________________ धम्मि- स्य कृपा सारं / सत्कर्म नरजन्मनः // विद्यायास्तत्वधीः सारं / संतोषः शर्मणां पुनः // 53 / / श्लो| केऽत्रालोकिते हार्दा-निप्रायपिशुनेऽनया // अवापि वपुषः स्थूलं-करणी धोणिर्मुदां // 14 // अस्या दृग्न्यां विकसितं / कपोलान्यां प्रफुल्लितं // जरोजान्यामुश्वसितं / ततः प्रिय श्वेक्षिते / / // 55 // विनापि वेणुवीणादि-वादित्रं ननृते तया // थाहादश्च विषादश्च / स्त्रीणां प्रायेण . जरौ // 16 // वाचालीनृतजिह्वायो-वाचालीः सा ससंत्रमं // अये मत्कृपया कोऽपि / कृतो वि. वांचवा लागी. // 5 // पुण्यनो सार दया. मनुष्यजन्मनो सार सत्कार्य, विद्यानो सार तत्वबुद्धि तथा सुखनो सार संतोष जे. // 53 // पोताना हृदयना अभिप्रायने जणावनारा ते श्लोकने जो. वाथी सुगना शरीरने प्रफुल्लित करनारी हर्षनी श्रेणि पामी. // 24 // ते समये जाणे भर्तारनेज मळवाथी होय नदि तेम तेणीनी अांखो विकस्वर थर, गाल प्रफुलित थया, तथा स्तनो नवसित थयां // 55 // वांसली तथा वीणावादिक वाजिनविना पण ते नाचवा लागी, केमके प्रायें स्त्री हर्ष तथा खेदने जीरवी शकती नथी. // 56 // वाचाल थयेली जिह्वा जेनी एवी ते सं. ब्रमसहित सखीनने कहेवा लागी के, अहो विधाताए मारापर कृपा करीने कोश्कने कृतार्य कः | Jun Gun Aaradhak. Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.