________________ धम्मि- हस्तेन / पत्रे सर्वस्ववन्निधेः // चतुःप्रश्नोत्तरश्लोक-मलिखचतुराग्रणीः // 40 // वबंध बंधुरमति- / साई या॑वृत्तोऽसौ गृहप्रति // पतं तस्य तरोर्मूर्ध्नि / देवधाम्न श्व ध्वजं // 4 // अयं गुरुस्तरुः सेयं / बता बहुलतास्पदं // दीर्घयं दीर्घिका चेति / चिरं ब्रांत्वाश्रितश्रमा // 20 // पतिमार्गानुगामित्वा -दिव तेनैव वर्मना // निवृत्ता पत्रकं तत्र / सुनद्रा तन्निरदत // 51 // युग्मं // पत्रे नेत्रे सु. धासत्रे / चपलाजिरथालिनिः // श्रानीय दत्ते श्लोकं सा / वाचयामास वाग्मिनी // 5 // सुकृतगुप्त करेली वात सांजळीने हं तने ते जणाववामाटे पाव्यो . // 4 // (ते सांगळी ) महाचतुर सुरेंद्रदत्ते पोताने हाथे पत्रमा निधानना सर्वस्वरूप ते चारे प्रश्नोना उत्तरनो श्लोक लख्यो ।ना पही त्यांची घरतरफ वन्तां ते बुध्विान सुरेंद्रदत्ते देवमंदिरपर ध्वजानीपेठे ते पत्र ते वृदानी टोचे बांध्यो. // 45 // या वृद मोटुंबे, या वेल बहु फेलायेली तथा या वाव लांबी ने एम (वि. नोद करती) घणो काळ जमीने थाकेली // 20 // जाणे पतिना मार्गने अनुसरनारी होय न. हि तेम ते सुन्नद्राए तेज मार्गे पानं फरतां थकां त्यां ते पत्र जोयो. // 51 // एवामां ते चंचल | सखीनए नेत्रोपते अमृतनी धारासरखो ते पत्र लावीने यापते बते ते विदुषी सुन्नद्रा ते श्लोक | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak. Trust