________________ धम्मिणिना // 33 // (युग्मं ) सख्यस्तामूचिरे तकि / वरादि विजनं वनं / सत्यं वद वृणोषि वं। | न वर कारणात्कुतः // 34 // स्त्रीणां कुलकलारूप-लीलालवणिमादयः // विलासा श्व निःस्वाना -मपत्नीनां वृथा गुणाः / / 35 / / वासस्तव वराहायाः / सरले यत्पितुः कुले // जनप्रवादकंदस्य / तदेव जलसेचनं // 36 // बारोहति फुमं वल्ली / विद्युदाश्रयतेऽबुदं // चाधारा स्त्रियो हीति / झातं निश्चेतनैरपि // 37 // नोगेन्यश्चेतिरक्तासि / तत् किं गजसि न व्रतं / / गृहे वासश्च कौमारं गं करती हती. / / 33 // त्यां सखीन तेणीने कहेवा लागी के, हे नत्तम नेत्रोवाळी या वन म. नुष्यरहित , माटे सत्य कहे के तुं शामाटे पतिने वरती नथी? // 34 // जेम निर्धनोना विला सो वृथा , तेम पतिविनानी स्त्रीनना कुल कला रूप लीला तथा लावण्यादिक गुणो वृयाज बे. // 35 // वळी हे मुग्धे ! नमरलायक छतां पण तुं जे हवे पिताने घेर रही बुं, ते लोकापवादना मूलने जल सिंचवा जेवू जे. // 36 // वेलडी वृतपर चडे ने, वीजळी वर्षादनो पाश्रय लेने, एवी रीते स्त्री पण जारना आधारयी रही शके , एम निश्चेतनोए पण जाणे चे // 3 // कदाच तुं जोगोथी विरक्त थयेली होय, तो पनी दीदा शामाटे लेती नथी? केमके घरमा रहेवं P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust