________________ साथै धम्मि- सत्काव्येन्योऽपि पानां / प्रायो नीचोक्तयः प्रियाः // दुर्वृत्ता दयिता दास्यः / कुलस्त्रीन्योऽपि का. | मिनां / / 37 // राजप्रसादानध्यायः / कलावत्स्वखिनेष्वपि // अयमत्र समायतो / दारियं च गृ. हेषु नः // 40 // यद्येतद्विषयं किंचिद् / जुजोऽस्मानिरुच्यते // ईर्ष्यापदे निपतति / तत्सर्व किं 115 प्रकुर्महे / / 41 // जपायांतरमासूत्र्य / ततस्ते जगदुर्नृपं / नवः कविरयं देव / जाग्यैरासादितस्त्व न विचारवा लाग्या के अरे! या मूढे तो राजाने मोहित कर्यो ! अथवा गोपालथी (गोवाळथी) गोपाल (राजा) खुशी थाय तेमांशु आश्चर्य ! / / 30 // नत्तम कविजनां काव्यो करतां पण प्रायें राजानने नीचनां वचनो प्रिय लागे , केमके कामी पुरुषोने कुलीन स्त्रीने का रतां चराचारी दासीन प्रिय थ पडे बे. // 35 // था तो सर्व कलावानोप्रते राजानी अकृपानो अवसर थाव्यो, थने तेथी आपणा घरोमां तो हवे दरिडपणुं दाखल थयु. // 40 // वळी था. ना संबंधमां जो आपणे राजाने कई कहीये छीये तो ते पण सघर्बु ईर्ष्या तरीके गणाय ने, मा. टे हवे आपणे शुं करवं? // 41 / / पड़ी तेनए एक उपाय शोधीने राजाने कडं के हे स्वामी जाग्यना नदयथीज आपने या नवो कवि मळेलो . // 42 // वळी था पशुपाल के एम वि. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust