________________ धम्मि- वृतत् कर्तु-मुपाध्यायो यथाविधि // 1 // ( चतुर्निः कलापकं ) स्वर्णवर्णी पद्ममाला-मानय त सचेतनाः // श्त्यसौ पद्मपूजार्थी / शिष्यान्यदान समादिशत् // 7 // तेऽपि भ्रांत्वा सुवर्णा ब्ज-मालां मालाकृदापणात // सरसश्च समानिन्यु-रहपूर्विक्रया स्यात् // 73 / / सारसौरजसं १ए जार-भ्रमितमरौघया // देवानर्चस्तया विप्रः / सामुद्रमैहत ज्या तावद् नृपालसूः पद्म मालाख्यां कनकलविं / / दासीमानीतवानीति-मंदधीरात्ममंदिरात् // 75 // किमेतदिति पृष्टश्चो-- // 1 // कमलपूजाना अर्थी ते नपाध्याये सर्व शिष्योने हुकम कर्यो के हे बुध्विानो! तमोसो. नेरी रंगनी कमळमाळा लावो? // 2 // त्यारे तेन पण स्पर्धापूर्वक जमीने माळीनी दुकानेथी तथा तळावमांथी सोनेरी कमळ्नी माळा लाव्या / / 73 // नत्तम सुगंधना समूहथी (लल. चायेला) जमरना समूह जेनी आसपास नमी रह्या बे एवी ते माळाथी देवोने पूजतों एवो ते ब्राह्मण सुरेंद्रदत्तनुं कल्याण श्ववा लाग्यो. जातेटलामांव्यवहरामां मंदमतिवाळो राजपुत्रपोतानाघेरथी सोनरी कांतिवाळी (रुपवान् ) पद्ममाला नामनी दासीने त्यांलाव्यो ।शा त्यारे उपाध्याय नापनवाथी तेणेपण खरेखलं कडं, केमके प्रायें नोलो मनुष्य पोतानो गुन्हो बुपाववाने समर्थ थ. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust