________________ धम्मि- न्यजन्मेव / कुमारस्तत्दाणादनृत् // कंठपीउबुउत्सर्व-सारसारस्वतः स्वतः // 6 // अमानं म माणिमंत्रादि-महिमानं विभावयन् // दोा सुरेंद्रमाश्लिष्यो-वाच वाचमिमामसौ // 9 // त्वया त. न्मे कृतं वात-पित्रोरपि दुष्करं // तौ हेतू येन देहस्य / तस्य ज्ञानात्मनः पुनः // // धीम२४ तामपि दुर्बोधं / निर्विवेकं पशोरपि // नारीणामपि हास्याई / प्रतिबोधयताय मां // 7 // - गलिधुरीणतामंधः / सदृक्तवं हंसतां दिकः // कुहूज्योत्स्नास्वमश्मा तु / मणित्वं प्रापितस्त्वया | दत्तना वचनरूपी अमृतने पीधाबाद तेणे थापेबुं ते मणिन निर्मळ स्नात्रजन तेणे पीछु / / 5 / / हवे जाणे तेनो पुनर्जन्म थयो नहि होय तेम ते राजकुमारना हृदयमां तेज समये सर्व विद्यानो सार पोतानी मेळेज प्रकट थयो // 6 // मणिमंत्रादिकना अपार महिमाने विचारतो थको ते राजकु. मार बन्ने हाथोथी सुरेऽदत्तने यालिंगन करीने यावी रीते बोलवा लाग्यो, // 7 // हे ना! | तें मारापर ते (उपकार) कों ने के जे मातापिता पण करी शके नहि, केमके तेज तो आ (बाह्य ) शरीरना हेतुत ने थने तें तो मने ज्ञानरूपी अंतरंग शरीर प्राप्यु जे. // 7 // बुधिया | नोने पण दुर्बोध, पशुथी पण निर्विवेकी, अने स्त्रीनने पण हांसीपात्र एवा मने प्रितबोधीने॥णा | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust