________________ सार्थ धम्मि- सदृशोऽपरः // इति रेखात्रयं सूत्र-व्याजाद् विनत्यमी हृदा // 4 // जदंगुलिः कृतोऽमीनि र्य वेदाध्ययने करः // ततोऽन्यासात्तथैवासौ / नवति प्रतिदायकं // 4 // ब्राह्मणानां तनुरियं / न. नु तृष्णातरंगिण // नो चेत्कटीतटीदेशे-दब्रदर्नोदयः कथं // 4 // यश्लोजादमुनात्तं त-द्याच. થઇ मानास्त्रपामहे // देयं चेत्याग्भवस्या -बुटिनाः स्मस्तदा वयं // 50 // एवं वितर्कयंस्तेन / सह वर्म विलंध्य सः // पारं पोत श्वांजोधे-जंगाम श्रीपुरं पुरं // 11 // तस्माद् बहिः पटकुटी–र. करे . // 4 // वळी या ब्राह्मणो वेद गणती वखते जंची बांगळीनवाणे जे पोतानो हाथ करे , ते अभ्यासथीज ते दातारप्रते पोतानो हाय प्रसारे . // 4 // ब्राह्मणोनुं आ शरीर खरेखर तृष्णानी नदीरूप ने, जो एम न होत तो तेना कटीप्रदेशपर प्रकटरीते दर्भनी उत्पत्ति क्यांथी होत? // 45 // लोनने वश थर या ब्राह्मणे मारी पासेथी जे धन ली, ले, ते पावं मागतां मने लगा थाय . माटे जो तेर्नु पूर्वजवनुं देवं हशे तो ते आपोने हैं तो बुटी गयो बु. // 50 // एम विचारतोयको ते धर्मदत्त ते ब्राह्मण सहित मार्ग नवंघीने वहाण जेम समुद्र | ने कांठे तेम श्रीपुरनगरप्रते गयो. // 51 // त्यां तेणे नगरनी बहार दोरीनथी मजबूत करेला | P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust