________________ धम्मि-दितान्योऽन्य-कलाकौशलयोस्तयोः // विजिदे न मनः प्रीति-तंतुस्यूतमिव कचित // 7 // ए- / . सार्थ कचितौ कदाचित्तौ / समस्यान्योक्तिनगिनिः // जल्पाको जीवचारत्यो-भ्रमं कस्य न तेनतुः // | // // कदापि स्वादयंतौ तौ / मिथः सारकथारसं // ध्राताविव न जझाते-ऽशनवेलां गतामपि // 10 // अन्योऽन्यजीवितैश्वर्य / पणीकृत्य कदाचन // तो प्रीतिसारिकापाशः / सारिपाशैरदीव्यता // 11 // एवमन्योऽन्यकेंलीभिः / प्रियप्रेम्णा च मोहिता // सुजन तदिसस्मार / यत्प्रपन्नं जिनामहेलेथीज परस्पर कलाकौशल्यनी परीक्षा करवाथी तेन बन्नेनुं मन जाणे प्रीतिरूपी दोराथी सीवेवं होय नहि तेम कोश पण बाबतमां जूठं पडयु नहि. // 7 // कोश्क वखते एकमनवाळा तेन ब. ने समस्या तथा अन्योक्तिथी बोलताथका कोने बृहस्पति तथा सरस्वतीनो ब्रम न जपजाक्ता? ॥णा कोश्क वखते परस्पर उत्तम कथाना रसनो स्वाद लेता एवा तेन बन्ने जाणे धरा गया होय नहि तेम वीती गयेली भोजनवेळाने पण न जाणवा लाग्या. // 10 // एवी रीतनी परस्पर की. डाथी तथा स्वामिना प्रेमयी मोहित थयेली सुनडा जे जिनेश्वरप्रनुपासे नियम लीधो ढतो ते विसरी गइ. // 11 // घणा काळसुधि वियोग सहन कर्याबाद मळेला गोगोमां लोलुप थयेली। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust