________________ धम्मि- तमना नृपः / स्वांतिके तमतिष्टिपत् // वल्लीषु कटपवनीव / कलासु किल वाकला // 34 // रांझा सार्थ रत्नाकरेणेव / कल्पिताखिलवृत्तिकः // पाल्यमानश्च पित्रेव / सोऽर्थानापन्नवान्नवान् / / 35 // स्वैरा हारविहारादि-चेष्टासंतुष्टचेतसा // शतानि पंच गाथाना-मनिशं तेन तेनिरे // 36 // ये म. 114 / हाकवयः शास्त्र-पारीणाः प्रतिजाजुषः / / तानवझापदं कुर्वन् / राजारज्यत्तदुक्तिभिः / / 37 // ते दध्युरमुना राजा / हहा मूढेन मोहितः // यदा गोपेन गोपोऽयं / प्रीयते तत् किमद्भुतं // 30 // नवीन अर्थोथी मनोहर काव्यो रचीने ते राजानी स्तुति करवा लाग्यो. // 33 // त्यारे राजाए पण मनमां चमत्कार पामीने तेने पोतानी पासे राख्यो, केमके वेलडीनमां जेम कल्पवल्ली तेम कला-मां वचनकला श्रेष्ट बे. // 34 // परी महासागरसरखा राजाए तेनी सर्व भाजीविका करी थापी, तथा पितानीपेठे पायो, अने तेथी ते पण नवीन धनने प्राप्त थयो. // 35 // वाम जब जोजन तथा विहार यादिकनी चेष्टाथी मनमां अानंद पामेलो ते कवि हमेशां पांचसो गा. थान रचवा लाग्यो. // 36 // जे शास्त्रोना पारंगामी तथा बुध्विान महाकविन हता, तेजना पण अवज्ञा करीने राजा फक्त तेनीज वाणीथी खुशी थवा लाग्यो. // 35 // त्यारे ते महाकवि PP.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust