________________ धम्मि- पार्थिवस्येव / संवाह्य नयतो जनं // विप्रो वररुचिर्नाम / धीधाम समगबत // 25 // समं तेन / सार्थ प्रियालापैः / पीयूषास्वादसोदरैः // पद्मनालमिवांनोनि-स्तस्य मैत्र्यमवर्धत // 30 // सखायं सुख | मत्येतुं / मार्गमेकरथस्थितं / कथामवितथामेकां / विप्रं पान सोऽन्यदा // 31 // सोऽप्यूचे मित्र संजात-स्तव तावत्कथारसः // रसिकस्य हि कार्पण्यं / न कामिन वोचितं / / 32 // दीनाराणा | मदीनास्य / देहि पंचशतानि मे // यथाऽपूर्वकथास्वाद-कौतुकं पूरयामि ते // 33 // सोऽपि त. र्गमां वररुचि नामना एक महाबुध्विान ब्राह्मणनो मेलाप थयो. // 25 // तेनी साथे थयेला अमृतना स्वादसरखा मिष्ट वचनोथी जेम जलवडे करीने कमलनी नाल तेम तेनी मिताश्वृद्धि पामी. // 30 // विनोदपूर्वक मार्ग जळंगवामाटे एकज रथमां बेठेला एवा ते प्राह्मणप्रते तेणे एक दिवसे एक वार्ता पूरी. // 31 // त्यारे ते ब्राह्यणे पण तेने कडं के, हे मित्र तने ढवे क. थानो रस लाग्यो , माटे कामीनीपेठे रसिकने कृपणपणुं राखq ए उचित नही. // 3 // माटे हे तेजस्वी मुखवाळा ! तुं मने पांचसो सोनामहोरो श्राप ? के जेथी तारं अपूर्व कथाना स्वादनुं कौतुक हुं संपूर्ण कलं. / / 33 / / ( ते सांजळी) ते धर्मदत्ते पण तेने तुरत पांचसो सोनामहोरो / Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.