________________ सार्थे / धम्मि- मिथ्यात्वबूकाकुलिता-शंसाः संसारजंगले // निपीय साधोरित्युक्ति-सुधां मुमुदिरे विजाः // 34 // अथानयं ददुर्विप्राः / प्रपन्नजिनशासनाः // न केवलं गस्यास्य / सर्वेषामपि देहिनां // 35 / / अजवे स द्विज श्व / स्वकृतेनैव कर्मणा // संप्रत्यनुशयाना त्वं / कमवष्टंगमाप्स्यसि // 36 // वि. धाय रभसा कार्य / यदेतदनुशोचनं // ज नद्राकृते मूर्ध्नि / तन्मुहूर्त्तविवेचनं // 37 / साथ प्रो. चे शुचा रुक-कंग कुंगदरां गिरं // प्राणेश मा दते दारं / क्षेप्सीमावियोक्तिभिः // 3 // वधारवानी ना करे . // 33 // या संसाररूपी जंगलमां मिथ्यात्वरूपी बूथी व्याकुल थयेला ते ब्राह्मणो साधुनी एवी रीतर्नु वाणीरूपी अमृत पीने अत्यंत आनंद पाम्या. // 34 // पछी ते ब्राह्मणोए जैनधर्म अंगीकार करीने केवल ते बकराने नहि, पण सर्व प्राणीनने अजयदान था. प्यु. // 35 // एवी रीते हे प्रिये! जेम बकरो थयेलो ते ब्राह्मण तेम पोतेज करेलां कार्ययी ह. वे पश्चात्ताप करवाथी तने कोण थालंबनरूप थशे? // 36 // माटे एवी रीते हे भा! साहसकार्य करीने पनी जे पश्चाताप करवो ते माथु मुंडाव्याबाद मुहूर्त पूजवा जेवू . // 37 // हवे शोकथी कंठ रंधावाथी सुनद्राए लथडतां वचनथी कह्यु के हे स्वामी! आप ावां मर्म नेदनारां P.P.AC.Gunratnasuri M.S.