररूढस्य / स्नेहस्यापि न उर्घटं // धान्यवद्दलनं / सार्थ यत्र / स्त्रीघरट्टः स नूतनः // 55 // यत्कर्माऽदीर्घदृश्वानः / कुर्वति कुमतीरिताः // कालेऽनुशेरते तेन / तेऽनिशं स श्व विजः // 3 // तथाहि१४ कोलाकसन्निवेशेऽद् / जूदेवः सोमिलानिधः // बाल्ये त्यक्तः पितृन्यां यो / दारिद्येणाहतः | अहो! पोष मासनी रातिसरखी स्त्री जाड्यथी (मूर्खाश्थी) वर्ते . // ए०॥ मत्स्य पण जाल. मांथी मूकाय , पदी पण पाशमांथी बुटी जाय , तथा हाथी पण तेना बंधस्तंचथी बुटी जाय बे, परंतु पुरुष स्त्रीना पाशथी बुटी शकतो नथी. // 1 // ज्यां स्त्रीरूपी आश्चर्यजनक घंटी रहेली बे, त्यां मातपितादिकमां नत्पन्न थयेला स्नेहनुं पण धान्यनीपेठे दनवं कई असंजवित नथी. // // ए॥ जे माणसो कुमतिथी प्रेराश्ने दीर्घदृष्टि पहोंचाड्याविना कार्य करे , तेन पाउळयी ब्राह्मणनीपेठे हमेशां पश्चात्तापमां पडे . // 53 // ते ब्राह्मणनुं दृष्टांत कहे - ___ कोल्हाकनामे गाममां सोमिल नामे एक ब्राह्मण रहेतो हतो, परंतु बाल्यपणामां ज्यारे मा. तापिताए तेने तजी दीधो, त्यारे दारिद्ये पागे तेने ग्रहण कर्यो. / / 64 पी तेणे लोकोपा. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #150
--------------------------------------------------------------------------
________________ - सार्थ 14 धम्मि- पुनः // 4 // संचिकाय धनं किंचि-द्याचं याचं जनानसौ / / दारकर्म च निर्माय / नेजे स्नातः / कतामपि // 55 // पुत्रपौत्रादिविस्तारं / तारं पाप क्रमेण सः // बीजेऽटपेऽपि किया जातो / वटवृदस्यः मंबरः // ए६ // कदाचिचिंतयामास / निशांते स निशातधीः // तावन्मनाग्मया लब्धमधनेनाधुना धनं // 7 // वीदितानेकदुःखस्य / न मे कृपणतोचिता // को वेत्ति विादद्योतचंचलायाः श्रियो गति // ए // कारयिष्ये सरः स्वल्पं / तदयविनवोऽप्यहं // पश्चादपि जनो से जीख मागी मागीने कईक धन एक कर्यु, तथा पनी ते परणीने गृहस्थपणामां पड्यो. // // 55 // पनी अनुक्रमे तेने पुत्रपौत्रादिकनो घणो परिवार थयो, जुन के स्वल्प बीजमांथी पण वमनो केवडये विस्तार थाय ? // 6 // एक दिवसे ते बुध्विान ब्राह्मण परोढीये विचारवा लाग्यो के, घरे! मने निर्धनने हवे कक धन पण मन्यु ने, // 7 // में घणां घणां दुःखो सहन कर्या ने, माटे हवे मारे लोग करवो नचित नथी, केमके विजळीना चमकारासरखी चं. |चल लक्ष्मीनी गति कोण जाणी शके ? // // माटे स्वल्प धन उतां पण हं एक तळावब |नावोश, के जेथी पाळयी पण लोको मारुं नाम जाणी शके. // एपरी तेणे सार। जमी. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #151
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- येन / जानी नाम मामकं // 7 // अथो किंचिधनबलात् / किंचिदपुरुपक्रमात् // स विना. माई व्य भुवं जव्यां। तमागं निरपीपदत् / / 700 // समये ग्रीष्मजीष्पल-वारिणा मेघवारिणा // सत्रा | मनोरथैस्तस्या-पालिप्रांतमपूरि तत् // 1 // छाया गयाऽमैरेव / वारिपूर्णेऽपि पवते // दृष्टिः | स्पष्टापि शोनेत / किमु नूवल्लरी विना // 5 // श्यसौ कुंदमाकंद-मुख्यान वृदानरोपयत् / / तत्पा. लौ पालितास्तेन / ते निजांगा वाजवन् // 3 // विधाप्य स्वोचितं देव-कुलमाराममंडनं / स न जोश्ने कक धनबलथी तथा कक शरीरबलथी त्यां एक तळाव बनाव्यु. // 70 // पी व र्षाकाळमां ननाळानी जयंकरताने वारनारा वरसादना जलथी तेना मनोरथसाथे ते तळव बेक पानी किनारीसुधि भरा गयु. // 1 // जलथी घरेला तळावमां पण गयावान वृदोयीज ग. या थ शके में, केमके एकली अांख नमरविना कई शोभे ? // 2 // एम विचारीने तेणे ते त. बावने किनारे मोलर बायादिक वृदो रोप्या, तथा तेनुं रक्षण कर्याथी तेन पोताना . गनीपेठे जबरी श्राव्यां. // 3 // पछी त्यां ते बगीचाने शोगावनारुं एक देवमंदिर पोतानी शक्ति मुजब करावीने तेमां तेणे पोताना अभिष्ट देवनी मूर्ति स्थापन करी. ॥धा पनी ते कहेवातो बा. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.
Page #152
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि-| तत्राजिष्टदेवस्य / प्रतिमां समंतिष्टपत् // 4 // प्रतिवत्सरमेकैकं / तत्पुरः स विजब्रुवः // अकल्पय दर्ज हंतु-मबलं बलिकर्मणे // 5 // पांपाधिकरणं धर्म-मिषादेवं प्रवर्त्य सः // बनार परमांप्री| तिं / क नु मिथ्यादृशां कृपा // 6 // पुत्रेषूपदिशंश्गग-बलिं स मरणदणे // विपद्य सद्यस्तट्या 151 | न-वशः पशुगतिं गतः // 7 // तस्मिन्नुपरते तस्य / तनयाः प्रतिवत्सरं // पूर्ववनिःकृपास्तत्रै कैकमालेगिरे पशु // 7 // स एव पितृजीवाजो-ऽन्यदा तैः पशुवाटके / / ददृशेऽविमरीसेन / मत्तोह्मण ते देवनीपासे दर वर्षे एक निर्बल बकराने मारीने बलिदान करवा लाग्यो. // 5 // एवी रीते धर्मने बहाने ते पापारंननुं कार्य करीने अत्यंत खुशी थवा लाग्यो, केमके मिथ्याष्टिनने दया ते क्याथी होय? // 6 // पी मरणसमये ते पोताना पुत्रोने बकराना बलिदाननो उपदे. श देश मरीने तुरत तेज ध्यानने लीधे ते तिर्यचगतिमां गयो. // 7 // हवे तेना मृत्युबाद ते पुत्रो दर वर्षे पूर्वनीपेठे निर्दय थश्ने त्यां एकेक पशुने माखा लाग्या: / / // पनी एक दिवसे बकरारूप थयेलो तेज पोताना पितानो जीव तेनए पशुनना वामामां जोयो, त्यारे गामरन दव पीपीने पुष्ट थयेलो या बकरो ठीक में, एम विचारीने तेनए ते लीयो. // ए॥ हवे ते बकरो P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #153
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि ऽयमिति चाददे // // // श्रय स्वावनं पश्यं-श्चिरं परिचितं पुरा / / प्राग्जन्मनः स सस्मार।जासाई विमृत्योर्विघ्नाय च // 10 // अयावधिदिने प्राप्ते / करुणारसजंगलैः / / क्रूरैर्व कैखिोल्युंठ-बटुनिर्वे ष्ट्यतेस्म सः // 11 // वाद्यानि वैदिकोजारा / गौरीणां कलंगीतयः // नास्य शुष्कतृणास्वाद१५२ स्यापि तुल्यामदुर्मुदं // 12 // कंथचिद् बालबटुभिः / क्रम्यमाणः पदात्पदं // गलः स गने ब. | ध्वा / ग्रामाद्रहिरनीयत // 13 // दिजानुद्देजयंते तं / कुवैतं बर्करावं // वीक्ष्य वृदातलासीनः / पूर्व घणो काळ भोगवेला पोताना घरने जोश्ने पूर्वनो जन्म याद करवा लाग्यो, तथा (पोता. नां) थनारां मृत्युथी डरवा लाग्यो. // 10 // पजी ज्यारे निर्णय करेलो दिवस आव्यो त्यारे निर्दय तथा क्रूर वरुसरखा ते नवंठ ब्राह्मणोए तेने घेर्यो. // 11 // ते वखते वागतां वाजित्रो, वेदना ध्वनि, तथा स्त्रीननां मनोहर गीतों ते बकराने सुका घासना स्वाद सरखो हर्ष पण न दे. बा लाग्यां. // 12 // ब्राह्मणना बालकोथी केटलीक महेनते पगले पगले चलावाता ते बकराने गळे बांधीने गामनी बहार ले गया. // 13 / / एवी रीते ब्राह्मणोने कंटाळो बापता तथा दीन | स्वरथी पोकार करता ते बकराने जोश्ने त्यां वृदानीचे बेठेला कोश्क साधुए कह्यु के, // 14 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #154
--------------------------------------------------------------------------
________________ - सार्थ | धम्मि- साधुः कोऽप्येवमूचिवान् // 14 // स्वयमेव कृतं सरस्त्वया / तरवश्व स्वयमेव रोपिताः // विधृतः स्व कृतोपयाचिते / छगल त्वं विविवीति रौषि किं / / 15 // एवं मुनिनरेंद्रस्य / श्रुत्वा वाग्मंत्रमुत्तमं // अनश्यन्मनु मेषस्य / दुःख विषमिवोरगं // 16 // अथ शांतव्यथं मेष-मशद्धं मंकु चारिणं // 153 | विलोक्य विस्मिता विषा / अपातर्मुनिपुंगवं // 17 // किम जाणि त्वया शिदो। येनायं निर्वतः पशुः // इति तैर्जाषितोऽनाणी-न्मुनिस्तामेव गीतिकां // 10 // विद्मस्त्वदुक्तभावार्थ / वयं नो. | हे बकरा ते पोतेज तळाव बनाव्यु बे, अने वृदो पण ते पोतेज रोप्यां , तेम ते पोते करेली | मानतामांज तुं पकडायो ने, माटे तुं 33 करतो शामाटे रडे . // 15 // एवी रीते ते मुनिरा जना वचनरूपी उत्तम मंत्र सांजलीने सर्पना फेरनीपेठे ते बकरानुं दुःख तुरत नाश पाम्यु. // // 16 // हवे ते बकराने दुःखरहित कई पण शब्दविना जलदी चालतो जोश्ने आश्चर्य पामेला ब्राह्मणोए मुनिने पूज्युं, के, // 17 // हे निक्षु! तें शुं कडं के जेथी था पशु शांत थ गयो? एवी रीते तेनए पूजवाथी मुनिए तेज काव्य कह्यो. // 17 // अमो जंजी बुछिवाळा तमारां वचः ननो जावार्थ समजी शकता नथी, एवी रीते ब्राह्मणोए कहेवाथी मुनिए बकरानो पूर्वगव कहो. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #155
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- त्तानबुष्यः // इति विप्रैर्मुनिः प्रोक्त-गगस्य प्राग्नवं जगौ // 15 // ततो जातिमदामातसाई कोपाः सर्वेऽपि वाडवाः // वाडवामिवदुज्ज्वाला -शुक्रुशुस्तं तपःकृशं // 20 // किमेवं नापसे नि: दो। वातकीवासमंजसं // पिता नः स्वरबल्लेखो / मेषोऽयमपरः पुनः // 11 // यः स्वमंत्रबलान्नै१५४ | कान् / नाकं निन्ये पशूनपि // दुर्गतिं वदतस्तस्य / जिह्वा ते शटिता न किं // 22 // ऊचे सु. धामुचं वाचं / वाचंयमशिरोमणिः // अहो विजा अजान द्भिः / किं वृथैवं प्रजटप्यते // 3 // य. // 17 // त्यारे जातिमदथी क्रोधातुर थयेला ते सर्वे ब्राह्मणो वडवामिनीपेठे जाज्वव्यमान थइ. ने तपथी दुर्बल थयेला ते मुनिप्रते कोप करवा लाग्या. // 20 // अरे निक्षु ! तुं वाएलनी मा फ़क पाईं जूठं शामाटे बोले ? अमारो पिता तो देवलोकमां देव थयो , या बकरो तो कोश्क बीजो जे. // 21 // वळी हे शिक्कु ! जे अमारा पिताए पोताना मंत्रबलायी अनेक पशन ने देवलोकमां पहोंचाड्या , तेनी दुर्गति कहेतां तारी जीन सडी केम न गइ? // // सारे ते मुनिराज अमृतसरखी वाणी बोख्या के अहो ब्राह्मणो! अज्ञानने लीधे तमारे फोकट शामाटे | एम कहेवू पडे ले ? // 23 // मुनिन जीव जाय तो पण जूतुं बोले नहि, माटे जो तमो धीरा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #156
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- तयो जीवितांतेऽपि / जापते न मृषा ततः // स्वस्थाः स्थः संशयं मेष / एष एवापनेष्यति // // सार्थ अयं जातिस्मरश्गगः / क्रियतां मुक्तबंधनः // नीतः स्वं सदनं गुप्तं / धनं वो दर्शयिष्यति // 25 // ततस्तैर्विस्मितैर्निन्ये / विबंधः स्वं गृहं छगः // अदर्शयत् खुराघातै-र्धरांतर्निहितं धनं // 26 // अ. - 155 | जाद हिजातयो जैने / मते जातप्रतीतयः // एत्य साधु स्वापराधं / दमयामासुराशु ते // 27 // मुनिनिखनिर्मत्वा / गाविनस्तानुपासकान् // न्यवेदयद्दयाधर्म-मन्यतीर्थिदुरासदं // 27 // नो थशो तो या बकरोज तमारो संशय दूर करशे. // 24 // आ बकराने जातिस्मरण झान थयु जे, माटे तेने बंधनरहित करी पोताने घेर ले जवाथी ते पोते गोपवेद्यं धन तमोने देखामशे. // // 25 // त्यारे तेज याश्चर्य पामीने तेने बंधनरहित करी पोताने घेर ले गया, तथा त्यां तेणे पोतानी खरीथी खोदीने जमीनमां दाटेबु धन तेखाडयुं. // 26 // एवी रीतनां बकराना पाचरणथी जैनधर्ममां प्रतीतिवाळा थयेला ते ब्राह्मणो तुरत ते मुनिपासे यावीने पोतानो अपराध ख माववा लाग्या. // 27 // ज्ञाननी खाणसरखा ते मुनिए पण तेनने श्रावको थनारा जाणीने छ न्यतीर्थानने दुर्लग एवो दयाधर्म तेजपासे निवेदन कर्यो. // 27 // अरे केटलाक गम्मती देवो Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #157
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि जोः केलिप्रियाः केऽपि / कारयति वधं सुराः / केखिमात्रं भवेत्तेषा-मन्येषां जीवितत्रुटिः // 20 // सार्थ वेदोक्तोऽपि .वेडीव-वधः पापनिबंधनं // अंगोधादपि संतो। दहतीरंमोदो न किं // 30 // नीरागाः स्वर्गतौ गगा / हूयते श्रोत्रियैर्यथा // प्रिया तथा विप्र-कुलं किं ते न जुह्वति // 156 // 31 // श्रात्मानं जुहयुश्चेत्ते / तत्पश्चादकुतो जयं // तृणाश्यपि गगकुलं / नुक्ते स्वर्गाधिक सु. खं // 35 // वधं विदधते येऽत्र / वैधेया धर्म हेतवे / / तेंगारनारं वर्षेति / विवर्षयिषवों वनं // 33 // जीवहिंसा करावे , तेमां तेने तो फक्त गम्मत मळे ने, परंतु अन्योना जीवितनो विनाश थाय . // 25 // वेदमां कहेली जीवहिंसा पण पापोना कारणरूप थाय ने, केमके वादळांमांयी उत्पन्न थयेली वीजळी पण शुंबाळती नथी? // 30 / / स्वर्गमां मोकलवामाटे जेम ते वेदीया ब्राह्मणो निरपराधी बकरानने (अमिमां) होमे , तेम स्वर्गानिलाषी ब्राह्मणकुलने तेन शा माटे होमता नथी? // 31 // वळी जो तेज पोतानेज (अमिमां) होमी दे तो पनी तेजने कोश्नो पण जय रहे नहि, अने घास खाना बकरानुं कुल पण स्वर्गथी अधिक सुख नोगवे. // 35 // जे नोच पुरुषो यहीं धर्मने बहाने वध करे , तेन अंगारानो वरसाद वरसावी वनने P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #158
--------------------------------------------------------------------------
________________ सार्थे / धम्मि- मिथ्यात्वबूकाकुलिता-शंसाः संसारजंगले // निपीय साधोरित्युक्ति-सुधां मुमुदिरे विजाः // 34 // अथानयं ददुर्विप्राः / प्रपन्नजिनशासनाः // न केवलं गस्यास्य / सर्वेषामपि देहिनां // 35 / / अजवे स द्विज श्व / स्वकृतेनैव कर्मणा // संप्रत्यनुशयाना त्वं / कमवष्टंगमाप्स्यसि // 36 // वि. धाय रभसा कार्य / यदेतदनुशोचनं // ज नद्राकृते मूर्ध्नि / तन्मुहूर्त्तविवेचनं // 37 / साथ प्रो. चे शुचा रुक-कंग कुंगदरां गिरं // प्राणेश मा दते दारं / क्षेप्सीमावियोक्तिभिः // 3 // वधारवानी ना करे . // 33 // या संसाररूपी जंगलमां मिथ्यात्वरूपी बूथी व्याकुल थयेला ते ब्राह्मणो साधुनी एवी रीतर्नु वाणीरूपी अमृत पीने अत्यंत आनंद पाम्या. // 34 // पछी ते ब्राह्मणोए जैनधर्म अंगीकार करीने केवल ते बकराने नहि, पण सर्व प्राणीनने अजयदान था. प्यु. // 35 // एवी रीते हे प्रिये! जेम बकरो थयेलो ते ब्राह्मण तेम पोतेज करेलां कार्ययी ह. वे पश्चात्ताप करवाथी तने कोण थालंबनरूप थशे? // 36 // माटे एवी रीते हे भा! साहसकार्य करीने पनी जे पश्चाताप करवो ते माथु मुंडाव्याबाद मुहूर्त पूजवा जेवू . // 37 // हवे शोकथी कंठ रंधावाथी सुनद्राए लथडतां वचनथी कह्यु के हे स्वामी! आप ावां मर्म नेदनारां P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #159
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- हिताहितविमर्शोऽयं / केवलं दुर्यशश्निदे // फलंति प्राक्कृतान्येव / कर्माण्यत्र शरीरिणां // 35 // सार्थ विचारपूर्व कुर्वतु / कार्यमार्यधियो जनाः // दैवमेवानुवर्तते / फलकाले तु सिध्यः॥ 40 // दैवा. | यत्ताः श्रियः सर्वा / नूनं गौणो गुणाग्रहः // कुविंदाः पतिता गर्ने / शश्वजुणरता अपि // 1 // 157 व्यवहारविदे सूनो-र्यन्मया कर्म निर्ममे // तददंगदाहाय / घिगिमा वामतां विधेः / / 42 // यः | शास्त्रे पारगः प्रेदा-पूर्वकारी कलास्पदं // सोऽपि लीलायितं वेत्ति / न धातुः स श दिजः // 43 // | वचनो बोलीने घा नपर खार नाखो नहि. // 30 // वळी हित अहितनो या विचार केवल अ. पयशनो नाश करनार बे, बाकी तो अहीं प्राणीनां पूर्वे करेलां कर्मोज फळे जे. // 30 // बुघिवान माणसो भले विचारपूर्वक कार्य करो, परंतु फलसमये कार्यनी सिधि तो कर्मने अनुसा रेज थाय . // 40 // सर्व संपदान देवने बाधीन के गुणोनुं ग्रहण तो तेमां खरेखर गौणरूप बे, वणकरो जो के हमेशां गुणोमांज ( तंतुमांज ) रक्त , तां तेन खामामां पडेला . // // 41 // पुत्रने दुनियाना व्यवहारथी वाकेफ थवामाटे में जे कार्य कयु, ते नलर्ट ( मारां) श. / रीरने बाळ्नारुं थयु, माटे विधाताना या विपरीतपणाने धिक्कार बे. // 42 // जे शास्त्रोनो पारं. P.P.AC.Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #160
--------------------------------------------------------------------------
________________ सार्थ धम्मि. तथाहि पदे पदे स्फुरदृप्र–स्थपुटीकृतरिति / / दुर्निदरदसो दुर्गा / देशोऽस्ति मगधानिधः // 44 // तत्र ग्रामोऽनिरामोऽस्ति / सुग्राम इति विश्रुतः // शाकान्नांबुसुखी पौरा-नजुगुप्सत य. ज्जनः // 45 // ऋछेऽपि तत्र फलिते / तैलिनि तिलपिंजवत् // दिजो दौस्थ्यरजोलुप्त-देहश्रीर नवविवः // 46 // मुक्त्वा दारिद्यमेकं स / नासीत् कस्यापि वल्लनः // आसीन तस्य सत्तायां / गामी, नजर पहोंचाडी कार्य करनारो तथा कलावान , ते पण ब्राह्मणनीपेठे विधातानी चेष्टाने जाणी शकतो नथी. // 43 // ते ब्राह्मणनुं नदाहरण कहे - पगले पगले फालेला खेतरोथी ज्यां जमीन ढंका गयेली, तथा ज्यां दुष्काळरूपी रादा स श्रावी शकतो नथी एवो मगध नामे देश . // 4 // त्यां सुग्राम नामे एक प्रख्यात बने मनोहर गाम , त्यां रहेनारा माणसो शाक अनाज तथा जलथी सुखी थयायका शहेरना लो. कोने पण पोताथी हलका गणता हता. // 45 // एवी रीते ते गाम समृध्विायु तथा फळे ह. | तुं, उतां पण त्यां तेली- शरीर जेम तलना कणोथी तेम दारिद्यरूपी रजथी जेना शरीरनी शो. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #161
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि-- किंचिदन्यत्क्षुधं विना // 4 // ब्राह्मण्यं ग्राहितः पित्रा / सोमदेवोऽस्य नंदनः // श्रास्पदं रूपरे / माम खायाः / सोमशर्मा च नंदिनी // 4 // बाल्य एव तयोर्माता / जाता प्रेताधिपातिथिः // प्रायो | ददाति दारिद्यं / सर्वासामापदां पदं // 45 // अस्या स्थाने न किं मामे-वाहरन्महिषध्वजः // . दुःखादिति वदन् विप्रः / कथंचित्ताववर्धयत् // 50 // किं भजामि वनं यामि / दुरं खानि खना| मि वा // एवं धनाशयानपान / विकल्पान विततान सः // 11 // दारुजारमुपानेतु-मनपाकाय जा नष्ट थयेलीबे, एवो एक शिव नामें ब्राह्मण वसतो हतो. // 46 // एक दारिद्यशिवाय ते कोश्ने पण वल्लग नहोतो, अने तेनी मालिकामां पण खशिवाय बीजं कई पण नहोतं. // | // 4 // पिताए जनो थापेलो तेनो सोमदेव नामे पुत्र हतो, तथा अत्यंत रूपवाळी सोमश र्मा नामनी तेनी पुत्री हती. // 4 // बाल्यावस्थामांज तेननी माता मृत्यु पामी हती, कारणके प्रायें करीने दरिद्रषाणुं सर्व आपदा थापे . // 4 // अरे! या मारी स्त्रीने बदले यम मने का न ले गयो! एवी रीते दुःखथी बबडता ते ब्राह्मणे केटलीक महेनते ते बन्ने बाळकोने महोटा .| कर्या. // 10 // शु 1 वनमां जालं ? के दूर जश्क्यांय खाण खोई? एवी रीते धननी बाशाथी ते | P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #162
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- सोऽन्यदा / / वन जगाम न ग्राम-जुषामियमपत्रपा / / 52 // वने वनेचरेणेव / ददृशे ब्रमता / मुना // योगी यो गीयते नाम्नां / रसज्ञ इति विश्रुतः // 53 // मन्येस्य दर्शनादेव / दुत दा | रियमुख्या // श्यानंदादवंदिष्ट / नृत्वा दंडायितः स तं // 55 // अचिरादत्स चूयास्त्वं / श्रीमानित्युऊगार सः / तदाशावीरुधो वृध्यै / वारिधारामिवाशिषं // 55 // श्रास्तां श्रीस्त्वयि संतुष्टे / सकला थपि सिध्यः // स्वयंवरा श्वैष्यति / मामित्यूचे हिजोऽपि तं // 26 // स ततः सततं न. अनेक विकटपो करवा लाग्यो. // 11 // एक वखते ते रसोमाटे लाकमानो गारो लेवाने व: नमां गयो, केमके गामडीया ने आq कार्य करवामां कई शरम थती नथी. // 55 // त्यां पशु. नीपेठे वनमां जमतांथकां तेणे एक योगीने जोयो, केजे रस जाणनार योगीना नामयो प्रसिक हतो. // 53 // हुँ धाएं बु के थाना दर्शनीज मारुं दारिद्य तो चूर्ण थ गयु, एवी रीते या.. नंदना श्रावेशथी तेणे जमीनपर लांबा पडीने तेने वंदन कर्यु. / / 24 // त्यारे ते योगीए पण तेनी आशारूपी वेलमीने पोषवामां जलधारासरखी मोटेंथी एवी आशीष थापी के हे वत्स! तं जलदी धनवान था ? // 55 // त्यारे ते ब्राह्मणे पण कडं के, हे योगीराज! आपनी कृपाथी ल. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #163
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- तिं / व्यधादवितथा तथा // शरदीव सरः प्राप / प्रसत्तिं योगिराद यथा // 17 ॥ानिन्ये माहि. पुढं / सुस्त्रातः स तदाझ्या // शौचवादो जिया नश्य-त्युबिते लोभरदसि // 27 // स्वयं | कुस्तपस्वीव / रसत्यागं रसाशया // स चिदालब्धतैलेन / पुर्व चिरमभावयत् // 55 // पागल - 165 / वत्स श्रीवत्स-मिव श्रीमचिरोमणि // यथा मंछ करोमि त्वा-मिति वर्षन वचोऽमृतं // 60 // पु. मी तो एक बाजु रही, परंतु सर्व सिधिन स्वयंवरानीपेठे मारीपासे यावशे. // 26 // पड़ी ते ब्राह्मण ते योगीराजनी हमेशां एवी तो खरा दिलथी चक्ति करवा लाग्यो के शरद ऋतुमां जेम तळाव तेम ते योगीराज पण खुश थर गयो. // 27 // पनी ते योगीनी आझायी स्नान करीने पाडान पुंगडं ले पायो, केमके लोगरूपी रादास ज्यारे नगो थाय त्यारे पवित्रपणानी वात तो जयथी नाशीज जाय . // 50 // वळी पोते सिक रसनी श्राशायी तपस्वीनी पेठे सर्व रसनो त्याग करीने जीख मागी मेळवेलां तेलथी ते पाडानुं पुंबहुं हमेशां भींजाववा लाग्यो. // 27 // हे वत्स! हवे तुं चाल के जेथी तने विष्णुनीपेठे जलदी श्रीमंतोनो शिरोमणि बनावं, एवीरीते वचनामृतने वरसतोयको // 60 // तथा हाथमा रहेलो पुस्तकथी देखाडेल रे सघळी विधि जेणे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust
Page #164
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- स्तकेन करस्थेन / सूचिताशेषपतिः // सह तेनाटवीं क्रामन् / पाप योगी गिरिं पुरः / / 61 ॥यु. मं // स चिरं संचरनद्रि-द्रोणीषु द्रविणाशया / / दृशदिलिखनै रक्त-करादिरगवद् दिजः // | // 65 // स्फुटस्फारस्फटाटोप-फणिफूत्कारदारुणं // अस्थिरस्थपुटस्थूल-प्रस्थस्थलदुरात्र मं // 63 // 163 जानुजीततमःस्तोम–स्थानप्रदमविदतां // श्ववस्येव मुखं कल्य-बलादिवरमाप्य तौ / / 64 // यु. ग्मं // स्निग्धमाहिषपुबान-जाग्रज्ज्वलनतेजसा / किंचित् प्रपंचिताध्वानौ / लेजाते रसकूपिकां एवो ते योगी ते ब्राह्मणने साथे लेश्ने वनमां चालतोथको एक पर्वतपासे यात्री पहोंच्यो. // // 61 // हवे धननी श्राशाथी पर्वतनी मेखला मां घणो काळ जमवाथी ते ब्राह्मण पथ्यरना घसारावडे करीने रुधिरना करणावाला पर्वतजेवो थयो. // 6 // प्रगटरीते विस्तारेल ने फणानो बाटोप जेनए एवा सोना फुफाडाथी जयंकर लागता, तथा अस्थिर दगलासरखा महोटा पथ्यवाळी जमीनथी कुःखे नलंगी शकाय एवा // 63 // तथा सूर्यथी मरेला अंधकारना समूहने निवासस्थान थापनारा नरकना मुखसरखा एक भोयरापासे आवीने तेज बन्ने मुश्केलीथी तेमां | पेग. // 64 // तेलमां नीजवेला पाडाना पुनमाने बेडे सळ्गावेला दीपकना तेजथा कइंकमा | P.P.AC Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #165
--------------------------------------------------------------------------
________________ सार्थ धम्मि- // 65 // योगिना दर्शितं तत्र / प्रासादं प्राविशद् हिजः // निधूमवर्तिदीपाय-माननानामणीमयं / / 66 / / योग्यूचे चो मां देवीं / विधि सिरसेश्वरीं // एतां प्रसाद्य सद्यस्वं / हेमाई रसमा. प्नुहि // 67 // 165 सोऽपि सन्निहिताराम-पुष्पैरन्यर्च्य देवता // पुरो बघांजलिः काव्यै--नव्यैरस्तु. | त तन्मनाः // 67 // सुरी परीदितुं तस्य / जतिं जक्तेषु वत्सला // वत्स तुष्टास्मि किंचित्त्वं / पा. | र्ग जोताथका तेज बन्ने एक रसकूपिकापासे याव्या. / / 65 // त्यां योगीए देखाडेला अने धू. माडा तथा वाटविनाना दीपकरूप थयेल ने विविधप्रकारना मणिन जेमां एवा एक मंदिरमा ते ब्राह्मण दाखल थयो. // 66 // पनी योगीए तेने कर्जा के हे विज या देवीने तुं सिघरसनी मा. लिक जाणजे, तेणीने खुशी करवाथी तने सुवर्णयोग्य रस जलदी मळशे. // 67 // . पजी ते ब्राह्मण पण नजदीक रहेला बगीचाना पुष्पोथी ते देवीने पूजीने तथा तेणीनीपा. से हाथ जोडीने तल्लीन थश्ने नवां काव्यो वडे स्तुति करवा लाग्यो. // 67 // ते वखते पोता. | ना नक्तोपते वत्सल एवी ते देवी तेनी नक्तिनी परीदा करवामाटे बोली के हे वत्स ! हुं ताराप्रः | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #166
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- धेढीत्यवोचत // 6 // तेन प्रसारित वस्त्रां-चले चंचलचेतसा // सा - तत्कोपामिहव्यानं / यवमुष्टिं निचिदिपे // 70 // यवावलोकनाकात-कोपो जातिगुंणाद् दिजः // दध्यौ देव्या श. | हो दानं / तोषिताया नवैः स्तवैः // 11 // वणिमात्रेऽपि संतुष्टे / लन्यते खलु भोजनं // यवमु. 165 /ष्टिं ददौ देवी / निर्विवेकं हि वैजवं // 72 // यदर्थ घृष्टगात्रोऽस्मि / तस्य दानं यदीदृशं // दूर स्था एव तद्रम्या / देवताः पर्वता श्व / / 73 // वरं निदौव सा पात्रं / शालिना पूर्यते यया // दुते तुष्टमान थश्बु, माटे तुं करंक पात्र घर? // 6 // त्यारे ते ब्राह्मणे व्याकुल मनयी वस्त्र नो डेडो पाथर्यो, अने देवीए पण तेना क्रोधामिमां घृतसरखा यवो मुठी नरीने तेमां माख्या.॥ // 70 // यवोने जोश पोताना जातिस्वनावधी क्रोधातुर थयेला ते ब्राह्मणे विचार्य के अहो! नवां स्तोत्रोथी खुश थयेली या देवीनुं दान तो जुन !! // 11 // वणिक जेवो पण जो संतष्ट थाय तो पण चोजन मले , अने था देवीए मने मुठी भरी यवं पाप्या! माटे वैजव खरेखर विवेकविनानो . // 12 // जेने माटे मारुं शरीर पाखं घसा गयु, तेणीनुं दान ज्यारे या ने त्यारे देवो तो उंगरनी माफक दूरयीज रळीयामणा , / / 33 / / माटे आना करतां तो ते जीख P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #167
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- राराध्याः स्वल्पफला / न पुनर्देवयोनयः // 4 // गृहं दूरे वि स्वापो / यवान्नं खबु दुर्जरं // | तदेते रूदविरसा / भोक्तुमत्रोचिता न मे // 79 // इति ध्यात्वा यवान देवी प्रति क्षिप्त्वाभ्यसाथ धत्त सः // कुर्याः कोशे गृहिवामू-निःस्वे दुर्णिदतारकान् // 16 // दुःस्थदिजवधानिच्नु-देवी 166 | रोषारुणापि तं // निचिक्षेपाश्मनं गोलं / यंत्रवादीव दूरतः / / 39 / / जन्मीलितेचणस्तत्र / दणं ज सारी बे, के जेवडे जाजन तो जातथी चराय, परंतु जे छुःखे पाराधी शकाय अने स्वल्प फलथापे एवी देवजाति कई नपयोगनी नथी. // 7 // अहिं तो पाटलो वखत घर दूर त्यज्यु, भोंये पथारी करी, अने कुःखे पची शके तेवु यवाननुं गदाण कयु, परंतु हवे या बुखं बने र. सविनानुं खाश् अहिं बेसी रहेQ मने ठीक लागतुं नथी. // 35 // एम विचारी ते यवाने देवीतरफ फेंकीने ते बोल्यो के, रांड दरिदि ! था तारा जवने तारा नंडारमा डाटो राख के जेया काळदुकाळे तने खावाने काम लागशे. // 76 // हवे क्रोधातुर थयेली ते देवीने ते दरिद्री बा. ह्मणने मारी नाखवानी जो के श्बा न थ तो पण गोफणवाळो जेम पथ्थरना गोळाने तेम ते. पीए तेने दूर फेंकी दीधो. // 7 // पनी त्यां ते आंख उघाडीने जेवो आम तेम जुए ने तो PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #168
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्पि- पश्यन्नितस्ततः // न प्रासादं न देवी च / न च योगिनमैदत // 70 // याः किमेतदिति ध्यान विधुरः स निरैदत / / कतिचित्सिचये लमां-स्तीदणप्रांतान हिरण्मयान / / 75 // हैमा एवाऽनव नेते / यवाः श्रीवल्लिपल्लवाः // सामान्ययववद् दृष्टा / हा मया दिव्यमायया // 70 // क्रोधधूमां१६७ | धितादाश्चे-नानविष्यमहं तदा // तदावदान्या साऽदास्य-दास्यघ्नं देवता रसं // 1 // यात्मैव य. | दि मे वैरी / तदलं परिदेवनैः // इति ध्यायन वृथोपायः / सोऽचालीदेकया दिशा // 72 // यामंदिर देवी के योगी तेमानुं कई पण तेणे दी नहि. // 7 // अरे! या शुं थ गयें! एम विचारथीज गजरायेला ते ब्राह्मणे पोताना वस्त्रने चेंडे वळगेला केटलाक तीक्ष्ण अणीदार-सुवर्णना यवो जोया. // 70 // अरे! या तो लक्ष्मीरूपी वेलडीना पल्लवसरखा सोनाना यवो हता! परंतु दिव्य मायाथी में मूर्खे तेनने सामान्य यवोजेवा जोया ! // 70 // अरे! ते वखते जो हैं क्रोधरूपी धूमाडाथी बांधळो थयो न होत तो ते उदार देवी मने दास्यपणानो नाश करनारी सिघरस बापत. // 1 // वळी हुँ पोतेज पोतानो ज्यारे वैरी थयो त्यारे हवे खेद करवाथी स. र्य, एम विचारी वृथा प्रयत्नवाळो ते ब्राह्मण एक दिशातरफ चाब्यो. // 72 // त्यां ते वनचर प. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust
Page #169
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- पदः श्वापदकृता / श्वंस्तैरपि वर्जितः // द्विजः स जीवितोडियो / जगाहे गहनं चिरं / / 73 // अः / दूरे ध्वनितं नृणां / श्रुत्वा तत्र जगाम सः // कुद्दालशालिनः खानि / खनतस्तान् ददर्श च // 7 // | दोणीखननसरंगो / गोः किमेवं विधीयते // पृष्टास्तेनेति ते प्रोचुः / शृणु वैदेशिकोऽसि यत् // | // 5 // एष निःशेषदारिद्य-द्रोहणो रोहणो गिरिः // विन वप्रतटी सेय-ममेयमणिजन्मनुः // // 6 // खनित्वमा समासाद्य / रत्नराशिं महद्युतिं / दारिद्यस्योदकं दास्या-महे निजगृहे ग. शुमारफते पोताना मरणने श्बवा लाग्यों, परंतु तेन पण तेने मव्यां नहि, एवी रीते जीववाथी कंटाळेलो ते ब्राह्मण घणो वखत वनमां चटक्यो. // 3 // एवामां नजीकमां माणसोनो शब्द सांभळीने ते त्यां गयो, तथा त्यां तेणे ते माणसोने कोदाळीनथी खाण खोदता जोया. // 4 // तमो या जमीन खोदवानुं पावं काम शामाटे करोगे? एवी रीते तेणे पूजवाथी ते. नए कह्यु के तुं कोश्क परदेशी लागे , माटे सांगळ? // 5 // या सर्व दारिद्यने नाश कर नारो रोहणाचल पर्वत , अने अगणित मणिनने पेदा करना या तेनी मेखला ने. // 76|| यामि खोदीने तेमांथी महातेजस्वी रत्नोनो समूह मेळवीने अमो अमारे घेर जश् दारिद्यने P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #170
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि| ताः // 7 // प्रयाप्तदोगलोनाब्धि-कलोलांदोलिताशया // संजग्राह खनित्राद्यं / स हैमयववि. क्रयात // 7 // खानि खनन्ननिर्वेद-माददे स बहून मणीन // कर्करत्यागतः साधु-र्दोषत्यागाद्गु पानिव // 6 // काले कलितरत्नौघो / हर्षमल्लरिमात्कृतैः // अाशानटी मनोरंगे / नर्तयन् ववले 165 दिजः // 50 // अन्येऽपि खनकाः केऽपि / मार्गोपद्रवन्नीरवः // दिजः सर्वत्र मान्यः स्या-दिति संजग्मिरेऽमुना // 1 // तेऽन्योऽन्यवंचने गाढ-गृहीतशपयाः पथा // ऋजुणा त्वरितं चेरुजलांजलि देशु.॥ 7 // हवे दोभ पामेला लोगरूपी समुद्रना मोजांनथी प्रेरायेली पाशावो करीने ते ब्राह्मणे ते सुवर्णयवो वहेंचीने कोदाळीयादिक ग्रहण कर्यु. 100 // पछी थाक्याविना खाण खोदीने मुनि जेम दोषोने तजी गुणोने ग्रहण करे, तेम तेणे कांकरा तजीने घ णा मणि ग्रहण कर्या. // 5 // पनी केटलेक वखते रत्नोनो समूह एकठो करीने हर्षरूपी का. खरना कंकारानथी पोतानी मनरूपी रंगनमीमां याशारूपी नटीने नचावतोयको ते ब्राह्मण त्यांथी ( घरतरफ) वयो. // 50 // ब्राह्मण सर्व जगोए. माननीक होय, एम विचारी मार्गमां (चो. रयादिकना) नपवथी डरनारा बीजा केटलाक खोदनारान पण तेनी साथे चाव्या. // 1 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #171
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- श्वापोत्तीर्णाः शरा श्व // 7 // . तेषां निशि विनिद्राणां / विश्रांत्यै क्वापि तस्थुषां / / दत्वा मूर्ध्नि मणिग्रंथि / स्वधानीवास्वपीद् हिजः / / 53 // निजामुजितनेत्रेऽस्मि -नकस्मादेत्य कुंजतः // रत्नग्रंथिं कपिः कोऽपि / जइ 170 | मोदकलीलया // 4 // मुष्टोऽस्मि ग्रंथिमादाय / यात्यसौ वानरो वनं // वयस्या मुंचत वापं / समुत्तिष्टत धावत // 55 // पूरकुर्वतीति विप्रे ते-ऽधावंलगुमपाणयः / न प्रापुर्वानरं कुंजे / ली. परस्पर एक बीजाने नहि उगवामाटे आकरा सोगन लेने तेन धनुषपरथी फेंकायेलां बाणोनीपेठे ऊडपथी सीधे मार्गे चालवा लाग्या. // 7 // ... पजी विश्राममाटे कोश्क जगोए रहेला तेन सर्वे रात्रिए ज्यारे जागता हता त्यारे ते ब्राह्म ण तो मस्तकनीचे ते मणिनी पोटली मूकीने जेम पोताना घरमां तेम त्यां सुश् रह्यो. // 73 // पजी ज्यारे निद्राथी तेनी आंखो मीचा गर त्यारे अकस्मात कामीमांथी कोश्क वानरे भावी |.. लामुनीपेठे तेनी ते रत्नोनी पोटली नपाडी लीधी. // ए४ // ( एवामां जागी नवेलो) ते बा. | ह्मण पोकार करवा लाग्यो के, घरे हुँतो झुटायो, मारी पोटली लेश्ने या वानर वनमां नाशी कोषा Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.
Page #172
--------------------------------------------------------------------------
________________ धम्मि- नं मीनमिवोदधौ / / 6 / / युग्मं / / याकंदंतं निरानंद-मय तं पथिकाः परे // अरुण्यरुदितैरे | जिः / किं भवेदित्यबोधयन् // 7 // सर्वथा जाग्यहीनाना-मात्मानं मानयन धुरि // हत्याका रीव स म्लान-मुखः स्वमगमद् गृहं // 7 // 171 // इति श्रीधम्मिलचरित्रस्य प्रथमो जागः समाप्तः // जाय , माटे हे मित्रो! तमो निडा बोमो? नठो भने दोमो? // 55 // त्यारे तेन पण हा. थमां लाकमीन लेश्ने दोड्या, परंतु समुडमां जेम मत्स्य तेम कामीमां भरा बेठेलो ते वानर तेजने मल्यो नहि. // 6 // पनी रडता तथा शोकातुर थयेला ते ब्राह्मणने ते बीजा पंथीन समजाववा लाग्या के, भावी रीते वनमां विलाप करवाथी हवे शु वब्वानुं ? // ए // परी पोताने तद्दन जाग्यहीनोनो शिरोमणि मानतोथको ते ब्राह्मण खुनीनीपेठे कांखा मुखवाळो थ. योथको पोताने घेर गयो. // ए॥ // एवी रीते श्रीधम्मिलचरित्रनो प्रथम नाग संपूर्ण थयो . // P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
Page #173
--------------------------------------------------------------------------
________________ // इति श्रीधम्मिलचरित्रस्य नाषांतरोपेतस्य प्रथमो नागः समाप्तः // STRA OPAN PR.AC.Gunratnasuri M.S. ' Jun Gun Aaradhak Trust