________________ - धम्मि- छनं तस्य / चलाचलगंचलैः // 9 // नायं क्वेशस्य रोषस्य / जातु हेतुर्ममानवत // अदर्शयच्च ‘माई न स्नेह-विनेदं पितृवन्मयि // 70 // मन्येऽदर्शि सदोपास्ति-तुष्टैर्दै वैरसौ मम // तत्तानेव पुनः | सेवे-ऽमुष्य मंगलकाम्यया // 45 // ध्यात्वेति विहितस्नानो / वसानः शुक्लवाससी // धृताल्प हेमालंकारो / विकारोनितमानसः // 70 // स्वं मंत्रपूतं निर्माय / प्राणायामपुरस्सरं // देवाची प्रा. // 16 // (ते समये ) जाणे कलंकित थयो हो नदि तेम विद्यार्थीनो समूह साथी ज्यारे नीचां मुखवाळो थयो त्यारे सुनडा चपळ कटादोथी तेनुं न्युजन करवा लागी सुरेंद्रदत्त कदापि पण मने क्लेश के क्रोधना हेतुरूप थयो नथी तेमज तेणे मारा प्रत्ये पितानी पेठे अभिन्न स्नेह देखाडेल . // 7 // वळी हुँ एम मानुडं के हमेशनी पूजायी संतुष्ट थयेला देवोए मने था सुरेंद्रदत्त देखाड्यो , माटे तेना कल्याणनी बायी हुं तेज देवोने सेव॑ / / | एम विचारीने स्नान करी श्वेत वस्त्र पहेरीने तया स्वल्प वर्णालंकारो धारणकरीने विकाररहित | मनथी 10 प्राणायामपूर्वक पोताना आत्माने मंत्रथी पवित्र करीने विधिपूर्वक देवपूजा करवालाग्यो.. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust