________________ धम्मि- // 4 // तस्या धैर्यापहीभि-रिति स्नेहोक्तिमल्लिनिः // विछोऽपि जीवितंमन्यः / स ततो निसाई रगाद् हृतं // 45 // समये धर्मदत्तोऽपि / समायतः स्वमंदिरं // सुहृदादं जगौ पन्या / ऋजुर्गुह्यं रिपोखि // 6 // शाठ्य नः साप्यवग नेतः / किमेतद्विहितं त्वया // चेन्मामेवैष हस्ताभ्यां / द. 64 || " | ध्यात्तत्को निषेधकः // 7 // अथ सोपपतिध्याना-दन्यचित्ता विपर्ययात् // निर्मिमाणाखिलं ह. नहि करजे, केमके मारो सचेतननो ज्यारे तने लाज थाय बे, त्यारे सुवर्णादिक अचेतननी इ. बा करवी शा कामनी ? // 4 // एवीरीतनां धैर्यने हरनारां तेणीनां स्नेहवचनरूपी नालांत. थी विधायेलो एवो पण ते गंगदत्त पोताने जीवतो मानतोयको त्यांथी तुरत निकळी गयो. // // 45 // हवे अवसरे धर्मदत्ते पण घेर श्रावीने सरल माणस जेम पोतान) गुप्त वात शत्रुने का हे तेम मित्रसाथे थयेलो विवाद स्त्रीने कह्यो. // ए६ // त्यारे बुचाश्ना स्थानसरखो ते सुरूपा पण बोली के हे स्वामी! था तमोए शुं कयु? ते वखते कदाच जो ते मनेज पोताना बे हा. थोथी लेशे तो तेने कोण अटकावशे? // 5 // हवे ते पोताना यारनाज ध्यानथी व्याकुळ थ. | येली होवाथी घरनुं सर्व कामकाज ज्यारे नलटुं करवा लागी त्यारे धर्मदत्ते तेणीने कडं के, // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust