________________ धम्मि-| यानि चित्रैस्तैन चित्रीयामहे वयं // 70 // गृहे मम यवाः संति / चित्रियावलिपल्लवाः ॥सद्य| स्त्वदंहिसेवेव / स्थाने न्यस्ता फलंति ते // 1 // तत् श्रुत्वा विस्मिते राशि। दिदारनसाज्जने // धुनान्मौलिं गंगदत्त-स्तत्कथाज्ञः पुनः पुनः // 72 // किं वाताहतशाखीव / शिरो धूनयसी. ति सः // पृष्टो राज्ञा जगौ प्रीतः / प्राप्य प्रेत श्व बलं // 3 // असमंजसवादित्व-ममुष्य तव चार्जवं // आश्चर्यकारणं. वीदय / शिरः कस्य न कंपते // 7 // धनस्य संनिपातस्ये बोष्मणा | जे. तेथी अमोने कई पाश्चर्य थतुं नथी. // 70 // परंतु मारे घेर चित्रावेलीना पञ्जवसरखा जब बे, के जे जवो एक जगोए वाव्याथी आपना चरणनी सेवानीपेठे तुरत फले . / / 71 // ते सांजळीने ते यवोने जोवानी श्वाना वेगथी राजा तथा समालोक आश्चर्य पामते ते ते यव ना वृत्तांतने जाणनारो गंगदत्त वारंवार मस्तक धुणाववा लाग्यो. / / 72 // वायुयी कंपेला वृक्ष नीपेठे तुं मस्तक केम धुणावे , एवी रीते राजाए पूज्वाथी ते उष्ट प्रेतनी पेठे लाग जोड्ने खुशी थ बोल्यो के, // 73 // या धर्मदत्तनुं जूतुं बोलवापणुं तथा आपनी सरलता, ए बन्ने या. | श्चर्यकारक जोश्ने कोनुं मस्तक कंपे नही!! | 4 // हे स्वामी ! संनिपातसरखा धनना तापथी PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust