________________ धम्मि- रः / क दासी दुरितास्पदं // गोपालेनेव गोपाल-भुवेत्यपि न चिंतितं // 1 // फूत्कुर्वतोऽमिनि / ण-मिव जस्मावगुंठनं // अमुं पाठयतः कंठ-शोष एव फलं मम / ए॥ सुरेऽदत्तश्रेयोऽ थें / दैवतं वरिखस्यतः // मुदासीनस्य दासीयं / यन्मे दृग्गोचरं गता // 3 // तन्मन्ये प्रागसौ 21 | नृत्वा / श्रिया श्रीदस्य सोदरः // अंते विपत्स्यते नीच-वनिताजनितार्तितः // ए४ // विचार्येत्य शुचिमन्यो / दासीदर्शनतो हिजः // रजोभृत श्व स्नानं / पुनश्चक्रेऽमलैज लैः // 55 // हसि. पण विचार्यु नहि के क्या था (मारो) देवपूजानो अवसर! अने क्यां आ पापोनास्थानकरूप दासी ! // 1 // उरी गयेला यामिने कुंकतो माणस जेम राखथी पाबादित थाय ने, तेम था: ने नणावमां केवळ कंठशोषरूप फल मने (मन्यु ) // 9 // सुरेंद्रदत्तना कल्याणमाटे देव. नु पूजन करती वखते हर्षथी बेला एवा मने जे या दासी नजरे पडी // 3 // तेथी हं ए. म धारुं बुं के प्रथम ते लक्ष्मीथी कुबेर सरखो थश्ने अंते नीच स्त्रीथी उत्पन्न थयेली पीडाथी थापदा पामशे // 4 // एम विचारीने ते ब्राह्मणे ते दासीना दर्शनथी पोताने अप. वित्र थयेलो मानीने धूळथी जरायेला मनुष्यनीपेठे फरीथी स्नान कर्यु // 55 // हवे अन्य वि. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aarauak Trust