________________ Patel धम्मि तोम्यहं / परं करोमि कि योग्यं / पतिं दैवादविंदानी // 3 // ततः कस्ते वरः प्रेया-निति पृः / टालिभिः पुनः // स्पष्टंमाचष्ट सा बाला / कामव्यालाँकुश वचः // 44 // सुकृतस्यात्र किं सारं / किं सारं नरजन्मनः // विद्यायाश्चापि किं सारं / किं सारं शर्मणां पुनः // 45 // एतत्प्रश्नचतुष्कं यो / व्याचष्टे परमार्थतः // तमेवाहं परिणये / सख्योऽह जातु नान्यया // 46 // वृदांतर्हितमप्रेक्ष्य | -माणानां मां रहकृतां // तासामित्युक्तिमापीय / त्वां झापयितुमागमं // 4 // सुरेंद्रोऽथ ख. सरखी थ पमी , तें वातने पण हुं नथी जाणती तेम नथी, परंतु शुं करूं के दैवयोगे योग्य पतिने हुँ मेलवी शकती नथी. // 43 // सारे सखीनए तेणीने पूज्यु के तने कयो, वर प्रिय ? त्यारे ते बालिका कामदेवरूपी हाथीने (वंश करवामां) अंकुशसरखं वचन बोली के // 44 // या जगतमां पुण्यनो सार शं? मनुष्यजन्मनो सार शुं? विद्यानो सार शुं? अने सुखनो सार शुं? // 42 // एवी रीतनां याचा. रे प्रश्नोनो उत्तर जे परमार्थथी कहे, तेनेज हे सखीनं ! हुं परणनारी ढुं, अन्यथा परणीश नहि / // 46 / / हुँ वृदनी पाबळ संतायेलो होवाथी तेज मने जो शकी नथी, माटे एवं रीतें तेनए / PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust