________________ धम्मि| जा-न्मुग्धाशयमदमयत् // 43 // लोगोऽयं जापितो वीतरागैः कास्थामलप्स्यत // नानविष्यः / महास्थान-स्वरूपा यद्यमी विजाः // 4 // यत्तृष्णा कमलोवेन / घनेनापि न शाम्यति // वा डवा वाडवामेस्तत्-सखायः प्रस्फुरबिखाः // 45 // प्रायः प्रियजला विप्रा-स्तृष्णातापातुरा व ॥जाले सतिलकाः प्राप्त साम्राज्या व लोनिषु // 46 // नास्ति त्रिष्वपि लोकेषु / बुब्धो म. सागर , के जेणे मने भोळाने थाव। रीते कथाना मिषथी दंड्यो . // 43 // वळी यावा म. हास्थानसरखा जो ब्राह्मणो (दुनियामां) न होत तो वीतरागोए डरावेलो लोन क्यां पोतार्नु र. हेगण मेळ्वी शकत? // 44 // ब्राह्मणोनी तृष्णा घणा धनना समूहथी (वरसादथी) पण शां. त थती नथी, माटे खरेखर ते ब्राह्मणो शिखावान (चोटलीवाळा ) वडवानलना मित्रसरखा ने. // 45 // वळी ब्राह्मणो तृष्णारूपी तापथी जाणे व्याकुल थया होय नहि तेम तेजने हमेशां जल वहाबु बे, अने लोनी माणसोमां जाणे राजा होय नहि तेम ते कपालोमां (राज्याभिषे. कना चिन्हरूप ) तिलकने धारण करे . // 46 // त्रणे लोकोमां मारासरखो बीजो को लोजी नथी, एवं देखाडवानेज या ब्राह्मणो हमेशां जनोश्ना मिषयी हृदयमांत्रण रेखा धारण Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.