________________ धम्मि- सुशिक्षिता अपि नृणां / प्रच्यवंते शुनः क्रियाः / / ए४ // प्रकृत्या निम्नगं वारि / प्रकृत्या चंचलः सार्थ | कपिः // जति विषयासक्ताः / प्रकृत्यैव शरीरिणः // 55 // श्यामतानिमता देहे / पांमुजन्मा न गौरता // तमः सर्वोत्तमं मन्ये / न प्रदीपन महः // 6 // ग्रामेऽनिराम शून्यत्वं / न वासस्त. | स्करैः कृतः // वरं मौग्ध्यं न वैदग्ध्यं / कुसंसर्गसमुद्भवं / / ए // युग्मं // यौवने नीचसंसर्गात् / कायुष्यं निर्मले कुले // के के नो जनयंतिस्म / पटे पंकलवा श्व // ए // त्रिदोषगहनस्यास्य। // ए३ // मनुष्योने दुर्बुछिन तो शिखव्याविना पण प्रकट थाय ने, परंतु शुभ कार्यो तो शिखाव्या उतां पण नष्ट थाय . // 4 // जल स्वनावधीज नीचे जनारंबे, तथा वानर पण खना. वधीज चपल होय , तेम प्राणीन पण स्वभावयीज विषयोमां आसक्त थाय . // 55 // श. रीरे श्यामपणुं सारं बे, परंतु कोढथी थयेधुं गौरपाणुं सारं नथी, वळ) अंधकारने सर्वथी हुँ सारो मान डं, परंतु बाग लगाडीने प्रकाश करवो सारो नथी. // ए६ // गाममां नऊडपणुं सारं, प. रंतु तेमां तस्करोए करेलो निवास सारो नहि, एवी रीते मुग्धपणुं सारंबे, परंतु कुसंगयी जत्पन्न थियेली चरा सारी नथी. // ए७ / / वळी वस्त्रमा जम कादवना अंशो, तेम युवावस्थामां नीच. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust