________________ घम्मि- स्मै ददौ मंक्षु / दीनारशतपंचकं // न बाहुबलिनो द्रव्यं / व्ययतः शंकते मनः // 34 // अथ सो. | ऽकथयत्तस्मै / कथामिति मितादरां // न नीचजनसंपर्कः / कार्यः स्वहितमिलता // 35 // ततः | किमिति तेनोक्तो-ऽवादीदहसनो हिजः // धीमनियमियत्येव / कथास्यथ स ऊचिवान // 36 // 51 | नोः किमेतत्त्वया प्रोक्तं / बालानामपि हास्यकृत् // मम त्वमुत्तमर्णीव / मुधैव धनमग्रहीत् // 37 // अपूर्वगोरसाकांदा-ऽस्त्यद्यापि मम तादृशी // नत्पन्ना च विलीना च / कथमेषा कथागवी // 3 // यापी, केमके जाबलवालानुं मन धन खरचतां शंका पामतुं नथी. // 34 // पड़ी ते ब्राह्मणे प. ण तेने यावी रीतनी एक टुंकादरी कथा कही के, पोतानुं हित श्वनारे नीच माणसनो संग करवो नही. // 35 // पनी शुं? एम धर्मदत्ते पूजवाथी ते ब्राह्मण नारे महोउं राखीने बोल्यो के हे बुद्धिवान् ! था कथा एटलीज हती, त्यारे वळी ते बोल्यो के // 36 // अरे! बालकोने पण हसवं आवे एवं था तुं शुं बोल्यो ? खरेखर तें लेणीयातनीपेठे मारुं धन फोकट ले लीधुं. // // 37 // अपूर्व वचनरस (गोरस) चाखवानी मारी. श्छा तो हजु पण तेवीने तेवीज रही | माटे या तारी कथारूपी गाय ते केवी! के जे जन्म्या भेळीज नाश पामी! // 30 // एवी रीते Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunrathasuri M.S.