________________ धम्मि- // 10 // (युग्मं ) अहं तवोपकारस्या-ऽनृणः स्यामित्यसंगतं // बालचापलतो लोल-जिह्वः किंचिद् / मा ब्रुवे पुनः // 11 // यदा राज्यमहं धास्ये / धुर्यो धुरमिवानसः // त्वं लप्सीष्टास्तदा श्रेष्टि-पदं सारथिता. | मिव // 12 // इत्युक्तिनधिकानघा-नन्यमानसयोस्तयोः // प्रीतिः स्थिरान्निःशेषा-मधीति सहक 25 | त्वतोः // 13 // काले सांयात्रिकाः प्राप्त-रत्ना रत्नाकरादिव / / गुरोरधीतिनः सर्वे / गताः स्वं स्वं गृहं ययुः // 14 // सुगडाध्यापिता शास्त्रा / शास्त्राब्धेः पारदृश्वर। // अध्युवास वयो यूनां / धैर्यतें गलीया बळदने बळवान बळ्दपणाने, अंधने सनेत्रपणाने, कागमाने हंसपणाने, अमावास्या ने चांदनीपणाने तथा पत्थरने मणिपणाने प्राप्त कर्यो बे. // 10 // हुँ तारा उपकारना करजयी रहित 12 शकुं ए असंजवित , तो पण बाव्यपणाना चपल खजावथी वाचाल थश्ने किंचित् कहं. // 11 // गाडीना धोंसरांने जेम बळद तेम ज्यारे हुँ राज्य धारण करीश त्यारे तुं सारयी. सरखी शेग्नी पदवी पामीश. // 15 // एवी रीतना वचनोरूपी बाधरथी ( चर्मनी दोरीथी) बंधायेलां ने परस्पर मन जेननां, तथा साथे रहीनेज अन्यास करता एवा तेन बन्नेनी प्रीति स्थिर | थ. // 13 // हवे केटलेक काळे रत्नो मेळवीने वहाणवटी जेम समुद्रथकी तेम ते सर्वे विद्या - Jun Gun Aaradhakrust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.