________________ धम्मि- हेतवः / / सर्वतः पर्वतप्राय / दुःखं ददति रागिणां // 40 // अन्यो हृदि वचस्यन्य-श्चान्य एव. | पुमान् दृशि // एवं यासां विरोधोंगे / कस्ता न्यः सुखमिबति // 41 // क्वीवो जटोऽपि निःश्रीकः / / | श्रीमानप्यत्र जायते // मध्ये पुरमिदं चौर-स्थानं राजापि नावति // 42 // नोचितं सच्चरित्राणा| मत्र स्थातुं मनागपि // तन्मुच्यतामिदं मंछ / स्थानमन्यत्र गम्यतां // 43 ॥धम्मिनेऽनिदधत्येवं / | तेऽवज्ञापूर्वमभ्यधुः // रे रे कदाग्रहग्रस्त / कस्तवायं मतिनमः // 44 // एता असारसंसार-जंगला. नारी ने, परंतु तेना रागीनने ते चारे बाजुथी पर्वतजेवढं दुःख आपे . // 40 // जेणीना हु. दयमां अन्य, वचनमां तेथी अन्य, अने अांखमां वळी तेथी पण अन्य पुरुष रहेलो डे, एम जेननां शरीरमां पण विरोध गरेलो ने, तेथी सुखनी कोण श्बा करे? // 41 // वळी या वेश्याना पामामां (भावीने) सुनट पण विकारी मनवाळो थाय , तथा धनवान पण निर्धनथाय ने. एवी रीते नमरना मध्य भागमा रहेला था चोरनां स्थान- राजा पण रक्षण करी शकतो नथी. // 42 // अहीं उत्तम वाचरणवाळा मनुष्ये जरा पण रहेवू योग्य नथी, माटे या स्थान जलदी तजीने आपणे अन्य जगोए चालो ? // 3 // धम्मिले एम को छते तेनए तेनी अवज्ञा करी P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust