________________ धम्मि पाध्यायेन यथातथं / / सोऽन्यधान्न प्रनुः प्रायो / मृदुधीर्मतुनिह्नवे // 6 // बिमाली शकुनावि सार्थ / दासी दृष्ट्वादितो गुरुः / दध्यावध्यापितोऽप्येष / धीवंध्यो ही दृषयते // 7 // मखे वीक्ष्य पशु. वात-घातं जातकृपेण किं // स एष मेषः पुंवेषः / ससृजे विश्वरेतसा / / || नद्यमे सति का. पेयं / व्यत्ययेऽजगरायितं // यशो बिधाप्यवसरा-ऽननिझानां हि उर्खन्नं // 7 ॥अप्यंबु पालोकाद्या / विनावसरमप्रियाः // धूलिधूमांधकाराया / हृद्या अवसरे पुनः // 50 // क देवपूजावस. तो नथी॥ 6 // शकुन जोनारो माणस जेम बीलाडीने तेम ते दासीने जोश्ने खेद पामेला गुरुए विचार्यु के घरेया तो जणाव्या उतां निर्बुछि पत्थर जेवोज रह्यो।।७।। यज्ञमांथती पशसम. हनी हिंसाने जोश्ने जाणे दयायीज विधाताए आने पुरुषरूपे घेटोज बनाव्योहोय नहि तेमलागे // 7 // अवसरने नहि जाणनारा माणसनो उद्यम कपिचापव्यतरके, तथा तेनुं बालस अ जगरना आचरणसरखं गणाय , एवीरीते तेजने बन्ने रीते यश मळयो दुर्लन ने // Gणा वळी अवसरविनाना जल बाजूषण तथा नाटकादिक पण अप्रिय थपडे , धने अवसरेतो धूळ, धूमामो तथा अंधकारमादिक पण प्रिय थाय . / / ए० // गोवाळीयासरखा या राजपुत्रे एटर्बु P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust