________________ धम्मि-| त्येते / यवास्तत्किं विषिद्यते // श्यनाकुल एवासौ / लमो वाणिज्यकर्मणि // 50 // विटस्तकाम गत्वोक्त्वा / सुरुपाया यथातथं // यवांस्तान प्रार्थयामास / स्वयं न्यासीकृतानिव / / 51 // यवानि. ज्यतनूजस्य / जीवितादपि वल्लगान् / / प्रदाय तान विरायान्यां-स्तेषां स्थाने न्यधत्त सा // ए॥ ऊचे च नाथ गृह्णीथा-स्तदा पाणिहयेन मां // जाहं पाणिनैकेना-दृता हान्यां पुनर्नवान् / / | // 73 / / मास्म गृहिं नजे रत्न-रुक्मरूप्यादिवस्तुषु // लाने सचेतनाया मे। कामना का ह्यचेतने मांधी गयो. // 5 // मारा घरमांज ते जवो बे, माटे मारे चिंता शुं करवी? एम विचारी ते तो कंपण याकुलताविना पोताना व्यापारमा जोमा गयो. // 50 // हवे ते लफंगो गंगदत्त धर्मदत्तने घेर जश्ने तथा बनेलो वृत्तांत सुरूपाने कहीने जाणे पोते थापणतरीके राख्या होय नहि तेम ते यवोने मागवा लाग्यो. // ए१ // ते श्रेष्टिपुत्रना जीवितथी पण अतिवल्सन एवा ते यवो ते लफंगाने देश्ने तेणीए तेजनी जगोए बीजा स्थाप्या. // 7 // वळी तेणीए तेने कहां के हे स्वामी! ते समये बन्ने हाथोथी मनेज लेजे, नारे तो मने एक हाथे लीधी ने. परंत तारे मने बे हाथे लेवी. // 3 // वळी ते वखते रत्न सुवर्ण तथा रूपाश्रादिक वस्तुमां लालच P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust