________________ धम्मि- यश्रोत्रियविप्रवत् // 5 // चेत्पाठयितुकामोऽसि / शास्त्राणि सुतमन्वहं // तत् किं धनवसोः पुः। मा त्र्यां / वृथा वैरमपोषयः // 50 // गोष्टी त्याजय निःदीण-कर्मणां विदुषां ततः // अमुं संगम यानंग-निष्टैललितगोष्टिकैः // 51 // अतुबः स्वबहृदयो / दीर्घदर्शिमतिस्ततः // सुरेडो वाक्य१२६] पीयूष-रोषतप्तामसिक्त तां // 72 // प्रिये मुग्धासि शांतोऽस्य / कामो नोपेत्य दीप्यते // को | नाम दंमाघातेन / शयितं बोधयत्यहिं // 73 / / अशिदिता अपि नृणां / प्रादुःषति कुबुध्यः // व्यसन लाग्यु ने. // 7 // व्यवहार जाण्याविना जणेलो पुरुष पण वेदीया ब्राह्मणनापेठे मूर्ख रहे . // Gए // जो तमारे पुत्रने हमेशां शास्त्रो जणाववानीज ना होती तो पनी फोकट ध. नवसुनी पुत्रीसाथे शामाटे वेर वसाव्यु ? // 50 // माटे हवे कर्मरहित मुनिननी सोबत तेने गेमावो, अने कामविलास जाणनार व्यभिचारिनी सोबत करावो? // 51 // हवे एवी रीते को. धथी तपेली प्रियाने गंजीर निर्मल मनवाळो तथा दीर्घदर्शी बुध्विाो सुरेंद्रदत्त (नीचेमजब) वचनरूपी अमृतथी सिंचवा लाग्यो. // ए॥ हे प्रिया! तुं तो मुग्ध , तेनो काम शांत पडे. खोने तेने बंबेडवो फायदाकारक नथी, केमके सुतेला सर्पने लाकडी मारी कोण जगाडे? // PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust