________________ 52 धम्मि- इत्यात तं हिजः प्रोचे / मा शुचः कथयाल्पया // अल्पापीयं कथा मित्र / लोकदयसुखावता / / माई ॥३ए / पुनः कथां रसाधिक्या-कर्करायितशर्करां // चेत्पिपाससि दीनार-सहस्रं देहि मे त. तः // 40 // कथारंगबिदा दुःखं / लक्षेणापि न यास्यति // इति सोऽदत्त दीनार-सहस्रमपि साहसी // 41 // सोऽथ प्रोवाच विश्वासः / कार्यो नार्या न धीमता // कथादयं विधृत्येदं / धृतिले. दं न लप्स्यसे // 42 // व्यमृशत् सोऽथ विप्रोऽय-महो लोगमहोदधिः // यो मामेवं कथाव्या. खेद करता एवा ते धर्मदत्तने ब्राह्मणे कां के हे मित्र ! तुं या स्वल्प कथाधी खेद न कर? केमके या स्वल्प कथा पण बन्ने लोकमां सुखकारी जे. // 30 // वळी हजु पण रसना अधिकंपणाथी जमदा साकरसरखा कथारसने जो तारे पीवानी श्वा होय तो मने एक हजार सोनामहोरो श्राप ? // 40 // कथारंगना नंगथी (थयेवु) फुःख लाख (सोनामहोरोथी) पण जशे नही, एम विचारी ते साहसिके तेने एक हजार सोनामहोरो पण यापी. // 41 // हवे ते बा. ह्मण बोब्यो के बुद्धिवाने स्त्रीनो विश्वास करखो नहि, घने या बन्ने कथा हृदयमां धारवायी तं / दुःखी थश नहि. // 42 // हवे ते धर्मदत्ते विचार्यु के अहो! था ब्राह्मण तो खोजनो महा। P.P.AC. Gunratnasun M.S... Jun Gun Aaradhak Trust