________________ धम्मि-| || 4 || सुगडायाः पुरोऽन्येत्य / धनदत्ताप्यगर्हत // कलाविलासं जामातु-धिक् स्त्रीणां चित्तवा. पलं // 5 // सुनद्रापि तदुक्त्याति–दूनेति प्रियमादिपत् // अनात्मदृष्टयो नार्यः / किं न कुर्युः परेरिताः // 6 // प्राप्तोऽपि यौवनं सोऽय / बालवत्पठनाग्रही / / न वेत्ति कंचनाचारं / गृहिणा मेष धम्मिलः // 7 // यस्य नार्या न वा कामो। न वा प्रणयिपोषणं / दिपदस्य यशोस्तस्य / | व्यसनं शास्त्रसंग्रहः / / 1 / / व्यवहारपरिझान -मंतरेण पुमान्ननु / / पतिोऽपि नवेन्मूर्खः / प्रिमाताने कह्यो, केमके स्त्रीनवच्चे यावी वातो थया करे बे. // 4 // त्यारे धनदत्ताए सुनद्रापासे यावीने (पोताना) जमाश्ना कलान्यासनी निंदा करी, धिकार ने स्त्रीना चित्तनी चपलताने. // 5 // तेणीना वचनथी सुजला पण अति खेद पामीने पोताना चारने जपालंज देवा ला. गी, कारणके परथी प्रेरायेली काचा मननी स्त्री शुं नथी करती? // 6 // युवान थया तां प. 'ण श्रापणो या धम्मिल बालकनीपेठे केवल अन्यासमांज लीन थश्ने गृहस्थीसंबंधि कई पण याचार जाणतो नथी. // 9 // वळी ते धन अथवा काम अथवा प्रेमीजनना पोषणसंबंधि कर पण जाणतो नथी, केवल बे पगवाळा पशुसरखा एवा तेने शास्त्रोनो (झाननो) संग्रह करखान P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust