________________ धम्मि- श्यति // 11 // क्रमादवाप्तप्रसरः / स तस्यां विप्लुतोऽनवत् // विकारकारणं कुदि-निदिप्तोऽपि खः / लः खलु / / 72 // जनेन्यस्तदपि श्रुत्वा / ऋजुरध्यायदिन्यसूः // भुंजानः स्वगृहे हंत / परतप्तिकरो जनः / / 73 // लोकोऽयं परविघ्नेच्नुः / सोढा न स्नेहमावयोः // ब्रूतेऽस्मिन्नपि यदोषान / दुग्धे किं पूरकानिव // 14 // एवं धीराशयेऽप्यस्मिन् / विटः प्रकटमत्सरः // रहः प्रोवाच तत्पत्नी / दौःशीट्येनात्मसात्कृतां // 79 // मार्यते धर्मदत्तश्चे-दार्यते वा विशन गृहं // जाये जायेत तद्भोगज्जन सर्वने सऊनज जुए .. // 11 // अनुक्रमे अवसर मेलवीने ते तेणीनीसाथे नोगविलास पण करवा लाग्यो, केमके हृदयमां ( पेटमां) स्थापेलो पण दुर्जन ( खोळ ) खरेखर विकार करनारो थाय . // 7 // या वृत्तांत पण लोकोना मुखथी सांजव्या बता ते नोको धर्मदत्त एम विचारवा लाग्यो के लोको तो पोताने घेर खाश्पीने परनीज खोदणी कर्या करे . // 73 // लोको परविघ्नसंतोषी होवाथी अमारा बन्ने वचनो स्नेह सहन करी शकता नथी, केमके धमां प. रानीपेठे तेनं था गंगदत्तमां पण दोषो कहे . / / 74 // एवी रीते शुज अाशयवाळा एवा प श्रा धर्मदत्तप्रते प्रकटरीते देष करनारो ते गंगदत्त एक दिवसे पोताना दुःशीलपणायी वश करे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust