________________ धम्मि- कल्पं विना सिघरसः / सेवधिः शासन विना // पुष्पं विना फलं लेने / सहसाद्य त्वदागमे / / साई // 54 // कलापरीदनेऽस्त्वं / प्रियो मे नृपसंसदि // श्मं गेहमिदं देहं / तन्नीतिज्ञ कृतार्थय / / // 55 // सौनागिनेय नेयत्या-र्थनया यदि तिष्टसि // तत्प्रयास्यसि मे हत्या-पापपंकस्य पात्र 140 तां // 56 // नवाधिकारिजिस्तस्या / वचनैस्तन्मनःस्थिताः // निस्वास्यंत ते साधू-पदेशाः प्रा. मियोगिनः // 17 // यातायांतं पुरा पौरा-श्चक्रुस्तन्मंदिरे न के / स्थिरलाम वायातः / सौरंदिन घरस मल्यो, कोश्ना कहेवाविना निधान मव्यु, तथा पुष्पविना फल मन्यु ने. // 14 // राज सनामां मारी कलानी परीदासमये आप मने प्रिय थ पड्या गे, माटे हे नीतिज्ञ! आप या मारं घर अने शरीर कृतार्थ करो? / / 55 // वळी हे सौनग्यवान मारी बाटली प्रार्थनाथी पण जो थाप नहि रहो तो हुँ जे आपघात करीश ते पापरूपी कादवना आपने गंटा नडशे. // 56 // | एवी रीते तेणीना वचनोरूपी नवा अधिकारिनए तेना मनमां रहेला साधुना नपदेशरूपी पू. वना अधिकारीनने दूर कर्या. // 27 // पूर्व तेणीने घेर कया पुरुषो न पावता तथा पाग ज | ता? परंतु या धम्मित तो जाणे स्थिरलममां याव्यों होय नहि तेम त्यांथी पागे वत्यो नहि.) P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Frust