________________ धम्मि- प्रलपंति ये // तहाचि तात्विकी बुधिः / स्वामिन्ननुचिता तव // 5 // धूर्तोक्तिषु दधानस्य / धृ. / ___ साथै |ति धोवंध्यचेतसः // तव पालयतो राज्यं / मनोऽपि मम कंपते // 6 // गृह्णातु मम सर्वस्वं / स चेद्यदेष सत्यवाक् // नो चेत्करदयग्राह्य / वस्तु देयमनेन मे // 7 // तन्मेने धर्मदत्तोऽपि / स. . 6 त्योऽहमिति निश्चयात् // बव नृपतिः सादी / पणबंधे तयोस्तदा // // सत्याऽसत्यपरीक्षेयं / प्रातः सर्वापि जोत्स्यते // वदन्निति नृपास्थाना-धर्मदत्तो विनिर्ययौ // जय // ममैव धाम्नि सं. (प्रेरायेला ) जे मनुष्यो बबडे , तेना वचनमां आपे तत्वबुधि राखवी ए उचित नथी. / / 5 / / धूर्तीना वचनोमां विश्वास राखनारा तथा बुधिरहित चित्तवाळा एवा थाप जे पा राज्य निनावी शको गे! तेथी तो माझं मन पण थरथरे ! // 6 // वळी जो था धर्मदत्त सत्य बोलनारो ठरे तो मारी सर्व मिल्कत ते ले ले, घने जो तेम साबीत न थाय तो तेना घरमांथी मारा बे हाथोवंडे जे वस्तु हुं लेलं ते तेणे मने थापवी. // 7 // हुं तो सत्य बुं एवा निश्चयथी धर्मद. ते पण ते शरत स्वीकारी, तथा ते समये राजा तेज बन्नेनी ते शरतमां सादी थयो. // 7 // | हवे आ सत्य असत्यनी परीदा सघळी सवारे जणाश् रहेशे, एम बोलतोयको धर्मदत्त राजसनाः / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust