________________ धम्मि| रंगो निर्नयमावयोः // 76 // एवमेवैतदित्यस्य / वचः साप्यन्ववर्तत // क्रौर्यनिर्जितशस्त्रीणां / मा धिक् स्त्रीणां चपलं मनः / / 77 // ततः स विततद्रोह-प्ररोहः श्रेष्टिनः सदा // सुतप्ततपसः कोप / / श्वात् पारिपार्श्वकः / / 70 ॥'अन्यदा सह मित्रेण / सदःस्थं तं नृपोऽन्यधात् / / किं कचिच्चि | समालोकि / भवता भ्राम्यता भुवं / / 15 सोऽप्यूचे देव देनेन / दृम्बंधात्करलाघवात // दृश्यते ली एवी तेनी स्त्रीने गुप्त रीते कहेवा लाग्यो के, // 35 // हे प्रिये ! जो धर्मदत्तने मारी नाखवामां आवे अथवा यहीं घेर थावतो घटकाववामां आवे तो पनी थापण बनेनो नोगरंग निर्नयपणे थाय. / / 76 // एमज करवु तीक बे, एम कही तेणीए पण तेनुं वचन स्वीकार्यु. क्रूरपणा. थी जीतेल ने शस्त्रो जेणीए एवी स्त्रीनना चंचल मनने धिक्कार . // 7 // पनी-जेम क्रोध त पस्वीनो सोबती थाय ने, तेम ते गंगदत्त (मनमां ) द्वेषनो अंकुरो लावीने शेग्नो सोबती थयो // 9 // एक दिवसे ते मित्रसहित सनामां बैठेला ते धर्मदत्तने राजाए कह्यु के हे धर्मदत्त तें पृथ्वीपर देशाटन करतांधकां को पण जगोए शुं कई याश्चर्य जोयु ? // 7 // त्यारे तेणे पण कह्यु के हे स्वामी! कपटथी नजरबंधीथी अथवा हाथचालाकीथी जे कंई आश्चर्यो देखाय | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust