________________ सार्थ 141|| धम्मि- पुनर्ययौ / / 57 // एतदाकर्ण्य मित्रेन्यः / सुन्नडा मुमुदेतरां // दृष्ट्वा मोदं सर्मिण्याः / सुरेखोऽ. प्यन्वमोदत // 27 // स्वस्थानगाया वेश्यायाः / सुरेंद्रः प्राहिणोदथ // अवमर्णीव दीनारा-ष्टसहस्रं दिने दिने // 60 // वेवराई घृतं गव्यं / जस्मनीव मया दहा / कुपात्रे न्यस्यते न्याय-पु. एयक्षेत्रोचितं धनं // 61 / / परं करोमि कि नारी-वाग्दादिष्यनियंत्रितः // सुवृत्तोऽपि गले बकः |स्त्रीलिः दिप्तोऽवटे घटः // 6 // एवं चिंतयतस्तस्य / पस्पंदे वाममीक्षणं / जीवतो मे न पु. // 50 // हवे ते मित्रो पासेथी ते वृत्तांत सांजळीने सुभा अत्यंत हर्ष पामी, तथा पोतानी स्त्री. नो हर्ष जोश्ने सुरेंद्र पण तेनुं अनुमोदन करवा लाग्यो. // एए / हवे ते सुरेंदत्त जाणे ते वे. श्यानो करजदार होय नहि तेम तेणीने घेर बेगंज रोजे रोज आठ हजार सोनामहोरो मोकलो थापतो तो. // 60 // अरेरे! घेवर बनाववालायक गायनुं घी जेम राखमां तेम न्यायपूर्वक पु. एयक्षेत्रमा वापरवालायक धन हुं कुपात्र ने आपुं ई, // 61 // परंतु शुं करुं के स्त्रीना वचननी दाक्षिण्यताथी बंधायेलो बुं केमके उत्तम गोळाकार घडाने पण स्त्रीने गळामां (दोरहुं ) बांधीने | कुवामां जतारे जे. // 6 // एम विचारतांथकां तेनी डावी आंख फरकी, थने तेथी तेणे विचा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust