________________ धम्मि ध्वनि चारिणः / / सुखयंति जनान दृष्टा / मिष्टांनःकूपिका श्व // 45 // वर्तर्येव सुखदाः / श्रू माई यंते हि कुलस्त्रियः॥ मन्ये धन्या श्मा एव / या विश्वोपकृतिदमाः // 46 // श्युक्तिभिः समु. लास्य / लास्यस्थानं मनोऽभुवः / वसंततिलकायास्ते / निन्येर धाम धम्मिलं // 4 // नद्रासने 130 | समासीना / / पश्यंती मुकुरे मुखं // रूपाधिदैवतं साथ / तैः सहास्यमगाष्यत / / 4 / न सुरेंने कह्यु के बरे कदाग्रही था तारी बुद्धि केम फररी ग ! // 44 // था वेश्यान तो असार संसाररूपी जंगलना मार्गमां चालनारा मनुष्योने नजरे पडेली मोग पाणीनी कुश्सरखी बे. // // 45 // कुलीन स्त्रीने तो फक्त पोताना भर्तारनेज सुख प्रापनारी बे, परंतु हुँ तो आ वेश्याननेज धन्य मान बु, के जेन समस्त पुरुषोपर उपकार करी शके जे. // 46 // एवी रीतनां वत्रनोथी धम्मिलने लश्केरीने तेन कामदेवने नृत्य करवानां स्थानसरखां वसंततिलकाने घेर लेश गया. // 4 // त्यां सिंहासनपर बेठेली तथा देवांगनाथी पण अधिक रूपवाळी अने दर्पणमां पोतानुं मुख जोती एवी ते वसंततिलकाने तेनए हास्यसहित कह्यु के, // 4 // हे ना! तारां पूर्वनां पुण्योथी या सुरेंद्रदत्तशेग्नो पुत्र धम्मिल तारे त्यां आवेलो ने, तेने तारे सादात निधा Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. .