________________ धम्मि। चेति स्त्रीषु विरुध्यते // 30 / मानुषी मूर्तिमापना / भारतीवेन्यनंदिनी // अत्यवत्ताय युः / माजि-र्युक्तमेवोक्तमालयः // 35 // परं जामि नारं / प्रेमविश्रामधामकं // निर्विज्ञानैर्ज नैः | प्रायो / लोकेऽस्मिन्निभृतं भृतं // 40 // परिणेयः पुमानेकः / स्त्रिया चेत् सोऽपि निर्गुणः / तदा | मोतु कथंकारं / कारादिप्तेव सा सुखं // 41 // पांसोविशिोः का जीति--जेनोक्तेः शीलशालिनः // व्रतं कास्मादृशां राज्य–मिव कातरचेतसां // 42 // न न जानामि तपित्रो-हदि शव्यायिअने कुमारीपणुं पाळवं, ए स्त्रीनने. माटे अयोग्य जे. // 30 // मनुष्यपणाना आकारने धरनारी जाणे सरस्वतीज होय नहि एवी ते शेग्नी पुत्री बोलली के, हे सखीन! तमो युक्तज कहो नगे. // 30 // परंतु प्रीतिना विश्रामना स्थानरूप भर्तारने मिलववा हुं इच्छं बुं, केमके प्रायें अज्ञानी लोकोथी या जगत् नरेवु बे. // 40 // स्त्री एकज पुरुषने परणी शके बने ते पण जो नि: र्गणी निवड्यो, तो ते जाणे केदखानामां पड़ी होय नहि तेम शीरीते सुख पामी शके ? // 41 // मर्यने जेम धूळ्नो तेम शीलवंत मनुष्यने जनप्रवादानो शो मर जे? तेमज मारा जेवी कायर म. नवाळीने राज्यसरखं व्रत मेलवq क्यां सहेवू ? // 42 // वली मावापना मनमां हं एक शव्य P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust