________________ धम्मि- सौ साधु-खि लोगपराङ्मुखः // सुखं विषसंखं धन्यः / कामोपझममन्यत // 70 // अहारं करुः / गई रसाधारं / देहस्थित्यर्थमेव सः॥ अभुंक्त तृप्तिमापञ्च / शास्त्रैर्न च रसैः पुनः // 1 // अप्रमादी समादाय / निशीथे खटिकामसौ // मुक्ततल्पो लादणिकान् / प्रयोगानिरपीपदत् // 7 // पूर्वा 14 धीताः स्मरिष्यामि / गृहीष्ये च नवाः कलाः // इति चैयग्यतस्तेन / दिना यांतो न जझिरे // // 3 // यशोमती पितुर्गेहं / गता तद्भर्तृचेष्टितं / / आचष्ट सकलं मातु-र्गोष्टीयं हि मृगीदृशां // देवायी घर पहोंचतां पहेलांज खलास थयु. // 7 // (एवी रीते ) परण्या उतां पण ते साधु. नीपेठे जोगोथी विमुख थयो, तथा ते भाग्यवान विषयसुखने फेरसमान मानवा लाग्यो. // 7 // वळी ते फक्त शरीरने जाळ्ववामाटे पारस भोजन करवा लाग्यो, अने तृप्ति तो शास्त्रोथीज पा. म्यो, परंतु रसोथी नहि. // 71 // वळी मध्य रात्रिए पण बिगनामांथी गठीने ते प्रमादरहित खडी लेश्ने व्याकरणना प्रयोगो साधवा लाग्यो. / / 72 / / पूर्व गणेली कला हुं याद करीश बने नवी ग्रहण करीश एवा विचारमांज लीन थश्ने ते जता दिवसोने पण न जाणवा लाग्यो. // / // 3 // हवे पिताने घेर गयेली यशोमतीए (पोताना) स्वामीनो ते सपळो वृत्तांत (पोतानी) | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust